30 June 2013

KARM

'श्री मद भगवद गीता सन्यास की पाठ्य पुस्तक नहीं ,यह हमें जीवन जीने की कला सिखाती है | '
         गीता का संदेश बड़ा स्पष्ट है --कभी भी कर्म किये बिना न रहो | जो कर्म किये बिना जीता है ,वह अपने अस्तित्व को खो बैठता है | जो कर्म की अवमानना करता है वह मानो जीवन देवता का अपमान करता है |
         जीवन समर में सभी प्रकार की उथल -पुथल का सामना करते हुए जीना ,सक्रिय हो उद्दमी बने रहना ही मनुष्य को शोभा देता है | कर्म करो ,सक्रिय होकर जिओ एवं निर्भय होकर रहो | परिश्रम से मत डरो ,निराशाओं का सामना करने से हिचकिचाओ मत | जब तक जीवित हो ,जीवन का एक -एक पल जिओ | कर्मों द्वारा ऊँचे उठो ,कर्मों द्वारा ही उन्नति करो ,कर्मों से ही अपना विस्तार करो |
         जीवन को कलाकार की तरह जीने का ,हँसती -हँसाती ,खिलती -खिलखिलाती ,मस्ती भरी जिंदगी जीने का संदेश गीता हमें देती है |




TO BE POSITIVE

'जीवन में कोई भी घटना ,न तो बुरी है और न व्यर्थ | बुरा तो हमारा अपना मन होता है ,जो ईश्वर के मंगलमय विधान में बुराई ढूंढने लगता है | '
            परम पिता  परमेश्वर तो परम कृपालु हैं ,वे तो मनुष्य की उन्नति के लिये ,उसे निखारने ,संवारने के लिये उचित ,उपयुक्त ,आवश्यक एवं अनिवार्य घटनाओं की श्रंखला रचते हैं | जिसके लिये जो सही है ,उसके जीवन में वही घटित होता है | भगवद -विधान तो हमारे लिये सब कुछ जुटा देता है ,बस हम ही अपने  नकारात्मक -निषेधात्मक स्वभाव के कारण उनका सदुपयोग नहीं कर पाते | सच्चा ईश्वर विश्वासी ,सच्चा भक्त तो वही है ,जो भाव में ,विचार में ,कर्म में प्रत्येक पल सकारात्मक होता है | महामानवों का शिक्षण यही है कि जीवन के प्रत्येक पल एवं प्रत्येक घटनाक्रम का सकारात्मक एवं सार्थक उपयोग करो | जीवन की हर चोट ,हर पीड़ा हमें गढ़ती है ,संवारती है |

          सुप्रसिद्ध अँग्रेज अभिनेता टाल्या के स्वास्थ्य और सौंदर्य से आकर्षित होकर डाइरेक्टरों ने उसकी मांग स्वीकार कर ली और उसे रंगमंच पर पहुंचा दिया ,किंतु उस बेचारे से न तो एक शब्द बोलते बना और न नाचते -कूदते | फिल्म डाइरेक्टर ने गले की शर्ट पकड़ी और और झिड़क कर नीचे उतार दिया | कई अच्छे लोगों की सिफारिश से एक बार फिर रंगमंच पर पहुंच तो गया ,पर एक ड्रामे में बोलते समय ऐसी घिग्गी बंधी कि कुछ बोल ही नहीं पाया | फिल्म की आधी रील बेकार गईं | डाइरेक्टर ने डाँटकर कहा "-महाशय !  अब दुबारा आने का प्रयत्न मत करना | "और उसे डाँटकर वहां से भगा दिया |
       टाल्या फिर भी हिम्मत न हारा ,कुलियों जैसे सामान उठाने के छोटे -छोटे पार्ट अदा करते करते एक दिन सुप्रसिद्ध अभिनेता बन गया | किसी ने पूछा -"तुम्हारी सफलता का रहस्य क्या है ?"तो उसने हँसकर कहा -"जितनी बार गिरो ,उतनी बार उठो '| यह सिद्धांत स्वीकार कर लें तो आप भी निरंतर उठते चले जाओगे ,किसी सहारे की जरुरत नहीं पड़ेगी |    

29 June 2013

POVERTY ?

'धनहीन दरिद्र नहीं होते भावहीन दरिद्र होते हैं | दरिद्र का मन छोटा होता है उसकी सोच छोटी होती है | '
      रसायन शास्त्री अलबर्ट मोरीसन को प्राचीन पदार्थ शास्त्र के अन्वेषण की सनक थी | "पारस पदार्थ है या कल्पना ?"इस समस्या का हल खोजने वे भारत आये और घूमते -भटकते वह दुर्गम हिमालय पहुँच गये | एक स्थान पर उन्होंने एक साधु को देखा जिनके देह की आभा स्वर्णिम थी और आँखों से करुणा झर रही थी |
        अल्बर्ट ने उनसे कहा -"काश !एक बार मैं 'पारस 'देख पाता "| साधु हँसे और बोले -"तुम पारस क्यों  चाहते हो ?वह कोई ऐसा पदार्थ नहीं कि मात्र कौतूहल निवृत्ति के लिये उसे पाया जा सके ,उसे पा लेने पर समाज में कितनी अव्यवस्था हो जायेगी ,यह तुम क्यों नहीं सोचते ?"
             अल्बर्ट ने प्रार्थना के स्वर में कहा -"आज कितने कंगाल हैं लोग ,दरिद्र हैं | केवल कुछ घंटों के लिये पारस मिल जाये तो मैं उससे स्वर्ण बनाकर आपके देश के दरिद्रों की सेवा करूंगा ,उनके दुःख दूर करूंगा | "
      साधु ने समझाया -"जो संपति के अभाव में दुखी हैं वे दरिद्र हैं | मेरे पास एक पैसा भी नहीं लेकिन मुझे दरिद्र मानकर मेरी सहायता करने की बात तुम सोच भी नहीं सकते | "
           साधु ने उन्हें आज्ञा दी कि तुम दो दिन के लिये बम्बई चले जाओ उसके बाद यदि पारस की आवश्यकता प्रतीत हो तो यहाँ आ जाना
             अब अलबर्ट मोरिसन रेल के प्रथम श्रेणी के डिब्बे में यात्रा कर रहे थे | उस डिब्बे में एक यात्री और था ,उसके कोट में हीरे के बटन ,अंगूठी में बड़ा सा नीलम ,बहुत संपन्न थे | लेकिन बार -बार गहरी श्वास लेना ,नेत्र पोछना ,उदास चेहरा ,लगता था कोई बड़ा दुःख उन पर आ गया | स्टेशन पर गाड़ी रुकी -गोद में नवजात शिशु लिये ,मैले -फटे वस्त्रों में ,दीनता की साकार मूर्ति एक कंगाल भिक्षुणी आई ---'बाबू !एक पैसा !
"चल !भाग यहाँ से "संपन्न व्यापारी ने उसे दुत्कार दिया | अलबर्ट को बहुत खेद हुआ ,उन्होंने अपनी जेब से एक नोट निकालकर भिखारिन के हाथ पर रख दिया | वह बहुत खुश ,दुआ देती चली गई | व्यापारी महोदय अपने आप से बोल रहे थे -ये भिखारी अब भी पिंड नहीं छोड़ते | अलबर्ट को जानने की इच्छा हुई कि 'इन्हें क्या कष्ट है ',लेकिन वे चुप रहे |
                                        दूसरे दिन होटल के कमरे में सुबह जब उन्होंने अख़बार देखा तो चौंक पड़े | समाचार के प्रथम पेज पर लिखा था -"भारत के प्रसिद्ध व्यापारी .........ने कल रात आत्म हत्या कर ली | अलबर्ट को याद आया ये नाम तो वही है जो साथ यात्रा करने वाले यात्री के बक्से पर था | समाचार में विवरण था -उन्हें अपने सट्टे के व्यापार में लगभग एक अरब का घाटा लगा ,उसे दे डालने पर उनकी अपने रहने की कोठी और दस -बारह करोड़ की संपति बच रहेगी | उन्हें याद आया कि वे व्यापारी बडबडा रहे थे कि मैं कंगाल हो गया ,आज का अरबपति दरिद्र हो गया
दरिद्र ! दरिद्र !  अलबर्ट चौंके -"दस -बारह करोड़ और कोठी ,फिर भी दरिद्र और आत्म हत्या कर ली जबकि
वह भिखारिन -केवल एक रूपये का नोट पाकर आनंद से खिल उठी |
  दोनों में दरिद्र कौन ?अब उन्हें साधु के वचन याद आये --जिनका चित संपति के अभाव में दुखी है वे दरिद्र हैं
संपति के अभाव की कोई सीमा नहीं ,इसका अर्थ है -जिसे असंतोष है ,वह दरिद्र है | ऐसी दरिद्रता को तो
पारस कैसे दूर कर सकता है |
साधु ने ठीक ही कहा था -"यदि किसी को कुछ सार्थक देना है तो उसे विचार दो ,जीवन जीने की कला सिखाओ ,
       अब वैज्ञानिक में पारस पाने की कोई इच्छा नहीं थी ,वे पूछना चाहते थे कि योरोप के लिए वायुयान कब जा
रहा है | 

28 June 2013

GREEDY

'जिनका चित संपति के अभाव में दुखी है वे दरिद्र हैं | ऐसे दारिद्रय की दवा पारस ( वह पत्थर जिसके छूने से लोहा ,सोना बन जाता है ) कैसे कर सकता है ?'

