मनुष्य अपने स्वार्थ , लालच और अहंकार के कारण इस सत्य को भुला देता है l इस कारण अपने से कमजोर का शोषण करता है , उनको मिटाने का प्रयास करता है l फिर प्रकृति का चक्र ऐसा चलता है कि कमजोर को मिटाने का प्रयास करने वाला स्वयं ही मिट जाता है l
जो गरीब हैं , कमजोर हैं वे बचपन से ही कष्टों में रहते हैं , इस कारण उनमे संघर्ष करने की क्षमता बहुत होती है l यदि वे और गरीब हो जाएँ , उनके कष्ट और अधिक बढ़ जाएँ तो भी वे फूल - पत्ते खाकर संघर्ष कर के जी लेते हैं l
वक्त बदलता है ----- गरीब और गरीब हो गए , परिस्थितियों की मार से , कभी आपदाओं से जो मेहनत - मजदूरी कर रहे थे उनका भी रोजगार चला गया , वे भी गरीब हो गए l मध्यम वर्ग बेचारा , जो भीख नहीं मांग सकता , न भीख ले सकता है , न ही अपना दुःख किसी से कह सकता है l परिस्थितियों की मार से वह अपने खर्च में कटौती कर लेता है , अपनी आवश्यकताओं को कम से कम कर लेता है l सारे शौक , सब इच्छाओं पर नियंत्रण कर लेता है l हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है ---- l
उद्दोग - धंधे भी तभी चलेंगे जब उनका माल खरीदने वाले होंगे l वे स्वयं भी अपना माल खरीदने के लिए पैसे बाँट दे , तब भी ' कल स्थिति और बदतर न हो जाये ' इस बात का भय और निराशा के कारण वे केवल जरुरी खर्च ही करेंगे l
यहाँ महत्वपूर्ण बात यह है कि जो लोग सुनहरे पालने में झूला झूलकर, हर तरह की सुख - सुविधाओं में रहकर बड़े हुए , उनके लिए किसी प्रकार की हानि सहना , कष्ट सहन करना , संघर्ष करना असहनीय होता है l
बढ़त - बढ़त सम्पति सलिल मन सरोज बढ़ जाये l
घटत - घटत फिर फिर न घटे बस समूल कुम्हलाय l
भाव यह है कि कमल का फूल पानी में डूबता नहीं l पानी बढ़ने से कमल नाल बढ़ती जाती है , पर पानी घटने से घटती नहीं , समूल कुम्हला जाती है l सम्पत्तिवानों की इच्छाएं असीम बढ़ती जाती हैं , पर जैसे ही सम्पति गई , इच्छाएं घटती नहीं , आदत बनी रहती है l
काल का पहिया घूमता रहता है l इस काल चक्र से कोई भी व्यक्ति , कोई भी क्षेत्र अछूता नहीं रहता l माला का एक मोती खराब हो जाये , टूट जाये तो पूरी माला ख़राब होगी , अंतर केवल इतना है कि कोई मोती पहले ख़राब होगा , कोई बाद में l
जो गरीब हैं , कमजोर हैं वे बचपन से ही कष्टों में रहते हैं , इस कारण उनमे संघर्ष करने की क्षमता बहुत होती है l यदि वे और गरीब हो जाएँ , उनके कष्ट और अधिक बढ़ जाएँ तो भी वे फूल - पत्ते खाकर संघर्ष कर के जी लेते हैं l
वक्त बदलता है ----- गरीब और गरीब हो गए , परिस्थितियों की मार से , कभी आपदाओं से जो मेहनत - मजदूरी कर रहे थे उनका भी रोजगार चला गया , वे भी गरीब हो गए l मध्यम वर्ग बेचारा , जो भीख नहीं मांग सकता , न भीख ले सकता है , न ही अपना दुःख किसी से कह सकता है l परिस्थितियों की मार से वह अपने खर्च में कटौती कर लेता है , अपनी आवश्यकताओं को कम से कम कर लेता है l सारे शौक , सब इच्छाओं पर नियंत्रण कर लेता है l हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है ---- l
उद्दोग - धंधे भी तभी चलेंगे जब उनका माल खरीदने वाले होंगे l वे स्वयं भी अपना माल खरीदने के लिए पैसे बाँट दे , तब भी ' कल स्थिति और बदतर न हो जाये ' इस बात का भय और निराशा के कारण वे केवल जरुरी खर्च ही करेंगे l
यहाँ महत्वपूर्ण बात यह है कि जो लोग सुनहरे पालने में झूला झूलकर, हर तरह की सुख - सुविधाओं में रहकर बड़े हुए , उनके लिए किसी प्रकार की हानि सहना , कष्ट सहन करना , संघर्ष करना असहनीय होता है l
बढ़त - बढ़त सम्पति सलिल मन सरोज बढ़ जाये l
घटत - घटत फिर फिर न घटे बस समूल कुम्हलाय l
भाव यह है कि कमल का फूल पानी में डूबता नहीं l पानी बढ़ने से कमल नाल बढ़ती जाती है , पर पानी घटने से घटती नहीं , समूल कुम्हला जाती है l सम्पत्तिवानों की इच्छाएं असीम बढ़ती जाती हैं , पर जैसे ही सम्पति गई , इच्छाएं घटती नहीं , आदत बनी रहती है l
काल का पहिया घूमता रहता है l इस काल चक्र से कोई भी व्यक्ति , कोई भी क्षेत्र अछूता नहीं रहता l माला का एक मोती खराब हो जाये , टूट जाये तो पूरी माला ख़राब होगी , अंतर केवल इतना है कि कोई मोती पहले ख़राब होगा , कोई बाद में l