31 October 2017

लौह - पुरुष ------ सरदार वल्लभ भाई पटेल

   ' जिसके  ह्रदय  में  काम  करने  का  उत्साह  है ,  शरीर  में  परिश्रम  करने  की  स्फूर्ति  है ,  मस्तिष्क  में  स्वावलम्बन  का  स्वाभिमान  है   वह  पुरुषार्थ  के  बल  पर   पानी  पर  राह  बना  लेता  है ,  बालू  में  तेल  खोज  लेता  है  l '
      जो  कार्य   जर्मनी   एकीकरण  में  बिस्मार्क  ने  कर  दिखाया  और  जापान  को   एक  सुद्रढ़  राष्ट्र      बनाने  में   मिकाडो  ने  जो  महान  सफलता  प्राप्त   की  ,     सरदार  पटेल  के   कार्यों     का  महत्व  उससे  कम  नहीं  है    l   छ: - सात  सौ  रियासतों  का  भारतीय  संघ  में  विलय  करके   उन्होंने   एक  असंभव  कार्य  को   ऐसी  खूबी  से  पूरा  करके  दिखा  दिया   कि  देश - विदेश  के  समस्त  राजनीतिज्ञ  चकित  रह  गए  l 
 जर्मनी  और  जापान  तो  उस  समय  चार - पांच  करोड़  की   जनसँख्या  के  छोटे  देश  थे ,  पर  सरदार  पटेल  ने  तो   उस  भारत  को  एक   कर  दिखाया   जिसको  विविधता  और  विस्तार  की  द्रष्टि  से  अनेक  लोग   एक  ' महाद्वीप '  की  संज्ञा  देते  हैं   l 
   सरदार  पटेल  का  जीवन  प्रत्येक  मनुष्य  के  लिए  एक  बहुत  बड़ा  आदर्श  उपस्थित  करता  है  ,  वह  यह  कि  मनुष्य  को  केवल  खाने - कमाने  की  जिन्दगी  ही  व्यतीत  नहीं  करनी  चाहिए  ,  वरन  देश   और  समाज  की  रक्षा  का  प्रश्न  उपस्थित  होने  पर    निजी  स्वार्थ  त्याग  कर   उसी  को  प्राथमिकता  देनी  चाहिए  l   यदि  देश  और  समाज  का  पतन  हो  गया  तो   हमारी  व्यक्तिगत  उन्नति  भी   बेकार  हो  जाती  है  l   आज  भी  किसी  राष्ट्रीय  संकट  के  समय  जनता  सरदार  पटेल  की    याद   करती  है   l   

30 October 2017

WISDOM -----

 ' व्यक्ति  गुणों  के  साथ  दोषमय  भी  हो  सकता  है   इसलिए  उसकी  पूजा  करना  न  उचित  है  न  अच्छा  l  यदि   कुछ  पूजा  या  सम्मान  का   अधिकार  है  तो  उसके  सद्विचार  और  सत्कर्मों  को  है   जिनके   द्वारा   सारी  स्रष्टि   का  कल्याण    होता  है  l  अच्छे  विचार  कभी   नष्ट   नहीं  होते , वे  लोगों  को  अद्रश्य  रूप   से  प्रेरणाएं   देते  रहते  हैं  और    लोगों  का  हित  किया  करते  हैं   l 

29 October 2017

WISDOM ------ दुर्बुद्धि और अज्ञानता के असुर का संहार जरुरी है

    मनुष्य  की  अधिकांश  समस्याओं  का  कारण  दुर्बुद्धि  है ---   रावण  और  कंस  के  समय  अनेक  साधन - संपन्न  राजा  व  योद्धा  थे  ,  वे  चाहते  तो  असुरों  के  विरुद्ध  संघर्ष  छेड़  सकते  थे  , पर  ऐसा  न  हो  सका  l  धनवान , बुद्धिमान , बलवान  सभी  बैठे  रहे  l
  गजनी  और  गौरी  के  आक्रमण  के  समय  अनेकों  शस्त्र सज्जित  सामंत  थे  ,  वे  चाहते  तो  मिलजुलकर  आक्रमणकारियों  को  खदेड़  सकते  थे  ,  पर  यह  भी  न  हो  सका  l
  महात्मा  गाँधी  के  युग  में  600  से  भी  ज्यादा  राजे - महाराजे  थे ,  उनके  पास  सेना  भी  थी   और   शस्त्र   भी ,  परन्तु  वे  अपना  साहस  खो  चुके  थे   l  उन  सभी  में  देश , धर्म   और  संस्कृति  के  लिए  त्याग - बलिदान  की  मांग  पूरी  करने  की  तेजिस्वता  नहीं  रह  गई  थी  l  इसलिए  सभी  समर्थों  के  रहते  हुए   स्वाधीनता  के  युग  में  निहत्थे  सत्याग्रही  ही  आगे  बढ़े  l
     आज  भी  सुयोग्य  और  समर्थ  जनों  की  कोई  कमी  नहीं  है  लेकिन   अशिक्षा , बेकारी , पिछड़ापन , आतंक ,  अपराध    आदि  अनेक  समस्याओं  ने  समाज  को  जकड़  रखा  है  l   इन  सबका  एक  ही  कारण  है ---- दुर्बुद्धि  l   मनुष्य  की  इच्छा , बुद्धि  व  क्रिया   सभी   को  दुर्बुद्धि  ने ,  अज्ञानता  के  अंधकार  ने  जकड़  रखा  है   l   अपने  स्वार्थ ,  लालच  और  संग्रह  से  आगे  व्यक्ति  कुछ  सोच  ही  नहीं  पा  रहा  है  l 
      आइन्स्टीन  से  किसी  ने  पूछा  ---- "  संसार  में  इतना  दुःख   और  कलह  क्यों  है  ?  जबकि  विज्ञानं  ने  इतने  सुख - साधन   उत्पन्न  किये  हैं  l "
  उन्होंने  उत्तर  देते  हुए  कहा ---- " बस ,  एक  ही  कमी  रह  गई  कि  अच्छे  मनुष्य  बनाने  की  कोई  योजना  नहीं  बनी  l  देश , सम्प्रदाय  के  पक्षधर  सभी  दीखते  हैं  ,  पर  ऐसे  लोग  नहीं  दिखाई  पड़ते ,  जो  अच्छे  इनसान  बनाने  की  योजनाएं  बनाएं  l 

28 October 2017

WISDOM ------ धर्म और शक्ति ----- दोनों में श्रेष्ठ कौन ?

     धर्म  सदा  से  सदाचरण , सज्जनता , न्यायशीलता ,  संयम , करुणा,  सेवा परायणता   जैसे  सद्गुणों  के  रूप  में  परिभाषित  किया  जाता  रहा  है  l  मानव  में  ये  तत्व  समाविष्ट  रहें  ,  इसके  लिए  धर्म  का  अवलंबन  जरुरी  है  l
  धर्म  और  शक्ति ---- दोनों  में  से    धर्म  श्रेष्ठ  है   l  धर्म  सदा  विजयी  होता  है  ,  क्योंकि  धर्म  नीति  एवं  सदाचार  को  मान्यता  देता  है  ,  शक्ति  को  नहीं  l  
      भगवान  राम   इतने  शक्ति  संपन्न  नहीं  थे  जितना  कि  रावण  l  रावण  की  सेना  में  अनेक  प्रचंड  योद्धा  थे  ,  मेघनाद  अविजित   एवं  अपराजित  था  ,  विपुल  वैभव ,  शक्ति  और  ऐश्वर्य  के  बावजूद  उसका  पतन  हुआ  l
  इसी  प्रकार  कौरव  सेना  में  भीष्म  पितामह ,  द्रोणाचार्य ,  कर्ण   आदि  प्रबल  योद्धा  विद्दमान  थे  ,  जो  अकेले  दम  पर  पांडव  सेना  को  परास्त  कर  सकते  थे   किन्तु  इन  योद्धाओं  का  पतन  व  पराजय  हुई   क्योंकि  वे  शक्ति  के  पुजारी  थे  धर्म  के  नहीं   l
  दूसरी  ओर  कमजोर  समझी  जाने  वाली  राम  एवं  पांडव  सेना  को  जीत  का  श्रेय  मिला  ,  क्योंकि  उनके  साथ  धर्म  था  l 
  व्यक्ति  को  केवल  धर्म  के  मार्ग  पर   अडिग , अविचलित   डटे  रहना  चाहिए  ,  कभी  भी  धर्म  के  मार्ग  से  विचलित  नहीं  होना  चाहिए  l  यदि  ऐसा  हो  सका  तो  धर्म  ढाल  बनकर  रक्षा  करता  है ,  सुरक्षा  और  संरक्षण  प्रदान  करता  है   l 

