29 June 2013

POVERTY ?

'धनहीन दरिद्र नहीं होते भावहीन दरिद्र होते हैं | दरिद्र का मन छोटा होता है उसकी सोच छोटी होती है | '
      रसायन शास्त्री अलबर्ट मोरीसन को प्राचीन पदार्थ शास्त्र के अन्वेषण की सनक थी | "पारस पदार्थ है या कल्पना ?"इस समस्या का हल खोजने वे भारत आये और घूमते -भटकते वह दुर्गम हिमालय पहुँच गये | एक स्थान पर उन्होंने एक साधु को देखा जिनके देह की आभा स्वर्णिम थी और आँखों से करुणा झर रही थी |
        अल्बर्ट ने उनसे कहा -"काश !एक बार मैं 'पारस 'देख पाता "| साधु हँसे और बोले -"तुम पारस क्यों  चाहते हो ?वह कोई ऐसा पदार्थ नहीं कि मात्र कौतूहल निवृत्ति के लिये उसे पाया जा सके ,उसे पा लेने पर समाज में कितनी अव्यवस्था हो जायेगी ,यह तुम क्यों नहीं सोचते ?"
             अल्बर्ट ने प्रार्थना के स्वर में कहा -"आज कितने कंगाल हैं लोग ,दरिद्र हैं | केवल कुछ घंटों के लिये पारस मिल जाये तो मैं उससे स्वर्ण बनाकर आपके देश के दरिद्रों की सेवा करूंगा ,उनके दुःख दूर करूंगा | "
      साधु ने समझाया -"जो संपति के अभाव में दुखी हैं वे दरिद्र हैं | मेरे पास एक पैसा भी नहीं लेकिन मुझे दरिद्र मानकर मेरी सहायता करने की बात तुम सोच भी नहीं सकते | "
           साधु ने उन्हें आज्ञा दी कि तुम दो दिन के लिये बम्बई चले जाओ उसके बाद यदि पारस की आवश्यकता प्रतीत हो तो यहाँ आ जाना
             अब अलबर्ट मोरिसन रेल के प्रथम श्रेणी के डिब्बे में यात्रा कर रहे थे | उस डिब्बे में एक यात्री और था ,उसके कोट में हीरे के बटन ,अंगूठी में बड़ा सा नीलम ,बहुत संपन्न थे | लेकिन बार -बार गहरी श्वास लेना ,नेत्र पोछना ,उदास चेहरा ,लगता था कोई बड़ा दुःख उन पर आ गया | स्टेशन पर गाड़ी रुकी -गोद में नवजात शिशु लिये ,मैले -फटे वस्त्रों में ,दीनता की साकार मूर्ति एक कंगाल भिक्षुणी आई ---'बाबू !एक पैसा !
"चल !भाग यहाँ से "संपन्न व्यापारी ने उसे दुत्कार दिया | अलबर्ट को बहुत खेद हुआ ,उन्होंने अपनी जेब से एक नोट निकालकर भिखारिन के हाथ पर रख दिया | वह बहुत खुश ,दुआ देती चली गई | व्यापारी महोदय अपने आप से बोल रहे थे -ये भिखारी अब भी पिंड नहीं छोड़ते | अलबर्ट को जानने की इच्छा हुई कि 'इन्हें क्या कष्ट है ',लेकिन वे चुप रहे |
                                        दूसरे दिन होटल के कमरे में सुबह जब उन्होंने अख़बार देखा तो चौंक पड़े | समाचार के प्रथम पेज पर लिखा था -"भारत के प्रसिद्ध व्यापारी .........ने कल रात आत्म हत्या कर ली | अलबर्ट को याद आया ये नाम तो वही है जो साथ यात्रा करने वाले यात्री के बक्से पर था | समाचार में विवरण था -उन्हें अपने सट्टे के व्यापार में लगभग एक अरब का घाटा लगा ,उसे दे डालने पर उनकी अपने रहने की कोठी और दस -बारह करोड़ की संपति बच रहेगी | उन्हें याद आया कि वे व्यापारी बडबडा रहे थे कि मैं कंगाल हो गया ,आज का अरबपति दरिद्र हो गया
दरिद्र ! दरिद्र !  अलबर्ट चौंके -"दस -बारह करोड़ और कोठी ,फिर भी दरिद्र और आत्म हत्या कर ली जबकि
वह भिखारिन -केवल एक रूपये का नोट पाकर आनंद से खिल उठी |
  दोनों में दरिद्र कौन ?अब उन्हें साधु के वचन याद आये --जिनका चित संपति के अभाव में दुखी है वे दरिद्र हैं
संपति के अभाव की कोई सीमा नहीं ,इसका अर्थ है -जिसे असंतोष है ,वह दरिद्र है | ऐसी दरिद्रता को तो
पारस कैसे दूर कर सकता है |
साधु ने ठीक ही कहा था -"यदि किसी को कुछ सार्थक देना है तो उसे विचार दो ,जीवन जीने की कला सिखाओ ,
       अब वैज्ञानिक में पारस पाने की कोई इच्छा नहीं थी ,वे पूछना चाहते थे कि योरोप के लिए वायुयान कब जा
रहा है |