पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " शत्रु को आधा कुचलकर छोड़ देने से वह प्राय: प्रतिशोध की ताक में रहता है और फिर से तैयार होकर आक्रमण कर सकता है l आचार्य श्री आगे लिखते हैं ---- " दुष्ट शत्रु पर दया दिखाना अपना और दूसरों का अहित करना है l आजकल के व्यवहार शास्त्र का स्पष्ट नियम है कि दूसरों को सताने वाले दुष्ट जन पर दया करना , सज्जनों को दंड देने के समान है क्योंकि दुष्ट तो अपनी स्वभावगत क्रूरता और नीचता को छोड़ नहीं सकता , वह जब तक स्वतंत्र रहेगा और उसमें शक्ति रहेगी , वह निर्दोष व्यक्तियों को सब तरह से दुःख और कष्ट ही देगा l
31 August 2021
29 August 2021
WISDOM ----- मूर्ख के साथ मित्रता दुखदायी होती है
वाराणसी के शासक ब्रह्मदत्त का राजोद्यान देश - देशांतर के दुर्लभ एवं सुन्दर वृक्षों , लताओं का संग्रह था बोधिसत्त्व उसी उद्यान में सपरिषद विश्राम कर रहे थे l उस दिन नगर में एक भव्य उत्सव आयोजित था l बाग़ के मालिक को उत्सव देखने की लालसा थी l उद्यान में बंदरों का एक समूह था l बंदरों के नायक से माली की मैत्री थी l उसने नायक बन्दर को बुलाकर कहा --- " मित्र ! एक दिन तुम अपने समूह के साथ मिलकर उद्यान सींच दो तो मैं उत्सव देख आऊं l " बन्दर ने प्रसन्नता से कार्य करने का वचन दिया l माली चला गया तो नायक ने बंदरों से कहा ---" मित्रों , हमें विवेकपूर्ण सिंचन करना चाहिए , अन्यथा जल का अभाव हो जायेगा , तुम लोग पहले लताओं को उखाड़कर उनकी जड़ों की गहराई देख लो l जो जड़ जितनी गहरी हो , उसके अनुसार ही सिंचन करो l ' बंदरों ने शीघ्र ही लताएं उखाड़ डालीं l माली जब वापस आया तो उसने सिर पीट लिया और समझ गया कि मुर्ख से दोस्ती कितनी हानिकारक है l ऐसी ही एक लघु कथा है ----- एक राजा ने बन्दर से दोस्ती की l राजा जब दोपहर को कुछ देर सोता था तब वह बन्दर उसे पंखा झलता था l एक दिन राजा को गहरी नींद आ गई l बन्दर पंखा झलने लगा l अचानक राजा की नाक पर एक मक्खी आकर बैठ गई l बन्दर पंखा झलकर मक्खी को भगाने की कोशिश करने लगा l मक्खी बार - बार उड़ती और फिर राजा की नाक पर बैठ जाती l बन्दर को बहुत गुस्सा आई l वहीँ पास में राजा की तलवार रखी थी , उसने वह तलवार उठा ली और मन ही मन कहने लगा , -बैठने दो , मक्खी को , अब मैं देखूंगा l जैसे ही मक्खी राजा की नाक पर बैठी बन्दर ने तलवार से वार किया , मक्खी तो उड़ गई , [पर राजा लहूलुहान हो गया l इस कथा से हमें यही शिक्षा मिलती है कि कभी भी किसी मूर्ख से मित्रता नहीं करनी चाहिए l
28 August 2021
WISDOM -----
दुर्बुद्धि का प्रकोप पतन की ओर ले जाता है l व्यक्ति जिस स्तर का है , वह उसी के अनुरूप क्षेत्र को अपनी दुर्बुद्धि की चपेट में ले लेता है l दुर्बुद्धि को मनुष्य अपनी कमजोरियों के कारण स्वयं आमंत्रित करता है l ' महाभारत ' का यह प्रसंग इस सत्य को स्पष्ट करता है ------ ' भोगविलास , जुआखोरी , नशा आदि ऐसे व्यसन हैं कि उनसे होने वाली बुराइयों को जानते हुए भी लोग उनके चक्कर में आ जाते हैं l धर्मराज युधिष्ठिर का राज्याभिषेक हो चुका था l इंद्रप्रस्थ के वैभव से दुर्योधन को बहुत ईर्ष्या थी , वह उन्हें आगे बढ़ता हुआ नहीं देख सकता था , इसलिए उसने अपने मामा शकुनि के साथ मिलकर धृतराष्ट्र को इस बात के लिए राजी कर लिया कि वे युधिष्ठिर को चौसर खेलने के लिए आमंत्रित करें l उन दिनों क्षत्रियों में यह नियम था कि खेल के लिए बुलावा मिलने पर उसे अस्वीकार नहीं किया जा सकता था l फिर युधिष्ठिर को चौसर का व्यसन भी था l खेल शुरू हुआ , दुर्योधन तुरंत बोल उठा --- मेरी जगह मामा शकुनि खेलेंगे लेकिन दांव लगाने के लिए जो धन - रत्न आदि चाहिए वह मैं दूंगा l पासे तो शकुनि के इशारे पर चलते थे l इंद्रप्रस्थ में अपार वैभव था l सम्राट युधिष्ठिर ने दांव लगाना शुरू किया ---- पहले रत्नों की बाजी लगी , फिर सोने - चाँदी के खजानों की , फिर रथों और घोड़ों की , तीनो दांव हार गए l युधिष्ठिर ने नौकर - चाकरों को दांव पर लगाया , फिर सारी सेना और हाथी - घोड़ों की बाजी लगा दी , सब हार गए खेल में युधिष्ठिर एक - एक कर के अपने सारे वैभव की बाजी लगाते गए , यहाँ तक कि अपने देश और देश की प्रजा को भी खो