27 October 2017

WISDOM ----- जहाँ राह सही होती है वहां असफल होने का प्रश्न ही नहीं उठता

   किसी  भी  देश  के  स्वाधीनता  आन्दोलन  में   उचित   मार्ग  चुनने  का  भी  बड़ा  महत्व  है  l  यदि  ऐसा  न  किया  जाये  तो  प्रकट  में  बड़ा  परिश्रम , त्याग , कष्ट  सहन  करते  हुए  भी  हम   अपनी  शक्ति  को  बर्बाद  करते  रहते  हैं   और  प्रगति  मार्ग  पर  बहुत   ही   कम  अग्रसर   हो  पाते  हैं  l  सभी  राजनीतिक  कार्यकर्ता  अपने - अपने  रास्ते  को   सही  और  प्रभावशाली   बतलाते  हैं   और  उसके  लिए  नई  पार्टी  अथवा  संस्था  बनाकर   अपनी  ढाई  चावल  की  खिचड़ी  अलग  पकाना  ही   महत्वपूर्ण  मानते  हैं   l
           पर   लेनिन  के  समान  व्यक्ति   समस्त  राष्ट्र  में  दो - चार  ही  होते  हैं   जो  समय  की  गति  को   बिलकुल  ठीक  समझ  सकते  हैं  और  अनुकूल  विधान  बना  सकते  हैं   l 
  लेनिन  के   बड़े  भाई  अलेक्जेंडर  को  1887  में  जार  की  हत्या  के  षडयंत्र  के  आरोप  में   गिरफ्तार  कर  लिया  गया  ,  तब  उसने  अदालत  के  सामने  कहा ---- " रूस  के  वर्तमान  निरंकुशता पूर्ण  शासन  में   गुप्त  हत्याओं  के  सिवा  और  किसी  उपाय  से  राजनीतिक  सुधार  नहीं  हो  सकता  l  मुझे  मृत्यु  का  डर  नहीं  l  मेरे  बाद  अवश्य  ही  अन्य  लोग  आगे  बढ़ेंगे  और  एक  दिन  जारशाही  को   जड़मूल  से  उखाड़कर  फेंक  देंगे  l  "   लेनिन  की  आयु  उस  समय  केवल  17  वर्ष  थी  ,  इस  आयु  में  भी  वह  जनक्रांति  के  महत्व  और  शक्ति  को  समझता  था  l   अपने  भाई  के  इस  प्रकार  असामयिक  अन्त  होने  से   उसके  ह्रदय  को  तीव्र  धक्का  लगा  और  वह  सदा  के  लिए  जारशाही  का  दुश्मन  बन  गया  l
   पर  साथ  ही  लेनिन  ने   यह   भी  अनुभव  किया  कि   षडयंत्र  और  गुप्त  हत्याओं  का  मार्ग   सही  नहीं  है  l  उस  अवसर  पर  उसके  मुंह  से  निकला ----- " नहीं ,  यह  रास्ता   ठीक  नहीं  है  ,  हम  इस  पर  चलकर  सफलता   प्राप्त  नहीं  कर  सकते   l  "    उसी  समय  से  वह  नवीन  पथ  का  पथिक  बन  गया   जो  उसकी  समझ  में  रूस  को  जार  की  निरंकुश  सत्ता  से  मुक्त  कराने के  लिए  कारगर  था  l 
 इस  मार्ग  का  वरण  करते  समय  वह  जानते  थे  कि  यह  मार्ग  काँटों  और  बाधाओं  से  भरा  पड़ा  है  फिर  भी  उन्होंने  इस  मार्ग  को    प्रसन्नतापूर्वक   चुना ,  अपने  लिए  नहीं  समाज  के  लिए ,  कोटि - कोटि  उस  जन - समुदाय  के  लिए   जो  शोषण  और  उत्पीड़न  की  आग  में  जल  रहा  था  l   21  जनवरी  1924  की  शाम  को    लेनिन  का  देहान्त  हुआ  ,  उस  अवसर  पर  रूस  की  तमाम  जनता  रो  उठी  l 
  नि:स्वार्थ  भाव  से  जन  कल्याण  के  लिए  किये  गए  कार्यों  का  परिणाम    अंत  में  अपने  और  दूसरों  के  लिए   मंगलदायक  ही  सिद्ध  होता  है   l 

26 October 2017

WISDOM ------ प्रत्येक श्रेष्ठ एवं महान कार्य की सफलता में गहन , गंभीर मौन सहायक रहा है l

  सामान्यत:  वाणी  को  विराम  देना  मौन  कहलाता  है ,  परन्तु   सार्थक  मौन  उसे  कहते  हैं  ,  जब  मन  में  सद्चिन्तन  होता  रहे   l  यों  ही  जिह्वा  को  बंद  रखकर   मन  में  ईर्ष्या- द्वेष  का  बीज  बोते  रहने  को  मौन  नहीं  कहा  जाता  l  यह  तो  और  भी  खतरनाक  एवं   हानिकारक  सिद्ध  हो  सकता  है  l   मौन  के  साथ  श्रेष्ठ  चिन्तन ,  ईश्वर  स्मरण  आवश्यक  है  , तभी  मौन  की  सार्थकता  है  l 
  प्रकृति  का  हर  घटक ,  इसका  प्रत्येक  जीव  मौन  रहकर  अपने  कर्तव्य - कर्म  में  संलग्न  है   l  अपनी  आंतरिक  उर्जा  के  क्षरण  को  रोकने   हेतु  मनुष्य  के  लिए  कुछ  समय  मौन  रहना  जरुरी  है  l
  अरुणाचलम  के  महर्षि  रमण सदैव  मौन  रहते  थे   l  उनका  मौन  उपदेश  आत्मा  की  गहराई  में  उतर  जाता  था  l  बिना  बोले  वह  हर  एक  की  जिज्ञासा  को  शांत  करते  और  प्रत्येक  को  अपनी  समस्या  का  समाधान  मिल  जाता  था  l
  इसी  मौन    की    शक्ति  से  आचार्य  विष्णु गुप्त  के  भीतर    चाणक्य  ने  जन्म  लिया  जिसके    परिणाम  स्वरुप    बृहत   भारत   का  उदय  हुआ  l   महात्मा  गाँधी  के  मौन  का  प्रभाव  इतना  विलक्षण  और  अद्भुत  था  जिसने  भारत   को    सदियों  की  गुलामी   से   आजादी  दिलाई  l
  मौन  से  आत्मशक्ति  का  उदय  होता  है  , अत:  श्रेष्ठ  और  सार्थक  कार्य  के  लिए   मौन  को  एक  व्रत  मानकर  अपनाना  चाहिए   l  

25 October 2017

WISDOM ---- बड़े आदमी बनने की अपेक्षा महान कार्य करने की कामना हजार गुनी श्रेष्ठ है l

