पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----- ' शत्रु से सतर्कता ही शूरवीरों को संसार में बड़े - बड़े काम करने के लिए सुरक्षित रखा करती है l ' आचार्य श्री लिखते हैं --- " साहसी शत्रु की अपेक्षा कायर शत्रु से अधिक सतर्क एवं सावधान रहने की जरुरत है क्योंकि कायर की जब वीर से विसाती नहीं तब वह कुटिलता पर उतर आता है l लोभी और दुष्ट , इन दो के लिए संसार में कोई भी घात अकरणीय नहीं होती l "
31 March 2021
30 March 2021
WISDOM ------
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----- ' जाति -द्रोही विजातियों से अधिक भयंकर तथा दंडनीय होता है l ऐसे व्यक्ति अपने स्वार्थ के लिए शत्रुओं के प्रति तो बड़े सच्चे तथा वफादार रहते हैं लेकिन अपने देश व समाज के लिए नहीं रह पाते l जिस सच्चाई और भक्ति का प्रमाण वे विपक्षियों का हित साधन में देते हैं , उसका प्रमाण यदि वे देश , धर्म तथा समाज के हित में दें तो उनका अधिक सम्मान और अधिक लाभ हो सकता है लेकिन उन्हें तो शत्रुओं की चाटुकारी और अपनों को हानि पहुँचाने में ही सुख - संतोष अनुभव होता है l ऐसे ही व्यक्ति देश तथा धर्मद्रोही का अपनाम पाकर इतिहास के कलंकित पृष्ठों में लिखे जाया करते हैं l
29 March 2021
WISDOM ------
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- ' परमात्मा न तो अपने हाथ से किसी को कुछ देता है और न छीनता है l वह इन दोनों के लिए मनुष्य की आंतरिक प्रेरणा द्वारा परिस्थितियाँ उत्पन्न करा देता है , आप तटस्थ भाव से मनुष्य का उत्थान - पतन देखा करता है l जो कर्मयोगी अपने जीवन का विकास क्रमबद्ध योजना के अनुसार किया करते हैं उन्हें अपनी सफलता के आधार ज्ञात रहते हैं और वे हर मूल्य पर उनकी रक्षा कर के अपनी सफलता तथा उन्नति को स्थायी बना लेते हैं l वे इस तथ्य को जानते हैं कि अहंकार की अपेक्षा शालीनता में अधिक सुख और गौरव है l
26 March 2021
WISDOM -----
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----- कायरता इस समाज का सबसे बड़ा कलंक है l संसार के समस्त उत्पीड़न का दायित्व कायरों पर है l ' असुरता तो संसार में शुरू से है , लेकिन उसका रूप इतना भयावह नहीं था , जितना कि वर्तमान समय में है l हमने जिस तीव्र गति से वैज्ञानिक प्रगति की है , उसी गति से अपराध भी बढे हैं l विज्ञानं ने मनुष्य को नास्तिक बना दिया l अब लोग केवल दिखावे के लिए ईश्वर का नाम लेते हैं , हृदय से उन पर , प्रकृति पर विश्वास नहीं करते , स्वयं को श्रेष्ठ समझते हैं लेकिन पहले लोग ईश्वर के बनाए कर्म विधान से डरते थे , ईश्वर पर विश्वास रखते थे , और ईश्वर विश्वास ही आत्मविश्वास है ,और आत्मविश्वासी ही साहसी होता है l ईश्वर ने जब भी धरती पर मनुष्य के रूप में जन्म लिया तो अपने आचरण से समाज को शिक्षा दी , हमें अपने जीवन में सही मार्ग का चयन करना सिखाया जैसे ---- भगवान श्रीराम ने बलवान किन्तु अन्यायी , अधर्मी बालि को छोड़कर दीन - हीन सुग्रीव को अपना मित्र बनाया l यदि भगवान श्रीराम चाहते तो महाबलशाली बालि से मदद लेकर तत्काल समस्या का समाधान पा सकते थे , परन्तु श्रीराम ने स्वेच्छाचारी अन्यायी को छोड़कर सदाचारी दीन का पक्ष लिया l
