पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " असुरों का मायावी होना प्रसिद्ध है l माया , छल , प्रपंच , चालाकी , कूटनीति , षड्यंत्र रचना की उनकी नीति प्रमुख है l उसी के आधार पर वे अपने से असंख्य गुने बलवान देवताओं को परास्त कर देते हैं l " युग चाहे कोई भी हो , असुर अपने इन्ही दुष्प्रवृतियों से समाज में अशांति , तनाव उत्पन्न करते हैं , ऐसे कार्यों को करते हैं जिससे लोग अस्वस्थ हों , शारीरिक और मानसिक दृष्टि से कमजोर होकर उनसे पराजित हो जाएँ l भ्रष्टाचार , मिलावट , कृषि में रासायनिक तत्वों को मिलाकर प्रदूषित करना , लोगों का माइंड वाश कर देना , दंगे - फसाद कराना , परिवार में फूट डलवाना , झगड़े कराना यह सब असुरता के ही लक्षण है l यह सब आदिकाल से हो रहा है l ताण्डव ब्राह्मण की कथा है --- एक बार असुर अन्न में घुस गए ताकि उन्हें देवता खा लें और वे उनके शरीर व मन में प्रवेश कर अपना आधिपत्य जमा लें l देवराज इंद्र ने उनकी इस चाल को पकड़ा और असुरों को मार भगाया l राजा परीक्षित के मुकुट में चढ़कर ( माइंड वाश ) उनसे लोमश ऋषि के गले में सांप डलवाना , केकयी और मंथरा की बुद्धि भ्रष्ट करना l जागरूक होकर , संगठित होकर , विवेक बुद्धि से ही असुरता को पराजित किया जा सकता है l
24 December 2021
22 December 2021
WISDOM -------
पुराण में कथा है ----- नारद जी गोलोक धाम गए वहां उन्होंने भगवान कृष्ण से मथुरा में कंस के अत्याचार की अंतहीन कथा का बयान किया , उन्होंने कहा ---- " कंस की क्रूरता एवं नृशंसता का कोई ओर - छोर नहीं है l वह इन दिनों अपनी शक्ति , सत्ता एवं धन से और भी मदांध हो गया है l वह किसी की नहीं सुन रहा है l वह किसी की नहीं सुन रहा है l हे नारायण ! कंस तो खड्ग उठाकर देवकी - वसुदेव का सर्वनाश करने चल पड़ा है l अब क्या होगा प्रभु ! " भगवान कहते हैं --- " इस सृष्टि के विधान में कभी भी निर्दोष को सजा नहीं मिलती , बेक़सूरवार कभी भी दंड का भागीदार नहीं होता l कंस के हाथों माता देवकी और पिता वसुदेव का अंत नहीं लिखा है l उनका इतना भोग नहीं बनता कि उनको कंस के हाथों प्राण गंवाने पड़े l लेकिन उनका कुछ भोग है जिसके परिणामस्वरूप कंस उनको सता रहा है l इस सृष्टि में काल और कर्म से बड़ा कोई नहीं है , कंस भी नहीं l काल और कर्म के अनुसार ही भोग का विधान बनता है l अच्छा और बुरा दोनों ही काल के द्वारा संचालित होते हैं l कंस को काल दण्डित करेगा l जब काल दण्डित करता है तो फिर उसे कोई बचा नहीं सकता है l "
20 December 2021
WISDOM ------
जार्ज बनार्ड शॉ ने लिखा है ---- " जो व्यक्ति समाज से जितना ले यदि उतना ही उसे लौटा दे तो वह एक मामूली भद्र व्यक्ति माना जायेगा l जो समाज से जितना ले उससे कहीं अधिक उसे लौटा दे तो उसे एक विशिष्ट भद्र व्यक्ति कहा जायेगा और जो अपने जीवनपर्यन्त समाज की सेवा में लगा रहे और प्रत्युपकार में समाज से कुछ भी लेने की इच्छा न रखे वह एक असाधारण भद्र पुरुष कहलावेगा l परन्तु जो व्यक्ति समाज का सिर्फ शोषण ही करता रहे और समाज को देने की बात भूल जाये उसे क्या ' जेंटलमैन ' माना जायेगा ? "
