22 November 2020

WISDOM ----- सत्ता का नशा संसार की सौ मदिराओं से भी बढ़कर है

   ऐश्वर्य  और  सत्ता  का  मद   जिन्हे  न  आए   ऐसे  विरले  ही  होते  है  l   इसके  नशे  में  व्यक्ति  वह  कामना  भी  करने  लगता  है   जिस  पर  उसका  कोई  हक  नहीं  है  l   हमारे  पुराणों  में  अनेक  कथाएं  हैं  जो  हमें  शिक्षा  देती  हैं   कि   सफल  होने   पर    हमें    सफलता  के  मद  में  नहीं  डूबना  चाहिए ,  विवेकपूर्ण  तरीके  से  जीवन  जीना  चाहिए  ------  राजा  नहुष  को  पुण्यफल  के  बदले  इंद्रासन   प्राप्त  हुआ  l  स्वर्ग  का  वैभव  पाकर  वे  भोग - विलास  में  लिप्त  हो  गए   l   उनकी  दृष्टि  रूपवती  इन्द्राणी  पर  पड़ी  l  वे  विचार  करने  लगे  कि  जब  वे  इंद्रासन   पर  हैं  तो  इंद्राणी   को   अपने   अंत:पुर  में   ले  आएं  l  इस  आशय  का  प्रस्ताव  उन्होंने  इंद्राणी   के  पास  भेजा  l    राजाज्ञा  के  विरुद्ध   खड़े  होने  का  साहस  उन्होंने  अपने  में  नहीं  पाया   तो  देवगुरु  से   परामर्श किया   तो  उन्होंने  इस  संबंध   में  बहुत  होशियारी , विवेक  और  धैर्य  से  काम  लेने  को  कहा  l  इंद्राणी   ने  नहुष  के  पास  संदेश   भिजवाया  कि   यदि  वे  सप्त ऋषियों  को  पालकी  में  जोतें   और  उस  पर   चढ़कर   मेरे  पास  आएं   तो  मैं  उनका  प्रस्ताव  स्वीकार  कर  लूंगी  l   आतुर  नहुष  ने  अविलंब   वैसी  व्यवस्था  की  ,  ऋषि  पकड़  बुलाए   और  उन्हें  पालकी   में  जोत   दिया   और  नहुष   पालकी  पर  चढ़  बैठे  l   उनके  लिए  तो  एक - एक  पल  एक  युग  के  समान   था  ,  ऋषियों  को  बार -बार  हड़काने  लगे --- 'जल्दी चलो --- जल्दी  चलो  !   दुर्बलकाय  ऋषि  इतनी  दूर  तक   इतना  बोझा  ढोने   में  समर्थ  न  हो  सके  l   अपमान  और  उत्पीड़न  से  क्षुब्ध   हो  उठे   और  एक  ने  कुपित  होकर  शाप   दे दिया  --" दुष्ट  ! तू  स्वर्ग  से  पतित  होकर  , पुन:  धरती  पर    सर्प   योनि   में   जा  गिर  "  बेचारे  नहुष   धरती  पर  दीन - हीन   की  तरह  विचरण  करने  लगे  l   सत्पुरुषों  का  तिरस्कार  करने  और  उन्हें  सताने    से   नहुष    की  दुर्गति  हुई  l