27 December 2020

WISDOM -----

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने  अपने  एक  लेख  में अक्टूबर  1972  में  लिखा  था ---- '  आज  सर्वत्र  भय  का  साम्राज्य  है  l   हर  व्यक्ति  बेतरह  डरा  हुआ  है  l   अवांछनीय  और   अनुचित  को  जानते - मानते  हुए  भी   उसे  अस्वीकार  करने  का  साहस   नहीं  होता   l   अपनी    मौलिकता    मानो  मनुष्य  ने  खो  ही  दी  है  l   अपने  पास  उसकी  कोई  समझ  ही  नहीं  है  l   जो  कुछ  कहा ,  बताया  और   कराया  जा  रहा  है  ,  उसे  ही  पालतू  जानवर  की   तरह  मानने   और  करने  को  तैयार   रहने  वाली  मनोभूमि   एक  प्रकार   से  पराधीनता  के  पाश  में   जकड़ी  हुई  ही  है   l   ऐसा  बंधित  और   बाधित  व्यक्ति    शिक्षित  कैसे  कहा  जाए   ?  -------- पुरानी   दुनिया  अब  टूट  रही  है   l    युद्धों से --- दांव - पेचों  से  --- अभाव - दारिद्र्य  से  ---- शोषण - उत्पीड़न  से  ---- छल - प्रपंच  से    आदमी    आजिज  आ  गया    है   l   सुविधा - साधनों  की    अभिवृद्धि     के  साथ -साथ    दुर्बुद्धि   और   दुष्प्रवृतियों   की  बढ़ोत्तरी   भी    बेहिसाब  हो  रही  है   l   जो  चल  रहा  है   ,  उसे  चलने  दिया  जाये     तो  आज  का  समय  कल   शोषण  ,  वीभत्स  और  नग्न  रक्तचाप  के  रूप  में    सामने  आ  खड़ा  होगा    और  मानवीय  सभ्यता  बेमौत  मर    जाएगी   l   उस  स्थिति  को  बदले  बिना  कोई  चारा  नहीं  है   l   नई   दुनिया   अगर  न  बनाई  जा  सकी     तो  इस  बढ़ती  हुई  घुटन  से  मनुष्यता  का   दम   घुट  जायेगा   l  '

WISDOM -----

     पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  का  कहना   है ---- ' प्रौढ़ता  का  संबंध   आयु  से  नहीं  विवेक  से    है  l    बड़प्पन  होना  चाहिए   l   '     एक  कहानी  है  -----  एक  बार  नदी  के  किनारे  की  रेत   पर  कुछ  बच्चे  खेल  रहे  थे  l   उन्होंने  उस  रेत   पर  ही   रेत   के  मकान  बनाए   थे  ,  और  उन  बच्चों  में  से  हर  एक   यह  कह  रहा  था  ,  यह  वाला  घर  मेरा  है  ,  कोई  कह  रहा  था  वह  वाला  मेरा  है   और  वही  सबसे  अच्छा  है  ,  उसके  जैसा  दूसरा  कोई   भी    नहीं    है   l   इसे  कोई  नहीं  पा  सकता  l   ऐसे  ही  कई  तरह  की  बातें  करते  हुए  वे  बच्चे  खेलते  रहे   l   जब  उनमें  से  किसी  ने   किसी  का   घर  तोड़  दिया   तो  उनमे  लड़ाई - झगड़ा  भी  खूब  हुआ  l  लेकिन  तभी  सांझ  का  अँधेरा  घिरने  लगा  l   अब  तो  बच्चों  को   अपने  घर  की  याद  सताने  लगी   l   अपने  घर  की  याद   आते  ही  उन्हें   झूठे  घरों  से  तनिक  भी  मोह   न  रहा   l   पूरे   दिन   जिन  घरों  के  लिए   उन्होंने   न जाने   कितने  इंतजाम  किए   थे   , सरंजाम  जुटाए  थे   ,  वे  सभी   जैसे  के  तैसे  पड़े   रह गए  l   इन  सारे  रेत   के  घरों  में    उनमें  से   किसी  का  कोई   मेरा - तेरा  न  रहा   l         वहीँ  पास  में  कुछ  दूर   खड़े   एक  साधु  बच्चों  का   यह  सारा  घटना  प्रसंग  देख  रहे  थे    l   वह  सोचने  लगे   कि    संसार  के  प्रौढ़  लोग  भी  क्या   बच्चों  की  तरह   रेत   के  घर  - भवन - महल   नहीं  बनाते  रहते   !  इन  बच्चों  को   तो  फिर  भी   सूरज  डूबने  के  साथ   अपने  घर   की याद  आ  गई  ,  परन्तु  जिन्हें  प्रौढ़   कहा  जाता  है   ,  उनका  तो  जिंदगी  की  सांझ  ढलने  पर  भी  विवेक  जाग्रत  नहीं  होता   और  ज्यादातर  लोग   अपने  अहंकार   और  अपने    स्वार्थ  के  साथ     मेरा- तेरा   कहते  हुए    संसार   छोड़  देते  हैं   l   इसलिए  कहते  हैं  कि   प्रौढ़ता  का  संबंध  आयु   से  नहीं ,  विवेक  से  है   l