' श्री जुगल किशोर बिरला आध्यात्मिक महापुरुष थे जिन्होंने वेद भगवान के कथनानुसार दो हाथों से उपार्जित कर अनेक हाथों से उसे सत्कर्मों में वितरण किया l उनमे आंतरिक सेवा भावना और अहंकार -शून्यता थी कि सामान्य लोगों की सहायता करने को स्वयं तैयार रहते थे l '
पिलानी (राजस्थान) में एक बार मुसलाधार वर्षा हुई, जिससे चारों तरफ जल भर गया और कच्चे मकान धड़ाधड़गिरने लगे l यह देखकर वहां के बिरला कॉलेज के अध्यापक और विद्दार्थी सहायता के लिए पहुंचे और गरीबों की झोपड़ियों के पास पानी को काटकर निकालने का प्रयत्न करने लगे l इतने में देखा कि जुगलकिशोर जी स्वयं भी धोती चढ़ाये और वर्षा में भीगते हुए वहां उपस्थित थे l उसी समय उन्होंने व्यवस्था की कि जिनके घर टूट गए हैं उनको अतिथि गृह और 'कुवेर-भंडार ' में ले जाकर टिका दिया जाये l हरिजन लोगों के घर भी डूब रहे थे , पर उन्होंने तब तक अपने घरों को छोड़ने में असहमति प्रकट की जब तक कि उनका सामान भी उनके साथ सुरक्षित न पहुंचा दिया जाये l बिरला जी ने विद्दार्थियों से कहकर उनका सामान उन्ही की चारपाइयों पर रखकर ठहरने की जगह पहुँचाने की व्यवस्था कर दी l
जब तक लोग उनके यहाँ ठहरे तब तक सबको भोजन भिजवाते रहे और जब पानी हट गया तो मकानों की मरम्मत के लिए ईंट , बल्ली , टीन आदि भी दिए जाने की व्यवस्था की l उनके जीवन की ऐसी असंख्य घटनाएँ हैं कि उन्होंने न केवल देश के लोगों की वरन विदेशों से आने जाने वाले लोगों की आर्थिक सहायता की l उनका दान सात्विक था l
पिलानी (राजस्थान) में एक बार मुसलाधार वर्षा हुई, जिससे चारों तरफ जल भर गया और कच्चे मकान धड़ाधड़गिरने लगे l यह देखकर वहां के बिरला कॉलेज के अध्यापक और विद्दार्थी सहायता के लिए पहुंचे और गरीबों की झोपड़ियों के पास पानी को काटकर निकालने का प्रयत्न करने लगे l इतने में देखा कि जुगलकिशोर जी स्वयं भी धोती चढ़ाये और वर्षा में भीगते हुए वहां उपस्थित थे l उसी समय उन्होंने व्यवस्था की कि जिनके घर टूट गए हैं उनको अतिथि गृह और 'कुवेर-भंडार ' में ले जाकर टिका दिया जाये l हरिजन लोगों के घर भी डूब रहे थे , पर उन्होंने तब तक अपने घरों को छोड़ने में असहमति प्रकट की जब तक कि उनका सामान भी उनके साथ सुरक्षित न पहुंचा दिया जाये l बिरला जी ने विद्दार्थियों से कहकर उनका सामान उन्ही की चारपाइयों पर रखकर ठहरने की जगह पहुँचाने की व्यवस्था कर दी l
जब तक लोग उनके यहाँ ठहरे तब तक सबको भोजन भिजवाते रहे और जब पानी हट गया तो मकानों की मरम्मत के लिए ईंट , बल्ली , टीन आदि भी दिए जाने की व्यवस्था की l उनके जीवन की ऐसी असंख्य घटनाएँ हैं कि उन्होंने न केवल देश के लोगों की वरन विदेशों से आने जाने वाले लोगों की आर्थिक सहायता की l उनका दान सात्विक था l