बैठे l लेकिन उनका चस्का न छूटा l शकुनि कपटी था , उसने कहा - अभी तो तुम्हारे चार वीर भाई हैं , उन्हें दांव पर क्यों नहीं लगते l एक - एक कर के युधिष्ठिर ने नकुल , सहदेव , भीम , अर्जुन और उनके शरीर पर जो वस्त्र - आभूषण थे सबको दांव पर लगा दिया , यह बाजी भी हार गए और अंत में स्वयं को भी हार गए l शकुनि ने सभा में खड़े होकर घोषणा की कि अब पाँचों पांडव उसके गुलाम हो चुके हैं l शकुनि बड़ा दुष्टात्मा था , उसने युधिष्ठिर से कहा --- अभी तुम्हारे पास एक चीज और है जो तुमने हारी नहीं है और वो है तुम्हारी पत्नी द्रोपदी , तुम उसको दांव पर क्यों नहीं लगाते ? उसकी बाजी लगाओ तो अपने आप को भी छुड़ा सकते हो l " जुए के नशे में चूर युधिष्ठिर के मुँह से निकला --- ' चलो , अपनी पत्नी द्रोपदी की भी बाजी लगाईं l ' शकुनि यही चाहता था ' तो यह चला ' कहते हुए उसने पासा फेंका और बोला ---- ' लो यह बाजी भी मेरी ही रही l ' अब दुर्योधन बोला ---- ' द्रोपदी अब महारानी नहीं , हमारी दासी है , उसे सभा में ले आओ ------------- विदुर जी ने कहा ---- युधिष्ठिर स्वयं को हार चुके थे , वे स्वयं गुलाम हो गए थे इसलिए उन्हें द्रोपदी को दांव पर लगाने का कोई हक नहीं l ' लेकिन जब व्यक्ति दूसरों का और विशेष रूप से अपनी ही कमजोरियों का गुलाम हो जाता है तो उसको आत्मविश्वास कम हो जाता है तब चालाक और छल -कपट करने वाले इसका फायदा उठाकर नीति और न्याय विरुद्ध कार्य करते हैं l परिणाम ---- महाभारत , विनाश !
27 August 2021
WISDOM -----
समर्थ गुरु रामदास सतारा जा रहे थे l मार्ग में उनका शिष्य भोजन लेने पास के गाँव में गया l उसे लगा कि रास्ते में देर हो सकती है तो खेत से चार भुट्टे तोड़ लाया l उसने भुट्टों को भूनकर स्वामी जी को दिया l धुआँ उठता देख खेत का मालिक भागा -भागा आया और समर्थ स्वामी के हाथ में भुट्टे देखकर उन्हें ही डंडे से मारने लगा l शिष्य कुछ बोलता तो उसे चुप कर समर्थ गुरु ने मार खा ली l दूसरे दिन वे सतारा पहुंचे l उनकी पीठ पर डंडे के निशान थे l शिष्य ने भी वहां पहुंचकर सारी घटना बता दी l छत्रपति तक यह विवरण पहुंचा l उनने सेनानायक से पता लगवा लिया कि यह अपराध किसके द्वारा हुआ है l अभी तक समर्थ गुरु रामदास कुछ बोले न थे l छत्रपति शिवाजी गुरु को प्रणाम करने आये तो वह खेत का मालिक भी पीछे -पीछे लाया गया l शिवाजी ने पूरे राज्य की ओर से क्षमा मांगते हुए पूछा ---- " गुरुवर ! इसे क्या दंड दूँ ? " खेत का मालिक गुरु के चरणों में जा गिरा l समर्थ बोले ---- " इसने हमारे धैर्य और सहन शक्ति की परीक्षा ली l इसने अपना कर्तव्य निभाया है l इसे दंड न देकर चार भुट्टों का हरजाना नगद राशि के रूप में तथा एक कीमती वस्त्र देकर सम्मानित करना चाहिए l " न्याय का यह विलक्षण रूप देखकर छत्रपति गुरु के चरणों में झुक गए l
WISDOM ------
कहते हैं -- जो ' महाभारत ' में है वही इस धरती है l व्यक्ति अपने संस्कार के अनुरूप ही उससे सीखता है l महाभारत का प्रसंग है ---- दुर्योधन के गुरु द्रोणाचार्य से ऐसा कहने पर कि कौरव पक्ष के के अनेक वीर युद्ध में मारे गए लेकिन पांडव पक्ष का ऐसा कोई नुकसान नहीं हुआ , कहीं ये आपका अर्जुन के प्रति मोह तो नहीं ? तब गुरु द्रोणाचार्य ने चक्रव्यूह की रचना की , इस चक्रव्यूह में भगवान कृष्ण की बहन सुभद्रा और अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु को सात महारथियों ने मिलकर मार डाला l आसुरी प्रवृति के लोग इसी तरह कभी जाति के आधार पर , कभी धर्म के आधार पर , कभी अपनी विकृत मानसिकता के कारण ऐसे ही कलियुगी चक्रव्यूह रचते हैं l विज्ञान के आविष्कारों ने और संवेदनहीन ज्ञान ने इन चक्रव्यूह का घेरा बहुत बड़ा कर दिया है और धनवानों के लालच व महत्वाकांक्षा ने इस घेरे को मजबूत कर दिया है l कलियुग में दुर्बुद्धि का प्रकोप होता है l पहले घातक हथियारों का निर्माण होता था असुरता के अंत के लिए लेकिन अब संसार पर अपना वर्चस्व कायम करने के लिए , लोगों का दिल जीतकर नहीं , उन्हें डरा - धमका कर अपने नियंत्रण में रखने के लिए घातक हथियार बनते हैं ----- फिर जब बन गए तो उनको बेचना भी जरुरी है ----- अब जब तक उनका प्रयोग नहीं होगा , तब तक और ज्यादा कैसे बिकेंगे ? लाभ कैसे होगा ? यह चक्रव्यूह महाभारत की तरह किसी एक दिन का युद्ध नहीं है l यह तो तब तक चलेगा जब तक लोगों के हृदय में संवेदना नहीं जागेगी l जब मनुष्य में विवेक का जागरण होगा , सद्बुद्धि आएगी तभी यह चक्रव्यूह टूटेगा l शक्ति का सदुपयोग नहीं होगा तो मानवता को नष्ट होने में देर नहीं लगेगी l