25 March 2021
WISDOM -----
रास्ते में चलते - चलते रात हो जाने से एक मछली बेचने वाली ने किसी एक मालिन के घर का आश्रय लिया l मालिन ने उसे पुष्पगृह के बरामदे में ठहराया और यथायोग्य उसकी सेवा की , परन्तु मछली वाली को किसी तरह नींद न आई l अंत में वह समझ गई कि पुष्पगृह में रखे हुए नाना प्रकार के खिले हुए फूलों की महक से ही उसे नींद नहीं आ रही है l तब उसने मछलियों की टोकरी में जल छिड़क कर उसे सिराहने रख लिया और फिर सुख से सो गई l इसी प्रकार मछली वाली की भाँति विषयी और अज्ञानी मनुष्यों को संसार की सदी दुर्गन्ध को छोड़कर और कुछ अच्छा नहीं लगता है l
24 March 2021
WISDOM ----- सत्य कभी पराजित नहीं होता l
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी मानव मन के मर्मज्ञ थे , वे कहते हैं ----- " जो सच्चा शूरवीर होता है , वह राह पर सच्चाई के साथ आगे बढ़ता है और दूसरों को आगे बढ़ाने में भी मदद करता है l समाज में कुछ लोग ऐसे भी होते हैं , जो अपने से संबंधित किसी भी सच्चाई को स्वीकार करना ही नहीं चाहते और सच्चाई को छुपाने के लिए भाँति -भाँति के आडम्बर ओढ़ते हैं झूठ बोलते हैं l आचार्य श्री लिखते हैं ---झूठ का सहारा लेने वाला आत्मविश्वासी नहीं होता , वह हीन ग्रंथियों से घिरा होता है और दूसरों से लाभ प्राप्त करने के लिए उनके साथ छल करता है , उन्हें धोखा देता है l ओढ़े गए आडम्बर कभी भी जीवन में सुकून और शांति नहीं देते l एक -न -एक दिन सच लोगों के सामने आ जाता है l रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं ---' उघरहिं अंत न होइ निबाहू , कालनेमि जिमि रावण राहू l ' ------ हनुमानजी जब संजीवनी बूटी लेने जा रहे थे तब रावण के कहने पर कालनेमि ने साधु का वेश धारण किया l हनुमानजी उसकी रामभक्ति से प्रभावित हुए लेकिन जब उन्हें पता चला कि यह तो राक्षस है ,उनका मार्ग रोकने के लिए यह सब कर रहा है तो उन्होंने तत्काल ही उसका वध कर दिया l इसी तरह रावण ने वेश बदलकर , साधु का रूप धरकर सीताजी का अपहरण किया l कपट का दंड था कि रावण के साथ सम्पूर्ण राक्षस वंश का अंत हो गया l इसी तरह जब राक्षसी का पुत्र राहु अमृत पान करने के लिए देवताओं के बीच में बैठ गया l जैसे ही उसका सच पता चलकर भगवान ने सुदर्शन चक्र से उसका गला काट दिया l ढोंग और आडम्बर कर के जो कार्य किया जाता है उसका परिणाम दुःखद होता है l
23 March 2021
WISDOM -------
