एक संस्मरण है ----- भारत के पूर्व केंद्रीय मंत्री और न्यायविद स्वर्गीय करीम भाई छागला एक बार अपनी रूस यात्रा से वापस आये तो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघसंचालक श्री गोलवलकर जी उनसे मिलने गए l दोनों के बीच काफी देर तक बातचीत हुई l गोलवलकर जी ने उनसे पूछा --- ----- " छागला जी , आपको भारत और रूस में क्या अंतर दिखाई दिया l उत्तर में छागला जी ने एक घटना सुनाई कि वे मास्को में एक खेल के मैदान में गए , वहां खेल रहे युवकों से पूछा ---- " तुम प्रतिदिन कितने घंटे यहाँ खेलते और व्यायाम करते हो ? " उत्तर मिला --- " छह - सात घंटे l " छागला जी आश्चर्य से भर उठे --- " इतना समय खेल पर क्यों खर्च करते हो भाई ? " जवाब मिला --- " दुनिया के देशों में अपने देश की शान बढ़ाने के लिए l हम चाहते हैं हमारा देश हर खेल में विजय प्राप्त करे l " अर्थात वहां का हर व्यक्ति खेल के मैदान से लेकर विज्ञान की प्रयोगशाला तक में अपने देश के लिए खेलता , शोध करता हुआ मिला l यही हाल अमेरिका , जापान , जर्मनी , फ़्रांस और इंग्लैण्ड का भी है l व्यक्तियों से मिलकर समाज और समाज से मिलकर राष्ट्र बनता है l देश के लोगों का उत्साह और राष्ट्रीय चरित्र ही उसके विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं l