सुविख्यात मनीषी कार्ल मेनीन्जर ने अपनी कृति ' मैन अगेंस्ट हिमसेल्फ ' में कहा है -- " आज सभ्यता उन लोगों द्वारा विकसित हो रही है , जो प्राकृतिक संपदाओं को नष्ट करते हैं , प्रकृति का विनाश करते हैं और अपने ही ठौर - ठिकानों को प्रदूषित कर के स्वयं मृत्यु का वरण करने पर उतारू हैं l हर व्यक्ति आज जाने - अनजाने अपने को मारने के लिए तीव्रता से या धीमी गति से प्रयास कर रहा है l '
विनाश की दर विकास की अवस्था से तीव्र होती है l किसी नई प्रजाति के विकास में लाखों साल लग जाते हैं लेकिन पर्यावरण का विनाश कुछ सदियों में हो जाता है l हमें समय रहते होश में आ जाना चाहिए अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब संकटों से घिरा मानव उस रेगिस्तान में होगा , जहाँ उपलब्धियां तो हो सकती हैं , लेकिन उसे प्यार देने और प्यार बांटने वाले जीव - जंतु और वनस्पति नहीं होगी क्योंकि अब चिड़ियों ने चहचहाना बंद कर दिया है , उनका बसंत थम गया है l भीषण गर्मी , पानी की कमी और प्रकृति - पर्यावरण के प्रति हमारी संवेदनहीनता हमें किस मोड़ पर ले जाएगी ?
विनाश की दर विकास की अवस्था से तीव्र होती है l किसी नई प्रजाति के विकास में लाखों साल लग जाते हैं लेकिन पर्यावरण का विनाश कुछ सदियों में हो जाता है l हमें समय रहते होश में आ जाना चाहिए अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब संकटों से घिरा मानव उस रेगिस्तान में होगा , जहाँ उपलब्धियां तो हो सकती हैं , लेकिन उसे प्यार देने और प्यार बांटने वाले जीव - जंतु और वनस्पति नहीं होगी क्योंकि अब चिड़ियों ने चहचहाना बंद कर दिया है , उनका बसंत थम गया है l भीषण गर्मी , पानी की कमी और प्रकृति - पर्यावरण के प्रति हमारी संवेदनहीनता हमें किस मोड़ पर ले जाएगी ?