10 September 2018

WISDOM ---- धर्म का मर्म है ----- अन्याय का प्रतिकार , अनीति का विरोध और आतंक का उन्मूलन

 ऋषियों  ने  ,  आचार्य  ने  कहा  है ---- कर्तव्य  ही  धर्म  है ,  यही  सच्चा  कर्मयोग  है  ,  लेकिन  यह  विवेकपूर्ण  होना  चाहिए   l 
  महाभारत काल  में   भीष्म  पितामह   की  धर्म  पर  गहरी  आस्था  थी ,  वे  समर्थ  और  शक्तिशाली  योद्धा  थे   लेकिन    धर्माचरण   करने  वाले  भीष्म   ने    अत्याचार  करने  वाले ,  पांडवों  के  विरुद्ध  हमेश  षड्यंत्र  रचने  वाले  दुर्योधन  का ,    अधर्म  का  साथ  दिया ,  द्रोपदी  के   चीर   हरण  पर  मूक  दर्शक बन  सिर  झुकाए  बैठे  रहे  l   अधर्म  का  साथ  देकर   न  तो  दुर्योधन  की  रक्षा  कर  सके  और  न  स्वयं  की   l 
         इसी  तरह   कुलगुरु  कृपाचार्य  थे   l  कुलगुरु  का  कर्तव्य  होता  है  --- कुल  में  धर्म  की  प्रतिष्ठा   l  कुल   के   सभी  व्यक्ति  धर्म  का  आचरण  करें ,  शुभ  कर्म  करें  l  लेकिन  धर्म  के  जानकार  होते  हुए  भी  वे    कौरवों  के    अधर्म आचरण   के    मौन  साक्षी  रहे  ,  उनका  साथ  त्यागने  की  हिम्मत  नहीं   जुटा   सके   l 
   इसी  तरह  कर्ण  महान  योद्धा  और  महादानी  था   लेकिन  उसने  भी   मित्र  मोह  में      अधर्म  का  आचरण  करने  वाले  दुर्योधन  का  साथ  दिया   l  महारानी  द्रोपदी  के  चीर - हरण  जैसी  दुर्भाग्य पूर्ण  घटना   को  भी  रोकने  का  प्रयास  उसकी  वीरता  ने  नहीं  किया  ,  वह  भी  अधर्म  के  साथ  खड़ा  रहा   l 
  इन  सभी  महारथियों  का  अत्याचार  व  अन्याय  के  सामने  प्रतिक्रिया विहीन  रहना ,  उन्हें  अधर्म  की  कसौटी  पर  खड़ा  कर  देता  है   l 
  सामान्य  अर्थ  में  पूजा - पाठ ,  कर्मकांड  करने  को  धर्म  कहा  जाता  है   लेकिन  यह  करने   की   और  धर्म  की  सार्थकता   पीड़ा  और  पतन   निवारण  करना ,  सदभाव,  सद्विचार   और  सत्कर्म  करना  है  ,  अत्याचार  और  अन्याय  से  कमजोर  की  रक्षा  करना  है   l