   एक था कंजूस और एक थे सिद्ध पुरुष | कृपण बार -बार सिद्ध के पास जाता और कोई बड़ी धन राशि दिलाने के लिये उनसे विनती करता | एक दिन सिद्ध पुरुष को मौज आ गई ,उनने झोली से निकाला पारस पत्थर और उसे कृपण के हाथ में ,पकड़ाते हुए कहा -"यह पत्थर सात दिनों तक तुम्हारे काम आयेगा ,लोहे से स्पर्श कर जितना चाहे सोना बना लेना "| कृपण बहुत प्रसन्न हुआ और एक दिन में करोड़पति बनने के सपने देखने लगा |           घर पहुँचने पर लोहा खरीदने की योजना बनाई | अधिक लोहा -सस्ता लोहा ,यह दो प्रश्न ही प्रमुख बन गये | कृपणता पूरे जोर -शोर से उभर आई | एक बाजार से दूसरे बाजार बहुत दौड़ -धूप की | इतने में एक सप्ताह गुजर गया | होश तो तब आया ,जब पारस का प्रभाव निष्फल हो गया | पारस मणि महात्मा को लौटाते हुए कृपण की उदासी देखते ही बनती थी |
          त्रिकालदर्शी महात्मा ने कहा --"मूर्ख !यह जीवन भी पारस मणि ही है | इसका तत्काल श्रेष्ठतम उपयोग करने वाले महान होते हैं -अमूल्य स्वर्ण बन जाते हैं और जो लालच में निरंतर निरत रहकर अवसर को चुका देते हैं ,वे तेरी ही तरह खाली हाथ रहते हैं और निराश होते हैं | " 

27 June 2013

WIT

'दुनिया क्या कहेगी ? इस प्रश्न को ध्यान में रखने का नाम कौशल है |  भगवान क्या कहेंगे ? इस प्रश्न को आगे रखकर चलने का नाम कर्तव्य है | '
एक विद्वान अपने कुत्ते के साथ भ्रमण को निकले | सामने से एक व्यक्ति आ रहा था ,जो उनकी विद्वता से जलता -कुढ़ता था | उसने उनको अपमानित करने की द्रष्टि से उनसे पूछा -"आप दोनों महानुभावों में श्रेष्ठ कौन है ?"
             विद्वान् बिना बुरा मानते हुए बोले -"मित्र !यदि मैं इस सुर दुर्लभ मानवीय काया का सदुपयोग करते हुए श्रेष्ठ कर्म करूं ,तो मैं श्रेष्ठ हुआ और यदि मैं अपने सच्चे स्वरुप का ध्यान न रखते हुए जानवरों जैसे कर्म करूं ,दूसरों के साथ दुर्व्यवहार करूं तो मुझसे और मुझ जैसे अनेक नर -पशुओं से कहीं ज्यादा ये कुत्ता श्रेष्ठ है |     प्रश्न करने वाले व्यक्ति का सिर ,यह उत्तर सुनकर लज्जा से झुक गया |

    'सम्मान की पूंजी देने पर मिलती है ,बाँटने पर बढ़ती है और बटोरने पर समाप्त हो जाती है | '

AITREY UPNISHAD

उपनिषद में प्रसंग आता है कि जब परमात्मा ने पंचभूतों से पुरुष आकृति का निर्माण कर तैयार कर दिया ,तब देवों ने पूछा कि हमारे योग्य स्थान बताएँ ,जहाँ हम इस पावन काया में निवास कर सकें | मानव शरीर के विभिन्न स्थलों का दिव्य रूप दिखाकर देवों से जब  परमात्मा ने कहा -"अपने योग्य आश्रय स्थानों में तुम प्रवेश कर लो | "तब सभी देव प्रसन्न होकर मानवीय काया में स्थान -स्थान पर प्रतिष्ठित हो गये ---
  अग्नि वाणी होकर मुख में ,  वायु प्राण होकर नासिका छिद्र में
 सूर्य प्रकाश बनकर नेत्रों में   ,दिशाएँ श्रोत्रेंद्रिय बनकर कानों में ,
औषधियाँ और वनस्पति रोमों के रूप में त्वचा पर ,  चंद्रमा मन के रूप में ,
मृत्यु अपान होकर नाभि में तथा जल देवता वीर्य बनकर जननेंद्रिय में प्रतिष्ठित हुए |--  ऐतरेय उपनिषद
 यह कथानक बताता है की मानव शरीर एक देवालय है | हमें उसे प्रदूषित नहीं करना चाहिए | 

26 June 2013

WISDOM

'अंदर से अच्छा बनना ही वास्तव में कुछ बनना है | मनुष्य जीवन की बाह्य बनावट उसे कब तक साथ देगी ?जो कपड़े अथवा जो साधन यौवन में सुंदर लगते हैं ,यौवन ढलने पर वे ही उपहासास्पद दीखने लगते हैं |
मनुष्य को जीवन का श्रंगार ऐसे उपादानो से करना चाहिये ताकि आदि से अंत तक सुंदर और आकर्षक बने रहें  
         मनुष्य जीवन का अक्षय श्रंगार है --आंतरिक विकास | ह्रदय की पवित्रता एक ऐसा प्रसाधन है जो मनुष्य को बाहर -भीतर से एक ऐसी सुंदरता से ओत -प्रोत कर देता है जिसका आकर्षण न केवल जीवन पर्यन्त अपितु जन्म -जन्मांतरों तक सर्वदा एक सा बना रहता है |

 जीवन ही प्रत्यक्ष देवता है | उसकी साधना करने से हाथों हाथ सत्परिणाम की प्राप्ति होती है | 

GATHER THISTLES AND EXPECT PICKLES

'सामर्थ्य बढ़ने के साथ ही मनुष्य के दायित्व भी बढ़ते हैं | ज्ञानी पुरुष बढ़ती सामर्थ्य का उपयोग पीड़ितों के कष्ट हरने एवं भटकी मानवता को दिशा दिखाने में करते हैं और अज्ञानी उसी सामर्थ्य का उपयोग अहंकार के पोषण और दूसरों के अपमान के लिये करते हैं | '
          जय और विजय भगवान विष्णु के द्वारपाल थे | उन्हेंअपने  पद का अभिमान हो गया | एक दिन उसी अहंकार के कारण उन्होंने ऋषियों --सनक ,सनंदन ,सनातन और सनत्कुमार का अपमान कर दिया | परिणाम स्वरुप उन्हें असुर होने का शाप मिला और तीन कल्पों में --हिरण्याक्ष -हिरण्यकश्यप ,रावण -कुंभकरण ,और शिशुपाल -दुर्योधन के रूप में जन्म लेना पड़ा |
          पद जितना बड़ा होता है ,सामर्थ्य उतनी ही ज्यादा और दायित्व उतने ही गंभीर |
ऐसा ही अपमान किसी साधारण द्वारपाल ने किया होता तो इतने परिणाम में दंड न चुकाना पड़ता |
सामर्थ्य का गरिमापूर्ण एवं न्यायसंगत निर्वाह ही श्रेष्ठ मार्ग है |  

LIFE MANAGEMENT

'जीवन एक कला है और इसे आनंद पूर्वक जीना चाहिये | आधुनिकतम सर्वेक्षण के आंकड़ों का अवलोकन करने पर यह अविश्वसनीय तथ्य प्रकट होता है कि अपने विषय के विशेषज्ञ ,विद्वान ,प्रतिभावानों का निजी जीवन विखंडित एवं विभाजित है | उन्हें अपनी सामान्य सी जिंदगी कोचलाने  के लिये नशा ,शराब जैसे मादक द्रव्यों का सहारा लेना पड़ता है |
      इसका कारण यही है कि हमने जीवन में 'अपने जीवन 'के अलावा और सभी को महत्व दिया | इसका परिणाम यह है कि सब कुछ सुधरा लेकिन 'अपना जीवन '(निजी जीवन)जो अति महत्वपूर्ण है ,अनसुलझा ,अछूता रह गया | 
       सम्रद्धि मिली ,भौतिक विकास खूब हुआ ,पर जीवन छूट गया ,संवेदना सूख गई ,आंतरिक जीवन खंडहर -सा सन्नाटा भरा खोखला सा रह गया |
   जीवन जीना एक तकनीक है ,कला है | जो इसे जानता है वही कलाकार ,प्रतिभावान है | अपनी क्षमता की पहचान ,सुंदर सुघड़ व्यक्तित्व का निर्माण एवं सामर्थ्य का सुनियोजन इसका प्रमुख सूत्र है ।
   आवश्यकता है ऐसी आधुनिक वास्तुकला की ,जो घरों को ही नहीं ,हमारे विचारो ,कल्पनाओं ,इच्छाओं भावनाओं और संवेदनाओं को तराशे जिससे ---
         देह को आकर्षक घर मिले ,
         विचारों को सुंदर मन मिले
और मन को संवेदनाओं की शीतल छाँह मिले |
इसी से आंतरिक जीवन का घरौंदा सुंदर व आकर्षक बन सकता है |
   बाहरी जीवन की सुंदरता के साथ आंतरिक सौंदर्य भी महत्वपूर्ण है

