'  जो  राष्ट्र  केवल  अपने  समय  में  वर्तमान  में  ही  जीता  है ,  वह  सदा  दीन  होता  है ,  यथार्थ  में  समुन्नत  वही  होता  है  जो  अपने  अतीत  से  शिक्षा  लेकर   अपने  आपको   भविष्य  की  संभावनाओं  के  साथ   जोड़कर  रखता  है  l '
सिकंदर के समय ( ई. पू. चौथी सदी ) यूरोप में भारत और भारतीय संस्कृति का नाम काफी प्रसिद्ध था l वहां के लोग जानते थे कि भारत धन और ज्ञान का भंडार है l इसी प्रसिद्धि ने सिकंदर को भारत की ओर बढ़ने की प्रेरणा दी और इसी कारण वास्कोडिगामा भारत पहुंचा l ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना 1600 ई. में हुई l अंग्रेज भारत में मुख्यतः व्यापार के लिए आये थे l आरम्भ में राज्य - स्थापना अथवा धर्म प्रचार उनका उद्देश्य नहीं था , परन्तु भारत की दयनीय दुरवस्था के कारण वे हमारी सभ्यता की छाती पर डटे रहे l इसकी विवेचना अमेरिकी दार्शनिक विल ड्युरो के विचारों में झलकती है ------ " जिस जाति और सभ्यता में अपना शासन स्वयं चलाने की शक्ति नहीं रहती , जो जाति अपने धन - जन का स्वयं विकास नहीं कर सकती और जिस देश का एक प्रान्त दूसरे प्रान्त को तथा एक जाति दूसरी जाति को बराबर का दरजा देने को खुद तैयार नहीं होती , वह जाति और देश उन लोगों का गुलाम होकर रहता है , जिन्हें लोभ की बीमारी और शक्तिमत्ता का रोग है l "
सिकंदर के समय ( ई. पू. चौथी सदी ) यूरोप में भारत और भारतीय संस्कृति का नाम काफी प्रसिद्ध था l वहां के लोग जानते थे कि भारत धन और ज्ञान का भंडार है l इसी प्रसिद्धि ने सिकंदर को भारत की ओर बढ़ने की प्रेरणा दी और इसी कारण वास्कोडिगामा भारत पहुंचा l ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना 1600 ई. में हुई l अंग्रेज भारत में मुख्यतः व्यापार के लिए आये थे l आरम्भ में राज्य - स्थापना अथवा धर्म प्रचार उनका उद्देश्य नहीं था , परन्तु भारत की दयनीय दुरवस्था के कारण वे हमारी सभ्यता की छाती पर डटे रहे l इसकी विवेचना अमेरिकी दार्शनिक विल ड्युरो के विचारों में झलकती है ------ " जिस जाति और सभ्यता में अपना शासन स्वयं चलाने की शक्ति नहीं रहती , जो जाति अपने धन - जन का स्वयं विकास नहीं कर सकती और जिस देश का एक प्रान्त दूसरे प्रान्त को तथा एक जाति दूसरी जाति को बराबर का दरजा देने को खुद तैयार नहीं होती , वह जाति और देश उन लोगों का गुलाम होकर रहता है , जिन्हें लोभ की बीमारी और शक्तिमत्ता का रोग है l "