मनुष्य के व्यकितत्व का निर्माण तभी होता है जब उसकी स्वाभाविक प्रवृतियां एक लक्ष्य को द्रष्टि में रखकर व्यवस्थित की जाती हैं ।माँझी को यदि नदी के किनारे पहुंचने की इच्छा न हो तो नौका को चलाने की प्रेरणा कौन देगा ।
सब्र ज़िन्दगी के मकसद का दरवाजा खोलता है ,क्योंकि सिवाय सब्र के उस दरवाजे की कोई कुंजी नहीं है ।जो मनुष्य सुद्रढ़ता से धैर्य का आँचल थाम लेते हैं वे फिर जीवन के ऐसे गड्ढे में नहीं गिर सकते कि जहां से उठ ही न सकें ।