पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने अपने एक लेख में अक्टूबर 1972 में लिखा था ---- ' आज सर्वत्र भय का साम्राज्य है l हर व्यक्ति बेतरह डरा हुआ है l अवांछनीय और अनुचित को जानते - मानते हुए भी उसे अस्वीकार करने का साहस नहीं होता l अपनी मौलिकता मानो मनुष्य ने खो ही दी है l अपने पास उसकी कोई समझ ही नहीं है l जो कुछ कहा , बताया और कराया जा रहा है , उसे ही पालतू जानवर की तरह मानने और करने को तैयार रहने वाली मनोभूमि एक प्रकार से पराधीनता के पाश में जकड़ी हुई ही है l ऐसा बंधित और बाधित व्यक्ति शिक्षित कैसे कहा जाए ? -------- पुरानी दुनिया अब टूट रही है l युद्धों से --- दांव - पेचों से --- अभाव - दारिद्र्य से ---- शोषण - उत्पीड़न से ---- छल - प्रपंच से आदमी आजिज आ गया है l सुविधा - साधनों की अभिवृद्धि के साथ -साथ दुर्बुद्धि और दुष्प्रवृतियों की बढ़ोत्तरी भी बेहिसाब हो रही है l जो चल रहा है , उसे चलने दिया जाये तो आज का समय कल शोषण , वीभत्स और नग्न रक्तचाप के रूप में सामने आ खड़ा होगा और मानवीय सभ्यता बेमौत मर जाएगी l उस स्थिति को बदले बिना कोई चारा नहीं है l नई दुनिया अगर न बनाई जा सकी तो इस बढ़ती हुई घुटन से मनुष्यता का दम घुट जायेगा l '
27 December 2020
WISDOM -----
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी का कहना है ---- ' प्रौढ़ता का संबंध आयु से नहीं विवेक से है l बड़प्पन होना चाहिए l ' एक कहानी है ----- एक बार नदी के किनारे की रेत पर कुछ बच्चे खेल रहे थे l उन्होंने उस रेत पर ही रेत के मकान बनाए थे , और उन बच्चों में से हर एक यह कह रहा था , यह वाला घर मेरा है , कोई कह रहा था वह वाला मेरा है और वही सबसे अच्छा है , उसके जैसा दूसरा कोई भी नहीं है l इसे कोई नहीं पा सकता l ऐसे ही कई तरह की बातें करते हुए वे बच्चे खेलते रहे l जब उनमें से किसी ने किसी का घर तोड़ दिया तो उनमे लड़ाई - झगड़ा भी खूब हुआ l लेकिन तभी सांझ का अँधेरा घिरने लगा l अब तो बच्चों को अपने घर की याद सताने लगी l अपने घर की याद आते ही उन्हें झूठे घरों से तनिक भी मोह न रहा l पूरे दिन जिन घरों के लिए उन्होंने न जाने कितने इंतजाम किए थे , सरंजाम जुटाए थे , वे सभी जैसे के तैसे पड़े रह गए l इन सारे रेत के घरों में उनमें से किसी का कोई मेरा - तेरा न रहा l वहीँ पास में कुछ दूर खड़े एक साधु बच्चों का यह सारा घटना प्रसंग देख रहे थे l वह सोचने लगे कि संसार के प्रौढ़ लोग भी क्या बच्चों की तरह रेत के घर - भवन - महल नहीं बनाते रहते ! इन बच्चों को तो फिर भी सूरज डूबने के साथ अपने घर की याद आ गई , परन्तु जिन्हें प्रौढ़ कहा जाता है , उनका तो जिंदगी की सांझ ढलने पर भी विवेक जाग्रत नहीं होता और ज्यादातर लोग अपने अहंकार और अपने स्वार्थ के साथ मेरा- तेरा कहते हुए संसार छोड़ देते हैं l इसलिए कहते हैं कि प्रौढ़ता का संबंध आयु से नहीं , विवेक से है l