25 June 2013

CROW / SWAN

'जीवन में जितनी सांसारिक कठिनाइयां हैं ,उनका बीज हमारे अंदर रहता है | हमारे गुण ,कर्म और स्वभाव जिस योग्य होते हैं ,उसी के अनुकूल परिस्थितियां मिलकर रहती हैं | स्थाई रूप से मनुष्य को वही मिलता है ,जिसके वह योग्य है ,जिसका वह अधिकारी है | '

      मानसरोवर के हंस कठोर शीत के कारण सुदूर देशों के प्रवास पर निकल पड़े | अनेक देश और भूखंड पार करते हुए राजहंसों की टोली समुद्र तट पर रुकी | कोणार्क राजवंश के प्रसिद्ध उद्दान का माली इन राजहंसों का स्वागत -सत्कार करता और राजहंसप्रत्युपकार वश माली को प्रति वर्ष एक उपदेश दिया करते | इस बार भी माली ने राजहंसों का मीठे फलों से स्वागत किया और राजहंसों की टोली के नायक ने माली को उपदेश दिया ,
         तात !जो व्यक्ति अपनी शक्ति और साधनों की मर्यादा में रहता है ,वह स्वल्प साधनों में भी अपना जीवन हँसी -खुशी में बिता लेता है ,किंतु अपनी शक्ति से अधिक का मिथ्या प्रदर्शन करने वाले न केवल संकट में पड़ते हैं अपितु उपहास और निंदा के पात्र भी बनते हैं | "
         माली राजहंसों से बड़ा प्रभावित हुआ और मार्ग के लिये कुछ देने लगा तो राजहंसों ने मना किया और कहा --"तात !संचय पाप है ,यह खाद्य तुम ले जाओ ,दुनिया में और बहुत से लोग अभावग्रस्त हैंउन्हें  दे दो ,सामर्थ्यवान लोग अपनी आवश्यकता स्वयं पूरी कर लेते हैं | कुछ भी मिले ,कहीं से भी मिले उदरस्थ कर लेने की काकवृति घटिया लोगों का काम है | "

       हंस के ये शब्द वटवृक्ष पर बैठे कौए ने सुन लिए और वह पंख फुलाता राजहंसों को बुरा -भला कहने लगा और बोला --"राजहंसों !चलो हमारी तुम्हारी प्रतियोगिता हो जाये ,इतने विशाल समुद्र को पार करने की | तुम्हे अभी मेरी शक्ति का पता चल जायेगा | "
       राजहंसों ने कौए को बहुत समझाया किंतु अहंकारी कौया नहीं माना , राजहंसों के साथ उड़ चलाऔर थोड़ी तेजी दिखाकर आगे हो गया | कौए ने व्यंग करते हुए राजहंसों से कहा -"थक जाना तो बता देना ,हम तो तुम्हे अपनी शक्ति दिखाना चाहते हैं ,मारना नहीं चाहते हैं | "
राजहंस बिना उत्तर दिये धीर -गंभीर उड़ते रहे | कुछ ही देर बाद बकवादी कौए का शरीर थक गया ,पंख ढीले पड़ गये किंतु हेकड़ी नहीं गई | वह समुद्र में गिरने ही वाला था ,अपने ही कृत्य पर कौए की आँखों में आँसु आ गये | यह देख राजहंसों को दया आ गई ,उन्होंने कौए को पीठ पर बिठाया ,पीछे लौटे और कौए को उसी वृक्ष पर छोड़ दिया ,जहाँ वह रहता था | अभी तक कौए का दम फूल रहा था | राजहंस बोले --
 "आगे से कभी भी अपनी शक्ति से अधिक बढ़ -चढ़कर प्रदर्शन मत करना अन्यथा मारे जाओगे | "
यह कहकर राजहंसों की टोली अपने प्रवास पर उड़ चली |    

23 June 2013

SELF-IMPROVEMENT

'पाप एवं दुष्कर्म ही एकमात्र दुःख का कारण नहीं होते | अयोग्यता ,मूर्खता ,निर्बलता ,निराशा ,फूट, निष्ठुरता आलस्य भी ऐसे दोष हैं ,जिनका परिणाम पाप के समान और कई बार उससे भी अधिक दुखदायी होता है | '
      आप कठिनाइयों से बचना या छुटकारा प्राप्त करना चाहते हैं तो अपने भीतरी दोषों को ढूंढ डालिये और उन्हें निकाल बाहर करने में जुट जाइये | दुर्गुणों को हटाकर उनके स्थान पर आप सद्गुणों को अपने अंदर जितना स्थान देते जायेंगे ,उसी अनुपात के अनुसार आपका जीवन विपत्ति से छूटता जायेगा |

         पंडित चिदंबर दीक्षित की ख्याति कर्नाटक के चमत्कारी संत के रूप में थी | एक दिन एक महिला उनसे 'माँ 'बनने का आशीर्वाद लेने पहुँची | दीक्षित जी ने उसे दो -तीन मुट्ठी चने देकर एक कोने में बैठने को कहा | कुछ देर पश्चात् दीक्षित जी ने देखा कि सड़क पर खेलते हुए कुछ बच्चों ने उस महिला से चने मांगे ,पर महिला ने उनकी याचना का उत्तर देने के बजाय दूसरी ओर मुँह कर लिया | बेचारे बच्चे कातर भाव से उसकी ओर ताकते रहे | यह द्रश्य देखकर दीक्षित जी महिला से बोले -"तुम मुफ्त में मिले चनों को बाँटने में इतनी निष्ठुरता दिखाती हो तो भगवान से यह कैसे आशा करती हो कि वो अपनी एक प्यारी आत्मा को तुम्हारे घर भेज देंगे | पहले ममत्व और करुणा का विस्तार करो ,जब सही पात्रता तुम्हारे अंदर विकसित हो जायेगी तो परमात्मा का अनुदान भी तुम्हे मिलेगा | "उस महिला की आँखे खुल गईं और उसने अपना जीवन परिमार्जित करने का वचन दीक्षित जी को दिया | 

THOUGHTFUL

'ईश्वर से पाना और उसे जरुरतमंदों में बांटना ,इसी में सच्ची संपन्नता ,समर्थता एवं जीवन की सार्थकता है ।'
       पक्षियों के समूह ने बादलों को उलाहना देते हुए कहा -"बंधुओ !तुम्हारी भी क्या जिंदगी है ?एक जगह से वजन उठाकर चलना और दूसरी जगह उंडेल देना | ये तो मजदूरों की सी जिंदंगी हुई | "
    बादल हँसे और बोले -"इन्ही पानी की बूँदों से तो वो जीवन जन्म लेता है ,जिसका आनंद हम और तुम उठाते हैं |   हम बरसते हैं तो सारी स्रष्टि तृप्त होती है | यदि परमात्मा की इस रचना के लिये थोड़ा भार उठाना भी पड़ा तो उसमे अपना जीवन धन्य ही माना जाना चाहिये | "
         जाग्रत आत्माएँ भी बादलों की तरह ही जीवन जीती हैं और सत्प्रेरणा को दिव्य सत्ता से लेकर उन अंत:करण पर बरसाती है ,जिनके ह्रदय में समाज के लिये कुछ करने की चाह होती है | 

22 June 2013

TRANSFORMATION

'मनुष्य का उद्देश्य ऊँचा हो और संकल्प दृढ हो तो किसी भी परिस्थिति से उबर सकता है | कलिंग विजय के बाद अशोक सम्राट तो बन गया ,पर उतनी ही मात्रा में उसे पीड़ित लोगों की घ्रणा और धिक्कार का सामना भी करना पड़ा | युद्ध के आर्तनाद ने उसके अंदर की करुणा और मानवता को जिंदा कर दिया | भगवान बुद्ध का अनुयायी बनकर वह सतपथ पर अग्रसर हुआ और आज अपने श्रेष्ठ कार्यों के याद किया जाता है |
   न्याय और धर्म का पथ कठिनतो है ,पर आंतरिक संतुष्टि और भावनात्मक तृप्ति के अधिकारी इसी पथ के पथिक बनते हैं |

