16 March 2013

 'संसार में वैभव रखना ,धनवान होना कोई बुरी बात नहीं ,बुराई तो धन के अभिमान में है | वही
व्यक्ति को गिराता है | 'साधन -संपति ,वैभव बढ़ जाने से जीवन में खुशहाली बढ़नी चाहिये ,लेकिन खुशहाली नहीं बढ़ी ,मन की शांति ख़त्म हो गई है | धन -दौलत के साथ यदि द्रष्टिकोण परिष्कृत हो जाता ,ह्रदय विशाल हो जाता ,सह्रदयता बढ़ती तो स्वयं के साथ समाज का भी कल्याण होता |
'वैभव असीम मात्रा में कमाया तो जा सकता है ,पर उसे एकाकी पचाया नहीं जा सकता | '
धन -संपति ,शिक्षा और ज्ञान में वृद्धि के साथ यदि मनुष्य का चिंतन परिष्कृत हो उसमे ईमानदारी उदारता ,सेवा आदि सद्गुण हों तभी वह धन और ज्ञान सार्थक है ,अन्यथा 'पैनी अक्ल 'और अमीरी विनाश के साधन होंगे | आध्यात्मिक मनोविज्ञानी कार्ल जुंग की यह द्रढ़ मान्यता थी कि मनुष्य की धर्म ,न्याय ,नीति में अभिरुचि होनी चाहिये ,उसके लिये वह सहज स्वभाव है | यदि इस दिशा में प्रगति न हो पाई तो अंतत:मनुष्य टूट जाता है और उसका जीवन निस्सार हो जाता है | 'ब्रिटिशसंसद में वेतन बढ़ाने की मांग को लेकर दार्शनिकों की राय जानने के लिये कुछ विशेषज्ञों को बुलाया गया उसमे प्रसिद्ध अर्थशास्त्री -जॉन स्टुअर्ट मिल भी थे | उन्होंने तुरंत कहा -"मजदूरों का वेतन न बढ़ाया जाये | वेतन बढ़ाने के मैं सख्त खिलाफ हूं | उन्होंने अपनी गवाही में कहा जो वेतन बढ़ाया जा रहा है ,उसकी तुलना में उनके लिये स्कूलों का ,उनके पढ़ने -लिखने का प्रबंध किया जाये ,उनकी चिकित्सा -दवा का प्रबंध किया जाये और जब वे सभ्य एवं सुसंस्कृत होने लगें तब उनके वेतन में वृद्धि की जाये ,अन्यथा वेतन की वृद्धि करने से मुसीबत आ जायेगी ,ये मजदूर तबाह हो जायेंगे | "बात ख़त्म हो गई | सभी ने एक मत से मजदूरों का वेतन डेढ़ गुना बढ़ा दिया | तीन वर्ष बाद जब जानकारी ली गई कि डेढ़ गुना वेतन जो बढ़ाया गया ,उसका क्या फायदा हुआ ?तब ज्ञात हुआ कि मजदूरों की बस्तियों में जो शिकायतें पहले थीं ,वे पहले से दोगुनी हो गईं ,शराबखाने पहले से दोगुने हो गये गुप्तरोग पहले जितने मजदूरों को होते थे ,उससे दूने -चौगुने हो गये | यह देखकर लोगों ने कहा कि जॉन स्टुअर्ट मिल की गवाही सही थी कि वेतन नहीं बढ़ना चाहिये | अनुभवी गुरुजनों का मत है कि वेतन जरुर बढ़ना चाहिये लेकिन पैसा बढ़ने के साथ -साथ लोगों का ईमान ,लोगों का द्रष्टिकोण ,लोगों का चिंतन भी बढ़ना चाहिये |
विश्वविजय का स्वप्न देखने वाला सिकंदर नित्य शराब पीने और राग -रंग में मस्त रहने के कारण इतना निर्बल हो चुका था कि मच्छरों के काटने पर उसका शरीर प्रतिरोध न कर सका और बेबिलोन में जाकर उसकी मृत्यु हुई | उसने जीवन भर युद्ध लड़े ,जीवन के अंत समय में उसे उन दो लड़कियों की स्मृति आ गई ,जिनने उसे नैतिक द्रष्टि से पराजित किया था | भारत के उत्तर पश्चिम प्रांत के एक गांव के पास उसकी सेनाओं ने डेरा डाला था | गांव में एक जलसा चल रहा था ,ग्रामीण युवा युवतियों के मोहक नृत्य को देखकर सिकंदर अपनी सुध -बुध खो बैठा | उसने वहीँ खाना मंगाया | दो सुंदर ग्रामीण युवतियां एक थाली को कीमती चादर से ढक कर लाईं | चादर हटाते ही सिकंदर क्रुद्ध हो उठा ,उस थाली में सोने चांदी के आभूषण थे | युवतियों ने कहा -"नाराज न हो सम्राट !हमने सुना है आप इसी के लिये भूखे हैं | इसी के लिये हजारों लाखों को मारकर आप हमारे बीच आयें हैं ,हमें हमारी जान जाने की चिंता नहीं है | आप भोजन स्वीकार करें एवं हमारा सिर काट लें | "कहते हैं इसके बाद सिकंदर विक्षिप्त हो उठा और वापस लौट गया |