श्रीमद् भगवद्गीता में भगवान कहते हैं ----- " गुणों और कर्मों के आधार पर चार वर्णों ---ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य और शूद्र की रचना मेरे द्वारा ही की गई है l यह विभाजन जाति के आधार पर नहीं है l जिन्हे ज्ञान की ललक है , परमात्म ज्ञान को जन - जन तक पहुँचाना चाहते हैं , वे ब्राह्मण हैं l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने मनुस्मृति का हवाला देते हुए कहा है कि जन्म से तो सभी शूद्र होते हैं , पर संस्कारों से ब्राह्मण बनते हैं l तीन श्रेणियाँ हैं ब्राह्मण बनने की l श्रम करेंगे तो धन आएगा , समाज के हर अंग तक पहुँचाया जायेगा , यह वैश्य का धर्म है l प्रभाव में वृद्धि हुई , सामर्थ्य बड़ी तो समाज के विभिन्न अंगों की रक्षा की ताकत भी आ गई l यह वर्ग क्षत्रिय कहलाएगा l इसके बाद जब सांसारिकता से ऊपर उठ जाते हैं और ज्ञान पाने की महत्वाकांक्षा बढ़ने लगती है ब्राह्मण कहलाते हैं l वे कहते हैं --- ब्राह्मणत्व एक साधना है , जिसका राजमार्ग श्रम की साधना से आरम्भ होता है और पराकाष्ठा तक पहुँचने पर ज्ञान की प्राप्ति होने तक चलता चला जाता है l
WISDOM -----
एक बार कई पक्षी एक बहेलिए के जाल में फँस गए l पक्षियों ने सलाह की और एक साथ जाल लेकर उड़ गए l व्याध भी उनके साथ दौड़ा l किसी साधु ने पूछा --- " भाई , अब इनके पीछे दौड़ने से क्या लाभ ? " व्याध बोला ---- " महाराज , जब तक ये पक्षी एक विचार और एक संगठन में हैं , तभी तक जाल का बोझ उठा सकेंगे l " ऐसा ही हुआ l थोड़ी देर में ' कहाँ उतरें ? ' के प्रश्न पर उनमे विवाद हो गया l किसी - किसी ने ढील दे दी और परिणाम यह हुआ कि वे जाल समेत नीचे गिरे और मारे गए l
22 March 2021
WISDOM ------
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---' अहंकार नकारात्मक भाव की चरम सीमा है l अहंकारी चरम महत्वकांक्षी होता है और यह महत्वाकांक्षा केवल दिखने - झलकने की झूठी आकांक्षा है l महत्वकांक्षी की संवेदना - भावना पाषाणवत शुष्क होती है l इस बंजर भूमि में सदभावना का कोई बीज नहीं होता l अहंकारी केवल अपनी आत्मप्रशंसा के सर्वनाशी विनाश में हिचकोले खाता रहता है l ' धन - वैभव और पद पाकर किसे अहंकार नहीं होता , मन को थोड़ी सी ढील देने पर मानसिक कमजोरियाँ हावी हो जाती हैं l उम्र के किस पड़ाव पर इन कमजोरियों का आक्रमण हो कोई नहीं जानता l एक कथा है ---- एक राजा बहुत धर्मनिष्ठ , पराक्रमी थे , महत्वाकांक्षी थे l स्वार्थ और अहंकार ऐसा हावी हुआ कि प्रजा की सुरक्षा , संमृद्धि और सौहार्द की और ध्यान नहीं दिया तो राज्य में अराजकता फैलने लगी l यह देख कुलगुरु बड़े चिंतित हुए , उन्होंने राजा को प्रात:काल आश्रम में बुलवाया l उन दिनों कुलगुरु का बहुत था , उनके आदेश पर राजा आश्रम में पहुंचे l कुलगुरु को प्रणाम किया , राजा की आँखों में प्रश्न था , क्यों बुलाया ? कुलगुरु ने कहा ---- आओ , भ्रमण करते हैं , तुम्हारे प्रश्न का उत्तर भी मिल जायेगा l थोड़ी दूर चलने पर एक सरोवर था , गुरु ने उसमे से एक कमल का फूल तोड़कर राजा के हाथ में दिया , उसकी पंखुड़ियाँ बंद थीं , गुरु ने कहा ---- ' इसे खोल कर देखो