16 April 2024

WISDOM ------

  पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ----- " बदला  जाए  द्रष्टिकोण   तो  इनसान  बदल  सकता  है  ,                     द्रष्टिकोण   में  परिवर्तन  से  जहान  बदल  सकता  है  l  यदि  हमारा  नजरिया , हमारा  द्रष्टिकोण  सकारात्मक  है   तो  जीवन  की  दिशा  ही  बदल  जाती  है  ,  जीवन  की  रंगत  निखरती  है    और  यदि  नजरिया  नकारात्मक  हो   तो   जीवन  की  दिशा  उस  गर्त  में  जाती  है   जहाँ  से  उबरना , निकलना   आसान  नहीं  होता  है  l  यह  निर्णय  हमें  लेना  है  कि  हमें  किस  नजरिए  को  अपनाना  है  l  महाभारत  में  जब  जुए  में  हारने  पर  पांडवों  को  वनवास  हुआ   तो  उन्होंने  इसका  दुःख  नहीं  मनाया , विलाप  नहीं  किया  ,  अपने  दुःख  के  लिए  किसी  को  दोष  नहीं  दिया  l  उन्होंने  इस  कठिन  समय  को  चुनौती  माना  और  तपस्या  कर  दिव्य  अस्त्र  प्राप्त  किए , अपनी  शक्ति  और  आत्मविश्वास  को   बढ़ाया   l  दूसरी  ओर  दुर्योधन  आदि  कौरव  राजमहल  में  सुख - भोग  में  रहे , उन्होंने  छल , कपट , षड्यंत्र  की  नकारात्मक  राह  का  चयन  कर  स्वयं  अपने  पतन  की  कहानी  लिख  ली  l    मनुष्य  का  जैसा  द्रष्टिकोण  होता  है   वह  उसी  के  अनुसार   जीवन  की  व्याख्या  करता  है  ,  उसी  के  अनुरूप  कार्य  करता  है   और  उसी  के  अनुसार  फल  भोगता  है  l    गुरु  द्रोणाचार्य  कौरव , पांडव  सभी  को  अस्त्र -शस्त्र  की  शिक्षा  देते  थे   l एक  बार  उनका  मन  दुर्योधन  और  युधिष्ठिर  की  परीक्षा  लेने  का  हुआ   , उन्होंने  राजकुमार  दुर्योधन  को   अपने  पास  बुलाकर  कहा --- " वत्स  ! तुम  समाज  में  अच्छे  आदमी  की  परख  करो   और  वैसा  एक  व्यक्ति  खोजकर   मेरे  सामने  उपस्थित  करो  l "   दुर्योधन  ने  कहा --- ' जैसी  आज्ञा '  l  और  वह  अच्छे  आदमी  की  खोज  में  निकल  पड़ा  l  कुछ  दिनों  बाद  दुर्योधन      आचार्य  के  पास  आकर  बोला  --- " गुरुदेव  ! मैंने  कई  नगरों  और  गांवों  का  भ्रमण  किया  , परन्तु  कहीं  भी  कोई   अच्छा  आदमी  नहीं  मिला  l  इस  कारण  मैं  किसी  को   आपके  पास  नहीं  ला  सका  l "    इसके  बाद  द्रोणाचार्य  ने  राजकुमार  युधिष्ठिर   को  अपने  पास  बुलाया   और  कहा --- " बेटा  !   तुम  कहीं  से  भी  कोई   बुरा  आदमी  खोजकर   ला  दो  l "   युधिष्ठिर   गुरु  की  आज्ञा  से  बुरे  आदमी  की  खोज  में  निकल  पड़े  l  काफी  दिनों  बाद  वे  लौटे  और  आचार्य  से  कहा ----" गुरुदेव  ! मैंने   सब  जगह  बुरे  आदमी  की  खोज  की  ,  पर  मुझे  कोई  भी  बुरा  आदमी  नहीं  मिला   l  इस  कारण  मैं  खाली  हाथ  लौट  आया  l "   शिष्यों  ने  पूछा  --- "   गुरुदेव  !  ऐसा  क्यों  हुआ  कि  दुर्योधन  को  कोई  अच्छा   आदमी  नहीं  मिला  और   युधिष्ठिर  कोई  बुरा  आदमी  खोज  नहीं  सके  l "  आचार्य  द्रोणाचार्य   ने  कहा  ---"  जो  व्यक्ति  जैसा  होता  है  ,  उसे  सारे  लोग  वैसे  ही  दिखाई  पड़ते  हैं   इसलिए  दुर्योधन  को  कोई   अच्छा  व्यक्ति  नहीं  दिखा  और  युधिष्ठिर  को   कोई  बुरा  आदमी  नहीं  मिल  सका  l "  वास्तव  में  हमें  संसार  वैसा  ही  दिखाई  देता  है  ,  जैसा  हमारा  देखने  का  नजरिया  होता  है  l