 '  जब  तक  शक्ति - मन्तों  की  भुजाओं  में  बल , वाणी  में  प्रभाव  और  विस्तार  पर  नियंत्रण  रहता  है  , सभी  उसे  नमन  करते  हैं , उसके  अत्याचार  को  वीरता ,  अनीति  को  चातुर्य   और  शोषण  को  आवश्यकता  मानते  रहते  हैं  l   किन्तु  ज्यों  ही  उनकी  वह   विशेषताएं  समय  पाकर  क्षीण  हो  जाती  हैं   त्यों  ही  लोगों  के  मन   और  द्रष्टिकोण  बदल  जाते  हैं  l  उनके  गुण  नीचे  पद  जाते  हैं  ,  उनके  उपकार  यदि  कोई   होते  हैं  तो  दब  जाते  हैं  और  सारे  दोष  उभर  आते  हैं  l  लोग  निर्णायक  की  तरह   उसके  जीवन  तथा  कृत्यों  का  लेखा - जोखा  करने  लगते  हैं   और  उससे  भी  अधिक  विपरीत  हो  जाते  हैं  ,  जितने  कि   अनुकूल  थे   l '

23 October 2017

WISDOM -------

 ' अन्याय  और  पराधीनता  के  विरुद्ध  आक्रोश  तो   हर  व्यक्ति  के  मन  में  होता  है  ,  उससे  मुक्ति  पाने  के  लिए  छटपटाहट  भी  प्रत्येक  ह्रदय  में   होती  है   पर  सबको  किसी   एक  सार्वजनिक  हित  के  लिए   सूत्रबद्ध  करके ,  एक  माला  के  रूप  में  पिरोने ,  उनका  नेतृत्व   करने  का  साहस   विरले  ही   जुटा   पाते  हैं   l  '

20 October 2017

WISDOM -------- अन्याय सहना अन्याय करने से कई गुना बड़ा अपराध है l

 ' बलवान  और  शक्तिशाली  व्यक्ति   यदि  संस्कारवान  भी  होगा   तो  अनीति  और  अन्याय  की  घटनाएँ  सुनकर  उसका  खून  खौल  ही  उठेगा  l  '
      पंख   कटे  जटायु   को  गोद  में  लेकर   भगवान  राम  ने  उसका   अभिषेक  आँसुओं  से  किया  l   स्नेह    से  उसके  सिर  पर   हाथ  फेरते  हुए   भगवान  राम  ने  कहा ---- " तात !  तुम  जानते  थे  रावण  महा बलवान  है  ,  फिर  उससे  तुमने  युद्ध  क्यों     किया  ? "
   अपनी  आँखों  से  मोती  ढुलकाते   हुए  जटायु   ने  गर्वोन्नत  वाणी  में  कहा ---- " प्रभु  !  मुझे  मृत्यु  का  भय  नहीं   है  ,  भय  तो  तब  था    जब  अन्याय  के  प्रतिकार   की  शक्ति   नहीं  जागती  ? "
  भगवान  राम  ने  कहा ----- " तात  ! तुम  धन्य  हो  l  तुम्हारी  जैसी   संस्कारवान  आत्माओं  से   संसार  को  कल्याण  का  मार्गदर्शन  मिलेगा  l  " 

19 October 2017

WISDOM ------- अहंकारी की प्रगति जितनी तीव्र होती है , उसका पतन उससे भी अधिक तेज होता है l

    रावण  का  मरा  हुआ  शरीर  पड़ा  था  l  उसमे  सौ  स्थानों  पर  छिद्र  थे  l  सभी  से  लहु  बह  रहा  था  l  लक्ष्मणजी  ने  राम  से  पूछा ----- ' आपने  तो  एक  ही  बाण  मारा   था  ,  फिर  इतने  छिद्र  कैसे  हुए   ? ' 
  भगवान  ने  कहा ---- ' मेरे  बाण  से  तो  एक  ही  छिद्र  हुआ  l  पर  इसके  अपने  कुकर्म   घाव  बनकर   अपने  आप  फूट  रहे  हैं   और  अपना  रक्त  स्वयं  बहा  रहे  हैं   l  

18 October 2017

WISDOM

  रावण  ने   कुटनीतिक  चाल  चली  -- बोला    --- अंगद  ! जिस  राम  ने  तेरे  पिता  को  मारा  ,  तू  उन्ही  की  सहायता  कर  रहा  है  l  मेरे मित्र  का  पुत्र   होकर  भी  तू  मुझसे  वैर कर  रहा  है  l  '
  अंगद  हँसा  और  बोला  ---- " रावण !  अन्यायी  से  लड़ना  और उसे  मारना  ही  सच्चा  धर्म  है  l  चाहे  वह  मेरा  पिता  हो   अथवा  आप  ही  क्यों  न  हों  l "
  अंगद  के  ऐसे  तेजस्वी  शब्द  सुनकर   रावण  को  उत्तर    देते  न  बना  l
   ' सम्बन्ध  नहीं ,  नीति  और  न्याय  का  पक्ष   ही  वरेण्य  है  l  :                                                                   



16 October 2017

WISDOM ------ जीवन के प्रति सकारात्मक द्रष्टिकोण रखें

    यदि  कोई  अपने  जीवन  में  कुछ  करने  की  ठान  ले ,  तो  उम्र  उसके  कार्य  में  बाधा  नहीं  बनती   और  शरीर  की  उर्जा  उसके  कार्य  में  रूकावट  नहीं  डालती   क्योंकि  उसका  निश्चय  मन  से  होता  है  , मन  की  शक्ति  से  होता  है  l  इसलिए  हर  रूकावट  को , हर  मुश्किल  व  परेशानी  को   उसके  आगे  झुकने  के  लिए  मजबूर  होना  पड़ता  है  l  इसी  मन  की  शक्ति  के  कारण   लियोनार्डो   दि  विन्ची  ने   अपनी  प्रसिद्ध  पेंटिंग   ' मोनालिसा '  51  साल  की  उम्र  में  बनाई  और  यह  उनके  जीवन  में  सबसे  अधिक  प्रशंसित  हुई  l
                 इसी  प्रकार  प्रखर  व्यक्तित्व  नेल्सन  मंडेला   अपने  जीवन  में  लम्बा   संघर्ष  करते  रहे   और  75  साल  की  उम्र   के  बाद  दक्षिण  अफ्रीका  के  राष्ट्रपति  बने   l
   इसी  प्रकार  भारतीय  संस्कृति के   प्रसिद्ध  संवाहक   गोस्वामी  तुलसीदास  जी  ने   भी  90  वर्ष  की  उम  में  रामचरितमानस   को  लिखना  प्रारंभ  कर    दिया  था   l
  जिन्दगी  को  बेहतर  बनाने  की  संभावना  सदैव  होती  है ,  बस , हमें  इस  और  बढ़ने  की  जरुरत  है   l 

15 October 2017

WISDOM ------ शिक्षा एक शक्ति है उसका सदुपयोग करें l

 आज  ज्ञान - विज्ञान  में  अग्रणी  रूस  की  प्रमुख  शक्ति  वहां  के  प्रत्येक  नागरिक  का  शिक्षित  होना  है  l   1920  से  पूर्व   रूस  में  निरक्षरता  की  स्थिति  भयावह  थी  , किन्तु  राज्य  सत्ता  का  हस्तांतरण  होते  ही   निरक्षरता  को   मिटाने  के  लिए  अथक  प्रयत्न  किये  गए  l  देश  के  कोने - कोने  में  निरक्षरता  उन्मूलन  केंद्र  खोले  गए  l  हर  शिक्षित  व्यक्ति  ने  प्रत्येक  अनपढ़  को  पढ़ाने - लिखाने  का  संकल्प  लिया  l  उस  वक्त  वहां  के  70  प्रतिशत  पुरुष  और   90  प्रतिशत  महिलाएं  अशिक्षित  थीं  l   71  जन जातियों  में  से  40  जातियां  ऐसी  थीं  जिनकी  कोई  भाषा  नहीं  थी  ,  उन्हें  शिक्षित  करना  बहुत  बड़ी  जिम्मेदारी  थी  l   इन  लोगों  के  लिए  भाषा  का  निर्माण  हुआ , जगह - जगह  स्कूल  खोले  गए  l  करोड़ों  की  संख्या  में  प्रौढ़  अशिक्षितों  को  पढ़ाने  के  लिए     स्वयं  सेवी  शिक्षकों  को   भावनात्मक  स्तर  पर  तैयार  किया  गया  l प्रत्येक   साक्षर  एक  निरक्षर  को  पढ़ाये ----- यह  रुसी साक्षरता अभियान  का  प्रमुख  नारा  था  , जिसे  पूर्ण  करना  प्रत्येक  नागरिक  का  राष्ट्रीय  दायित्व  था  l  इसके  परिणाम स्वरुप  192 0  से  1940  के  मध्य   पांच  करोड़  अनपढ़ों  को  साक्षर  बना  दिया   l   1970  तक   99.8  प्रतिशत  पुरुष  और   99 .7  प्रतिशत  महिलाएं  शिक्षित  हो   गईं  l
  लेनिन  का  नारा  था ---- पढ़ो   !  पढ़ो  !  पढ़ो  !   इसे  वहां  के  नागरिकों  ने  सत्य  करके  दिखाया  l                                                                                                                                       