WISDOM -----
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- पशु - पक्षी आदि जीव बीमार पड़ जाने पर मनुष्य की तरह इलाज कराने अस्पताल नहीं जाते l वे आहार ग्रहण करना छोड़ देते हैं l पूर्णत: उपवास पर रहते हैं l सूर्य की धूप में पड़े रहते हैं , प्रकृति का सेवन करते हैं , इससे वे शीघ्र स्वस्थ हो जाते हैं l मनुष्य के पास रोग निवारण हेतु आज इतनी पैथियाँ हैं , पर वह स्वास्थ्य - लाभ नहीं कर पा रहा है l कारण स्पष्ट है ---- प्राकृतिक ऋषिकल्प जीवन शैली का अभाव , पेट को आराम न देना तथा कृत्रिम संश्लेषित औषधियों से शरीर को भर डालना l '
17 December 2021
WISDOM ------
' सर्वगुणों से भरी माँ गायत्री को जो भी जानता है उसका इस संसार में कभी अनिष्ट नहीं होता l '
14 December 2021
WISDOM --------
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----- " मनुष्य का जीवन एक खेत है , जिसमे कर्म बोये जाते हैं और उन्ही के अच्छे - बुरे फल काटे जाते हैं l जो अच्छे कर्म करता है वह अच्छे फल पाता है , बुरे कर्म करने वाला , बुराई ही समेटता है l " वे अपने चिंतन में एक प्रचलित कहावत कहते हैं ---- " आम बोने वाला आम खायेगा , जो बबूल बोयेगा , वह हमेशा कांटे ही पायेगा l " बबूल बोकर आम प्राप्त करना जिस तरह प्रकृति का सत्य नहीं है , उसी प्रकार बुराई के बीज बोकर अच्छाई पा लेना संभव नहीं है l कर्मफल का यह विधान अकाट्य व निरंतर है l जन्म व जीवन के साथ यह सतत प्रवाहमान रहता है l कर्म करने के लिए मनुष्य स्वतंत्र है किन्तु उसका फल कब और कैसे मिलेगा यह काल तय करता है l हमारे मन के तार ईश्वर से जुड़े हैं ,केवल कर्म ही नहीं , हम जो कुछ विचार करते हैं , कोई कार्य करते वक्त हमारी भावना क्या है , उसकी , हर पल की खबर ईश्वर को होती है l कर्म के फल से कोई नहीं बच सकता l
13 December 2021
WISDOM -------
धन - वैभव , सम्पन्नता , सुख - सुविधाओं की प्रचुरता के आधार पर किसी समाज को सभ्य समाज नहीं कहा जा सकता l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी का कहना है ---- " अनैतिक दृष्टि अपनाये हुए व्यक्तियों का समाज असभ्य ही कहला सकता है l आज संसार में अपराधों , क्लेशों , संघर्ष , अभाव , चिंता , तनाव और समस्याओं का घटाटोप दिखाई पड़ता है उसका एकमात्र कारण व्यक्तियों के मन में समाई हुई स्वार्थपरता , चरित्रहीनता एवं संकुचित दृष्टि है l आदर्शवाद का , धर्म - नीति एवं मर्यादाओं का उल्लंघन जब कभी भी अधिक मात्रा में होने लगता है तब उसका परिणाम सारे समाज को भुगतना पड़ता है l " आचार्य श्री लिखते हैं ---- ' उच्च भावनाओं के आधार पर मनुष्य देवता बन जाता है , लेकिन तुच्छ विचार के कारण वह पशु दिखाई पड़ता है और निकृष्ट पाप बुद्धि को अपनाकर वह असुर एवं पिशाच बन जाता है l कुमार्ग पर चलने वाले व्यक्ति सारे समाज को ही दुःख देते हैं l भौतिक और आत्मिक कल्याण के लिए उत्कृष्ट भावनाओं की अभिवृद्धि आवश्यक है l
