21 June 2019

WISDOM ----- सच्चाई की परख तो प्रलोभनों के अवसर पर होती है

 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य  ने  वाड्मय  ' विश्व वसुधा जिनकी सदा  ऋणी  रहेगी ' में  लिखा  है ----" सचमुच  दीन  दुर्बल  वे  नहीं   जो  गरीब  अथवा  कमजोर  हैं   वरन  वे  हैं  जो   कौड़ियों  के  मोल  अपने   ईमान  को  बेचते  हैं  , प्रलोभनों  में  फंसकर  अपने  व्यक्तित्व  का  वजन  गिराते  हैं   l  तात्कालिक  लाभ  देखने  वाले  व्यक्ति  उस  अदूरदर्शी  मक्खी  की  तरह  हैं  ,  जो  चासनी  के  लोभ  को  संवरण   न  कर  पाने  से   उसके  भीतर  जा  गिरती  है  तथा  बेमौत  मरती  है  l  मृत्यु  शरीर  की  ही नहीं  व्यक्तित्व  की  भी  होती  है  l  गिरावट  भी मृत्यु  है  l  "
 क्रान्तिकारी  विचारों  का  जनक  होने  के  कारण   प्रसिद्ध   विचारक  कार्ल मार्क्स  को  फ्रांस  तथा  जर्मनी  दोनों  ही  देशों  से  निकलना  पड़ा  l  वे  परिवार  सहित  लन्दन  में  जा  बसे  , यहीं  उन्होंने  अपने   प्रसिद्ध  ग्रन्थ
 ' दास  कैपिटल ' की  रचना  की  l  लन्दन  प्रवास  के  दौरान  मार्क्स  को  घोर  आर्थिक  कठिनाइयों  का  सामना  करना  पड़ा  l  उनके  दो  बच्चे  गरीबी  व  भूख  के  कारण  मर  गए  , किराया  न  देने  के  कारण  मकान  मालिक  ने  उन्हें  घर  से  निकाल  दिया  l  रोटी  के  लिए  बिस्तर  व  वस्त्र  तक  बेचने  पड़े  l  इन  सब  कठिनाइयों  के  बावजूद  मजदूरों  के  बीच  बोलने ,  उनका  संगठन  खड़ा  करने  और  अपने  विचारों  को  लिपिबद्ध  करने  का  क्रम  चलता  रहा  l  उन  दिनों  जर्मनी  में  बिस्मार्क  का  प्रभुत्व  था , उसे  डर  था  कि यदि  मार्क्स  के  विचार  फैल  गए  तो  जर्मनी  में  पूंजीवाद  की  नींव  सदा  के  लिए  उखड़  जाएगी  l  इसलिए  बिस्मार्क  ने  अप्रत्यक्ष  रूप  से  रिश्वत  देकर  मार्क्स  को  खरीदना  चाहा  l  मार्क्स  के  पुराने  साथी  बूचर  को  पैसों  के  बल  फोड़  लिया  और  उसके  हाथों  5 अक्टूबर 1865  को  एक  गुप्त पत्र   भिजवाया  जिसमे  सरकारी  समाचार  पत्र  के  संपादक  के  रूप  में  मार्क्स  को  आमंत्रित   किया  गया  था  और  एक  मोटी  रकम  देने  का  उल्लेख  था  l  बिस्मार्क  की  यह  कुटिल  चाल  सफल  न  हो  सकी  l मार्क्स  ने  प्रस्ताव  को  स्पष्ट  रूप  से  इन्कार  के  दिया  l  श्रेष्ठ  सिद्धांतों  को  व्यक्तिगत  आवश्यकताओं  से  भी  अधिक  महत्व  देने  वाले  मार्क्स  ने  कठिनाइयों  को  स्वेच्छापूर्वक  वरण  किया  l  यह  प्रलोभनों  पर  आदर्शों  की  एक  ऐसी  महान  विजय  थी  जिसने  कार्ल  मार्क्स  को  महानता  की और  अग्रसर  किया   और  विश्व - विख्यात  बनाया  l