14 October 2017

WISDOM -

 '   इस  संसार  में  कोई  अजेय  नहीं  है  l  काल  किसी  को  क्षमा  नहीं  करता  l  दुराचारी  चाहे  कितना  बलवान , शक्तिवान  क्यों  न  हो  , एक  दिन  उसका  दर्दनाक  अंत  होना  सुनिश्चित  है   l  शक्ति  का  दंभ  भी  तब  तक  है  , जब  तक  पुण्य  शेष  हैं  l  पुण्य  के  क्षीण  हो  जाने  पर   सारा   दंभ   गुब्बारे  की  हवा  की  तरह    निकल  जाता  है   और    बच   जाता   शक्ति  के बल  पर   किया  गया  घोर  पाप   l  मनुष्य  अपने  ही  नीच  कर्मों  द्वारा  अपने   ही  पुण्य  भंडार  का  क्षरण  कर  लेता  है   l '

13 October 2017

महात्मा गाँधी विचार देने से ज्यादा विचारों को जीवन में उतारने के हिमायती थे l

   बीस   वर्ष  के   दक्षिण  अफ्रीकी  प्रवास  के  बाद   वे  हिन्दुस्तान  लौटे    l  अपने  गुरु  गोपालकृष्ण  गोखले  की  सलाह  पर   वे  वर्ष  भर  राजनीतिक  रूप  से  मौन  रहे   और  उन्होंने  सम्पूर्ण  भारत  का  भ्रमण  किया  l   इस  यात्रा  के  जरिए  वे  समाज  के  अंतिम  जन  तक  पहुंचना  चाहते  थे  और  पहुंचे  भी  l
  उनका  पहला  राजनीतिक  भाषण  उस  समय  हुआ  जब  1916  में  बनारस  हिन्दू  विश्वविद्यालय  के  शिलान्यास  कार्यक्रम  में   देश  भर  से  बड़े - बड़े  लोगों  को  बुलाया  गया  था ,  जिनमे  बड़े - बड़े  राज्यों  के  महाराज , अन्य  रियासतों  के  राजा , बड़े  व्यापारी   व  राजनीतिज्ञ  शामिल  थे  l  इस  कार्यक्रम  में  वायसराय  को  भी  बुलाया  गया था  l  गांधीजी  को  भी  इस  कार्यक्रम  में  सम्मिलित  होने  का   न्योता  मिला  था  l
  जब  गांधीजी  के  सामने   उपस्थित  व्यक्तियों  को  संबोधित  करने  की  बारी  आई   तो  उन्होंने  कहा  ---- " मुझे  यहाँ  आने  में  देर  लगी  , समय  पर  नहीं  पहुँच  पाया  क्योंकि  शहर  की  इतनी  किलेबंदी  की  गई  थी  कि   सुरक्षा  की  वजह  से   यहाँ  पहुँचने  में  देर  लगी  l  "    उन्होंने  सवाल  उठाया  कि  यदि  देश  का  वायसराय  जो  संप्रभु  है  ,  उसको  अपनी  प्रजा  से  इतना   डर   लगता  है    तो  इससे  अच्छा  है  कि  वह   न  रहे  l  फिर  उन्होंने   सभा  में   भव्यता  के  साथ  पहुंचे  राजा - महाराजाओं  को  आड़े  हाथों  लिया   और  कहा  कि  , ' आप  तो  जनता  की  तिजोरी  में   जितना  सोना - चांदी  और  आभूषण  है  , उसे  अपने  शरीर  पर  लाद  कर  चले  आये  हैं   l  आखिर  यह  किसकी  कमाई  है  ?
 उनके  प्रश्न  जन सामान्य  के  प्रश्न  थे   l  

12 October 2017

विचार क्रान्ति से ही सम्पूर्ण क्रांति संभव ------ लोकनायक जयप्रकाश नारायण

  निष्ठावान - राष्ट्रवादी   जयप्रकाश  नारायण  अपने  छात्र  जीवन  से  एक   जुझारू  स्वाधीनता  सेनानी  थे   l  मौलाना  अबुल  कलाम  आजाद  की   इन  पंक्तियों  ने  उनके  अंतर्मन  में  क्रांति  की  ज्वाला  भड़का  दी ----  " नौजवानों  !  अंग्रेजी  शिक्षा  का  त्याग  करो   और  मैदान  में  आकर   ब्रिटिश  हुकूमत  की  ढहती  दीवारों  को  धराशायी  करो  और  ऐसे  हिंदुस्तान  का  निर्माण  करो  ,  जो  सारे  आलम  में  खुशबू  पैदा  करे  l  "
            राष्ट्रीय  स्वाधीनता  के  लिए  उन्होंने  हर  कष्ट  सहे ,  अनेकों  बार  जेल  गए  l  इस  कार्य  में  बराबर  की  भागीदारी  निभाई  उनकी  पत्नी  प्रभावती  देवी  ने  l    गांधीजी  के  लिए  प्रभावती  अपनी  लाड़ली  बेटी  की  तरह  थीं   l  उनके  विवाह  में  गांधीजी  ने  अभिभावक  की  भूमिका  निभाई  थी  l  1947   में  देश  की  आजादी  के  बाद   उन्हें  सरकार  में  गृह राज्य मंत्री  बनाये  जाने  का  प्रस्ताव  था  ,  परन्तु  उन्होंने  स्पष्ट  रूप  से  मना  कर  दिया  l 
  परम पूज्य  गुरुदेव  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य  जी  ने  कहा  था ---- " इस  महान  लोकनायक  का  साथ  देने  के  लिए   आध्यात्मिक  शक्तियां  भी   कटिबद्ध  एवं  संकल्पित  हैं   l "   जब  8  अक्टूबर  1979  को  उनका  देहावसान  हुआ   तब   गुरुदेव  ने    कहा ----- " मैं  यह  स्पष्ट  कहता  हूँ  , भारत  देश  जयप्रकाश  जी  को   त्याग - तपस्या  के  प्रतीक  और   जनहित  के  लिए  सर्वस्व  निछावर   करने  वाले   महान  योद्धा    तथा  जन भावना  को   स्वर  देने  वाले   विचार  क्रांति  के   महावीर  की  तरह   हमेशा  याद  रखेगा   l "   उनका  सम्पूर्ण  जीवन  जैसे  पुरातन  शास्त्रों   की  पवित्रता  की   सर्वाधिक  सटीक  और  सामयिक  व्याख्या  थी   l  