26 August 2021
WISDOM -----
एक गाड़ीवान हनुमान जी का बड़ा भक्त था l नित्य उनके मंदिर में दर्शन को जाता था और वहां बैठकर हनुमान चालीसा का पाठ करता था , ताकि हनुमान जी अपने कानों से सुन लें l एक दिन गाड़ीवान अपनी गाड़ी लेकर कहीं दूर गाँव जा रहा था l वर्षा के दिन थे l सड़क जगह - जगह से टूटी हुई थी , गड्ढ़ों में पानी भरा था l रास्ते में एक जगह भारी कीचड़ भरा हुआ था , पहिये उसमें फँस गए l बैल उसे खींच नहीं पा रहे थे l वह स्वयं कीचड़ में उतारकर गाड़ी खींचना नहीं चाहता था l फिर गाड़ी बाहर कैसे निकले l गाड़ीवान उसी में बैठकर जोर - जोर से हनुमान चालीसा पढ़ने लगा l उसका अभिप्राय था कि हनुमान जी आएं और उसकी गाड़ी बाहर निकालें l पाठ करते - करते बहुत देर हो गई , पर हनुमान जी नहीं आए l वह झल्लाने लगा और बुरा बोलने लगा l एक किसान पास के खेत में हल जोत रहा था l उसने यह तमाशा देखा और बोला ---- " मूर्ख ! हनुमान जी तो अनदेखे पर्वत को उखाड़ लाए थे l तू उनका भक्त बनता है तो कीचड़ में उतारकर पहिये को जोर क्यों नहीं लगाता , ताकि धकेले जाने पर वे आगे बढ़ें l हनुमान जी ने तो समुद्र पार कर लिया , तुझसे कीचड़ में नहीं उतरा जाता l " अंध भक्त को चेत हुआ l उसने अपनी गलती समझी और कीचड़ में उतरा l पहिये को जोर लगाया , गाड़ी आगे चली और कीचड़ के पार हो गई l जो काम अपने पुरुषार्थ से हो सकता है , उसके लिए आलसी बनकर देवता को क्यों पुकारा जाये ?
25 August 2021
WISDOM ----
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----- " मनुष्य में अच्छाइयां भी होती हैं और बुराइयां भी होती हैं , न कोई पूर्ण रूपेण अच्छा है , और न कोई बिलकुल बुरा l गुण , कर्म स्वाभाव में हर मनुष्य दूसरे से भिन्न होता है किन्तु यदि सामाजिक हित पर व्यक्तिगत इच्छाओं , आकांक्षाओं को वारे जाने का दृष्टिकोण अपनाने पर उसका यह मिश्रित स्वरुप भी उपयोगी और चिरस्मरणीय बन सकता है l l " स्टालिन उसका सटीक उदाहरण है l मार्क्स की पुस्तक ने स्टालिन को क्रांतिकारी बना दिया l उन दिनों रूस की सामाजिक दशा बहुत बिगड़ी हुई थी l जार के अत्याचारों से जनता त्रस्त थी l जार के निरंकुश शासन से मुक्ति दिलाने के लिए स्टालिन ने अपने जीवन के स्वर्णिम 20 वर्ष समर्पित किए l इस दौरान स्टालिन को गालियाँ, चाबुक , मार , यंत्रणाएँ सभी कुछ सहना पड़ा l इस अवधि में उसे उत्तरी ध्रुव से लगी रूस की सीमा के एक गाँव में जेल में रखा गया l इस गाँव के दो सौ मील तक कोई बस्ती नहीं थी , कड़ाके की ठण्ड पड़ती थी l ऐसी भयंकर जेल में स्टालिन ने चार वर्ष गुजारे l जारशाही का अंत हुआ , फिर लेनिन की मृत्यु के बाद शासन सत्ता स्टालिन के हाथ में थी लेकिन उसने अपने कष्ट , त्याग और बलिदान का मुआवजा सुख - वैभव के रूप में नहीं लिया , वह नौकरों के रहने वाले क्वार्टर में ही रहते थे , उन्ही के जैसा खाना खाते थे l आत्मप्रशंसा और आत्म विज्ञापन से वह कोसों दूर था l
24 August 2021
WISDOM --------
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " युवावस्था जीवन का बसंत है l इसका सदुपयोग करने पर व्यक्ति बहुत कुछ कर जाता है l इस काल में पर्वतों का स्थान बदलने और नदी की राह मोड़ने जैसे असंभव कार्य संभव बनाये जा सकते हैं l " आचार्य श्री लिखते हैं ----- " बलवान और शक्तिशाली व्यक्ति यदि संस्कारवान भी होगा तो अनीति और अन्याय की घटनाएं सुनकर उसका खून खौल ही उठेगा l व्यक्ति अपनी शक्ति और सामर्थ्य पर अंकुश रखे l उसे सन्मार्गगामी बनाए l पतन की राह पर न चलने दे l यदि कोई इस प्रकार के मार्ग पर चल पड़ा है तो प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है कि अपनी शक्ति और सामर्थ्य बढ़ाकर उसे दंड दे , ताकि भविष्य में कोई इस प्रकार का दुस्साहस न करे , समाज में अन्ध व्यवस्था न फैलाए l
23 August 2021
