प्रकृति ने अपनी हर एक संरचना में अपनी भरपूर ममता लुटाई है | किसी को भी किसी तरह उपेक्षित नहीं किया है | इस सत्य को सभी के द्वारा नजरअंदाज कर दिया जाता है | हर बड़ा व समर्थ जीव अपने से छोटे जीव को बड़ी आसानी से कमजोर व निरर्थक मान लेता है | ऐसा मानने वालों में मनुष्य की गणना सर्वोपरि की जा सकती है |
मनुष्य जिसे अपने बुद्धिमान , ज्ञानी होने का अभिमान है , उसी ने प्रकृति के आँगन की सर्वाधिक दुर्दशा की है | उसी ने प्रकृति से बड़ी निर्ममतापूर्वक उसका श्रंगार छीना है | नदियों के जल-प्रवाह को मनमाने ढंग से रोका , प्रदूषित किया , उनकी दिशा को मनचाहे ढंग से मोड़ने की कोशिश की |
पर्वतों और वनों की भी उसने यही दुर्दशा की | वृक्षों और वनों की नोच-खसोट के कारण पशुओं ही नहीं , पक्षियों का भी बसेरा छिन गया | ऐसा करते हुए उसे यह भी परवाह न रही कि इसके परिणाम स्वयं उसके लिये कितने हानिकारक व नुकसानदेह हो सकते हैं | अपनी फसलों को और अधिक मात्रा में उपजाने के लिये इनसान ने न केवल अनेकों बेगुनाह जंतु प्रजातियों को नष्ट कर डाला , बल्कि स्वयं के लिये भी विषैले खाद्य का उत्पादन किया | ऐसी अनेकों नासमझियाँ , समझदार कहे जाने वाले इनसान ने की हैं | मनुष्य ही ऐसा अभिमानी है , जिसने अपने स्वयं के विनाश की विधियों की खोज की है |
मनुष्य को एक बार फिर से अपनी समझदारी की समीक्षा करनी पड़ेगी | उसे यह सोचना पड़ेगा कि ईश्वर ने उसे जो विशेषताएं दी हैं , जो विभूतियाँ उसे सौपीं हैं , वह उनका किस तरह सदुपयोग करे |
मनुष्य जिसे अपने बुद्धिमान , ज्ञानी होने का अभिमान है , उसी ने प्रकृति के आँगन की सर्वाधिक दुर्दशा की है | उसी ने प्रकृति से बड़ी निर्ममतापूर्वक उसका श्रंगार छीना है | नदियों के जल-प्रवाह को मनमाने ढंग से रोका , प्रदूषित किया , उनकी दिशा को मनचाहे ढंग से मोड़ने की कोशिश की |
पर्वतों और वनों की भी उसने यही दुर्दशा की | वृक्षों और वनों की नोच-खसोट के कारण पशुओं ही नहीं , पक्षियों का भी बसेरा छिन गया | ऐसा करते हुए उसे यह भी परवाह न रही कि इसके परिणाम स्वयं उसके लिये कितने हानिकारक व नुकसानदेह हो सकते हैं | अपनी फसलों को और अधिक मात्रा में उपजाने के लिये इनसान ने न केवल अनेकों बेगुनाह जंतु प्रजातियों को नष्ट कर डाला , बल्कि स्वयं के लिये भी विषैले खाद्य का उत्पादन किया | ऐसी अनेकों नासमझियाँ , समझदार कहे जाने वाले इनसान ने की हैं | मनुष्य ही ऐसा अभिमानी है , जिसने अपने स्वयं के विनाश की विधियों की खोज की है |
मनुष्य को एक बार फिर से अपनी समझदारी की समीक्षा करनी पड़ेगी | उसे यह सोचना पड़ेगा कि ईश्वर ने उसे जो विशेषताएं दी हैं , जो विभूतियाँ उसे सौपीं हैं , वह उनका किस तरह सदुपयोग करे |