श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान कहते हैं --- अनेक अस्त्र - शस्त्रों में मैं वज्र हूँ l पुरातन काल में एक युग ऐसा आया जब पाताल के साथ धरती और स्वर्ग भी असुरों के आधीन हो गए l असुर बहुत प्रबल हो गए l देवों के किसी भी अस्त्र का उन पर कोई प्रभाव नहीं होता था l थक - हारकर सभी देवता ब्रह्मा जी और देवगुरु बृहस्पति के साथ भगवान नारायण के पास गए और अपनी समस्या कही l भगवान नारायण बोले ---- " उपाय तो है ---- यदि सृष्टि के सर्वश्रेष्ठ तपस्वी की अस्थियों से हथियार बनाया जाए तो उस से आसुरी संकट समाप्त हो जायेगा l " यह उपाय अति विलक्षण था , ब्रह्म देव ने पूछा --- " भगवन ! ऐसा महान तपस्वी कौन है ? " उत्तर में भगवान विष्णु ने कहा ---- " ऐसे तपस्वी केवल दधीचि हैं l " देवता पूछने लगे कि क्या वे अपनी अस्थियाँ देंगे l इस पर भगवान नारायण बोले --- " वे भगवान शिव के शिष्य हैं l लोकहित के लिए वे कुछ भी कर सकते हैं l " हुआ भी यही l लोकहित के लिए उन्होंने योगबल से अपने प्राण त्याग दिए और अपनी अस्थियाँ दान में दे दीं l उनसे वज्र बना और असुर पराजित हुए l वह अमोघ वज्र भगवान का अपना स्वरुप ही है l
11 November 2020
WISDOM ------
एक संत बियाबान में झोंपड़ी बनाकर रहते थे l वे राह से गुजरने वाले पथिकों की सेवा करते और भूखों को भोजन कराया करते l एक दिन एक बूढ़ा व्यक्ति उस राह से गुजरा l उन्होंने हमेशा की तरह उसे विश्राम करने को स्थान दिया और फिर खाने की थाली उसके आगे रख दी l बूढ़े व्यक्ति ने बिना प्रभु का स्मरण किए भोजन प्रारंभ कर दिया l जब संत ने उन्हें याद दिलाया तो वे बोले ---- " मैं किसी भगवान को नहीं मानता l l " यह सुनकर संत को क्रोध आ गया और उन्होंने बूढ़े व्यक्ति के सामने से भोजन की थाली खींचकर उसे भूखा ही विदा कर दिया l उस रात उन्हें स्वप्न में भगवान के दर्शन हुए l भगवान बोले --- " पुत्र ! उस वृद्ध व्यक्ति के साथ तुमने जो व्यवहार किया , उससे मुझे बहुत दुःख हुआ l " संत ने आश्चर्य से पूछा ---- " प्रभु ! मैंने तो ऐसा इसलिए किया कि उसने आपके लिए अपशब्दों का प्रयोग किया l " भगवान बोले ---- " उसने मुझे नहीं माना तो भी मैंने आज तक उसे भूखा नहीं सोने दिया और तुम उसे एक दिन का भी भोजन न करा सके l " यह सुनकर संत की आँखों में आँसू आ गए और स्वप्न टूटने के साथ उनकी आँखें भी खुल गईं l