11 October 2017

WISDOM ------- जनचेतना ---- जन - सेना

  बात  उन  दिनों  की  है  जब  भारत  में  अंग्रेजों  का  शासन  था  l  प्रथम  विश्व युद्ध  जोरों  पर  था   और  अंग्रेजों  को  लड़ने  के  लिए  लाखों  सैनिकों  की  जरुरत  थी  l   उन्होंने  भारतीय  राजाओं  से   सेना  लेने  का  निश्चय  किया  l  इस  सिलसिले  में  उनका  प्रतिनिधि  ' रेजिडेंट '  जैसलमेर   राज्य  में  आया  l  वह  यहाँ  के  महाराजा  जवाहर  सिंह  के  नाम  वायसराय  का  पात्र  भी  लाया  था  , जिसमे  जैसलमेर  की  सेना  को   ब्रिटिश  सेना  में  शामिल  करने  का  अनुरोध  था  l  राजा  ने  रेजिडेंट  का  भव्य  स्वागत  किया  और  कहा  कि  जैसलमेर  राज्य  में  कोई  नियमित  सेना  नहीं  है , अत:  वे  उनकी  सेवा  में  सैनिक  देने  में  असमर्थ
 हैं  l   रेजिडेंट  हंसा  और  बोला  आप  हमें  बेवकूफ  नहीं  बना  सकते  ,  बिना  सेना  के  कोई  शासन  चलता  है  क्या  ? 
   राजा  ने  कहा ---- हमारी  आर्थिक  स्थिति  ऐसी  नहीं  है  कि  हम  सेना  का  बोझ  उठा  सकें  l  हमारी  जनता  ही  हमारी  सेना  है  ,  इसके  आत्मबल  से  ही  हम  हर  तरह  के  खतरे  का  मुकाबला  कर  सकते  हैं   l    अंग्रेज  रेजिडेंट  को  इन   बातों   का  जरा  भी  विश्वास  नहीं  हुआ ,  उसने  कहा  कि   यहाँ  की  आबादी  के  हिसाब  से   पांच  हजार  सैनिक  तो  साथ  ले  ही  जाने  हैं   l  महाराजा  ने  भी  समझा  कि  अब  बातों  से  काम  न  चलेगा  कुछ  करना  पड़ेगा  l  अत:  उन्होंने  कहा ,--- ठीक  है  l  कल  सुबह  आप  मेरी  सेना  देख  लेना  l  उसी   दिन  राजा  ने  अपने  घुड़सवार ,  ऊंट सवार  गाँव - गाँव  में  भेज  दिए  और  यह  कहलवा  दिया  कि   15  से  45  वर्ष  के  सभी  आदमी   सूरज  उगने  से  पहले  जैसलमेर  पहुँच  जाएँ   और  जिसके  पास  जो  भी  हथियार   है , साथ  लेता   आये  और   घोडा , ऊंट , बैलगाड़ी   जो  भी  वाहन  उपलब्ध  हो , लेकर  आये  l
  आदेश  हवा  के  साथ  सारे  राज्य  में   फैल   गया  l  खेत , खलिहान , मजदूर,  पत्थर  तोड़ता ,  गड्ढे  खोदता ---- जो  जैसा  था   तुरंत  शहर  की  ओर  रवाना  हो  गया   l
 अंग्रेज  रेजिडेंट  अपने  शयनकक्ष  में  सोया  हुआ  था  l    ऊंट ,  घोड़े  , बैलों  की  आवाजें ,  कण  फोड़  देने  वाला  शोर  सुनकर  उसकी  नींद  उचट  गई  , वह  उठ  कर  छत  पर  गया  l  वहां  राजा  पहले  से  ही  बैठे  थे  ,  उन्होंने  कहा  ,  आइये ,  देखो   यह  है  हमारी  सेना  l  रेजिडेंट  आँखे  फाड़  कर  देख  रहा  था  --- आसमान  तक  छाई  हुई  धूल  l   लोग  कमर  कसे    लाठी , डंडे ,  भाले ,  बंदूक,  तलवार , तीरकमान  लिए   आ  रहे  हैं  l  ऊंट , घोड़े , बैलगाड़ियों  का  हुजूम  हैं   l   महाराजा  ने  कहा  --- ये  है  हमारी  सेना ,  एक  रात  में  ही   ये  सभी  आ  पहुंचे  हैं  l   हम  सबको  अपनी  मिटटी  से  प्रेम  है  l  हमारी  स्वतंत्रता  पर  जब  आंच  आती  है  , तब  सारी  जनता  बलिदान  के  लिए  तुरंत  तैयार   है  l  जहाँ  जनता  बलिदान  देने  को  तैयार  हो  वहां  कौन  सा  खतरा  टिक  सकता  है   l   
  रेजिडेंट  आश्चर्य चकित  होकर  देखता  रह  गया   l  उसने  कहा   ऐसी  जन चेतना  जब   पूरे  भारत  की  राष्ट्रिय  चेतना  बन  जाएगी  तो  कोई  भी  विदेशी  ताकत   इसे  अपनी  गिरफ्त  में  नहीं  रख  सकेगी  और  तब  भारत  विश्व  का  सिरमौर  होगा  l   

10 October 2017

WISDOM ------- अन्यायी कितना ही बड़ा और शक्तिवान क्यों न हो ईश्वर उसके साथ नहीं होता l अत: उसे हारना ही पड़ता है l

  जब  तक  जी  सकते  हैं  शान  से  जियें ,  मनुष्य  की  गौरव  गरिमा  से  जियें  ,  अन्याय  से  संघर्ष  कर  के  जियें  l 
       महाभारत    युद्ध  के  दौरान   कर्ण  ने  भीष्म  से  पूछा ---- " आप  हम  सबके  पितामह   हैं  और  इसके  साथ  परशुराम  जी  के  शिष्य  हैं  l   मेरे  गुरुभाई  भी  हैं  l   ऐसा  क्यों  होता  है  कि  अर्जुन  से  अधिक  पराक्रमी  होने  के  बावजूद  ,  यह  विश्वास  मन  में  होते  हुए  भी   कि  मैं  युद्ध  में   उसे  हरा  दूंगा  ,     जब  भी  मैं   अर्जुन  के  समक्ष  होता  हूँ  ,   तब - तब  पराजय  का  भाव  मेरे  मन  में  आता  है   l "
     भीष्म  ने  कहा  ----- ऐसा  इसलिए  है  कर्ण  कि  तुम  जानते  हो  कि   तुम  गलत  हो  ,  वह  सही  है  l   तुम्हारे  अन्दर  अपराधबोध   है   l  उसी  का  बोझ    तुम्हारे  मन  पर  है   l    भावनाओं  का  अवरोध  ही    तुम्हारी  क्षमताओं  को   रोकता  है   l   तुम  विचारशील  होने  के  नाते   यह  भी  जानते  हो  कि   पांडवों  के  साथ  अन्याय  हो  रहा  है    और  तुम  अन्याय  के  पक्ष  में   खड़े  हो   |  तुम्हारा  अंतर्मन  बार - बार  हिचकता  है   l   कर्ण  !  तुम  अधर्म  के  साथ  खड़े  हो   l  "

9 October 2017

WISDOM ------ तृष्णा कभी शांत नहीं हो सकती , व्यक्ति इसके पीछे अपना अमूल्य जीवन गँवा देता है l