         'पाप का प्रायश्चित कभी पाप से नहीं हो सकता | सचमुच ही प्रायश्चित करना है तो लोक सेवा का कार्य करो ,जीवों को सुख पहुँचाओ परमार्थ के काम करो | '

INTELLIGENCE

'मनुष्य का गौरव इस बात में है कि वह नेक राह पर चले और अपने पीछे ऐसी परंपरा छोड़ जाये जिसका अनुकरण करते हुए पीछे आने वाले लोग अपना रास्ता खोज सकें | हिम्मत और बहादुरी की खरी पहचान यह है कि वह कठिनाइयों और प्रलोभनों के बीच जरा भी विचलित न हो | जिसने इनसानियत के आदर्शों को छोड़ दिया ,उसके पास बचा ही क्या ?'
       छोटी सी गौरैया और बड़े गिद्ध में प्रतियोगिता तय हुई | निश्चय हुआ कि जो सबसे ऊँचे तक पहुँचेगा वही जीतेगा | गौरैया फुर्र -फुर्र करती हुई ऊपर उठने लगी तो उसे दो कीड़े दिखाई पड़े ,जो गिरते हुए नीचे आ रहे थे | उसने उन दोनों को भी साथ ले लिया और धीरे -धीरे ऊपर जाने लगी | इतनी देर में गिद्ध बहुत ऊँचा जा चुका था ,पर तभी उसे सड़ी लाश दिखाई पड़ी और वह प्रतियोगिता भूलकर लाश खाने जा बैठा |  
गौरैया प्रतियोगिता जीत गई |
  दूर से यह घटना देखते एक संत बोले -"ऊँचे उठे फिर न गिरे ,यही मनुज को कर्म |
                                                          औरन ले ऊपर उठे ,इससे बड़ो न धर्म | "
सत्य यही है कि ऊँचाई तक जाकर पतन होने के पीछे मनुष्य के कुकर्म ही जिम्मेदार होते हैं और जो शांति से धर्म पथ पर चलते हैं ,वे ही ऊँचाइयों को छू पाने में सफल होते हैं | 

20 June 2013

ACTION--- An action is the perfection and publication of thought.

'जिस आदर्श में व्यवहार का प्रयत्न न हो ,वह निरर्थक है और जो व्यवहार आदर्श से प्रेरित न हो वह भयावह है
                    विचार तथा कर्म का एक दूसरे से घनिष्ठ संबंध है | उन्नति के पथ पर अग्रसर होने के लिये विचार शक्ति के साथ ही द्रढ़ इच्छा शक्ति एवं संकल्प बल का होना भी नितान्त आवश्यक है | इसके अभाव में विचार भी पंगु हो जाते हैं |
विचार संसार की सबसे महान शक्ति है किन्तु असंगठित ,अव्यवस्थित और कोरे काल्पनिक किताबी विचार केवल दिल बहलाव मनोरंजन की सामग्री है | हमारी सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि हम उन विचारों को क्रियात्मक स्वरुप प्रदान नहीं करते ,शिक्षाओं पर द्रढ़ता पूर्वक अमल नहीं करते ,अपने आचरण को उनके अनुसार नहीं बनाते |
    यह संसार कर्म -भूमि है | केवल सोचने विचारने मात्र से से आज तक न तो किसी को कुछ प्राप्त हुआ है ,न भविष्य में कुछ प्राप्त होने की संभावना है | जो कर्म क्षेत्र में उतर आता है ,वही आगे बढ़ता है | जो अपने अंतस की शुभ प्रेरणाओं को क्रियात्मक रूप देता है ,वही अंत में पूर्ण विजयी होता है | संसार तो कर्म की कसौटी है | यहां मनुष्य की पहचान उसके कर्मों से होती है | यदि जीवन में सफल होना है तो कर्म योगी बनो | कर्म द्वारा ही मनुष्य शारीरिक ,मानसिक तथा आध्यात्मिक उन्नति कर सकता है | 

18 June 2013

HAPPINESS---The secret of happiness is renunciation

अंतरिक्ष ने सूर्य से पूछा -"देव !आप सतत ताप की ज्वाला में जलते रहते हैं | एक क्षण भी विश्राम नहीं लेते हैं ,इससे आपको क्या मिलता है | "सूर्य देव मुस्कराए और बोले -"तात !मुझे स्वयं जलते हुए भी दूसरों को प्रकाश ,ताप और प्राण देते रहने में ,जो आनंद आता है उसकी तुलना किसी भी सुख से नहीं की जा सकती | "
 अंतरिक्ष को अपनी भूल ज्ञात हुई तथा मालूम हुआ कि जीवन का सच्चा आनंद स्वयं कष्ट उठाकर भी दूसरों को प्रकाश ,प्रेरणा प्रदान करते रहने में है | 

TO TOUCH TO THE HEART

'संत रज्जब हर क्षण प्रभु की याद में खोये रहते थे | वह मिलने के लिये आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को अपने तमाम अवगुण त्याग कर सादा सरल जीवन बिताने की बात कहते | उनका कहना था कि सच्चा इनसान ,फिर भले ही वह किसी मजहब का हो ,उसे शराब या अन्य किसी नशीले पदार्थ से दूर रहना चाहिये | उनकी बातों का असर इतना जादुई था कि अनेक लोग उन्हें सुनकर सन्मार्ग अपना चुके थे |
     पता नहीं क्यों उन्ही के गाँव में रहते हुए मुहम्मद जुबैर नाम का युवा कुसंग में पड़कर अपराधी बन चुका था | जुआ खेलना ,शराब पीना और शराब पीने के बाद नेक लोगों को परेशान करना ,उसके प्रिय कार्य थे | एक दिन जुबैर ज्यादा पीने के कारण नाली में गिर पड़ा था | तभी उधर से संत रज्जब निकले | उन्होंने उसे उठाया और उसका मुँह धोया ,फिर वहां खड़े लोगों से बोले -"जिस मुँह से ईश्वर का पवित्र नाम लेना चाहिये ,उससे शराब पीकर गालियाँ बकते फिरना गुनाह है |
      जुबैर को जब कुछ देर बाद होश आया तो लोगों ने उसे बताया कि संत रज्जब खुद अपने हाथ से उसका मुँह धोकर गये हैं तथा उन्होंने मुँह से अल्लाह का नाम लेने के बजाय अनाप -शनाप खाने -पीने एवं बोलने को गुनाह बताया है |
     यह सुनकर जुबैर सोच में पड़ गया और उसने कहा -"मेरे जिस मुँह को संत ने अपने हाथों से धोया है उससे अब कभी गुनाह न होंगे | "संत के स्पर्श का यह चमत्कार देखकर लोग चकित थे | 

17 June 2013

ISHVAR

'असंभव का संभव होना ही ईश्वर की उपस्थिति का प्रमाण है | '
गैलीलियो ने स्रष्टि विज्ञान पर एक पुस्तक की रचना की | इस पुस्तक को लेकर वह संत नील्स के पास गये | संत ईश्वर भक्त थे | उन्होंने दो -तीन दिन में पूरी पुस्तक पढ़ डाली ,परन्तु उसमे कहीं भी ईश्वर का उल्लेख नहीं था | स्रष्टि विज्ञान पर स्रष्टा का कोई उल्लेख नहीं ,बात विचित्र थी ,| विज्ञान को शायद ईश्वर की उपेक्षा में ही तुष्टि का अनुभव होता है |
कुछ दिनों बाद गैलीलियो पुन:संत नील्स के पास गये तो उन्होंने कहा" और तो सब ठीक है ,व्यवस्थित है ,तर्कबद्ध है ,परंतु थोड़ी खाली जगह कहीं मालूम पड़ती | इसमें स्रष्टि के स्रष्टा -ईश्वर का कहीं भी उल्लेख नहीं है |यहां तक कि इनकार करने के लिये भी नहीं | अरे !यही कह देते कि ईश्वर नहीं है | तुम्हे ऐसा नहीं लगता कि ईश्वर के बिना ,उसकी स्रष्टि थोड़ी अधूरी मालूम पड़ती है | "
गैलीलियो ने कुछ कहा नहीं ,पर सोच में पड़ गये | संत नील्स कहे जा रहे थे --"ईश्वर की उपेक्षा एवं विस्मरण से ,जीवन में एवं स्रष्टि में जो खालीपन की अनुभूति होती है वहीं पीड़ा का जन्म होता है | जीवन से  एवं स्रष्टि से यदि पीड़ा को हटाना है तो ईश्वर की उपस्थिति का अनुभव करना पड़ेगा |  

