फारस का बादशाह नौशेरवाँ स्वयं पारसी धर्म को मानने वाला था किन्तु उसने अपने राज्य में ईसाई , यहूदी , हिन्दू सब मजहब वालों को स्वतंत्रता दे रखी थी l नौशेरवाँ ने बहुत सी संस्कृत की पुस्तकों का अनुवाद ईरान की भाषा में कराया था l एक बार फारस में गीदड़ों की संख्या अधिक हो गई और उससे लोगों को तकलीफ होने लगी l नौशेरवाँ ने प्रधान गुरु को बुलाकर इसका कारण पूछा l तब गुरु ने कहा ----- " जब किसी देश में अन्याय होने लगता है तो गीदड़ बढ़ जाते हैं l तुम पता लगाओ कि तुम्हारे राज्य में कहीं अन्याय तो नहीं हो रहा है l " नौशेरवाँ ने उसी समय इसकी जाँच करने के लिए सुयोग्य न्यायधीशों की एक कमेटी नियुक्त की l उससे मालूम हुआ कि कितने ही प्रांतीय शासक प्रजा पर अन्याय करते हैं l नौशेरवाँ ने उन सबको दंड देकर सर्वत्र न्याय की स्थापना की l
16 June 2021
WISDOM ----------
भर्तृहरि ने वैराग्य शतक में लिखा है ----- तृष्णा न जीर्णा वयमेव जीर्णा : l भोगा न भुक्ता वयमेव भुक्ता: " अर्थात तृष्णा बूढ़ी नहीं होती , हम ही बूढ़े होते हैं l भोग नहीं भोगे जाते , हम ही भोग लिए जाते हैं l " पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- शरीर ढलने के साथ इन्द्रियाँ भी शिथिल हो जाती हैं लेकिन कामना और वासना समाप्त नहीं होतीं , कल्पनाएं - मनोभाव उसी दिशा में दौड़ लगाते हैं और मनुष्य पतन को प्राप्त होता है l
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