इस संसार में आरम्भ से ही देवता और असुरों में संघर्ष चला आ रहा है l असुर भी सामान्य मनुष्य की तरह ही होते हैं , उनके कहीं कोई सींग , विशेष आकृति नहीं होती l वास्तव में असुरता एक प्रवृत्ति है l कैसे समझें की असुरता कहाँ है ? पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " ज्ञान , शक्ति और सामर्थ्य का जहाँ दुरूपयोग हो रहा है , वहीं असुरता है l " आचार्य श्री लिखते हैं --- " ज्ञान का अर्जन दुर्लभ है , परन्तु उसका समुचित उपयोग अति दुर्लभ है l इस स्रष्टि में प्रतिभा की , कला की , विद्या -ज्ञान -शक्ति और सामर्थ्य की कोई कमी नहीं है l असुरों से श्रेष्ठ तपस्वी इस संसार अन्यत्र कहीं नहीं है लेकिन उनका सारा ज्ञान , उनकी समूची सामर्थ्य उनके अहंकार की तुष्टि और भोग -विलास के साधन जुटाने में खप रही है l " आज संसार में ज्ञान , शक्ति और सामर्थ्य का ही दुरूपयोग हो रहा है , सारे संसार में असुरता का बोलबाला है , देवत्व तो कहीं छिप गया है l अब असुर ही आपस में लड़ रहे हैं l असुरों के पास ज्ञान है , धन संपदा अथाह है लेकिन दया , करुणा , संवेदना आदि सद्गुणों की कमी है इसलिए वे आपस में ही लड़ रहे हैं l आज संसार की सबसे बड़ी जरुरत ' सद्बुद्धि ' की है l सद्बुद्धि होगी तो लड़ाई -झगड़े , वैर -भाव सब समाप्त हो जाएंगे l