16 June 2013

स्वामी विवेकानंद कश्मीर के क्षीर भवानी मंदिर गये | देखा मंदिर टूटा हुआ था | मन ही मन निश्चय किया कि इतना सुंदर मंदिर ,इतना पुराना भव्य शिल्प ,मैं इस मंदिर को बनवाऊंगा | कहा जाता है कि भगवती साक्षात प्रकट हुईं और बोलीं -"मैंने त्रिभुवन का निर्माण किया है ,तू मेरे लिये क्या बनायेगा !भगवान के लिये कुछ बनाना है ,तो घर -घर में ईश्वरीय प्रेरणा फैला | सब घरों को आदर्श ,स्वर्ग जैसा अनुपम बना | "
स्वामी जी माँ का आदेश शिरोधार्य  किया एवं वही कार्य जीवन भर किया | विवेकानन्द ने कहा था -"न मुझे भक्ति की परवाह है न मुक्ति की | मैं ऐसा वासंती जीवन जीना चाहता हूँ जिससे हर ओर प्रसन्नता और खुशहाली का वातावरण बने | 

RITUALS

'फूल को किसी भी नाम से पुकारने पर उसकी सुगंध में अंतर नहीं पड़ता | भगवान को किसी भी नाम से पुकारो इससे फर्क क्या पड़ता है | '
                                        "आप माला के दाने बाहर की ओर फेरते हैं और हम अंदर की ओर | बताइये इन दोनों में से कौन सा तरीका श्रेष्ठ है ?"पंजाब केसरी महाराजा रणजीत सिंह जी ने सिख साम्राज्य के विदेश मंत्री फकीर अजीजुद्दीन से पूछा | फकीर ने बड़ी बुद्धिमत्तापूर्वक इस प्रश्न का उत्तर इन शब्दों में दिया --
"महाराज !मुसलमान माला के दाने बाहर की ओर फेरकर दोष निकालने का प्रयास करते हैं ,जबकि हिंदु अंदर की ओर फेरकर गुण ग्रहण करने का यत्न करते हैं | "उनके उत्तर से प्रसन्न होकर महाराज ने उनकी प्रशंसा भरे दरबार में की |



15 June 2013

ART IS TRUTH, AND TRUTH IS RELIGION

महात्मा भगवान दीन की सभा में यदि कभी लोग ताली बजा देते तो वे बड़े उदास हो जाते | सोचते कहीं कोई असत्य बात मुँह से निकल गई ?एक बार वे 'सत्य 'पर ही बोल रहे थे | लोगों ने तालियाँ बजाई | वे थोड़ी देर रुके ,चारों ओर देखा पुन:बोलने लगे | थोड़ी देर बाद लोगों ने फिर तालियाँ बजाई | वे फिर रुके और बोले -"मेरे द्वारा सत्य के विषय में कही जा रही बातों से आप सब सहमत होकर ही ताली बजा रहें ?भीड़ एक स्वर में चिल्लाई --हाँ | उन्होंने दूसरा प्रश्न किया -"तब वे लोग हाथ ऊपर उठायें जो सत्य आचरण भी करते हैं | "अब सब लोग एक दूसरे का मुँह देखने लगे | महात्मा बोले -"ताली बजाने से पूर्व यह बात सोचनी चाहिये थी कि सत्य बोलना और सुनना ही पर्याप्त नहीं है ,आचरण में भी उतारा जाना चाहिये | "


AMAZEMENT

युगों पहले यक्ष ने युधिष्ठिर से यह सवाल पूछा था कि -'सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है ?'धर्म का मर्म जानने वाले युधिष्ठिर ने इस सवाल के उत्तर में यक्ष से कहा था -"हजारों लोगों को रोज मरते हुए देखकर भी अपनी मौत से अनजान बने रहना ,खुद को मौत से मुक्त मान लेना ,जीते रहने की लालसा में अनेको दुष्कर्म करते रहना ही सबसे बड़ा आश्चर्य है | "
अनेकों शव यात्राएँ रोज निकलती हैं ,ढेरों लोग इनमे शामिल भी होते हैं | इसके बावजूद भी वे अपनी शव यात्रा की कल्पना नहीं कर पाते | काश !अपनी मौत के कदमों की आहट सुनी जा सके तो निश्चित ही जीवन द्रष्टि संसार से हटकर सत्य पर केन्द्रित हो सकती है |

          दार्शनिक च्वान्गत्से को रात्रि के समय कब्रिस्तान से होकर गुजरते समय पैर में ठोकर लगी ,टटोल कर देखा तो किसी मुर्दे की खोपड़ी थी | उठाकर उनने उसे झोली में रख लिया और सदा साथ रखने लगे | शिष्य ने उनसे पूछा -यह इतना गंदा और कुरूप है ,इसे आप साथ क्यों रखते हो ?च्वान्गत्से ने उत्तर दिया -"यह मेरे दिमाग का तनाव दूर करने की अच्छी दवा है | जब अहंकार का आवेश चढ़ता है ,लालच सताता है ,तो इस खोपड़ी को गौर से देखता हूँ | कल परसों अपनी भी ऐसी ही दुर्गति होगी तो अहंकार और लालच किसका किया जाये ?"

13 June 2013

MORAL WISDOM

अपने विचारों पर पैनी नजर रखिये क्योंकि वे कुछ ही दिनों में शब्द बनकर मुखर होने लगेंगे |
अपने शब्दों पर और भी तीखी नजर रखिये क्योंकि वे धीरे -धीरे कर्म बन कर प्रकट होते हैं |
अपने कर्मों का परीक्षण करते रहिये क्योंकि वे फिर आदत बन कर ही रहेंगे |
अपनी आदतों को भुलावे में मत डालिये क्योंकि वे चरित्र बने बिना नहीं रह सकतीं |
अपने चरित्र पर द्रष्टि रखें क्योंकि वही आपके भविष्य का जन्म दाता है | 

11 June 2013

PEARL

'निज अस्तित्व की चिंता छोड़कर समाज के कल्याण के लिये जो अग्रसर होते हैं ,वे बन जाते हैं -जन -मानस के मोती | '
          विनोबा भावे अपनी भूदान यात्रा के दौरान दक्षिण भारत में पेनुगोड़ें कुट्टी से मिले | वे अपने गुणों के कारण दक्षिण के विनोबा के नाम से प्रख्यात हुए | हमेशा दूसरों की सेवा के लिये तत्पर कुट्टी जी के दोनों हाथ पक्षाघात के आक्रमण के कारण खराब हो गये | लोगों ने उनसे सहानुभूति दरसाई | वे बोले -"जहाँ भावनाओं से परिपूर्ण ह्रदय ,सक्रिय सतेज मस्तिष्क हो ,सुद्रढ़ -भार उठाने वाले पैर हों ,वहां क्या कठिनाई है !"
लोगों ने पूछा कि इनसे कैसे सहायता करेंगे ?उनने कहा -"जितनी आवश्यकता आज मनुष्यों को मानसिक सहायता की है ,उतनी और किसी की नहीं | "उनने पद यात्रा आरंभ की | पूरा कर्नाटक ,तमिलनाडु उनने दस वर्षों में पैदल घूम डाला | तमाम तरह की समस्याओं को वे हँसते हुए सुलझा देते | निरंतर सत्साहित्य का वे स्वाध्याय करते | सभी के चिंतन में विधेयात्मकता का समावेश करते | लोगों को लोगों के द्वारा ही आर्थिक सहायता करवा देते ,विद्दालयों के लिये धन एकत्र करा देते | विनोबा ने कुट्टी जी को चलता फिरता विश्वविद्दालय कहा था | 

FRIEND

'सच्चा मित्र हीरे के समान बहुमूल्य है ,भले ही वह संख्या में कम हों | झूठे मित्र तो सड़े पत्तों की तरह दुर्गंध फैलाते और जगह घेरते हैं ,भले ही वे संख्या में बहुत हैं | "
       एक भला खरगोश था | सभी पशुओं की सहायता करता और मीठा बोलता था | जंगल के सभी जानवर उसके मित्र हो गये | एक बार खरगोश बीमार पड़ा | उसने आड़े समय के लिये कुछ चारा दाना अपनी झाड़ी में जमा कर रखा था | सहानुभूति प्रदर्शन के लिये जिसने सुना ,वही दौड़ा आया और आते ही संचित चारे दाने में मुँह मारना शुरू किया | एक ही दिन में उस सबका सफाया हो गया | खरगोश अच्छा तो हो गया ,पर कमजोरी में चारा ढूंढने न जा सका और भूख से मर गया |
       उथली मित्रता और कुपात्रों की सहानुभूति सदा हानिकारक ही सिद्ध होती है | दुर्घटना का समाचार सुनकर दौड़े आने वाले सहानुभूति प्रदर्शनकर्ता प्राय:यही करते हैं |  

