14 May 2023

WISDOM -----

  यह  कथा  उस  समय  की  है  जब   कौरव -पांडव  बहुत  छोटे   बालक  थे  l  ये  सब  राजकुमार  नगर  से  बाहर  कहीं  गेंद  खेल  रहे  थे  कि  इतने  में  उनकी  गेंद  एक  अंधे  कुएं  में  जा  गिरी  l  युधिष्ठिर  उसको  निकालने  का  प्रयत्न  करने  लगे   तो  उनकी  अंगूठी  भी  कुएं  में  जा  गिरी  l  सभी  राजकुमार  कुएं  के  चारों  ओर  खड़े  हो  गए  , उन्हें  गेंद  निकालने  का  कोई  उपाय  नहीं  सूझ  रहा  था  l  एक  ब्राह्मण  मुस्कराता  हुआ  यह  सब  देख  रहा  था  , उसने  उन  राजकुमारों  से  कहा ---- " राजकुमारों  !  तुम  क्षत्रिय  हो  ,भरत  वंश  के  दीपक  हो  l  जरा  सी  धर्नुविद्या  जानने  वाले   जो  काम  कर  सकते  हैं  , वह  भी  तुम  लोगों  से  नहीं  हो  सकता  l  बोलो , मैं  गेंद  निकाल  दूँ   तो  तुम  मुझे  क्या  दोगे  ? "  युधिष्ठिर  ने  हँसते  हुए  कहा --- " ब्राह्मण श्रेष्ठ !  आप  यदि  गेंद  निकाल  देंगे  तो  कृपाचार्य  के  घर   आपकी  बढ़िया  दावत  करेंगे  l "  तब   द्रोणाचार्य  ने  पास  में  पड़ी  एक  सींक  उठा  ली   और  मन्त्र  पढ़कर  उसे  कुएं  में  फेंका  l   सींक  गेंद  में  जाकर  ऐसे  लगी  जैसे  कोई  तीर  हो  l  फिर  इस  तरह  वे  लगातार  मन्त्र  पढ़कर  सींक  कुएं  में  डालते  रहे  l  सीकें  एक -दूसरे  के  सिरे  से  चिपकती  गईं  l  जब  आखिरी  सींक  का  सिरा  कुएं  के  बाहर  पहुंचा   तो  द्रोणाचार्य  ने  उसे  पकड़कर  खींचा   और  गेंद  बाहर  निकल  आई  l  सब  राजकुमार  आश्चर्य  से  यह  करतब  देखकर  उछल  पड़े  l  उन्होंने  ब्राह्मण  से  विनती  की  कि  युधिष्ठिर  की  अंगूठी  भी  निकाल  दें  l  द्रोणाचार्य  ने  तुरंत  धनुष  चढ़ाया  और  कुएं  में  तीर  मारा  l  पल  भर  में  बाण  अंगूठी  को  अपनी  नोक  में  लिए  ऊपर  आ  गया  l  राजकुमारों  के  आश्चर्य  की  सीमा  न  रही  l  उन्होंने  द्रोणाचार्य  के  आगे  आदर पूर्वक  सिर  झुकाया  और  कहा  --- "  आप  अपना   परिचय  दीजिये   और  हमें  आगया  दें  कि  हम  आपकी  क्या  सेवा  कर  सकते  हैं  l "  द्रोणाचार्य  ने  कहा ---" राजकुमारों  !  यह  सारी  घटना   सुनाकर  पितामह  भीष्म  से  ही  मेरा  परिचय  प्राप्त  करो  l  राजकुमारों  ने  जाकर  पितामह  भीष्म  को  सारी  बात  सुनाई  तो  वे  समझ  गए   कि   वे  सुप्रसिद्ध  आचार्य  द्रोणाचार्य  ही  हैं  ,  उन्होंने  बड़े  सम्मान  के  साथ  द्रोणाचार्य  का  स्वागत  किया   और  राजकुमारों  को  आदेश  दिया  कि   वे  गुरु  द्रोणाचार्य  से  धर्नुविद्या  सीखा  करें  l