सज्जनता ,नम्रता,उदारता ,सेवा ,आदि सद्गुणों के साथ व्यक्ति को निर्भीक और साहसी होना चाहिये अन्यथा सज्जन को लोग मूर्ख और दब्बू समझने लगतें हैं ।यह निर्भीकता और प्रखरता आती है ईश्वर विश्वास से ।ईश्वर विश्वासी व्यक्ति ही आत्मविश्वासी होता है ।एक कछुआ बीस मेढकों से भारी पड़ता है ।एक आत्मविश्वासी ,बीस गुत्थियों को एक साथ सुलझाने और बीस संकटों से पार जाने में समर्थ होता है ।
31 December 2012
30 December 2012
एक घंटे लगातार बोलने पर व्यक्ति इतना अधिक थक जाता है कि आठ घंटे तक शारीरिक श्रम किया जाता तो थकान नहीं आती क्योंकि वाणी का सीधा संबंध मस्तिष्क से है ।शारीरिक क्रिया -कलापों में जिन कार्यों में सर्वाधिक मानसिक शक्ति खर्च होती है वह वाणी ही है ।इसलिये मौन की गणना मानसिक तप से की गयी है ।मौन का अर्थ है आन्तरिक -बाह्य क्रियाओं का अपने पर प्रभाव न होने देना ,स्वयं को उनसे निरपेक्ष रखने का नाम मौन है ।सत्य नि:शब्द होता है और कुछ प्रश्नों के उत्तर केवल मौन में दिये जा सकते हैं ।
29 December 2012
27 December 2012
PATIENCE
सब्र ज़िन्दगी के मकसद का दरवाजा खोलता है ,क्योंकि सिवाय सब्र के उस दरवाजे की कोई कुंजी नहीं है ।जो मनुष्य सुद्रढ़ता से धैर्य का आँचल थाम लेते हैं वे फिर जीवन के ऐसे गड्ढे में नहीं गिर सकते कि जहां से उठ ही न सकें ।
23 December 2012
AMBITION
मनुष्य की एक मौलिक विशेषता है-महत्वाकांक्षा ।वह ऊँचा उठना चाहता है ,आगे बढना चाहता है।इस मौलिक प्रवृति को तृप्त करने के लिये कौन क्या रास्ता चुनता है ,यह उसकी अपनी सूझ -बूझ पर निर्भर करता है ।प्रगति का क्रम एवं प्रतिफल सही सुखद हो ,इसके लिये हर प्रयोजन के दूरगामी परिणामों पर विचार करना चाहिए और आतुरता से विरतरह कर यह अनुमान लगाना चाहिए कि अंतिम परिणति क्या होगी ।चासनी में पंख फंसा कर बेमौत मरने वाली मक्खी का नहीं ,पुष्प का सौन्दर्य विलोकन और रसास्वादन करने भौंरे का अनुकरण करना चाहिए ।बया घोंसला बनाती है और परिवार सहित सुखपूर्वक रहती है ।मकड़ी कीड़े फंसाने का जाल बनाती है और उसमे खुद ही उलझ कर मरती है ।
18 December 2012
जीवन की समस्याओं को सुलझाने और वांछित उपलब्धियों से जीवन को विभूषित करने के लिये अपने व्यक्तित्व को स्वच्छ .सुथरा बनाने की कला का नाम जीवन जीने की कला है ।मन;स्थिति ही परिस्थितियों की निर्मात्री है ।यदि मनुष्य चाहे तो हजार प्रतिकूलताओं से जूझकर स्वयं के माध्यम से अपने लिये वैसा ही वातावरण बना सकता है जैसा वह चाहता है ।इमर्सन ने कहा था कि "मुझे नरक में भी भेज दिया जाय तो मैं अपने लिये वहां भी स्वर्ग बना लूँगा "
17 December 2012
15 December 2012
POSSITIVE.........
परिष्कृत द्रष्टिकोण ही स्वर्ग है ।यदि सोचने का तरीका सकारात्मक होतो हर परिस्थिति में अनुकूलता सोची जा सकती है ।गुबरैला और भौंरा एक ही बगीचे में प्रवेश करते हैं और दो तरह के निष्कर्ष निकालते हैं _भौंरा फूलों पर मंडराता ,सुगंध का लाभ लेता और गुंजन गीत गाता है ।गुबरैला कीड़ा अपने स्वाभाव के अनुरूप गोबर की खाद के ढेर को तालाश लेता है और अपने दुर्भाग्य पर रोते हुए कहता है संसार में बदबू ही बदबू भरी पड़ी है ।
13 December 2012
JAP AUR DHYAN
गायत्री मंत्र के जप के साथ जब हम माँ का ध्यान करते हैं तो हमें अध्यात्म के साथ ही सांसारिक जीवन में भी सफलता मिलती है ।सफलता की मात्रा इस बात पर निर्भर है कि हमने कितना निष्काम कर्म किया और मन के विकारों को दूर करने का कितना प्रयास किया ।जगत माता को प्रसन्न करने के लिये इतना तो करना ही होगा ।
12 December 2012
DHYAN
ध्यान हमारा परमात्मा से मिलन है और यह मिलन इतना आसान नहीं ।ध्यान की शुरूआत निष्काम कर्म से होती है ।निष्काम कर्म से मन के विकार दूर होते हैं और मन निर्मल हो जाता है ।मन की चंचलता थमती है और निरंतर भागने वाला मन परमात्मा में लगने लगता है
11 December 2012
KRAPA
यह सारा आकाश ईश्वर केअनुदानों से भरा पड़ा है ।हमें ही पात्रता विकसित करनी है अपने भीतर की बुराइयों को दूर करके ही हम परमेश्वर की कृपा के पात्र बन सकते हैं ।
NISHKAM KARMA
गायत्री मंत्र के जप के साथ यह बहुत आवश्यक है कि हम निष्काम कर्म को अपनी दिनचर्या में सम्मिलित करें ।यह संसार ईश्वर की बगिया है ।इसे सुन्दर बनाने के लिये नि:स्वार्थ भाव किये गये कार्य से ही ईश्वर प्रसन्न होतें हैं ।
GAYTRI MANTRA
श्रद्धा और विश्वास के साथ समर्पण भाव से जब हम गायत्री महा मंत्र जपते हैं तो हमारे चारों ओर एक सुरक्षा कवच बन जाता है और फिर संसार की कोई भी ताकत हमारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकती बच्चा माँ की गोद में स्वयं को सुरक्षित महसूस करता है इसलिये जब गायत्री मंत्र के जप के साथ हम माँ को पुकारते हैं तो सबसे पह्ले माँ हमें अपने संरक्षण में ले लेती हैं
3 December 2012
phoolo ki.........
फूलो की सुगंध हवा के प्रतिकूल नहीं फैलती लेकिन सद्गुणों कीर्ति दसों दिशाओ में फैलती है चन्दन जाति का काठ है सर्पों से घिरा रहता है फिर भी अपने गुणों के कारण मस्तक में धारण किया जाता है पुष्प की तरह खिले चन्दन की तरह सुगन्धित बने तो भगवान भी सिर पर रखेंगे
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