POWER

'पशु द्वन्द युद्ध से अपनी बलिष्ठता सिद्ध करते हैं और मनुष्य साहस और विवेक के आधार पर | '
 इस संसार में कुल तीन शक्तियां हैं जिन पर हमारा सारा जीवन व्यापर चल रहा है |
1. पहली शक्ति है -श्रम -इससे हमें धन और यश मिलता है | जितनी भी सफलताओं का इतिहास है ,वह मनुष्य के श्रम की उपलब्धियों का इतिहास है |
2. दूसरी शक्ति है -ज्ञान की ,विचार करने की शक्ति | हमें जो भीप्रसन्नता मिलती इसी ज्ञान की शक्ति से मिलती है | जब हमारा मस्तिष्क संतुलित होता है तो हर परिस्थिति में हमें चारों ओर प्रसन्न्ता ही प्रसन्नता दिखाई देती | जीवन का आनंद सदैव भीतर से आताहै | यदि हमारे सोचने का तरीका सही हो तो बाहर जो भी क्रिया कलाप चल रहे हैं ,उन सभी में हमको ख़ुशी ही ख़ुशी बिखरी दिखाई पड़ेगी | दाराशिकोह मस्ती में डूबते चले गये | जेबुनिस्सा ने पूछा -"अब्बा जान !आपको क्या हुआ आज | आप तो पहले कभी शराब नहीं पीते थे ,फिर यह मस्ती कैसी "?वे बोले आज मैं हिन्दुओं के उपनिषद पढ़कर आया हूँ ,जमीन पर पैर नहीं पड़ रहे हैं | जीवन का असली आनंद उनमे भरा पड़ा है |
3. तीसरी शक्ति है -रूहानी -आदमी का व्यक्तित्व |आदमी की कीमत है उसका व्यक्तित्व ,ऐसे व्यक्ति दुनियां की फिजां को बदलते हैं ,देवताओंको अनुदान बरसाने के  लिये मजबूर करते हैं | व्यक्तित्व श्रद्धा से बनता है | श्रद्धा अर्थात  सिद्धांतों व आदर्शों के प्रति अटूट व अगाध विश्वास | व्यक्तित्व ऐसा वजनदार बन जाता है कि देवता तक नियंत्रण में आ जाते हैं | 

9 June 2013

FAMILY RELATIONSHIP

'गृहस्थ एक तपोवन है जिसमे संयम ,सेवा और सहिष्णुता की साधना की जाती है | '
         गृहस्थ धर्म के परिपालन के लिये किया गया कोई भी प्रयास किसी तप से कम नहीं है | मनुष्य की सहज वृति कामवासना को पति -पत्नी में एक दूसरे के प्रति कर्तव्यनिष्ठा में परिवर्तित कर कामोपभोग को एक सांस्कृतिक संस्कार बनाकर सामाजिक मूल्य का रूप देना गृहस्थ आश्रम की ही देन है |
         श्रेष्ठ संतान ,सुसंतति देने की खान गृहस्थ धर्म को ही माना गया है | परिवार के बीच ही महामानव प्रशिक्षण पाकर निकलते और किसी समाज के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं |
        श्री रामकृष्ण परमहंस कहते हैं -"एक हाथ से ईश्वर के चरणकमल पकड़े रहो और दूसरे हाथ से गृहस्थी का काम करते रहो | भगवान को लेकर ही गृहस्थी में रहना होगा ,उन्हें छोड़कर नहीं | जितने दिन सांसारिक दायित्व हैं ,उतने दिन मन का एक अंश ईश्वर में ,दूसरा अंश संसार के कार्यों में रहे | दायित्व जैसे -जैसे घटे ,भगवान में उतना ही मन बढ़ाते जाओ | दायित्व पूर्ण होते ही दोनों हाथों से भगवान के चरणों को पकड़ लो ,समूचे मन से उन्ही का चिंतन करो | तभी यह संसार आनंद -कानन में परिणत होगा | 

RELATION

मानव जीवन में पनपने वाला संबंध भावनाओं के तल पर उपजता है | भावना मानव जीवन की आधार शिला है | भावनाओं की परिष्कृति एवं स्थिरता संबंधों को स्वस्थ एवं सुद्रढ़ बनाती है | भावनाएं संबंधों को पोषण देती हैं एवं विकसित करती हैं |
            यदि संबंध अच्छे होते हैं तो जीवन की सुंदरता ,खूबसूरती बढ़ जाती है और यदि संबंधों में कटुता पनपती है तो जीवन नरकतुल्य अर्थहीन लगता है | ऐसा इसलिये होता है क्योंकि संबंधों का आधार ही भावनाएं हैं |
              भावना का विकास ही संबंधों की पूर्णता है | यही जीवन का सच्चा सौंदर्य एवं सुख है | भावना के बिना अधूरेपन एवं अपूर्णता का कष्ट हमेशा चुभता रहता है और अपनों के बिना जीवन वीराना और शुष्क हो जाता है | यही अनेक मनोविकारों का मूल कारण है | अत:हमें अपनी भावनाओं को परिष्कृत एवं विकसित करना चाहिये ,जिससे हमारे संबंध प्रेमपूर्ण एवं सुखदायक हों | 

8 June 2013

ARDENT DESIRE

'तृष्णा का कोई अंत नहीं | आकाश की तरह उसके पेट में बहुत कुछ भरा होने पर भी खाली ही रहता है | '
       हनुमानजी लंका जा रहे थे | समुद्र के बीच में कई छोटे द्वीप थे | उनमे एक में सुरसा नाम राक्षसी रहती थी | उसे अनेक प्रकार की सिद्धियाँ प्राप्त थीं । उनमे एक यह भी थी कि वह अपना शरीर जब चाहे तब जितना छोटा या बड़ा कर ले |
वह लंका की प्रहरी थी | जब हनुमानजी को ऊपर से जाते देखा तो सुरसा ने अपना मुँह बड़ा करके हनुमानजी को दबोच लिया
     हनुमानजी को भी सिद्धियाँ प्राप्त थीं | उन्होंने भी अपना शरीर बढ़ाया ताकि सुरसा के मुँह से निकल सकें | सुरसा अपना मुँह बढ़ाती गई ,हनुमानजी भी बढ़ाते गये |
    इस प्रतिस्पर्धा में विस्तार तो बढ़ता जा रहा था पर कोई हल नहीं निकल रहा था | हनुमानजी को दूसरी तरकीब सूझी | उन्होंने अपना रूप छोटा किया और सहज ही बाहर निकल गये ,सुरसा का मुँह फटा का फटा रह गया |
       तृष्णा सुरसा है | महत्वाकांक्षी अपने वैभव का विस्तार करते हैं पर वे उतने नहीं बढ़ पाते जितनी की तृष्णा बढ़ जाती है |
 संतोष अपनाकर विनम्र बन कर ही इस संकट से उबरा जा सकता है | 

ONE WAY

सिकंदरिया का राजा टालेमी ,यूक्लिड से ज्यामिति सीख रहा था ,किंतु यह कठिन विद्दा उसके पल्ले नहीं पड़ रही थी | एक दिन टालेमी अपना धैर्य खो बैठा | उसने अपने गुरु से पूछा -"क्या ज्यामिति सीखने का कोई सरल मार्ग नहीं है ?"युक्लिड ने गंभीरता से कहा -"राजन !आपके राज्य में जनसाधारण और अभिजात  वर्ग के लिये पृथक मार्ग हो सकते हैं ,किंतु ज्ञान का मार्ग सबके लिये एक सा ही है | इसमें अभिजात वर्ग के लिये कोई राजमार्ग नहीं है | "
बात टालेमी की समझ में आ गई | फिर इसके बाद टालेमी ज्यामिति सीखने के लिये कठोर परिश्रम करने लगा | 

7 June 2013

THE PATH TO VICTORY

ईसा ने लोगों से कहा था -"जो बीज तुम बोते हो वह गले बिना नहीं उगता | भौतिक रूप से तुम गलोगे तो आध्यात्मिक रूप से ऊँचे उठोगे | "
बीज की तीन ही गति हैं --1. या तो वह बीज बनकर गले और अपने को सुविकसित पौधे के रूप में परिणत कर अपने जैसे अनेक बीज पैदा करे |
2. या पिसकर आटा बन जाये फिर रोटी के रूप में प्राणी का पेट भरे और अंत में दुर्गन्धित विष्ठा बनकर किसी आड़ में उपेक्षित पड़ा रहे |
3. या भीरुता और संकीर्णता से ग्रसित आत्म रक्षा की बात सोचता रहे और कीड़े -मकोड़ों अथवा सीलन -सड़न द्वारा नष्ट कर दिया जाये |
            मनुष्य जीवन की भी यही तीन गतियाँ हैं --
1. परमार्थ -प्रयोजन में अपने को संलग्न कर यशस्वी जीवन जिये और संसार की सुख -शांति में योगदान करे 2. अपने शरीर और परिवार पर ध्यान केन्द्रित कर ,पेट और प्रजनन की समस्याओं में उलझा रहे | उचित -अनुचित का विचार न कर पशु स्तर की जिंदगी गुजारे और अंतत:विष्ठा जैसी घिनौनी परिणति प्राप्त करे |
3. तीसरी गति अति कृपणता ,अति संकीर्णता और अति स्वार्थ बुद्धि की है | उस स्तर के लोग न परमार्थ सोचते और न स्वार्थ |
                 मनुष्य जीवन की सार्थकता और मानवी बुद्धि की प्रशंसा इस बात में है कि वह प्रथम गति का वरण करे और परमार्थ का श्रेष्ठ मार्ग का अवलम्बन करे | 

