3 October 2018

WISDOM ----- सच्ची पूजा - उपासना

  विधाता  ने  एक  बार  जय - विजय  को  धरती  पर  भेजा  और  कहा  कि  पता  लगाकर  आओ  की  इस  समय  धरती  पर  स्वर्ग  का  सच्चा  अधिकारी  कौन  है  l   जय - विजय  ने  सारी  धरती  की  यात्रा  की  और  देखा  कि  सभी  धार्मिक  स्थलों  --- मंदिर , मस्जिद , गुरूद्वारे , चर्च  , सब  में  भारी  भीड़  है  और  लोग  अपने  अपने  तरीके  से  पूजा - उपासना  कर  रहे  हैं  l   चलते - चलते  रात  हो  गई , वे  एक  गाँव  में  पहुंचे  l  रास्ते  में  काफी  गढ्ढे  हैं ,  कीचड़  भी  है   l  वहां  देखा  कि  एक  वृद्ध  जो  नेत्रहीन  है  दीपक  जलाये  बैठा  है  l
कीचड़  में  सने  लोगों  के  हाथ - पैर  धुलवाता  है ,  उन्हें  कुछ  क्षण  विश्राम  के  लिए  बैठाकर  आगे  का  रास्ता  बताता  है   l  सारी  रात  पथिकों  को  प्रकाश  दिखाया   और  प्रात:काल  होते  ही  अपनी  चारपाई  पर   विश्राम  करने  की   व्यवस्था  करने  लगा  l  जय - विजय  ने  उसके  पास  जाकर  पूछा   कि यह  समय  तो  पूजा - उपासना  का  है  ,  तुम  नहीं  करते  ?  वृद्ध  ने  कहा -- मैं  नहीं   जानता    उपासना  क्या  है  ,  रात  पथिकों  को  रास्ता  दिखाने  में  बीत  जाती  है   और  दिन  में  विश्राम , l इसके  अतिरिक्त  और  कुछ  मुझे  ज्ञान  नहीं   l  वृद्ध  से  ज्यादा  बात  न  कर  जय - विजय  विधाता  के  पास  पहुंचे   और  धरती  से   जो  सब  दस्तावेज  तैयार  कर  के  ले  गए  थे , वे  विधाता  को  दिखाए  l 
 विधाता  सब  देखने  लगे  ,  जिसे  ही  उनकी  द्रष्टि  उस  वृद्ध  के  जीवन  वृत  पर  टिकी ,  जय - विजय  ने  कहा --- इस  बुड्ढे  को  छोड़िये , इसे  तो  यह  भी  नहीं  मालूम  कि  पूजा , जप - तप  क्या  है  ? 
  विधाता  गंभीर  हो  गए  और  बोले --- यह  तुम्हारा  मूल्यांकन  है  , मेरी  द्रष्टि  में   यही  सच्चा  भक्त  है   और  स्वर्ग  का  अधिकारी  है   l  ईश्वर  का  नाम  लेने  की  अपेक्षा  उसकी  व्यवस्था  में  हाथ  बंटाने  का   पुण्य   अधिक  है   l  वृद्ध  के  कर्म  साक्षात्  ईश्वर  की  उपासना  हैं   l