WISDOM -----
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ------ " महान व्यक्तित्व संपन्न जीवन का मूल्य व्याख्यान , प्रवचन एवं उपदेश देने में निहित नहीं होता , बल्कि सर्वप्रथम उसे अपने जीवन में उतारने एवं हृदयंगम करने में होता है l वे अपने आचरण से शिक्षा देते हैं l " भगवान बुद्ध के जीवन का प्रसंग है ---- बौद्ध भिक्षुक गाँव - गाँव में उपदेश देने और लोगों के कल्याण के लिए भ्रमण करते थे l भगवान बुद्ध भी उसी गाँव में पहुंचे , उन्होंने भिक्षुओं से पूछा --- " गाँव में जाकर आपने क्या किया ? " सभी भिक्षुओं ने कहा ---- हे प्रभु ! ग्रामीण जनों ने हमारी कोई बात नहीं सुनी , हमारी किसी बात पर ध्यान नहीं दिया , इसलिए हम कोई सेवा नहीं कर सके l " भगवान बुद्ध ने उनकी बातों को ध्यान से सुना और उठकर गाँव की ओर चल पड़े l उनके साथ उनके शिष्य भी थे l गाँव पहुंचकर भगवान बुद्ध उस गाँव की सफाई करने लगे , अपने हाथ से कूड़ा उठाया l फिर अपने शिष्यों के सहयोग से गाँव में भोजन बनाया और सभी गाँव के लोगों को बुलाकर प्यार से भोजन कराया l भगवान बुद्ध स्वयं भोजन करा रहे हैं , यह सुनकर आसपास के गाँव के लोग भी एकत्रित हो गए , उत्सव जैसा उमंग भरा वातावरण निर्मित हो गया l भगवान बुद्ध ने गाँव के लोगों से उनका सुख - दुःख पूछा l उनके भोजन , मकान , स्वास्थ्य आदि विभिन्न मदों पर आत्मीयता से बात की , उनकी समस्याओं को सुना और उनका समाधान किया l प्रेम और आत्मीयता का एक दिव्य और स्वर्गीय वातावरण बन गया l जब भगवान बुद्ध वापस संघ की ओर जाने लगे तो सब लोगों ने आँखों में आँसू भरकर उन्हें विदा किया l बुद्ध उनके हृदय में बस गए थे l भिक्षुओं ने भगवान बुद्ध से कहा ---- " प्रभु ! आपने लोगों को न तो ध्यान की बात बताई और न ही कोई गूढ़ बात कही l फिर भी वे कैसे आपको समर्पित हो गए l " भगवान बुद्ध बोले --- " वत्स ! सेवा का अर्थ उपदेश देना नहीं , वरन लोगों को उनके कष्टों से मुक्ति दिलाना है l जिसको भूख लगी है वह भला भोजन के अलावा और क्या सोच सकता है ? जिसके सिर पर छत नहीं है , वह ध्यान की बात कैसे समझ सकता है ? उनके कष्टों का समाधान करना ही उन्हें ध्यान की ओर ले जायेगा l " भगवान बुद्ध ने अपने उपदेशों को जीवन में उतारकर कर्म के माध्यम से व्यक्त किया l
22 August 2021
WISDOM ------
संत इमर्सन ने लिखा है ----- " युवावस्था में मेरे अनेक सपने थे l उन्ही दिनों मैंने एक सूची बनाई थी कि जीवन में मुझे क्या - क्या पाना है l इस सूची में वे सारी चीजें थीं , जिन्हे पाकर मैं धन्य होना चाहता था l स्वास्थ्य , सौंदर्य , सुयश , सम्पत्ति , सुख , इसमें सभी कुछ था l इस सूची को लेकर मैं बुजुर्ग संत थॉरो के पास गया और उनसे कहा ---- " क्या इस सूची में मेरे जीवन की सभी उपलब्धियां नहीं आ जातीं हैं ? " उन्होंने मेरी बातों को ध्यान से सुना फिर बोले ---- " मेरे बेटे ! तुम्हारी यह सूची बड़ी सुन्दर है l बहुत विचारपूर्वक तुमने इसे बनाया है l फिर भी तुमने इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात छोड़ दी , जिसके बिना सब कुछ व्यर्थ हो जाता है l " मैंने पूछा ---- " वह क्या है ? " उत्तर में उन अनुभवी वृद्ध संत ने मेरी सम्पूर्ण सूची को बुरी तरह से काट दिया और उसकी जगह उन्होंने केवल एक शब्द लिखा ----- ' शांति l ' वर्तमन स्थिति में पद - प्रतिष्ठा , धन - वैभव सब चाहते हैं , इसी के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते हैं , लेकिन ' शांति ' कोई नहीं चाहता l यही कारण है कि संसार में युद्ध , उन्माद , उत्पीड़न , पर्यावरण प्रदूषण , तनाव , अपराध की अधिकता है और आश्चर्य तो ये है कि लोगों को इसी में आनंद आता है , स्वार्थ और लालच हावी है l इस स्थिति में सुधार चाहने वाले बहुत ही कम लोग हैं l जब ऐसे लोगों की अधिकता होगी जिनके मन शांत हैं , तो वे अपने मन की शांति से आसपास के वातावरण को भी शांतिपूर्ण बना सकेंगे l
21 August 2021
WISDOM-------