 आज  हर  कोई  धनवान  बनना  चाहता  है  l  जिसके  पास  जितना  है   वह  और  भी  अधिक  चाहता  है  और  इसके  लिए  दिन - रात  दुःखी   व  परेशान  रहता  है  l
    इस  संबंध  में  एक    प्राचीन   कथा  है -------  एक  साधारण  व्यापारी  था , जो  अपने  परिवार  के  साथ  सुखपूर्वक  रहता  था   किन्तु  वह  बहुत  अमीर  बनना  चाहता  था  , इस  कारण    अक्सर   चिंता  और  तनाव  में रहता  था  l  इसी  चिंता  में  वह   एक  बगीचे में    पेड़  के  नीचे  लेट  गया  ,  उसे  नींद  आ  गई  l    नींद  में   उसे  लगा  कि  कोई   उससे  कह  रहा  है ----- "जा  घर  लौट  जा  l  तेरे  घर  पर    अशरफियों  से  भरे  सात  घड़े  तेरा  इन्तजार  कर  रहे  हैं   l  "  उसकी  आँख  खुल  गई   और  वह  जल्दी - जल्दी  अपने  घर  की  ओर  चल  दिया   l  जब  उसने  घर  में  प्रवेश  किया  तो  देखकर  दंग  रह  गया  कि  सच  में  उसके  घर  सात  घड़े  रखे  थे   l  उसकी  ख़ुशी  का  ठिकाना  न  रहा  l  पत्नी  को  बुलाकर  सब  घड़े  खोल - खोलकर  देखने  लगा  l  छह  घड़े  सोने  की  अशरफियों  से  भरे  थे   और  सातवाँ  घड़ा  आधा  खाली  था  l
           अब  उसके  पास  इतना  धन  था  कि  सारा  जीवन  सुखपूर्वक  बिता  सकता  था  लेकिन  पति - पत्नी  यह  सोचकर  दुखी  थे  कि   इस  सातवें  घड़े  को  कैसे  भरा  जाये   ?  इस  चिंता  में  उन्होंने  हर  तरीके  से  धन  कमाना  शुरू  कर  दिया l  जो  कमाते  उससे  सोना  खरीद  कर  उस  घड़े  में  डालते  जाते  l  ऐसा  करते  हुए  कई  वर्ष  बीत  गए  ,  किन्तु  वह  घड़ा  तो  भरा  ही  नहीं  l   दोनों  इसी  दुःख  से  परेशान  कि  घड़ा  कैसे  भरें  l    एक  दिन  एक  साधु  उनके  घर  आया    और  उन  पति - पत्नी  को  चिंतित  देखकर  बोला --- " वह  सातवाँ  घड़ा  भरा  या  नहीं  ? "   वे  दोनों  आश्चर्य चकित ,  कि  साधु  कैसे  सब   जानता  है  l  साधु  बोला ----  बेटा !  यह  सातवाँ  घड़ा  तृष्णा  का  है ,  जो  कभी  पूरी  नहीं  होती  l  अधिक  तृष्णा  मन  को  व्याकुल  कर  देती  है   और  मनुष्य  उसी  तृष्णा  को   साथ  लिए  दुनिया  से  विदा  हो  जाता  है  l  l '  ऐसा  कहकर  वह  साधु  चला  गया  और  वह  सातों  घड़े  भी  साधु   जाते  ही  गायब  हो  गए   l   उन  दोनों  पति - पत्नी  को  बहुत  दुःख  हुआ    कि  जो  था  उसका  सदुपयोग  कर  लेते ,  अब    तो  पूरा  जीवन  ही  व्यर्थ  हो  गया  l
  '  धन  व्यक्ति  का  उद्धार  नहीं  कर  पाता,  मनुष्य  द्वारा  किये  गए  शुभ  कर्म  ही   उसकी  सहायता  करते  हैं  l '   

8 October 2017

WISDOM ------ सम्पति कमाना आसान है , लेकिन लोगों को प्रभावित करना , उनके दिलों को जीतना कठिन है

 अब्राहम  लिंकन  ने   एक  बार  अपने  एक  पत्र  की  शुरुआत  में  लिखा  था --- " हर  एक  को  तारीफ  अच्छी  लगती  है  l "
  हर  मनुष्य  के  दिल  की  गहराई  में   यह '  लालसा '  छिपी  होती  है  कि   उसे  सराहा  जाये  l    और  वह  दुर्लभ  व्यक्ति ,  जो   इस  ' लालसा '  को  संतुष्ट  करता  है  ,  लोगों  को  अपने  वश  में  कर  सकता  है   l
 चार्ल्स  श्वाब  एक  ऐसे  व्यक्ति  का  नाम  है  ,  जिसने  सहानुभूति  और  सच्ची  प्रशंसा   के  द्वारा  लोगों  के  दिलों  पर  राज  किया   l  एन्ड्रयु  कारनेगी  ने   चार्ल्स  श्वाब  को  एक  साल  में  दस  लाख  डालर   से  अधिक  की  तनख्वाह  दी  l  इसका  कारण  श्वाब  ने  बताया  कि   वे  लोगों  के  साथ  व्यवहार  करने  की  कला  में  निपुण  थे   l  श्वाब  का  कहना  था  कि   ---- " मैं  मानता  हूँ  कि  मेरी  सबसे  बड़ी  पूंजी   अपने  कर्मचारियों  का  उत्साह  बढ़ाने  की  कला  है   और  मैं   सराहना  और  प्रोत्साहन  के  द्वारा  लोगों  से  सर्वश्रेष्ठ  प्रदर्शन  करवा  लेता  हूँ  l "
       एन्ड्रयु  कारनेगी  गरीबी में  पले  स्काटलैंड  के  किशोर  थे  ,   जिन्होंने  अपनी  नौकरी  की  शुरुआत    दो  सेंट  प्रति  घंटे  काम  से  की  थी    और  बाद  में  उन्होंने    365  मिलियन  डॉलर   दान  में  दिए   l  उन्होंने  जीवन  की  शुरुआत  में  ही  सीख  लिया  था  कि   लोगों  को  प्रभावित  करने  का  इकलौता  तरीका   सामने  वाले  की   इच्छाओं  के  बारे  में  बात  करना  है   l  वे  केवल  चार  साल  तक  ही  स्कूल  गए  थे  , परन्तु  उन्होंने  यह   सीख  लिया  था   कि  लोगों  के  साथ किस  तरह व्यवहार  किया  जाये      l         "                                                                                                                                                                                                                                     

7 October 2017

WISDOM ------ आत्मविश्वास मानव जीवन की दृढ़ पतवार है जो उसे विषमताओं में गतिशील और सुस्थिर बनाये रखती है

   जीवन  में  प्रकाश  देने  वाले  सभी  दीप  बुझ  जाएँ , किन्तु  मनुष्य  के  अन्तर  में  अपने  विश्वास  की  ज्योति  जलती  रहे   तो  वह  गहन  अंधकार  में  भी   अपना  पथ  स्वयं  ढूंढ  निकालेगा  l 
  अहंकार     और     आत्मविश्वास  में  बड़ा  अंतर  है  l   अहंकार  का  आधार  भौतिक  पदार्थ  और  मनोविकार  होते  हैं   l  यह  शोषण ,  निर्दयता   और  पीड़ा  का  कारण  बनता  है   l  हिटलर , मुसोलिनी , तैमूरलंग, नादिरशाह  आदि  में  यही  था   जो  उनके  और  जन  समाज  के  लिए  अहितकर  सिद्ध  हुआ  l
                      ईश्वर  विश्वास  ही  आत्मविश्वास  है   l   आत्मविश्वास  की  इस  ज्योति  को  जलाने  और  प्रज्वलित  रखने  के  लिए   मनुष्य  का  अपने  विकारों ,  चिंता , भय  आदि  पर  नियंत्रण  जरुरी  है   l  यदि  मनुष्य  इन  विकारों  में  जकड़ा  हुआ  है  तो  वह  पराधीन  है ,   ऐसी  पराधीनता  में  आत्मविश्वास  नहीं  होता    l    जब  मनुष्य   अपने  मन   को  नियंत्रण  में  रखता  है   तभी  वह  आत्मविश्वास  की  शक्ति  को  पाता  है  और  इससे  मनुष्य  की  साधारण  शक्तियां   असाधारण  बन  जाती  हैं   l
   स्वामी  विवेकानन्द  ने   अपने  अनुभवों  के  आधार  पर  इसकी  महत्ता   बताते  हुए  श्री  ई. टी. स्टरडी  को  एक  पत्र  में  लिखा  था ---- " हमारे  गुरुदेव  के  शरीर  त्याग  के  बाद  हमलोग  बारह  निर्धन  और  अज्ञात  नवयुवक  थे  l  हमारे  विरुद्ध  अनेक  शक्तिशाली  संस्थाएं  थीं  जो  हमें  नष्ट  करने  का  भरसक  प्रयत्न  कर  रहीं  थीं  l  परन्तु  श्री  रामकृष्ण देव  ने  हम  सबके  भीतर   जो  आत्मविश्वास  की  ज्योति  जलाई  थी  उसके  प्रभाव  से   सारे  अंधकार  नष्ट  हो  गए   और  प्रभु    की    शिक्षाएं  दावानल  की  तरह  फैल   रही  हैं   l  "
       आत्मविश्वास  से बाधाएं  भी  मंजिल  पर  पहुँचने  वाली   सीढियाँ  बन  जाती  हैं   l   प्रसिद्ध  वैज्ञानिक    जगदीश  चन्द्र बसु   पौधों  में  जीवन  है  ,  इस  प्रतिपादन  को  इंग्लैंड  की  वैज्ञानिक  मंडली  के  सम्मुख  प्रयोग  द्वारा  सिद्ध  करने  जा  रहे  थे   l   कुछ  ईर्ष्यालु  लोगों  ने    तीक्षण  जहर  पोटेशियम  सायनाइड  की  जगह  सामान्य  चूर्ण  रख  दिया   l  चूर्ण  के  घोल  की  सुई  पौधे  में  इंजेक्ट  करने  पर   कोई  असर  नहीं  हुआ  ,  तब  उन्होंने  आत्मविश्वास  भरे  स्वर  में  कहा --- 'यदि  इससे  पौधा  नहीं  मरता  है   तो  मैं  भी  नहीं  मरूँगा   और  सारा  चूर्ण  खा  गए   l   ईर्ष्यालुओं  का   मुख  लज्जा  से  नत  हो  गया   l   असली  पोटेशियम  सायनाइड  लाया  गया   और  उन्होंने  सफल  प्रयोग  कर  के  दिखा  दिया   l 
   