l ' राजा ने जब पंखुड़ियाँ खोल कर देखा तो उसमें एक भौरा मारा मृत पड़ा था l राजा कुछ समझ नहीं पाया l वे लोग थोड़ा और आगे चले , एक सुन्दर वाटिका थी , एक भौंरा फूलों पर मंडरा रहा था l कुलगुरु ने कहा ---- ' इस भौंरे को ध्यान से देखो l ' राजा ने देखा कि भौंरे की गति में इतना बल था कि मँडराते हुए वह पत्तियों को छेदता हुआ आगे निकल गया l कुलगुरु बोले --- " राजन ! एक भौंरा अपने पराक्रम से पत्तियों में छेद करता हुआ आगे बढ़ जाता है लेकिन दूसरा भौंरा पुष्प की गंध से इतना मोहित है कि पंखुड़ियों के बीच में फंसकर अपनी जान दे देता है l इसी तरह अपनी मानसिक कमजोरियों से जकड़ा हुआ व्यक्ति अपना सारा तेज , पुण्य और पराक्रम खो बैठता है l " राजा को कुलगुरु का आशय समझ में आ गया l कुलगुरु ने कहा --- ' पद जितना बड़ा होता है , दायित्व उतने ही अधिक होते हैं l तुम एक राज्य के अधिपति हो , एक संस्था हो l व्यक्तिगत आकांक्षाओं की पूर्ति करने में सामाजिक उत्तरदायित्वों से विमुख न हो l अपने पद के साथ जुड़े दायित्वों का गरिमापूर्ण निर्वाह करो l "
21 March 2021
WISDOM ------
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- ' हमारा संघर्ष व्यक्तियों से नहीं , वृत्तियों से है और इसकी शुरुआत हमें स्वयं के जीवन से करनी है l ' महाभारत के युद्ध में अपने ही सगे - संबंधियों को सामने देख अर्जुन युद्ध से भागना चाहता था , तब भगवान कृष्ण ने उसे गीता का उपदेश दिया और समझाया ---- ऐसा कर के तुम कहीं भी चैन से न बैठ सकोगे l पाप को हम न मारें , अधर्म , अनीति का संहार हम न करें , तो निर्विरोध स्थिति पाकर ये पाप , अधर्म व अनीति हमें मार डालेंगे l इसलिए जीवित रहने पर सुख और मरने पर स्वर्ग का उभयपक्षीय लाभ समझाते हुए उन्हें युद्ध करने के लिए प्रेरित किया l भगवान परशुराम का अवतार कहे जाने वाले गुरु गोविंदसिंह ने अपने समय की दुर्दशा का कारण जन - समाज की आंतरिक भीरुता को ही माना था l उनका निष्कर्ष था कि जब तक जन आक्रोश नहीं जागेगा , शौर्य और साहस की पुन: प्राण - प्रतिष्ठा न होगी , तब तक पददलित स्थिति से उबरने का अवसर नहीं मिलेगा l उन्होंने संघर्ष के लिए जनमानस को ललकारा l भगवान को असिध्वज और महालौह नाम दिए l गुरु गोविंदसिंह की तलवार केवल मार -काट का अभिप्राय नहीं समझाती , बल्कि यह सामर्थ्यपूर्ण संघर्ष का प्रतीक है l
20 March 2021
WISDOM -----
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- ' इस संसार में एक ओर दैवी शक्तियाँ और दूसरी ओर आसुरी शक्तियाँ कार्य करती हैं l हमें श्रेष्ठता को देखना है , परन्तु बुराई की ओर से आँखों को बंद नहीं कर लेना है क्योंकि बुराई में बहुत आकर्षण होता है और बुराई का आक्रमण भी बड़ी तेजी व् दृढ़ता से और बलपूर्वक होता है l इसलिए देखा जाता है कि निर्बल शक्ति वाले व्यक्ति प्राय: बड़ी आसानी से बुराइयों का प्रलोभन सामने आते ही फिसल जाते हैं और उसके चंगुल में फँस जाते हैं l इसलिए अच्छाई का समर्थन और उसकी सुरक्षा के लिए यह आवश्यक है कि असुर पक्ष का विरोध किया जाये , उसे नष्ट किया जाए l बुराई छोटी है , यदि यह समझकर उसकी उपेक्षा की जाये तो वह क्षय रोग की तरह सब ओर अपना कब्ज़ा जमा लेती है l '