एक महिला ने शिकागो के प्रसिद्द शिक्षा शास्त्री फ्रांसिस वेलैंड पार्कर से यहाँ पूछा ---- " वह अपने बच्चे की शिक्षा कबसे प्रारम्भ करे ? " पार्कर ने पूछा ---- " आपका बच्चा कब जन्म लेगा ? " महिला ने बताया ----- " वह तो पांच वर्ष का हो गया l " पार्कर ने कहा ----- " क्षमा करें मैडम l अब पूछने से क्या फायदा l शिक्षा का सर्वोत्तम समय तो पांच वर्ष तक ही होता है , उसे आपने यों ही गँवा दिया l यदि आपने जन्म देने से पूर्व ही शिक्षा की व्यवस्था कर ली होती तो अब तक वह एक सुयोग्य नागरिक के लघु संस्करण के रूप में विकसित हो गया होता l "
WISDOM ------
मनुष्य के भीतर देवता और दानव दोनों है , अपने भीतर की असुरता को प्रकट करना और बढ़ाना बहुत सरल है और यह क्षणिक सुख व अहंकार को पोषण भी देता है मनुष्य होकर भी अपनी पाशविकता को प्रकट करने के लिए कोई कारण चाहिए और वह है --- धर्म ' l धर्म की आड़ में लोग कितने दंगे - फसाद , हत्या , उत्पीड़न कर लोगों को जीतना , अपनी इच्छानुसार चलाना चाहते हैं l दिन तो वही 24 घंटे का होता है लेकिन इन नकारात्मक कार्यों के लिए लोगों के पास कितना वक्त है ? इसमें से थोड़ा सा भी वक्त लोगों के दिल जीतने में लगाएं तो इतिहास में नाम अमर कर लें l जो इस सत्य को जानते हैं वे न केवल मनुष्यों बल्कि ईश्वर का भी दिल जीत लेते हैं l -------- एक बार खलीफा हजरत उमर बैठे हुए थे l उन्होंने देखा आसमान से एक फरिश्ता मोटी सी किताब लिए हुए जा रहा है l उन्होंने फ़रिश्ते को बुलाया और पूछा कि इस किताब में क्या लिखा है ? फ़रिश्ते ने कहा ---- इस किताब में उन लोगों के नाम लिखे हैं जो खुदाबंद करीम की इबादत करते हैं l हजरत उमर ने कहा --- दिखाना , इसमें हमारा नाम भी लिखा है क्या ? जब देखा तो उसमें उनका नाम नहीं था l उन्हें बड़ा दुःख हुआ , वे रोने लगे कि हमने दुनिया को सुखी बनाने का काम किया , फिर भी हमारा नाम नहीं है l थोड़े दिन बाद एक और फरिश्ता आसमान में किताब ले जाता दिखा l हजरत उम्र ने फ़रिश्ते को बुलाया और पूछा कि इसमें किसके नाम लिखे हैं ? फ़रिश्ते ने कहा ---- इस किताब में उन लोगों के नाम लिखें हैं जिनकी इबादत स्वयं खुदाबंद करीम करते हैं l उन्होंने कहा कि देखें इसमें किसके नाम है , देखा तो उसमे सबसे ऊपर हजरत उमर का नाम था l उन्होंने प्रसन्नता और आश्चर्य से पूछा --- खुदा मेरी इबादत , मेरा ध्यान किसलिए करते हैं ? फ़रिश्ते ने कहा --- क्योंकि तुम ने दूसरों के कष्ट को काम करने , उन्हें सुख देने और अपना जीवन नेक बनाने के लिए जिंदगी भर कार्य किया है l ऐसे ही लोगों को ईश्वर प्यार करते हैं , हर पल उनका ध्यान रखते हैं l
18 August 2021
WISDOM -----
विद्वानों का कहना है पहले हम जंगली अवस्था में थे , धीरे - धीरे विकास कर हम आज सभ्य युग में पहुंचे हैं l जो सभ्यता के इस युग में अपने को दूसरों से ज्यादा सभ्य समझते हैं वे शेष सब को अपने ही जैसा बनाना चाहते हैं l दूसरे को बर्दाश्त न कर पाने के कारण ही परिवार में , समाज में , सारे संसार में लड़ाई - झगड़े और युद्ध होते हैं l पहले शक्तिशाली लाव - लश्कर लेकर दूसरे देशों पर आक्रमण करते थे , वहां से लूटमार कर अपार धन - सम्पदा अपने देश ले जाते थे , अपने देश को संपन्न बनाते थे लेकिन अब मनुष्य सभ्य हो गया है वह दूसरे देशों को आक्रमण कर के नहीं लूटता l अब यह कार्य सभ्य तरीके से होता है लेकिन मार - काट , हत्या , अपराध , उत्पीड़न आदि की पुरानी आदतें जो संस्कार में तब्दील हो गईं हैं , ऐसे शौक को वह अपने ही देश में , अपने ही लोगों से पूरा कर लेता है l सभ्यता के इस युग में संसार के लगभग सभी देशों में हत्या , अपराध , बच्चों , और महिलाओं पर अत्याचार , धार्मिक स्थलों को तोडना , साम्प्रदायिक दंगे - फसाद की घटनाएं बढ़ गईं हैं l ये सब आपराधिक घटनाएं विभिन्न देशों में आंतरिक स्तर पर होती है , दूसरे देश के लोग आकर ये सब नहीं करते l आज संसार के सामने प्रश्न चिन्ह है --- क्या हम सभ्य हैं ? क्यों आत्महत्या , तनाव , पागलपन के आकड़े सभ्य और संपन्न में ज्यादा बढ़ते हैं l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने लिखा है ---- स्वयं को सभ्य और उत्कृष्ट बनाने के जो भी उपाय किए हैं , वे सब शारीरिक और मानसिक स्तर पर ही किए गए हैं , मानवी सत्ता का मूल रूप चेतना है , चेतना के स्तर को ही ऊँचा उठाने का प्रयास किया जाना चाहिए l उसके बिना केवल कायिक - मानसिक विकास होने से चतुर , चालाक , अहंकारी , आततायी रावण , कुम्भकरण , हिरण्यकशिपु , भस्मासुर , वृत्रासुर जैसे दानवों की बिरादरी ही पनपेगी l " ईश्वर ने मनुष्य को चयन की स्वतंत्रता दी है l संसार के विचारशील वर्ग को ही चयन करना है की हमारे सभ्य कहलाने का पैमाना क्या हो l एक और धन - वैभव , भौतिक सुख - सुविधाओं के साथ तनाव , अशांति , मनोरोग आदि हैं तो दूसरी ओर सात्विकता , शांति , आनंद है l
