1 January 2014

HUMAN NATURE

मनुष्य   किसी   भी   व्यवस्था   से   संतुष्ट   नहीं   हो   पाता  । इनसान   समग्रता   में   जीना   चाहता   है  और   सभी   आयामों   में   विकसित   होना   चाहता   है  ।  समग्रता   का  तात्पर्य   है -- शारीरिक , मानसिक  एवं   भावनात्मक   रूप   से   समृद्ध   होना  । वह   शारीरिक   रूप   से   तृप्त   होना   चाहता   है , उसकी   इंद्रियां   अतृप्त   रहना   नहीं   चाहतीं  ।
शारीरिक   रूप   से   तृप्ति   होने   के   बाद   वह   मानसिक   रूप   से   तुष्ट   होना   चाहता   है  ।
जब   व्यक्ति   शरीर   एवं   मन   से   तृप्त   एवं  तुष्ट   हो   जाता   है   तो   वह   भावनात्मक   रूप   से   पुष्ट   होना   चाहता   है   । जब   तक   उसे   भावनात्मक   संबल   नहीं   मिलता   है , तब   तक  वह   सब   कुछ   पाकर   भी  कुछ   खोये   हुए   को   पाने   के   लिये   भाग - दौड़  मचाता   रहता   है  । यह   भाग - दौड़  भावनात्मक   एवं   आत्मीयता   के   सतरंगी   सौंदर्य   को   पाने   के   लिये   होती   है  ।  यही   है   समग्रता   और   व्यक्ति   इसी   में   जीना   चाहता   है  ।
       व्यक्ति   ऊँची   उड़ान   भरना   चाहता   है , आसमान   की   सर्वोच्च   बुलंदियों   को   छू   लेना   चाहता   है  ।  वह   वहाँ   भी   रहना   चाहता   है   और  वहाँ   से   वापस   आकर  जमीन   में   भी   जीना   चाहता   है  । वह   न   तो   केवल   जमीन   से   ही   जुड़े   रहना   चाहता   है   और   न   ही   पंख   लगाये   केवल   आसमान   में   उड़ते   रहना   चाहता   है  ।  वह   दोनों   जगत   में   समान   रूप   से   जीना   चाहता   है  ।
           यही   तो   अध्यात्म   है   ।
उपनिषदों  में   इसी   अप्रतिम   और   सर्वोच्च   उड़ान   की   कल्पना   की   गई   है  ।
व्यक्ति   ऐसी   व्यवस्था   चाहता   है  जहां   वह   समग्र   रूप   से   विकास   कर   सके  ।  शरीर   से , मन   से   एवं   भावनाओं   से  वह   सभी   रूपों   में   संतुष्टि   प्राप्त   कर   सके  ।
      आज   ऐसे   ही   समग्र   समाज   की   आवश्यकता   है , जहां   व्यक्ति   श्रेष्ठ   एवं   सभ्य   हो   और   अपने   विचारों   एवं   भावनाओं   से   ऊँची   उड़ान   भर   सकता   हो  ।
ऐसी   नवीन   मानवता   के   लिये   व्यक्ति   को  स्वयं   को   बदलना   होगा  , अपने   मनोभावों   को   श्रेष्ठता   के   प्रति   समर्पित   करना   होगा   ।
जीवन   में   संवेदना , सेवा , सहायता   एवं   पवित्रता   के   बीज   का   अंकुरण   करके   ही   समग्रता   को   प्राप्त   किया   जा   सकता   है   ।  

WISDOM

' मनुष्य   पाप   करके   यह   सोचता   है   कि   मेरा   पाप   कोई   नहीं   जानता ,पर   उसके   पाप   को   न   केवल   देवता   जानते   हैं , बल्कि   सबके   ह्रदय   में   स्थित   परमपिता   परमेश्वर   भी   जानते   हैं  । '