22 March 2024

WISDOM ----

     ईर्ष्या , द्वेष , लोभ , अहंकार,  महत्वाकांक्षा  , स्वार्थ , लालच  आदि   ----- ये सब  ऐसे  दुर्गुण  हैं   जिनसे  मनुष्य  तो  क्या  देवता  भी   अछूते  नहीं  हैं  l    आज  संसार  में  जितना  तांडव  है  , वह  मनुष्य  के  इन्ही  दुर्गुणों  के  कारण  है  l  मनुष्य  कितना  भी  बूढ़ा  हो   जाए  ,  ये  दुर्गुण  उसका  पीछा  नहीं  छोड़ते   l  सत्य  तो  यह  है  कि  मनुष्य  उनसे  अपना  पीछा  छुड़वाना  ही  नहीं  चाहता  , इन्हें  अपनी  आत्मा  से  चिपकाए  जन्म -जन्मान्तर  की  यात्रा  करता  है  l  जब   व्यक्ति  स्वयं   सुधरना  चाहे ,  अपने  दुर्गुणों  को  दूर  करने  का  संकल्प  ले  तभी  रूपांतरण  संभव  है  l  ------  देवगुरु  ब्रहस्पति    इतने  सम्मानित  पद  पर  होने  के  बावजूद  भी   उनके  जीवन  में  ईर्ष्या  का  दुर्गुण  आ  गया  l  उनके  बड़े  भाई  संवर्त  बहुत  गुणवान  थे  ,  लोगों  के  ह्रदय  में  उनका  बहुत  सम्मान  था   l  इसी  बात  से  देवगुरु  को  उनसे  बहुत  ईर्ष्या  थी  ,  इस  कारण  वे  अपने  भाई  को  बहुत  कष्ट  देने  लगे  l  इससे  परेशान  होकर  संवर्त   ने  घर  छोड़  दिया  l   उनके  गुणों  और  पांडित्य  के  कारण  वे  जहाँ  जाते  वहां   उनका  सम्मान  होता  l  देवगुरु  ब्रहस्पति  में  उन  दिनों  एक  बुराई  यह  भी  आ  गई  थी  कि  वे  किसी  की  तरक्की ,  किसी  को  आगे  बढ़ता  हुआ  नहीं  देख  सकते  थे  l  राजा  मरुत  ने  एक  विशाल  यज्ञ  का  आयोजन  किया  और  उसमें  देवगुरु  ब्रहस्पति  से  आचार्य  पद   ग्रहण  करने  को  कहा  l  देवगुरु  ने  सोचा  कि  इतना  विशाल  यज्ञ  कर  के  मरुत  तो  इंद्र  से  भी  शक्तिशाली   हो  जाएंगे  ,  इसलिए  उन्होंने  आचार्यत्व  ग्रहण  करने  से  इनकार  कर  दिया  l  तब  राजा  मरुत  ने  देवगुरु  के  भाई  संवर्त   से  आचार्य  का  पद  सँभालने  का  निवेदन  किया   l  वे  बहुत  विद्वान्  थे , उनमें  कोई  अहंकार  भी  नहीं  था  , उन्होंने  आचार्य  बनना  स्वीकार  कर  लिया  l  यह  समाचार  जब  ब्रहस्पति  ने  सुना   तो  जल -भुन  गए  l  ईर्ष्या  चाहे  मनुष्यों  में  हो  या  देवताओं  में  ,  यह   शारीरिक , मानसिक  शक्तियों  को  कम  कर  देती  है  ,  उसका पतन  कर  देती  है  l  ब्रहस्पति  अपने  ही  शिष्य   इंद्र  के  सामने  नतमस्तक  हुए  और  कहा  कि  मरुत  के  यज्ञ  को  विध्वंस  करो  l  इसके  पहले  उन्होंने  अग्नि देव  को  उस  यज्ञ  को  विध्वंस  करने  और  राजा  मरुत  को  अपमानित  करने  के  लिए  भेजा  l  लेकिन   संवर्त   के  ब्रह्मचर्य  और  तेज  को  देखकर   वे  चुपचाप  देवलोक  लौट  गए  l  अब  इंद्र  स्वयं   आए  यज्ञ  को  नष्ट  करने  l   तब  संवर्त  ने  उनसे  प्रार्थना  की कि  यह  यज्ञ  तो  वे  विश्व कल्याण  के  लिए  कर  रहे  हैं  ,  आप  हमारे  देवता  हैं  यज्ञ  में  अपना  भाग  ग्रहण  करें  l  संवर्त  की  उदारता , विनय , ज्ञान  और  उनके  तेज  से   इंद्र  बहुत  प्रसन्न  हुए  , यज्ञ  में  भाग  ग्रहण  किया   और  आशीर्वाद  देकर  लौट  आए  l  यह  सब  देख  देवगुरु  ब्रहस्पति  बहुत  लज्जित  हुए   l  ईर्ष्या  के  कारण    उन्हें  अपमान  और  पश्चाताप    सहना  पड़ा  l