16 August 2021
WISDOM -------
श्रीमद भगवद्गीता में भगवान कृष्ण ने कर्तव्य कर्म को ही श्रेष्ठतम कहा है l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----- ' प्रकृति हमारे लिए जिस कर्तव्य का चयन करती है , उसका विरोध करना व्यर्थ है l हमारी उन्नति का एकमात्र उपाय यह है कि हम पहले वह कर्तव्य करें , जो काल द्वारा हमारे सम्मुख प्रस्तुत कर दिया गया है l यदि कोई मनुष्य छोटा कार्य करे , तो उसके कारण वह छोटा नहीं कहा जा सकता l कर्तव्य के मात्र बाहरी रूप से ही मनुष्य की उच्चता - नीचता का निर्णय ठीक नहीं है , देखना यह होगा कि वह अपना कर्तव्य किस भाव से करता है l शास्त्र में एक कथा आती है ------- एक संत ने अनेक वर्षों तक तप कर सिद्धि प्राप्त की , अपने ज्ञान का , तप का उन्हें बड़ा अहंकार हो गया l तब आकाशवाणी हुई कि तुम ज्यादा ज्ञानी और ईश्वर का भक्त वह व्याध है l संत को बड़ा आश्चर्य हुआ कि मांस काटने - बेचने वाला ज्ञानी कैसे हो सकता है l संत उससे मिलने पहुंचे , वह मांस बेच रहा था उसने कहा ---- थोड़ी देर प्रतीक्षा करो , मैं काम समाप्त कर आता हूँ l संत ने देखा कि उसका ग्राहकों से बहुत मधुर व्यवहार है , नाप - तौल में ईमानदारी है l काम समाप्त कर वह संत के साथ घर आया और उन्हें बैठाकर वह अंदर गया , अपने वृद्ध माता - पिता को स्नान कराया , भोजन कराया फिर उस संत के पास आया l संत ने उससे आत्मा - परमात्मा के प्रश्न पूछे , उसने सभी का उत्तर व उपदेश दिया l तब संत ने कहा ---- ' इतना ज्ञानी होते हुए तुम इतना घृणित व कुत्सित कार्य क्यों करते हो ? व्याध ने कहा ----- " कोई भी कार्य निन्दित अथवा अपवित्र नहीं है l मैं जन्म से ही इस परिस्थिति में हूँ , यही मेरा प्रारब्धजन्य कर्म है , कर्तव्य होने के नाते मैं इसे ईमानदारी व सच्चाई से करता हूँ , मेरा कर्तव्य ही पूजा है , उपासना है l गृहस्थ होने के नाते मैं परिवार के प्रति अपने कर्तव्य का पालन करता हूँ , माता - पिता की सेवा करता हूँ l मैं कोई संन्यासी नहीं हूँ लेकिन अनासक्त भाव से कर्म करता हूँ l यह सब देख - सुन कर संत को समझ में आया कि कर्मफल में आसक्ति रखे बिना यदि कर्तव्य उचित रूप से किया जाये तो उससे भगवान की कृपा , उनका संरक्षण प्राप्त होता है l
15 August 2021
WISDOM -----
गुलामी भी कई प्रकार की होती है और गुलामी से मुक्ति तभी संभव है जब हम जागरूक हों , हमारा विवेक जाग्रत हो l कम - से -कम हमें यह एहसास तो हो कि हम गुलाम हैं l हम युगों तक गुलाम रहे l राजनैतिक गुलामी तो स्पष्ट है l जमीदारों , सामंतों के अत्याचार , सामाजिक कुप्रथाएं , जाति और धर्म के नाम पर अत्याचार , ये सब यंत्रणाएँ किसी गुलामी से कम नहीं थीं l जैसे - जैसे हम जागरूक हो रहे हैं वैसे - वैसे हमें ऐसी गुलामी से मुक्ति मिल रही है l अभी तक ये जो विभिन्न प्रकार की गुलामी थी इसमें स्पष्ट था कि अत्याचार करने वाला और उसे सहन करने वाला कौन है l इस कारण अत्याचार करने वालों को इतिहास में सम्मान नहीं मिला l इन सबसे बढ़कर मनुष्य अपने मानसिक विकारों --- काम , क्रोध , लोभ , मोह का , स्वार्थ , अहंकार , महत्वकांकक्षा जैसी दुष्प्रवृतियों का गुलाम है l अपने से कमजोर को सताना , शोषण और अत्याचार करना -- यह भी एक नशा है इससे शक्तिशाली का अहंकार तृप्त होता है l सभ्यता के विकास के साथ - साथ विभिन्न कार्यों के तरीके रिफाइंड होते है l एक लघु कथा है ----- एक राजा था , अपार धन - सम्पदा थी उसके पास l उसके मंत्रियों ने सलाह दी , इतनी शक्ति है दूसरे राज्यों पर अधिकार कर लो , l राजा समझदार था , उसने कहा , बेजान भूमि को जीतने से क्या होगा , हम वहां के लोगों के सामाजिक और उनके व्यक्तिगत जीवन पर , यहाँ तक कि उनके मन पर अपना नियंत्रण