6 June 2013

PRAYER

'प्रार्थना ह्रदय की ,अंत:करण की निश्छल पुकार है ,जो सीधे परमात्मा तक पहुंचती है और बदले में प्रार्थी को कृतकृत्य कर देती है | '
 प्रार्थना ईश्वर से वार्तालाप करने की सर्वश्रेष्ठ आध्यात्मिक प्रणाली है जिसमे किसी मंत्र ,छंद  और कर्मकांड की आवश्यकता नहीं पड़ती |
प्रार्थना पुकार है अस्तित्व के प्रति कि हे ईश्वर !आपका सहारा चाहिये ,प्रत्युतर भी इसी का मिलता है |
 प्रार्थना वह मन:स्थिति है ,जिससे व्यक्ति शंका और संदेह के जाल से निकलकर श्रद्धा की भूमिका में प्रवेश करता है |
             अपने अहं को गलाकर समर्पण की नम्रता स्वीकार करना और मनोविकारों को ठुकरा कर परमेश्वर का आदेश स्वीकार करने का नाम प्रार्थना है | इसमें यह संकल्प भी जुड़ा रहता है कि भावी जीवन परमेश्वर के निर्देश के अनुसार पवित्र और परमार्थी बनकर जिया जायेगा | ऐसी गहन अंत:करण से निकली हुई प्रार्थना ,जिसमे आत्म परिवर्तन की आस्था जुड़ी हो ,भगवान का सिंहासन हिला देती है |
          प्रार्थना के द्वारा हम अपने अहंकार ,पाप ,कषाय -कल्मष एवं दुखों के अंधकार को छिन्न -भिन्न कर सकते हैं | मन को साधने एवं शिक्षित करने की सबसे पहली सीढ़ी प्रार्थना है | अपने किए हुए दुष्कर्मों के लिये पश्चाताप करना और दुबारा किसी तरह के पापकर्म में संलिप्त न होने के लिये संकल्प शक्ति की अभिवृद्धि के लिये ईश्वर से प्रार्थना करना सुधार का प्रथम सोपान है |
 रवींद्रनाथ टैगौर की एक कविता जिसमे उन्होंने यह प्रार्थना की है --हे भगवान !जब हम आपसे मुसीबत से छुटकारा पाने के लिये प्रार्थना करें तो आप इनकार कर देना और हमसे कहना अपनी गलतियों से मुसीबत बुलाई है ,गलती ठीक करो | हे भगवान !जब हम आपसे संपति मांगे तो आप इनकार कर देना और यह कहना कि यदि अपनी कलाइयों और अक्ल का ठीक इस्तेमाल किया होता तो चैन की जिंदगी जी रहे होते | आप हमारी कोई मदद मत करना ,लेकिन यदि आप दया करते हों तो एक वरदान देना ---
     कि जब हम पाप के पंक में गिर रहे हों तो हे ईश्वर !अपनी लंबी भुजाएं फैलाकर हमें रोक लेना ,ऊँचा उठा लेना ,बस और हमें कुछ नहीं चाहिये | 

5 June 2013

Bhakti - Bhavana

'भावना दिशा देती है और श्रद्धा से प्रकाश मिलता है | केवल तर्क का आश्रय लेने वाला तो झाड़ -झंखाड़ों में भटकता है | '
                  भावनात्मक तृप्ति मानव जीवन की सबसे बड़ी आवश्यकता है | सब कुछ पाकर भी मनुष्य अतृप्त ही बना रह्ता है | भक्ति ही मनुष्य को तृप्ति प्रदान करती है | आज भावनाओं की सार्थकता खो गई है | आज का सबसे बड़ा दुर्भिक्ष भावनाओं के क्षेत्र का है | इसी के कारण जीवन के प्रत्येक स्तर पर समस्याएं उत्पन्न हुईं हैं |
                     मनोरोग और कुछ नहीं ,मनुष्य की दबी ,कुचली ,रौंदी गई भावनाएं ही हैं | सकारात्मक भावनाओं की प्राप्ति से इन रोगों का निराकरण हो सकता है | इसके लिये भक्ति की आवश्यकता है |
                      भक्ति का अर्थ है --परमात्मा एवं उसके असंख्य रूपों के प्रति प्रेम |
 जिसके ह्रदय में भक्ति की पवित्र ज्योति जलती हो उसे संसार का अँधेरा छू भी नहीं सकता |
भक्ति अमृत रूपा है | जिसमे भक्ति अपनी सम्पूर्णता में खिली ,वह व्यक्तित्व स्वयं में अमृत का निर्झर बन जाता है | असंख्य उसके पावन स्पर्श से नव -जीवन ,दिव्य -जीवन पाते हैं |
सच्चे भक्त की पहचान दीन -दुखियों को उसी परम सत्ता का अंश मानकर ,उनकी सेवा करने से होती है |
'दरिद्र नारायण की सेवा ही भगवान की साधना है |
परमार्थ से ,निष्काम कर्म से भावनाएं परिष्कृत होती हैं और जीवन की आंतरिक नीरसता व खोखलापन दूर होता है |

        रविन्द्रनाथ टैगौर की एक कविता है ----"मैं गया दरवाजे -दरवाजे पर भीख मांगने के लिये |
                                                                     अनाज से भर ली मैंने झोली |
                                                                      एक आया भिखारी ,उसने पसारा हाथ ,
                                                                        हमको भी दे कुछ ,जो तेरे पास है |
                                                                        मैंने बड़ी कंजूसी से ,बड़ी हिम्मत को इकट्ठा किया
                                                                       और एक दाना निकाल करके उस भिखारी की हथेली पर रखा |
                                                                      भिखारी उस दाने को लेकर हँसता -मुस्कराता चला गया |
                                                                      मैं आया अपने घर और घर आकर मैंने देखा ,
                                                                      एक बड़ा सा सोने का दाना उस अनाज के बीच में रखा हुआ था |
                                                                     समझ गया मैं कि ये सोने का दाना कहाँ से आया
                                                                        मैं सिर धुन -धुन कर पछताया कि मैंने अपनी झोली के सारे
                                                                         दाने क्यों न भिखारी के हाथ में दिये ,ताकि मेरी झोली के सारे
                                                                        दाने सोने के होकर आ गये होते |
                                                                       

HONESTY

'आत्म कल्याण के इच्छुक को सदैव अपने परिश्रम और ईमानदारी से कमाया हुआ अन्न ही ग्रहण करना चाहिये '|
             "एक ही रात में इतने ढेर सारे रुपयों की थैली !अरे !यह तो बता -"माँ ने कड़क कर बेटे से पूछा -"यह धन तू कहाँ से लाया ?"
         "  सेंध लगाकर | माँ तू ही तो कहती थी कि मनुष्य को सदैव परिश्रम की कमाई ही खानी चाहिये | |महाजन की सेंध काटने में मुझे कितना परिश्रम करना पड़ा ,तू इस बात को समझ भी नहीं सकती | "
           चपत लगाते हुए माँ ने कहा -"मूर्ख !मैंने इतना ही नहीं कहा कि मनुष्य को परिश्रम का खाना चाहिये ,वरन यह भी कहा था कि वह ईमानदारी से कमाया हुआ भी हो | उठा यह धन ,जिसका है ,उसे लौटा कर आ और अपने गाढ़े पसीने की कमाई का भरोसा कर | "
   माता की इस शिक्षा को शिरोधार्य करने वाला युवक अंतत: महासंत श्रमनक के नाम से विख्यात हुआ |  

4 June 2013

GENEROUS

'भक्ति भावना सही अर्थों में दीन -दुखियों के लिये अंत:से उत्पन्न परमार्थ भावना ही है | ईश्वर इसे ही मान्यता देते हैं |
           हज यात्रा पूरी करके एक दिन अब्दुल्ला बिन मुबारक कावा में सोए हुए थे | सपने में उन्होंने दो फरिश्तों को आपस में बातें करते देखा | एक ने दूसरे से पूछा -"इस वर्ष हज के लिये कितने आदमी आये और उनमे से कितनों की दुआ कबूल हुई ?'जवाब में दूसरे फरिश्ते ने कहा -"यों हज करने को 40 लाख आये थे ,पर इनमे से किसी की दुआ कबूल नहीं हुई है | इस वर्ष दुआ सिर्फ एक की कबूल हुई है और वह भी ऐसा है ,जो यहां नहीं आया | " पहले फरिश्ते को बहुत अचंभा हुआ ,उसने पूछा -"भला वह कौन खुशनसीब है ,जो यहां आया भी नहीं और उसकी हज कबूल हो गई ?"
     दूसरे फरिश्ते ने बताया -"वह है दमिश्क का मोची -अली बिन मूफिक | "
उस पाक हस्ती को देखने के लिये अब्दुल्ला बिन मुबारक अगले ही दिन दमिश्क के लिये चल पड़े और वहां उन्होंने मोची मूफिक का घर ढूंढ निकाला | और उनसे पूछा -"क्या तुम हज को गये थे ?"
मूफिक की आँखों में आँसू भर आये और सिर हिलाते हुए कहा -"मेरा भाग्य ऐसा कहाँ ,जो हज को जा पाता | जिंदगी भर की मेहनत से 700 दिरम उस यात्रा के लिये जमा किये थे ,पर एक दिन मैंने देखा कि पड़ोस के गरीब लोग पेट की ज्वाला बुझाने के लिये उन चीजों को खा रहे थे ,जिन्हें खाया नहीं जा सकता | उनकी बेबसी ने मेरा दिल हिला दिया और हज के लिये जो रकम जमा की थी ,सो उन गरीबों को बाँट दी | "
  दीन -दुखियों की सहायता ही सच्ची तीर्थ यात्रा है |

