लघु कथा ---- ' मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है l ' सुबह -सुबह एक लोहार घर से बाहर निकला l रास्ते में उसे लोहे के दो टुकड़े मिल गए l उसने उन्हें उठा लिया l घर लौटने पर लोहार ने एक टुकड़े से तलवार बनाई और दूसरे टुकड़े से ढाल बना दी l कुछ दिनों के बाद एक योद्धा आकर तलवार और ढाल खरीद कर ले गया l उस योद्धा ने कई युद्धों में उस तलवार और ढाल का उपयोग किया l एक युद्ध में तलवार टूट गई और ढाल ज्यों की त्यों सलामत रही l टूटी तलवार को योद्धा घर ले आया और एक कोने में उसे रख दिया l ढाल भी पास ही पड़ी थी l रात में जब सब सो गए तो तलवार कराहती हुई ढाल से बोली ----- " बहन ! देखो मेरी कैसी दुर्दशा हो गई और एक तू है जो ज्यों की त्यों सुरक्षित है l " ढाल ने कहा ---- " हम दोनों में एक ही फर्क है , तू सदैव किसी को मारने -काटने का काम करती है और मैं बचाने का काम करती हूँ l मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है l " यह सत्य ईर्ष्या , द्वेष और अहंकार से पीड़ित लोगों की समझ में आ जाये तो संसार में शांति और सुकून आ जाये l जन्म और मरण विधाता के हाथ में है , ईश्वर की इच्छा के बिना एक पत्ता भी नहीं हिल सकता l संसार में आज यही दुर्बुद्धि व्याप्त है , अहंकारी स्वयं को भगवान समझने लगा है l
16 February 2024
WISDOM -----
श्रीमद भगवद्गीता में भगवान कहते हैं --- जो मान -अपमान , निंदा -प्रशंसा में सम रहता हैं , इनसे विचलित नहीं होता , ऐसा भक्त मुझे प्रिय है l ' ऐसी स्थिति तभी संभव है जब व्यक्ति में अहंकार न हो l यदि अहंकार होगा तो मान -सम्मान मिलने पर व्यक्ति के अहंकार को पोषण मिलेगा , वह और अहंकारी हो जायेगा l इसके विपरीत यदि निंदा और अपमान मिलता है तो अहंकार पर चोट पहुँचती है और पोषण न मिलने पर यही अहंकार घाव की भांति रिसने लगता है l इसलिए भगवान हमें समझाते हैं कि यदि हम अपने अहंकार को छोड़ दें तो मान -अपमान स्वत: ही समाप्त हो जाएंगे अर्थात लोग अपना काम करते रहेंगे , हमें अपमानित करें या प्रशंसा करे , हमारा मन विचलित नहीं होगा l अहंकार समाप्त होते ही हम में न तो मान पाने की लालसा रहेगी और न ही अपमानित होने का भय सताएगा l -------- ----------------स्वामी रामतीर्थ अमेरिका प्रव्रज्या हेतु गये थे l उनका उद्बोधन प्रसिद्द चिंतकों व विचारकों के मध्य हुआ तो सभी ने एक स्वर से उनके अद्भुत व्यक्तित्व और प्रकांड पांडित्य की प्रशंसा की l उद्बोधन के पश्चात् वे जिस महिला के घर रुके हुए थे , उनके घर पहुंचे और उस महिला से बोले ---- " बहन ! आज ईश्वर ने इस नाचीज को अन्यथा ही बहुत प्रशंसा दिलवाई l " कुछ दिनों उपरांत वे न्यूयार्क के ब्रौंक्स क्षेत्र से गुजर रहे थे कि उनकी वेशभूषा को देखकर कुछ अराजक तत्वों ने उनके साथ दुर्व्यवहार किया , उन पर छींटाकशी करने लगे l घटना की खबर जब उस महिला को लगी तो वो कुछ साथियों को लेकर स्वामीजी को लेने पहुंची l स्वामी रामतीर्थ उसी निर्विकार भाव से बोले ---- " बहन ! आप हस्तक्षेप न करो l आज ईश्वर का अपने इस भक्त को अपमान से भेंट कराने का मन है l भगवान के भक्त के लिए मान क्या और अपमान क्या ? " श्रीमद् भगवद्गीता में जिस स्थितप्रज्ञ का वर्णन है , उस स्वरुप का दर्शन उनमें सबको उन क्षणों में हुआ l