चाहते हैं l वे हमारे हर आदेश का पालन करें , उनका उठना , बैठना , चलना - फिरना सब कुछ हमारी इच्छानुसार हो , उनमे विद्रोह की , सही -गलत समझने की शक्ति भी न रहे , यह देखकर ही हमें सुकून मिलेगा l इस कार्य के लिए दूर - दूर से विशेषज्ञ बुलाए गए l अनेक तरीकों से समाज के प्रबुद्ध और संपन्न लोगों पर अपना नियंत्रण किया , विशाल जनसँख्या को अपनी इच्छानुसार चलाना कठिन समस्या है , इसके लिए यह प्रयास किया कि अपनी बात का इतना प्रचार -प्रसार करो कि लोगों का ब्रेनवाश हो जाये , उनकी चेतना सुप्त हो जाये , जिससे हर आदेश को वे बिना किसी विरोध के स्वीकार करें l बिना किसी युद्ध , बिना किसी खून - खराबे के विशाल जनसँख्या को अपने अधीन करने का सुकून उसे मिला l --- इस कथा से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हम अपने मन पर अपना नियंत्रण रखें , यदि हमारी कमजोरियों का फायदा उठाकर किसी दूसरे ने उस पर अपना नियंत्रण कर लिया तो हमारा जीवन अर्थहीन हो आएगा l
14 August 2021
WISDOM -------
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " जन भावनाओं का दमन वह भी आतंक के बल पर कोई भी सरकार सफल नहीं रही है l इतिहास इस बात का साक्षी है l मन की पाशविक प्रक्रिया विद्रोह की आग को कुछ क्षणों के लिए भले ही कम कर दे , परन्तु वह अंदर ही अंदर सुलगती रहती है और जब विस्फोट होता है तो बड़ी से बड़ी संहारक शक्तियां और साम्राज्य ध्वस्त हो जाते हैं l शताब्दियों से भारतीय समाज पर किए जाने वाले अत्याचारों की प्रतिक्रिया अंदर ही अंदर सुलगती रही l " इसी का परिणाम था कि देश का बच्चा - बच्चा स्वतंत्रता के लिए व्याकुल हो उठा l आचार्य श्री लिखते हैं ---- ---- " जीवन साधना की सफलता तो उसे ही मिलती है जो निष्काम , निस्स्वार्थ भाव से और यश कामना से अत्यंत दूर रहकर केवल ऊँचा लक्ष्य देखता है , ऊँचा लक्ष्य सोचता है और ऊँचे लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अपना जीवन न्योछावर कर देता है l " महान शहीद सरदार भगतसिंह के चाचा सरदार अजीतसिंह कहा करते थे ------ " बड़े वरदान बड़ी तपस्या से मिलते हैं l त्याग और बलिदान देते हुए जिनके चेहरों पर शिकन नहीं आती वे एक दिन जरूर सफलता से द्वार तक पहुँचते हैं l यदि मेरा विश्वास सच है तो उस दिन अपनी धरती पर पैर रखूँगा जब वह विदेशी शासन से स्वतंत्र हो जाएगी l " 40 वर्ष तक विदेशों में भारतीय स्वतंत्रता की अलख जगाने वाले सरदार अजीतसिंह ने 15 अगस्त के दिन जब स्वतंत्रता का सूर्य उदय हो रहा था अपनी इहलीला समाप्त की l मृत्यु के समय उन्होंने दोनों हाथ जोड़े और कहा ----- " ऐ रब ! तैनूँ लाख - लाख धन्यवाद कि तैनूँ साडी साधना नूं सिद्धि दे दी : ( हे परमात्मा ! तुझे लाख - लाख धन्यवाद कि तूने मेरी साधना को सिद्धि दे दी l " यह कहकर उन्होंने अपनी आँख मूँद ली l ) ""
13 August 2021
WISDOM------
शिष्य मंडली ने भगवान बुद्ध से पूछा ---- " मनुष्य के कितने वर्ग हैं ? " तथागत ने उत्तर दिया ---- " एक वे जो अपना ही लाभ देखते हैं , भले ही इससे दूसरे को कितनी ही हानि उठानी पड़ती हो l दूसरे वे जो औरों का भला करते हैं l तीसरे वे जो अपना भी भला करते हैं और दूसरों का भी l चौथे वे जो प्रमादी हैं , जो न स्वयं सुखी रहते हैं , और न दूसरों को सुखी रहने देते हैं l " तथागत ने आगे कहा ---- " मेरी समझ में वे श्रेष्ठ हैं , जो अपना भी भला करते हैं और साथ - साथ दूसरों का भी l "
11 August 2021
WISDOM ------
कहते हैं ' सत्ता का नशा संसार की सौ मदिराओं से भी बढ़कर है l ' जब ये नशा चढ़ जाता है तो सत्ताधारी फिर चाहे वह किसी भी देश का हो , साम , दाम , दंड , भेद किसी भी तरीके से वह अपनी गद्दी को बचाने का प्रयास करता है l व्यक्ति संसार के किसी भी कोने में हो , काम , क्रोध , लोभ , मोह , अहंकार , अति महत्वाकांक्षा जैसे मानसिक विकारों के आगे विवश हो जाता है कि इनका परिणाम क्या होगा ? यह सोच ही नहीं पाता l विभिन्न देशों का इतिहास इसी की कहानी है l ------- बात उस समय की है जब रूस में जार का शासन था l वहां के प्रधान अधिकारी अपने लाभ के लिए ख़राब काम करने में भी नहीं हिचकिचाते थे l जब लेनिन के प्रचार कार्यों के