12 December 2021
WISDOM -----
रामकृष्ण परमहंस के पास नरेंद्र ( स्वामी विवेकानंद ) को आते काफी अवधि हो चुकी थी l एक दिन वे अपने शिष्यों से बोले ---- " अब तक तो नरेंद्र के पास सब कुछ था , पर अब माँ इसे बहुत दुःख देंगी क्योंकि उन्हें इसका विकास करना है l " नरेंद्र को काफी दुःख वेदनाएं सहन करनी होंगी , तभी वह लोक - शिक्षण हेतु अपने आपको गढ़ पायेगा l उनने अपने शिष्यों को बताया कि दुःख ही भाव शुद्धि करते हैं , दुःख ही व्यक्ति को अंदर से मजबूत बनाते हैं l नरेंद्र के ऊपर दुःखों की बाढ़ आ गई l सब कुछ छिन गया , रोटी के लिए तरस गए l कई गहरी पीड़ाएँ एक साथ आईं l उनने अपनी बहन को आत्महत्या करते देखा , माँ का रुदन देखा l रामकृष्ण उनकी हर पीड़ा में दुःख व्यक्त करते , पर जानते थे कि यह सब भी जरुरी है l सामयिक है l इसी ने नरेंद्र को स्वामी विवेकानंद बनाया l
WISDOM ------- श्रीमद् भगवद्गीता जब हमारे मन के तारों में , हृदय के स्पंदन में धड़कने लगे , तभी इसकी सार्थकता है , यही गीता जयंती का मूल उद्देश्य है ---- पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी शर्मा
श्रीमद् भगवद्गीता कालजयी एवं शाश्वत ग्रन्थ है l गीता के निष्काम कर्म में जीवन जीने की सर्वोत्कृष्ट कला सन्निहित है l गीता के विभूतियोग में भगवान ने अर्जुन को विभूति को पहचानने का संकेत दिया l ऐसा संकेत जिससे ईश्वरीयता को पहचानना संभव है l भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा ---- " अगर तुम्हे सीधे ईश्वर समझ नहीं आ रहा है , तो उसे ऐश्वर्य में पहचानों, क्योंकि यह सब जगह स्थान स्थान पर बिखरा हुआ है l इसे देखना , पहचानना और अनुभव करना आसान है l जहाँ कोई फूल पूरा खिला हो , जहाँ भी लगे यहाँ तो ऐश्वर्य अपने शिखर पर है , जहाँ कांति , विभूति असाधारण है , वहां - वहां तुम मेरी उपस्थिति का अनुभव करो l एक प्रसंग है ----- बादशाह अकबर जब भी तानसेन का संगीत सुनते तो उन्हें लगता कि तानसेन संगीत की चरम सीमा हैं l एक रात जब वे तानसेन को विदा करने लगे तो उन्होंने अपने दिल की बात तानसेन से कही l यह सुनकर तानसेन ने कहा ---- " आप मेरे बारे में इतना अच्छा सोचते हैं यह मेरे लिए सौभाग्य है , लेकिन मेरे गुरु मुझसे बहुत आगे हैं l मैं तो उनके आगे कुछ भी नहीं l " अकबर ने कहा ---- " किसी भी तरह तुम अपने गुरु को दरबार में लाओ , मैं अपना सारा शाही खजाना लुटाने को तैयार हूँ l " इस पर तानसेन ने कहा ---- " यही तो मुश्किल है l उनके आने की कोई कीमत नहीं l उनका मन हो तो झोपड़ी में चले जाते हैं और मन न हो तो राजदरबार भी व्यर्थ है l वह किसी के कहने से अपने वाद्य को छूते भी नहीं l वे तभी गाते हैं जब उनका मन हो l " यह सुनकर अकबर मायूस हुआ और कहा ---- ' कोई तो उपाय होगा ? " तानसेन ने कहा ------- " वे ब्रह्म मुहूर्त में जब प्रभु की स्तुति करते , तभी अपने साज को हाथ लगाते हैं l " यह सुनकर अकबर तानसेन के साथ चल पड़े यमुना के तट पर l ब्रह्ममुहूर्त के समय तानसेन के गुरु हरिदास महाराज ने गाना शुरू किया तो अकबर की आँखों से आँसू बहने लगे l उस दिन उन्हें अनुभव हुआ संगीत के शिखर का , ईश्वरीयता का l लौटते समय अकबर ने तानसेन से कहा --- " तुम्हारे गुरु से वाकई तुम्हारा कोई मुकाबला नहीं l '' इस पर तानसेन बोले ----बादशाह सलामत ! मुकाबला हो भी नहीं सकता l मेरे और उनके बीच फारकं साफ़ है l मैं कुछ पाने के लिए बजाता हूँ , जबकि उन्होंने कुछ पा लिया है इसलिए बजाते हैं l " यही है विभूति l
10 December 2021
WISDOM ------
मनुष्य एक समझदार प्राणी है , लेकिन अपने बहुमूल्य मानव जीवन को लड़ाई - झगड़े , दंगे जैसे नकारात्मक कार्यों में गँवा देता है l यदि कुछ पल शांत होकर बैठें और चिंतन करें तो समझ आएगा कि जाति और धर्म के आधार पर नहीं , बल्कि दूषित मनोवृति के कारण समाज में अशांति होती है l घरेलू हिंसा , , सम्पति के झगड़े , पारिवारिक कलह , विवाद, महिला उत्पीड़न ---- इन सब में किसी अन्य जाति का हस्तक्षेप नहीं होता , लोग आपस में ही लड़ते हैं और तनाव व परेशानियों से घिरे रहते हैं l जब ईर्ष्या - द्वेष , लालच बहुत बढ़ जाता है तब अपनों को ही सताने , नीचा दिखाने के लिए गैरों की मदद लेते हैं l मनुष्य को जागरूक होकर जीवन में प्राथमिकताओं का चयन करना होगा कि सुख - शांति का जीवन जरुरी है या वैर - भाव , अशांति जरुरी है l
WISDOM ------
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----" सदुद्देश्य के लिए आक्रोश जरुरी है l संकीर्ण मनोवृत्ति से उभरा आक्रोश , स्वार्थ प्रेरित होता है और ऐसा क्रोध सदैव अनिष्टकारी होता है l लेकिन ऐसा आक्रोश जिसके पीछे परमार्थ हो , उसके सत्परिणाम सामने आते हैं l ऐसे व्यक्तियों को मनस्वी कहा जाता है , जो अन्याय और अनाचार के सामने घुटने नहीं टेकते , वरन उनसे लोहा लेते हैं और अन्यायी और अत्याचारी को भी सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं l " इस संदर्भ में एक प्रसंग है ------ तमिलनाडु के कंदकुरि वीरेश लिंगम जब स्कूली छात्र थे l वे जिस विद्दालय में अध्ययन कर रहे थे , उसके हेडमास्टर को भाषा का समुचित ज्ञान नहीं था l यद्द्पि प्रधानाध्यापक से उनकी कोई व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं थी , लेकिन छात्र हित में कि सब छात्रों को सही ज्ञान व मार्गदर्शन मिले , उन्होंने विद्दालय के सभी छात्रों के साथ मिलकर उच्च अधिकारी को उनकी शिकायत लिख भेजी कि उनके , स्थान पर योग्य व सक्षम व्यक्ति को नियुक्त किया जाये l हेडमास्टर को इस आवेदन का पता चल गया , उन्होंने छात्रों को दंडित किया और वीरेश लिंगम को विद्दालय से निकाल देने की धमकी दी l लेकिन उनकी भावना निस्स्वार्थ थी , उन्होंने प्रतिवेदन की कई प्रतियां कर संबंधित शिक्षा अधिकारियों को भेजी और छात्रों को विद्दालय में न आने को कहा l छात्रों की हड़ताल को देखकर सरकार ने मामले की जाँच के आदेश दिए और अंतत: नए प्रधानाध्यापक की नियुक्ति कर दी गई l अनौचित्य के प्रति क्रोधित होने की परमार्थ परायण वृत्ति ने ही उन्हें आगे चलकर एक मनस्वी समाज सुधारक के रूप में ख्याति दिलाई l सामान्य लोग निज स्वार्थ के लिए क्रोधित होते हैं , परन्तु महापुरुष मात्र ऊँचे उद्देश्यों की पूर्ति के लिए आक्रोश का परिचय देते हैं l