'मानव ह्रदय से बढ़ कर कोई तीर्थ नहीं | भगवान इसी में बसते हैं और वहां तक पहुँचने वाले को दर्शन दिये बिना नहीं लौटने देते | '     

3 June 2013

'जिसके जीने के कारण अन्य बहुत से प्राणी जीवन पाते हैं ,वही मनुष्य जीवित माना जाता है | अन्यथा कौआ भी अपनी चोंच से ही अपना पेट भर लेता है | जो अपने लिये जीता है ,उसका जीवन भी कोई जीवन है | '

    'जो उदारता पूर्वक सबके हित की बात सोचता है ,वही मनुष्य श्रेय का अधिकारी हो सकता है | '

WORSHIP

'कहाँ  छिपा  बैठा  है  सच्चा  इनसान ,
खोजते  जिसे  स्वयं  भगवान | '
                                              खलीफा उमर एक बार अपने धर्म स्थान पर बैठे हुए थे | उन्हें एक फरिश्ता उड़ता हुआ दिखाई दिया | उसके कंधे पर बहुत मोटी पुस्तक लदी हुई थी | खलीफा ने उसे पुकारा ,वह नीचे उतरा तो उन्होंने उस पुस्तक के बारे में पूछा कि इसमें क्या है ?फरिश्ते ने कहा -"इसमें उन लोगों के नाम हैं ,जो खुदा की इबादत करते हैं | "उन्होंने अपना नाम तलाश कराया तो फरिश्ते ने सारी पुस्तक ढूँढ डाली ,उनका नाम कहीं न मिला | इस पर खलीफा बहुत दुखी हुए कि हमारा इतना परिश्रम बेकार चला गया |
                  कुछ दिन बाद एक और फरिश्ता छोटी सी किताब लिये उधर से गुजरा | खलीफा ने उसे भी पुकारा और पूछा कि इस पुस्तक में क्या है ?उसने उत्तर दिया -"इसमें उन लोगों के नाम हैं ,जिनकी इबादत खुदा स्वयं करते हैं | "
    खलीफा ने पूछा -"क्या ईश्वर भी किसी की इबादत करता है ?"फरिश्ते ने कहा -"हाँ !जो लोग खुदा के आदेशों का पालन करते हैं ,उन पर दुनिया को चलाने की कोशिश करते हैं ,संसार रूपी बगिया को सुंदर बनाने की कोशिश करते हैं ,उन्हें खुदा बहुत आदर की द्रष्टि से देखता है और उनकी इबादत वह स्वयं करता है | "
    खलीफा ने पूछा क्या इसमें मेरा भी नाम है ?फरिश्ता बोला कुछ नहीं ,पुस्तक वहीं छोड़कर आगे बढ़ गया | खलीफा ने खोल कर देखा तो उनका नाम सबसे पहला था | 

2 June 2013

SPIRITUAL

'अध्यात्म अंत:करण में परिवर्तन है ,आंतरिक जीवन का रूपांतरण है | जीवन का सत्य बाह्य आवरण में नहीं है | मन की पवित्रता का उद्देश्य यदि पूरा न हुआ तो बाह्य कर्मकांडो का कुछ विशेष लाभ नहीं मिल पाता | '
         कथा पुरानी है पर इसका सत्य सदा ही नया रहता है |
    एक शहर में एक दिन ,एक ही समय दो मौतें हो गईं | इनमे एक सन्यासी थे ,एक नर्तकी | इन दोनों का निवास भी आमने -सामने था | जैसे ही उन दोनों की मृत्यु हुई ,उन्हें ले जाने के लिये ऊपर से दूत आये | वे दूत नर्तकी को स्वर्ग की ओर तथा सन्यासी को नरक की ओर ले चले | सन्यासी ज्यादा देर तक अपना धीरज बनाये न रख सके और बोले -"अरे भाई !तुमसे जरुर कुछ भूल हुई है | नर्तकी को स्वर्ग और मुझे नरक की ओर ,यह अन्याय और अंधेर के सिवा और क्या है | अपनी भूल सुधारो ,गलत राह मत चलो | "फिर धरती की ओर दिखाते हुए कहा -"देखो !धरती वासी कितने समझदार हैं ,सन्यासी की लाश को फूलों से सजा कर ले जा रहें हैं और नर्तकी की लाश को कोई पूछने वाला नहीं है | "
    दूत ठहाका लगाकर हँसने लगे और बोले --"ये बेचारे तो केवल वही जानते हैं ,जो बाहर था | ये व्यवहार तो देख पाते हैं ,किंतु अंत:करण का उन्हें कुछ भी अनुभव नहीं | इन लोगों ने वही जाना जो तुम दिखाते रहे परंतु जो तुम सोचते रहे ,मन की दीवारों के भीतर करते रहे ,उसे ये सब जान नहीं पाये | सच तो यही रहा कि शरी र से तुम सन्यासी थे ,पर तुम्हारा मन तो सदा नर्तकी में अनुरक्त रहा ,सदा ही तुम्हारे मन में वासना  उठती रही कि नर्तकी के घर में कितना सुंदर संगीत और नृत्य चल रहा है और मेरा जीवन कितना नीरस है | "
"जबकि नर्तकी निरंतर यही सोचती रही कि इन सन्यासी महाराज का जीवन कितना पवित्र व आनंदपूर्ण है | रात को तुम जब भजन गाते थे तब वह बेचारी अपने पापों की पीड़ा से विगलित होती ,रोती थी | तुम अपने तथाकथित ज्ञान के कारण कठोर और अहंकारी होते गये और वह अपने अज्ञान बोध के कारण सरल होती गई |               मृत्यु की घड़ी में तुम्हारे चित में अहंकार था ,वासना थी ,जबकि उसके चित में न तो अहंकार था और न वासना थी | उसका चित तो परमात्मा के प्रकाश ,प्रेम एवं प्रार्थना से परिपूर्ण था | इसलिये यही स्वर्ग की अधिकारी है |
अध्यात्म व्यवहार का अभिनय नहीं ,चित का रूपांतरण है ,अंत:करण की क्रांति है | 

1 June 2013

BELIEF

'ईश्वर पर विश्वास करने वालों की श्रद्धा ही वह स्थिति पैदा करती है ,जिसके प्रभाव से कठोर ह्रदय व्यक्ति भी द्रवित हो उठता है | '
     कुछ सदियों पहले जब नादिरशाह ने हिंदुस्तान पर हमला किया ,उस समय दिल्ली से कुछ दूर ग्रामीण इलाके में सूफी फकीर सलीम दरवेश अपनी आत्म -साधना में लीन थे | निरंतर तप करते हुए गाँव के लोगों में श्रद्धा और सद्विचार का संचार ,यही उनका नित्य का क्रम था | नादिरशाह के हमले की खबर ,उसकी क्रूरता के कारनामे इन भोले -भाले ग्रामीण जनों तक पहुंचे और उनमे घबराहट फैल गई कि अब क्या होगा ?
             वे सब मिल -जुलकर फकीर की झोंपड़ी पर पहुंचे | उनमे एक युवा शायर भी था | उसने दरद भरी लरजती आवाज में कहा -
               अंधेरी रात तूफाने तलातुम नाखुदा गाफिल
                यह आलम है तो फिर किश्ती ,सरे मौजरवां कब तक ?
अँधेरी रात ,खतरनाक तूफान और नाखुदा के रूप में हिंदुस्तान का बादशाह मुहम्मद शाह रंगीला ,जो हमेशा शराब में डूबा रहता है ,तो फिर हमारी कश्ती का भविष्य क्या !यह सुनकर फकीर कुछ देर चुप रहे फिर बोले --
                  अच्छा  यकीं  नहीं है  तो  उसे  कश्ती  डुबोने  दे ,
                   एक  वही  नाखुदा  नहीं  बुजदिल ! खुदा  भी  है |
 और इतिहास गवाह है ,उस फकीर की श्रद्धा काम आई | खुदा के इस नेक बंदे के समझाने पर नादिरशाह कत्लोगारद छोड़ कर वापस लौट गया |