17 April 2022

WISDOM ------

                                                                                                                                                                             पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- " हमारे  जीवन  में  जो  कुछ  भी  है  ---- भौतिक  संपदा , आध्यात्मिक  संपदा , रिश्ते - नाते ,  हमारा  अपना  भौगोलिक  परिवेश ,  ये  सब  हमारे   ही  कर्मों  की  अभिव्यक्ति  है  l  दुनिया  में  हम  जिसे  भी  देखते  हैं   अर्थात   संतान , गुरु -शिष्य , संबंधी   जो  कोई  भी  हैं  , वे  सब  हमारे  ही  कर्मों  का  परिणाम  हैं  l   इस  विश्व  ब्रह्माण्ड  में   हम  जहाँ  कहीं  भी  हों   हमारे  कर्म  हमारा  पीछा  करते  हुए   हम  तक  पहुँच  ही  जाते  हैं  और  तब  तक  समाप्त  नहीं  होते  ,  जब  तक  हम  उन्हें  भोग  नहीं  लेते   l   कर्मफल  का  विधान    सबके  लिए  एक  समान  है   l "      कर्म   करना  मनुष्य  के  वश  में  है  लेकिन  उसका  फल  कब  मिलेगा  यह  काल  निश्चित  करता  है   l ------ भीष्म  पितामह  शरशैया  पर  लेते  हुए  थे  l  भगवान  कृष्ण  युधिष्ठिर  को  लेकर  पितामह  भीष्म  के  पास  गए   और  बोले ---- " युद्ध  के  कारण  धर्मराज  युधिष्ठिर   बहुत  शोकग्रस्त  हैं  , आप  इन्हे  धर्म  का  उपदेश  देकर   इनके  शोक  का  निवारण  करें  l  "  तब  भीष्म  पितामह  ने  कहा ---- " आप  कहते  हैं  तो  मैं  उपदेश  दूंगा  ,  किन्तु  हे  केशव  ! पहले  मेरी  शंका  का  समाधान  करो   l  मैं  जानता   हूँ  कि   शुभ - अशुभ  कर्मों  का  फल   अवश्य  मिलता  है   l   इस  जन्म  में  तो  मैंने   कोई  ऐसा  कर्म  नहीं  किया   और   पिछले   72   जन्मों  में  भी  ऐसा  कोई  क्रूर  कर्म  नहीं  किया  ,  जिसके  फलस्वरूप   मुझे  बाणों  की  शैया  पर  शयन  करना  पड़े  l   "  उत्तर  में  भगवान  श्रीकृष्ण  ने  कहा  ---- " यदि  आप   एक  और  जन्म  देख  लेते  तो  आपकी  जिज्ञासा  शांत  हो  जाती   l  पिछले  73  वे  जन्म  में   आपने  पत्ते  पर  बैठे   हरे  रंग  के  टिड्डे  को  पकड़  कर   उसको  बबूल   के  कांटे  चुभोये  थे  ,  आज  आपको  वही  कांटे  बाण  के  रूप  में  मिले  हैं   l