9 December 2021
WISDOM ------
मनुष्य जीवन है तो समस्याएं आती - जाती रहती हैं l अधिकांश लोगों का यह स्वभाव ही होती है कि वे अपनी परेशानियों और कष्टों के लिए दूसरों को जिम्मेदार ठहराते हैं l सांसारिक उलझनें इतनी हैं कि हम अपने भीतर देख ही नहीं पाते कि वास्तव में कमी कहाँ है l चाहें पारिवारिक स्तर पर देखें या विशाल स्तर पर जब कमी अपने में होती है , अपना ही दांव कमजोर होता है तब दूसरे उसका फायदा उठाते हैं l इन सबके मूल में कारण है --- मनुष्य की कमजोरियां -- ईर्ष्या , द्वेष , महत्वाकांक्षा , लोभ , लालच , कामना , वासना -- इन दुर्गुणों के कारण व्यक्ति विवेक शून्य हो जाता है , उसे अच्छे - बुरे का ज्ञान ही नहीं होता l इन सब से निपटने के लिए हंस जैसी विवेक बुद्धि जरुरी है l अपनी और अपने परिवार की कमियों मको दूर कर के ही बाहरी तत्वों को पराजित कर सकते हैं l
WISDOM -----
' बुरा जो देखन मैं चला , बुरा न मिलिया कोय l जो दिल खोजा आपना , मुझसा बुरा न होय l अर्थात यदि बुराई की खोज की जाये तो सबसे पहले हमें स्वयं में ही बहुत बुराई मिल जाएगी l सबसे पहले हमें अपने अंदर झाँक कर देखना चाहिए कि कहीं हम में ही कोई दोष तो नहीं छिपा है l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----- " हमारी सबसे बड़ी ग़लती यह होती है कि हम स्वयं को गलत नहीं ठहरा पाते , स्वयं को सदैव सही मानते है l यह हमारा अहं है जो हमें यह सोचने के लिए मजबूर करता है कि हमसे तो कोई भूल हो ही नहीं सकती l वास्तव में अपने अंदर के दोषों के कारण ही हम दूसरों में दोष देखते हैं l आत्मा के आवरण में छाई कालिख ही हमें बाहर नजर आती है l यदि यह कालिख साफ कर दी जाये तो बाहर भी सब साफ - साफ दीखने लगेगा l "-------- एक बार एक युवा दंपती ने अपने नए घर में प्रवेश किया l घर को व्यस्थित करने के बाद वे अपनी बालकनी में बैठे l उनके सामने वाले घर में कपड़े सूख रहे थे , उन्हें देख पत्नी बोली --- " कितने गंदे कपड़े धोए हैं , इन्हे कपड़े धोने का तरीका भी नहीं आता l " पति ने इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया l कई दिन तक जब भी बालकनी में बैठते तो पत्नी पड़ोसी के कपड़े धोने की बुराई करती l एक दिन रविवार को जब वे दोनों बालकनी में बैठे तो पड़ोसी के कपडे बहुत चमकदार दिखे तो पत्नी व्यंग्य करते हुए बोली --- " लगता है अब इन्हे कपड़े धोने का तरीका आ गया है l " पति ने शांत भाव से जवाब दिया ---- " आज सुबह जल्दी उठकर मैंने बालकनी के शीशे साफ कर दिए हैं l उनके कपड़े गंदे नहीं थे , हमारे खिड़की के काँच ही गंदे थे " यह सुनकर पत्नी बहुत शर्मिंदा हुई और उसने निश्चय किया कि किसी को कुछ कहने से पहले स्वयं को परखना आवश्यक है l