19 March 2021
WISDOM -----
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- ' प्रकृति व शक्ति , दोनों ही हमारे जीवन का मूल आधार हैं , उनके बिना जीवन की कल्पना संभव नहीं l हमारा शरीर प्रकृति के तत्वों से मिलकर बना है और यह संचालित भी होता है प्रकृति की शक्ति से l शरीर में ऊर्जा का संचार प्राणवायु ही करती है , जो कि प्रकृति का एक घटक है l शक्ति का मूलस्रोत प्रकृति है और वह जगदम्बा के रूप में पूरी सृष्टि का पालन - पोषण करती है l पार्वती के रूप में भगवान शिव की अर्द्धांगिनी है और सृष्टि के विभिन्न दैवी रूपों में सृष्टि का कार्यभार संभालती है l इस संसार में शक्ति की ही विजय होती है , यदि शक्ति की कृपा नहीं है तो व्यक्ति सफल नहीं हो सकता l इसी कारण भगवान श्रीराम ने रावण से युद्ध करने से पूर्व शारदीय नवरात्र का अनुष्ठान किया था l अर्जुन ने महाभारत युद्ध करने से पूर्व शक्ति की उपासना की थी और वे अपने विजय अभियान में सफल हुए l '
18 March 2021
WISDOM -----
दुष्ट व्यक्ति विभिन्न तरीकों से लोगों को उत्पीड़ित कर के स्वयं को विजयी समझते हैं किन्तु जो सन्मार्ग पर चलते हैं उनकी शांति को कोई छीन नहीं सकता ---- महात्मा बुद्ध एक बार अपने शिष्यों के साथ पंचशाला गाँव गए l वहां के लोग भगवान बुद्ध की ख्याति से बहुत पीड़ित थे , ईर्ष्या की आग उन लोगों के हृदय को जलाती थी l वहीँ के एक व्यक्ति ' भार ' ने जो भगवान बुद्ध से दुश्मनी रखता था , ग्रामवासियों के मन में बुद्ध के प्रति जहर भर दिया , इस कारण गांव वालों ने बुद्ध और उनके शिष्यों का बहुत अपमान किया l कटु ,वचन गालियाँ , व्यंग्यबाण , कचड़ा - कूड़ा , जूते - चप्पल यही सब उन्हें उस दिन भिक्षा में मिला l संध्या होने पर वे खाली पात्र लिए अपने शिष्यों के साथ गांव से बाहर वटवृक्ष की छाया में बैठ गए l उन्हें दुःखी करने के उद्देश्य से वह दुष्ट व्यक्ति भार भी वहां आ पहुंचा और मुस्कराते हुए उसने कहा --- " क्यों से श्रमण ! देखा मेरा प्रभाव , तुझे कुछ भी भिक्षा नहीं मिली l " भार के इन वचनों पर बुद्ध हँसे और बोले --- ' हाँ , भार ! आज तू भी सफल हुआ और मैं भी l " बुद्ध के इन वचनों को भार समझ न सका और बोला ------ " भला यह कैसे ? या तो तू सफल हुआ या मैं , दोनों -साथ साथ सफल कैसे हो सकते हैं ? यह तो तर्कहीन बात है l बुद्ध ने हँसकर कहा ------- " नहीं , यह तर्कहीन बात नहीं है l तू सफल रहा लोगों को भ्रष्ट करने में , भ्रमित करने में और मैं सफल हुआ अप्रभावित रहने में l तुम्हारी कोई भी चाल मुझे अशांत , अस्थिर व उत्तेजित नहीं कर सकी और यह भोजन से भी ज्यादा पुष्टिदायी है l "