फलस्वरूप मजदूर , किसान आदि जागरूक हो गए और जगह - जगह हड़ताल , आंदोलन , सभाएं प्रदर्शन आदि होने लगे l जब सरकार इनको सीधी तरह रोक नहीं सकी तो जार के सलाहकारों ने उसे सलाह दी कि श्रमजीवियों और गरीबों को धर्म के नाम पर भड़का कर यहूदियों से लड़वा देना चाहिए जिससे उनका ध्यान शासन और सरकारी नियमों की बुराइयों की तरफ से हट जायेगा और यहूदियों का भी सफाया हो जायेगा l जार और उनके सलाहकार कितने निरंकुश व अत्याचारी थे इसका नमूना जार के प्रधान मित्र कप्तान जनरल ट्रेयोन के भाषण के एक अंश से जाना जा सकता है ------- " वे आंदोलन करते हैं , उनको गोली से उड़ा दो l मजदूर लोग राज्य क्रांति करना चाहते हैं , उनमे थोड़े से पुलिस के भेड़ियों को नकली क्रांतिकारी बनाकर शामिल कर दो , वे तुरंत ही तुम्हारे जाल में फंस जायेंगे l l " इस योजना के अनुसार महिलाओं , बच्चों व यहूदियों पर बहुत अत्याचार हुए l जार के एक मंत्री ने तो यह सलाह भी दे डाली कि विदेशी शक्ति के साथ युद्ध छेड़ दो ताकि जनता का ध्यान उधर आकर्षित हो जाये और इस बीच आंदोलन को कुचल दो ----------------- " ---- राजनीतिक क्षेत्र में अनुचित महत्वाकांक्षा व्यक्ति और समाज दोनों के पतन का कारण होती है l "
10 August 2021
WISDOM ------
कहते हैं प्रार्थना में , भगवान के नाम स्मरण में बहुत शक्ति है l इससे ईश्वर प्रसन्न होते हैं लेकिन मनुष्य को मिलता वही है जैसी उसकी प्रवृति होती है l कलियुग का एक लक्षण है कि लोग केवल दिखावे के लिए भगवान का नाम लेते हैं , उनके आचरण पवित्र नहीं है l ईश्वर हमारे अंतर्मन , हमारी भावनाओं को समझते हैं और उसी के अनुरूप परिणाम मिलता है l ईश्वर का नाम लेने से वे सुनते अवश्य हैं , लेकिन भावनाएं कलुषित होने के कारण प्रकृति में यही सन्देश जाता है कि इन लोगों को झगड़ा , तनाव आदि नकारात्मकता ही पसंद है इसलिए प्रकृति मनुष्य की पसंद के अनुसार उसे तनाव , बीमारी , महामारी , आपदा जैसे सामूहिक दंड देती है l हमें भक्ति साधना नारद जी से सीखनी चाहिए जो सच्चे भक्त होते हैं उन्हें भगवान पतन के गर्त में गिरने से बचाते हैं l एक कथा है ------- एक बार नारद जी को कामवासना पर विजय पाने का अहंकार हो गया था l उन्होंने उसे भगवान विष्णु के सामने भी अभिमान सहित प्रकट कर दिया l अहंकार पतन का कारण होता है इसलिए भगवान ने सोचा कि भक्त के मन में अहंकार नहीं होना चाहिए l भगवान ने माया रची ---- नारद जी ने देखा कि एक बहुत सुरम्य और बड़े नगर के राजा की अति सुन्दर विश्वमोहिनी पुत्री का स्वयंवर है l उसे देखकर नारद जी के मन में यह इच्छा बलवती हो गई कि वे उस कन्या से विवाह कर लें l वे सोचने लगे कि कन्या तो इतनी सुन्दर है और उनका रूप ? वो उनके गले में वरमाला कैसे डालेगी ? नारद जी तो सच्चे भक्त थे वे विष्णु भगवान के पास गए , अपनी इच्छा बताई और कहा कि कुछ समय के लिए वो अपना सुन्दर रूप उन्हें दे दें , जिससे उनका विवाह उस राजकन्या से हो जाये l भगवान तो बहुत दयालु होते हैं , उनने कहा --- ' तथास्तु ' l अब नारद जी बड़े - बड़े क़दमों से अति प्रसन्न होकर स्वयंवर भूमि पहुंचे l सब लोग नारद जी की शक्ल देखकर मुस्करा रहे थे , भगवान ने उन्हें बन्दर का रूप दे दिया था l राजकन्या ने भी उनका बन्दर सा मुख देखकर मुँह फेर लिया और मनुष्य के वेश में आए भगवान विष्णु के गले में जयमाला डाल दी l नारद जी को सबके व्यवहार पर आश्चर्य हुआ कि उनके सुन्दर रूप पर भी लोग ऐसे हँस रहे हैं , उन्होंने पानी में अपनी शक्ल बन्दर जैसी देखी तो उन्हें भगवान पर बहुत क्रोध आया और उन्होंने भगवान को श्राप दे डाला l अब भगवान ने अपनी माया समेट ली l अब वहां न महल था , न राजकन्या l नारद जी की आँखें खुली की खुली रह गईं , उन्होंने भगवान से क्षमायाचना की और पूछा कि आपने मुझे बन्दर का रूप क्यों दे दिया , मना कर देते l भगवान ने कहा --- कामवासना पर विजय संभव नहीं है , लेकिन तुम्हे अहंकार हो गया था , उसे मिटाने के लिए ही यह माया रची l भगवान अपने भक्त की केवल बाहरी शत्रु से ही नहीं आंतरिक शत्रुओं से भी रक्षा करते हैं l कोई व्याकुल रोगी वैद्य से कुपथ्य मांगे तो वैद्य उसके जीवन की रक्षा के लिए उसे कुपथ्य कभी नहीं देगा l '