6 December 2021
WISDOM -----
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- ' जीवन की पचास फीसदी समस्याएं मानवीय व्यवहार से जुडी होती हैं , व्यावहारिक तालमेल के अभाव से , संवादहीनता से जो विसंगतियां उत्पन्न होती हैं उनसे जिंदगी का ढांचा लड़खड़ा जाता है l चालीस फीसदी समस्याओं की जड़ विचारों और भावनाओं में धँसी होती है l विचारों में द्वन्द , आत्मविश्वास में कमी , भावनाओं के विक्षोभ इन समस्याओं के कारण होते हैं l इसके अलावा रही , बची दस फीसदी समस्याएं प्रारब्ध जन्य होती हैं , इनका सम्बन्ध अतीत के कर्मों व संस्कारों से होता है l ऐसी समस्याएं जीवन में यदा कदा दस - बीस सालों में एक - आध बार ही सामने आती हैं l " आचार्य श्री का कहना है ---- ' यदि खान - पान , रहन - सहन , बातचीत , व्यवहार , सोच - विचार , आत्म विकास , ईश्वर विश्वास को व्यवस्थित कर जिंदगी में आध्यात्मिक दृष्टिकोण अपना लिया जाये तो जीवन सहज ही समस्याओं से मुक्त हो सकता है l "
WISDOM -----
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----' जीवन में मिलने वाली असफलताएं और अपमान कड़ुए घूँट की तरह होते हैं , जिन्हें हमें पीना पड़ता है l लेकिन अपने कठिन समय और चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में हम जितना जाग्रत व एकाग्र होते हैं , उतना अन्य सामान्य समय में नहीं होते l जीवन में अच्छा और बुरा दोनों है l अपमान और कष्ट हमें अच्छे कार्यों को करने के लिए प्रेरित करते हैं और हमें सफलता की ऊंचाइयों तक पहुंचा सकते हैं l वहीँ पुण्य कर्मों से मिलने वाले सुख - साधन और यश हमें लोभी और अहंकारी बना सकते हैं तथा बुरे कर्मों की ओर प्रवृत भी कर सकते हैं l इसलिए हमें जीवन के सभी रंगों के प्रति सकारात्मक दृष्टि रखना चाहिए l " विपरीत परिस्थितियों और कष्टों में सकारात्मक दृष्टिकोण को स्पष्ट करने के लिए दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला का जीवन एक आदर्श उदाहरण है l वे 27 वर्ष कैद में रहे , वहां उन्होंने बहुत यातनाएं और अपमान सहा लेकिन अपने मन को मजबूत रखा l अपमान का दंश झेलकर भी स्वसम्मान बनाये रखा l जेल में बंद होने के बावजूद वे अडिग , ओजस्वी , संवरदानशील और दयालु बने रहे l शत्रुतापूर्ण वातावरण में भी करुणा का भाव बनाये रखा l उनका जीवन हम सबके लिए प्रेरणा स्रोत है l
4 December 2021
WISDOM -----
महाकवि कालिदास ने एक प्रसंग में कहा है ---- " पुरानी होने से ही कोई वस्तु अच्छी नहीं हो जाती और न ही नई होने मात्र से ही कोई बुरी ! केवल मूढ़ भेड़चाल को अपनाते हैं , जबकि बुद्धिमान विवेक का आश्रय लेते हुए , गुण - दोष की परीक्षा करते हुए स्वयं चुनाव करते हैं l " आचार्य श्री लिखते हैं ---- ' जो राष्ट्र केवल अपने समय में वर्तमान में ही जीता है , वह सदा दीन होता है , यथार्थ में समुन्नत वही होता है जो अपने आपको अतीत की उपलब्धियों तथा भविष्य की संभावनाओं के साथ जोड़कर रखता है l "
