3 June 2022

WISDOM------

 श्रीमद भगवद्गीता  में   भगवान  कहते  हैं ---- 'गहना  कर्मणोगति  l ,  कर्म  की  गति  बड़ी  गहन  है   l  कर्म  अविनाशी  है  ,इसका  बीज  कभी  नष्ट  नहीं  होता  l  सद्कर्म  से  पुण्य  और  दुष्कर्म  से  पाप  का  विधान  है  l   कर्म  का  फल  मिलता  अवश्य  है  , भले  ही  इसमें  देर  हो  जाये  l  महारानी  द्रोपदी  यज्ञ   से  उत्पन्न  हुईं  थीं  l  द्रोपदी  सहित  सभी  पांडवों  को  भगवान  कृष्ण  का  सान्निध्य  प्राप्त  था   लेकिन  फिर  भी   द्रोपदी  को  बहुत  इंतजार  करना  पड़ा  l  दु:शासन  ने  भरी  सभा  में  उसे  अपमानित  किया  था  ,  इस  पापकर्म  की  सजा  उसे  मिलनी  थी   l  यह  देखने  के  लिए  और  उसके  रक्त  से  अपने   केश  धोने  के  लिए   द्रोपदी  को  तेरह  वर्ष  इंतजार  करना  पड़ा   l  केवल  दु:शासन  ही  नहीं  सभी  कौरवों  ने  पांडवों  पर  अत्याचार  किए  l  जब  पाप  सामूहिक  होते  हैं  तब  उनका  दंड  भी  सामूहिक  होता  है   l  सारे  पापी  ईश्वरीय  विधान  के  अनुसार  एक  जगह  जुट  जाते  हैं ,  उनके  पापों  के  बोझ  से  चाहे  वह  कोई  वंश  हो ,  कोई  संस्था  हो ,  कोई  संगठन , कोई  समाज  हो  उसका  अस्तित्व  ही  समाप्त  हो  जाता  है   l   मनुष्य  अपनी  मानसिक  कमजोरियों  के  आगे  लाचार  है  l  यह  जानते  हुए  भी  कि  पाप कर्म  की  सजा  अवश्य  मिलेगी ,  फिर  भी  पाप कर्म  करना  नहीं  छोड़ता  l  कितने  ही  लोग   भयंकर  बीमार  हो  जाते  हैं , जब  तकलीफ  होती  है  तो  प्रार्थना  करते  हैं  कि  ठीक  हो  जाएँ  तो   कोई  गलती  नहीं  करेंगे  ,  लेकिन  स्वस्थ  होते  ही  फिर   गलतियाँ  करने  लगते  हैं   l  जिनके  भीतर  विवेक  है  वे  अपनी  गलतियों  से  सीखते  हैं  , उनको  सुधारने  का  और  उन्हें  पुन:  न  दोहराने  का  संकल्प  लेते  हैं   और  इस  तरह  महानता  के  स्तर  को  प्राप्त  करते  हैं   l