18 July 2022

WISDOM --------

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- ' स्रष्टि  के  आदिकाल   से  लेकर  अब  तक  धर्म  को   अनेक  बार  संकटों  का  सामना  तो  अवश्य  करना  पड़ा  है   लेकिन  पराजय  हमेशा  अधर्म  की  हुई है    और  आगे  भी  ऐसा  ही  कुछ  होगा   l  "    ' श्रीराम   की  भक्ति  साधना  '  में  आचार्य श्री  लिखते  हैं ---- "   रावण  के   के  साथ  असुर , दानव , दैत्य , राक्षस  सभी  संगठित  थे   l  रावण  के  पास  शस्त्रबल , शास्त्र बल ,  बुद्धिबल , तपोबल  था  l  यहाँ  तक  कि  देवी    निकुम्भिला   के  साथ   महादेव  और  ब्रह्मदेव  के  वरदान   भी  उसकी  रक्षा  कर  रहे  थे   l  उसका  राजनीतिक  कौशल  अकाट्य  व  अचूक  था  l  उसने  सम्पूर्ण  भारत भूमि  में  अपनी  चौकियाँ  और  छावनियाँ   स्थापित  कर  दी  थीं   l                                           इतना  सब    होते  हुए  उसके  पास   एक  बल  की  कमी  थी    और  वह  था  -----  'धर्म बल  '  l    इस  बल  के  बिना  वह  बलहीन  था    l    वह  अधर्मी  था  l    विद्वान् , प्रज्ञावान ,  प्रखर  प्रतिभावान  होने  की  सामर्थ्य  का  वह  दुरूपयोग  कर  रहा  था   l     रावण  की   महत्वाकांक्षा  केवल  राजनीतिक  नहीं  थी  ,  वह  बड़ी  योजनाबद्ध   रीति  से    संस्कृति    को   विकृत  करने   में  लगा  था   l  आर्य  संस्कृति  को  राक्षस  संस्कृति  में   रूपांतरित  करने  की   बड़ी  कलुषित  और  कुत्सित  कोशिश  थी  उसकी   l  वानर राज  बालि  अति  बलवान  था  ,   लेकिन  रावण  ने  बड़ी  कुशलता  और  चतुरता  से  बालि  और  सुग्रीव  दोनों  भाइयों  में  द्वेष  की  दरार  पैदा  कर  बालि  को  अपने  वश  में  कर  लिया   l   और  दुन्दुभी  राक्षस  को   बड़े  यत्नपूर्वक  किष्किन्धा  के  पास  स्थापित  कर  दिया    ताकि  किष्किन्धा  की  गोपनीय  सूचनाएं   उस  तक  पहुँचती  रहे    l    छल पूर्वक  साधू  का  वेश  धरकर  उसने  माता  सीता  का  अपहरण  किया   l  दसों  दिशाओं  में  उसका  आतंक  था   l  इसीलिए  भगवान  श्रीराम  ने  धर्म  की  शक्तियों  को  संगठित  कर   रावण  का  ,  उसके  अहंकार  का  अंत  किया  l  '