3 August 2019

WISDOM -----

 संस्कृत  भाषा  में  एक  सुभाषित  है  कि  ' धनवान  अथवा  राजा  तो  अपने  देश  में  ही  पूजा  जाता  है  l ' पर  विद्वान्  सर्वत्र  पूजनीय  होता  है  l  जिन  दिनों  भारत  गुलाम  था  और  गोरी  जातियां  भारतीयों  को  उपेक्षित  और  अपमानित  करती  थीं  उस  समय  भी  विश्व कवि  रवीन्द्रनाथ टैगोर   विश्व भ्रमण  पर  जिस  भी  देश  में  गए  उन्हें  राजा - महाराजाओं  जैसा  सम्मान  मिला  l  उस  समय  की  ब्रिटिश  सरकार  ने  उन्हें  'सर '  अथवा  ' नाइट '  की  उपाधि  दी  l
  विश्व  कवि    भारत वासियों  पर  होने  वाले  सरकारी  अन्याय  का  खुलकर  विरोध  करते  थे  l  ' जब  जलियांवाला  बाग  का  हत्याकांड  हुआ  तब  उन्होंने  ' सर ' की  पदवी  को  वापस  कर  दिया  l   इस  अवसर  पर  उन्होंने  वाइसराय लार्ड  चेम्सफोर्ड  को  एक  लम्बा  पत्र  लिखा  ,  जिसमे  कहा  गया  ---- "  हमारी  आँखें  खुल  गईं  हैं  कि  हमारी  अवस्था  कैसी  असहाय  है  l  अभागी  भारतीय  जनता  को  इस  समय  जो  दंड  दिया  गया   उसका  उदाहरण  किसी  सभ्य  सरकार  के  इतिहास  में  नहीं  मिल  सकता  l  पर  हमारे  शासक  इस  कृत्य  के  लिए  अपने को  शाबाशी   दे  रहे  हैं  कि  उन्होंने  भारत वासियों  को  अच्छा  सबक  सिखा  दिया  l  अधिकांश  ऐंग्लो इंडियन  समाचार  पत्रों  ने  इस  निर्दयता  की  प्रशंसा  की  है   और  उनमे  से  कुछ  ने  तो  पाशविकता  की  सीमा  पर  पहुंचकर  हमारी  यातनाओं  का  उपहास  भी  किया  ---- जनता  के  साथ  सहानुभूति  रखने  वाले   भारतीय  समाचार  पत्रों  का  गला  दबाया  l   इस  अवसर  पर  कम  से  कम  इतना  तो  कर  ही  सकता  हूँ  कि  अपने  उन  करोड़ों  देशवासियों  की  विरोध  की  भावना  को  व्यक्त  करूँ , जो  आतंक  और  भय  के  कारणचुपचाप  सरकारी  दमन  को  सह  रहे  हैं  l  सरकार  द्वारा  प्रदत्त  ' सम्मान  के  पट्टे ' राष्ट्रीय  अपमान  के  साथ  मेल  नहीं  खाते  l  अत:  मैं  विवश  होकर  सादर  प्रार्थना  करता  हूँ  कि  आप  मुझे  ' सम्राट  की  दी  हुई  नाईट  की  उपाधि से  मुक्त  कर  दें  l  "  महाकवि  ने  यह  दिखला  दिया  कि  जहाँ  मानवता  और  राष्ट्रीयता  का  प्रश्न  उपस्थित  हो  ,  वहां  प्रत्येक  क्षेत्र  के  व्यक्ति  को  आगे  बढ़कर  अन्याय  का  विरोध  कर   अपना  दायित्व  निभाना  चाहिए  l