11 September 2021

WISDOM ----

'  सत्य  की  विजय  होती  है ,  शक्ति  की  नहीं  l '     रावण  का  आतंक  दसों   दिशाओं  में  था   l   युग  चाहे  कोई  भी  हो   असुरता  के  लक्षण  हर  युग  में  एक  जैसे  ही  होते  हैं  ,  उन्ही  के  आधार  पर   असुर  की  पहचान  होती  है  l   रावण   था  तो  ऋषि  पुत्र  लेकिन  वो  स्वयं  को  गर्व  से ' दानवराज '  कहता  था   l   असुरता  को  पराजित  करना  इतना  आसान  नहीं  होता  ,  उसके  लिए  अध्यात्म  की  शक्ति  की  आवश्यकता  होती  है   l   उस  युग  में  एक  राजा  था  ' सहस्त्रार्जुन  '   उसके  पास  तपबल , आत्मबल  और  सत्य   का    बल  था    l उसके  विशाल  साम्राज्य  में   सभी  ओर  सदाचरण , न्याय  और  संतोष  था  ,  उसे  देखकर  रावण  का  हृदय  ईर्ष्या   के  मारे  फट  जाता  था  l  रावण  जानता   था  कि  सहस्त्रार्जुन  को  सीधे  युद्ध  में  हराना  असंभव  है  l   इसलिए  उसने  छल  युद्ध  का  सहारा  लिया   l   जब  सहस्त्रार्जुन  नर्मदा  के  किनारे  सूर्य  भगवान  को  जल  चढ़ा   रहा  था  तब   रावण  ने  उस  पर  अचानक  आक्रमण  किया  और  कहा  --- आज  तुम    हमारे     बंदी  बनोगे  ,  यह  विशाल  साम्राज्य   मेरा  अपना  होगा   l '  उसकी  बात  सुनकर  सहस्त्रार्जुन  भयभीत  नहीं  हुआ  , मुस्कराता  रहा   फिर  अचानक  नर्मदा  के  जल  से  हजारों  नावें  प्रकट  हो  गईं ,  सेना  ने  चारों  तरफ  से  आक्रमण  कर  रावण  को  बंदी  बना  लिया   l   जेल  में  उसे  यातना  नहीं  दी  गई  ,  उसे  सम्मान  के  साथ  रखा  l   जब  महर्षि  पुलस्त्य  उसे  लेने  पहुंचे                           तो  सहस्त्रार्जुन  ने  रावण  से कहा ------ ' रावण !  ध्यान  रखना   दुराचारी  चाहे  कितना  ही  बलवान  ,, शक्तिवान   क्यों  न  हो  ,  एक  न   एक  दिन  उसका   दर्दनाक  अंत  निश्चित  है   l      इतिहास  किसी  को  याद  नहीं  करता  और  काल   किसी  को  क्षमा  नहीं  करता   l   तुम्हारा  विनाश  निश्चित  है   l