6 October 2017

WISDOM ------ अच्छे स्वास्थ्य के लिए परिश्रम जरुरी है















एक  बार   कन्फ्यूशियस  के  शिष्य   चांग हो चांग  भ्रमण  के  लिए  निकले   l  मार्ग  में  उन्होंने  देखा  कि  एक   युवा  माली  कुंए  से  बालटी  से  पानी  निकाल कर   एक - एक  पौधे  में  डाल  रहा  है   l   उन्हें  दया  आई  और  ऐसी  व्यवस्था  करा  दी  कि   एक  जगह  खड़े  होकर  पानी  निकाल  ले  जो  नाली  की  सहायता  से  पेड़ों  में  पहुँच  जाये  l  ऐसी  व्यवस्था  से  माली  को  आराम  तो  हुआ  किन्तु  चलना - फिरना   व  झुकने  आदि  कई  व्यायाम  नही  हो  रहे  थे   l  चांग  एक  बार  फिर  उसी  रास्ते  से  गुजरे  तो  उन्होंने  सोचा  कि  कुएं  में  भाप  से  चलने  वाली  मशीन  डाल  दी  जाये   तो  परिश्रम  बहुत  कम  होगा  और  सब  पेड़ों  को  पानी  भी  मिल  जायेगा  l   यह  प्रस्ताव  भी  स्वीकार  हो  गया , भाप  का  इंजन  लग  गया  और  माली  को  बहुत  आराम  हो  गया  l  
बहुत  दिन  बीत  गए  चांग    की    उस  बगीचे  को  देखने  की  इच्छा  हुई   l  वहां  जाकर  देखा  तो  स्तब्ध  रह  गए  पूरा  बगीचा   सूख    चुका  था  l  माली  को  देखा  तो  उसके  हाथ  सूख  गए ,  टांगे  पतली  हो  गईं,  भोजन  हजम  नहीं  होता  , चेहरा  पीला  पड़  गया  l  चांग  ने  उससे  कहा --- क्या  अभी  भी  बहुत  परिश्रम  करना  पड़ता  है ,  कोई  और  तरकीब  सोचें  ?  
  माली    की    पत्नी  ने  हाथ  जोड़कर  कहा ---' आप  तरकीब  न  सोचें  ,  ऐसी  सलाह   आप  इन्हें   दें  कि     फिर  से  परिश्रम  करने  लगें  l  यह  आराम  ही  बीमारी  का  कारण  है  l ' 
  माली  अपनी  पूर्व  जीवन पद्धति  में  आकर  पुन:  स्वस्थ  हो  गया  l 
  चांग  अपने  एकांगी  चिंतन  पर  बहुत  पछताए  l  यह  समझ  गए  कि  बिना  परिश्रम  के  जीवन  मूल्यहीन  और  नाकारा  हो  जाता  है   l 




















5 October 2017

युवाओं के मार्गदर्शक ----- सुभाषचंद्र बोस

  घटना  उन  दिनों  की  है -----  सुभाषचंद्र  बोस  ने   20  सितम्बर  1920  को   इंग्लैंड  में  आई. सी. एस.  की  परीक्षा  में  सफलता  प्राप्त  की  थी  ,  सफल  छात्रों    की    सूची  में  उनका  स्थान  चौथा  था  l  अंग्रेजी  कम्पोजिशन  में  उन्हें  प्रथम  स्थान  मिला  था ,  उन्होंने  अंग्रेजों  को  उन्ही  की  भाषा  में  धूल  चटा  दी   l   इसके  कुछ  ही  महीनों  बाद  समाचार   पत्र    में   मुखर  पृष्ठ  पर   यह  समाचार   प्रकाशित   हुआ कि   -----
  'सुभाषचंद्र  बोस  ने   आई. सी. एस.  पद  से  त्यागपत्र  दे  दिया ,   22  अप्रैल  1921  का  यह  दिन   भारतीय  इतिहास  में  अमिट  हो  गया  ---  स्वतंत्र  और  सशक्त  भारत  के  निर्माण  के  लिए  उन्होंने  स्वयं  को  समर्पित  कर  दिया  ----------
       एक  अंग्रेज    पुलिस  अधिकारी    जो   सुभाषचंद्र  बोस  से  इंग्लैंड  के  दिनों  से  परिचित  था  ,  उसने  उनके  कमरे  में  प्रवेश  किया  और  कहा ---- ' मिस्टर  सुभाष  ! मेरे  पास  तुम्हारी  गिरफ्तारी  के  लिए  वारंट  है  l " इतना  कहकर  उसने  विचित्र  नजरों  से  उन्हें  देखा  और  कहा ---- " तुम  क्या  हो  सकते  थे  और  क्या  हो  गए   ? "    इस  अंग्रेज  अधिकारी  को  यह  मालूम  था  कि  यदि  आज  वह  आई. सी. एस.  अधिकारी  होते  तो  वह  उनका  अधीनस्थ  होता   l
      उस  अंग्रेज  की  इस  बात  के  उत्तर  में  उन्होंने  कहा ---  "  ठीक  कहा  तुमने  मिस्टर  ग्रिफिथ  !  मैं  गुलाम  हो  सकता  था  ,  लेकिन  आज  मैं  अपने  देश  की  स्वाधीनता  का  सजग   सिपाही  हूँ  l  '
 अंग्रेज  अधिकारी  ने  कहा --- ' मुझे  तुम्हारे  कमरे  की  तलाशी  लेनी  है  l '    वह  उनके  कमरे  कि  हर  चीज  को  बड़े  ध्यान  से  उलटता - पुलटता   रहा   ---- एक  पुस्तक  थी  जिसमे  स्वामी  विवेकानन्द  के  पत्रों  का  संकलन  था  ,  एक  चांदी  की  डिब्बी  में  कुछ  चूर्ण  जैसा  था ,  उसने  पूछा ---- " यह  क्या  है   मिस्टर  सुभाष  ? '  उत्तर  में  उन्होंने  कहा ----- "  यह  मेरे  देश  की  मिटटी  है ,  मैं  हर  रोज  इसकी  पूजा  करता  हूँ   इसे  अपने  माथे  पर  लगाता  हूँ   और  देश  की  स्वाधीनता  के   अपने  उद्देश्य  का  स्मरण  करता  हूँ   l  " 
  यह  बात   अंग्रेज  की  समझ  के  बाहर  थीं  l   उनके  चेहरे  पर  प्रसन्नता  के  भाव  देखकर  वह  बोला ---- " तुम्हे  गिरफ्तार  होने  का  जरा  भी  दुःख  नहीं  है  मिस्टर  सुभाष  ? "
  उत्तर  में  उन्होंने  कहा ---- " कष्ट  और  त्याग --- दोनों  स्वराज्य  की  नींव  हैं ,  मिस्टर ग्रिफिथ  l  यदि  देश  के   युवक  उसके  लिए  स्वयं  को  अर्पित  करने  के  लिए  तैयार  हों   तो  स्वतंत्रता  की  कल्पना  को  साकार  होने  में  देर  न  लगेगी  l  " 
  इस   गिरफ्तारी  के  बाद  उन्हें  बर्मा  की  मांडले  जेल  भेज  दिया  गया  l  जेल  की  यातनाएं  उनकी  साधनाओं  में  परिवर्तित  होने  लगीं  ,  यह  जेल  उनके  लिए  तपोभूमि  बन  गई   l   बीतते  समय  के  साथ  वे  सबके  प्रिय   महानायक   नेताजी  बन  गए  l
  भारत  के  युवाओं  ने    उनसे  कहा ---- " इस  विपदा  के  समय  में  जब  पूरा  देश  अंधकार  में  डूबा  है  ,  आपका  व्यक्तित्व   हम  सबके  लिए  प्रकाश  पुंज  है   l  "  नेताजी  सुभाषचंद्र  बोस  आज  भी  राष्ट्र  के  लिए  प्रेरणा  और  प्रकाश  का  अमर  स्रोत  हैं   l
      