3 December 2021
WISDOM -----
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- ' नकारात्मकता एक ऐसी खाई की तरह है , जो सुन्दर जीवन को नष्ट कर देती है , स्वस्थ जीवन को रुग्ण कर देती है l लेकिन जो व्यक्ति अपनी दिनचर्या की शुरुआत सकारात्मक विचारों से करते हैं , उनके पास रुग्ण व नकारात्मक भाव नहीं ठहरते l सकारात्मक विचारों का इतना प्रभाव है कि रुग्ण व्यक्ति भी सकारात्मक विचारों के संपर्क में आकर दृढ़ इच्छा शक्ति से स्वयं को स्वस्थ कर सकते हैं l ' ------- एक बच्चे की एक आँख ख़राब थी , लेकिन पढ़ने में रूचि के कारण वह एक आँख से ही पुस्तकें पढ़ता था l डॉक्टर ने यह आशंका जताई कि ऐसा करने से वह अपनी दूसरी आँख भी खो देगा l परिवार वालों ने जब उसे पढ़ाई से रोका तो उसका जवाब था --- " मैं पढ़ना - लिखना तब छोडूंगा जब कोई न कोई प्रतिदिन पुस्तक पढ़कर सुनाता रहेगा और मुझे बीमार नहीं समझेगा l परिवार वाले बच्चे की बात से सहमत हो गए l उसने अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति से न केवल अपनी पढ़ाई पूरी की , बल्कि अनेक पुस्तकें भी लिखीं l उसने अपनी पुस्तकों में सकारात्मक ढंग से जीवन जीने पर जोर डाला l यही बच्चा आगे चलकर फ़्रांस का प्रसिद्ध दार्शनिक ज्यांपाल सार्त्र बना , जिन्होंने न केवल अपने जीवन के नकारात्मक पहलुओं पर विजय पाई , बल्कि दूसरों के जीवन को भी सकारात्मक दिशा देने में सफल रहा l मनोवैज्ञानिकों का भी यही कहना है कि यदि कोई व्यक्ति दृढ़ इच्छा शक्ति से नकारात्मक पहलुओं से दूर रहने की बात ठान ले तो न केवल वह अपने शरीर की छोटी - छोटी बीमारियों को ठीक कर सकता है , बल्कि गंभीर बीमारियों से भी उबर सकता है l
2 December 2021
WISDOM -----
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- ' संपन्नता और समर्थता का लाभ तभी है , जबकि उन पर शालीनता का प्रखर नियंत्रण रहे l इतिहास इस बात का साक्षी है कि समर्थता प्राप्त करने वाले व्यक्ति यदि निकृष्ट स्तर के रहे तो वे अपने समय के सारे वातावरण को विक्षुब्ध करते रहे हैं तथा उनका वैभव असंख्य व्यक्तियों के लिए अभिशाप ही सिद्ध होता रहा है l ' आचार्य श्री आगे लिखते हैं ---- ' यदि व्यक्ति दुर्बुद्धिग्रस्त है , उसके अंतरंग में निकृष्टता है तो अभावग्रस्त स्थिति में वह फिर भी दबी रहती है , लेकिन शक्ति और साधन मिलने पर वह और अधिक खुला खेल खेलने लगती है l तब कुकर्मी का वैभव उसके स्वयं के लिए , संबंधित व्यक्तियों और समाज के लिए अभिशाप ही सिद्ध होता है l इसलिए इस तथ्य को ध्यान में रखा जाना चाहिए कि शक्ति और सामर्थ्य का संचय - संवर्द्धन करने के साथ उसका उपयोग करने वाली चेतना का स्तर ऊँचा रहना चाहिए l चेतना का स्तर ऊँचा रहने की स्थिति में ही समर्थता और संपदा का सहयोग संभव है l इसके बिना बन्दर के हाथ में तलवार पड़ने की संभावना अधिक रहेगी l "