2 October 2017

WISDOM ------ गांधीजी अहिंसा को कायरों का नहीं वीरों का भूषण कहा करते थे

 , अहिंसात्मक  प्रतिकार  से  उनका   आशय  था ---- बिना  किसी  को  कष्ट  दिए  ऐसा  नैतिक  दबाव  उत्पन्न  करना  कि  अत्याचारी  को  हारकर  सही  रास्ते  पर  आना  पड़े   l  इसके  लिए  बड़े  साहस ,  संतुलन  और  धैर्य  की  आवश्यकता  है   l
      घटना  1923    की    है  -----  तब  गुजरात  के  पंचमहल  एवं  गोधरा  में   भीषण  साम्प्रदायिक  उपद्रव  हुए  l  वहां  के  बहुसंख्यक  वर्ग  द्वारा  पीड़ित   व्यक्ति  भागकर   महात्मा  गाँधी  के  पास  पहुंचे   और  उन्होंने    अत्याचारियों    द्वारा  किये  गए  अत्याचार  की  शिकायत  उनसे  की   l  बापू  ने  सारी  बातें  ध्यानपूर्वक  सुनी    और  पूछा --- ' तुम  लोगों  ने  इसके  मुकाबले  क्या  किया   ? '
 आगंतुकों  में  से  एक  नेता  जैसे  व्यक्ति  ने  कहा --- '  करते  क्या  ?  आपकी  अहिंसा  का  अर्थ  सुनकर  ! '
 बापू   क्षुब्ध  मन  से  बोले ---- ' मेरी  अहिंसा  ने  यह  थोड़े  ही  कहा  था  कि  तुम  वहां  से   कायरों  की  तरह  भागकर   अपनी  बुजदिली  की   रिपोर्ट  देने  के  लिए  मेरे  पास  आओ  l  मेरी  अहिंसा  तो  साहसपूर्वक  मर - मिटने  का  सन्देश  देती  है  l  तुम  में  यदि  मर  मिटने  का  साहस  नहीं  था    तो  अपने  मन  के  अनुसार  उस  स्थिति  का  मुकाबला  करना  चाहिए  था  l   तुमने  मेरे  मत  को  समझा  नहीं  और  अपने  मत  पर  चलने  की  हिम्मत  नहीं  की  l    जहाँ  किसी  तरह  जान  बचा  लेने  की  भावना  है  ,  खतरों  से  मुंह  मोड़ने  या  भाग  जाने  की  संभावना  है  वहां  अहिंसा  नहीं  हो  सकती  l  अहिंसा   कायरों   की    नहीं   वीरों  की  है " l
        दुष्टता   या   अवांछनीयता    का  दमन  किसी  भी  प्रकार   किया  जाये  ,  ऐसा  ' मन्यु '     अहिंसा  के  अंतर्गत  ही  आता  है   l  क्योंकि    दुष्टों  का ,  अत्याचारी  का  दमन  करने  से   उसके  कारण  पीड़ित  होने  वाले   अधिक  लोगों  को  सुख - चैन  से  रहने  का  अवसर  मिलेगा   l 

1 October 2017

WISDOM ------ जब जागा आत्मबल ------

   विश्व  के  शक्ति भंडार  में  आत्मबल  सर्वोपरि  है  l   जो  अपने  मानवीय  विकारों  पर  नियंत्रण  रखता  है  ,  अपने  आंतरिक  और   बाह्य    जीवन  पर  शासन  करता  है    वही  आत्मबल  संपन्न  हो  जाता  है  और  तब  उस  पर  दैवी   अनुग्रह    अनायास  बरसता  है -------
       चन्द्रगुप्त  जब  विश्वविजय  की  योजना  सुनकर  सकपकाने  लगा   तो  चाणक्य  ने  कहा ----- "  तुम्हारी  दासीपुत्र  वाली  मनोदशा  को    मैं    जानता    हूँ   l   उससे  ऊपर  उठो   l  चाणक्य  के  वरद  पुत्र   जैसी  भूमिका  निभाओ  l  विजय  प्राप्त  कराने  की  जिम्मेदारी   तुम्हारी  नहीं ,  मेरी  है  l "
                     शिवाजी  जब  अपने  सैन्यबल  को  देखते  हुए  असमंजस  में  थे   कि  इतनी  बड़ी  लड़ाई  कैसे  लड़ी  जा  सकेगी  ,  तो  समर्थ  रामदास  ने  उन्हें  भवानी  के  हाथों   अक्षय  तलवार  दिलाई  थी    और  कहा  था ------- "तुम  छत्रपति  हो  गए ,  पराजय  की  बात  ही  मत  सोचो   l "
                     महाभारत  लड़ने  का  निश्चय  सुनकर  अर्जुन  सकपका  गया   और  कहने  लगा ----- "  मैं  अपने  गुजारे  के  लिए  तो  कुछ  भी  कर  लूँगा  ,  फिर  हे  केशव  !  आप  इस  घोर  युद्ध  में   मुझे  नियोजित  क्यों  कर  रहे  हैं  ? '  इसके  उत्तर  में  भगवान  ने  एक  ही  बात  कही ----    "  इन  कौरवों  को  तो  मैंने  पहले  ही   मार    कर   रख  दिया  है  l   तुझे  यदि  श्रेय  लेना  है    तो  आगे  आ ,  अन्यथा  तेरे  सहयोग  के  बिना  भी   वह  सब  हो  जायेगा ,  जो  होने  वाला  है   l   घाटे  में  तू  ही  रहेगा ---- श्रेय  गँवा  बैठेगा   और  उस  गौरव  से  भी  वंचित  रहेगा   ,  जो  विजेता  और  राजसिंहासन    के  रूप  में  मिला  करता  है   l  "
  अर्जुन  ने  वस्तुस्थिति  समझी   और   कहा कि  आपका  आदेश  मानूंगा   l 
    उच्चस्तरीय  प्रतिभाओं  का  पौरुष  जब  कार्यक्षेत्र  में  उतरता  है    तो  न  केवल  कुछ  व्यक्तियों   को ,  वरन  समूचे  वातावरण  को  ही  उलट - पुलट  कर  रख  देता  है   l