पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----- ' जिनका मन मनोग्रंथियों से घिरा होता है , वे बेचैन , अशांत और परेशान रहते हैं l ऐसे व्यक्ति चाहे पूरा विश्व भ्रमण कर लें, ढेर सारी सम्पदा एकत्र कर लें , लेकिन फिर भी वे अपने मन के अँधेरे को दूर नहीं कर पाते , जीवन में मनोग्रंथियों के कारण पनपी खाई को पाट नहीं पाते l लेकिन जिनका मन मनोग्रंथियों से मुक्त होता है , वे कहीं भागते नहीं , किसी को जीतते नहीं l वे स्थिर होते हैं , स्वयं को जीतते हैं और धीरे - धीरे उनका मन शांति और आनंद से भर जाता है l ---------- महान ज्ञानी अष्टावक्र जी का शरीर आठ जगह से टेढ़ा था , लोग इन्हें चिढ़ाते , इनका मजाक बनाते , लेकिन उस पर वे कभी ध्यान नहीं देते l एक बार वे राजा जनक के दरबार में विद्वानों की सभा में आमंत्रित किए गए l उस सभा में एक -से -बढ़कर -एक ज्ञानी महात्मा बैठे थे और किसी हम्भिर विषय पर चर्चा की जानी थी l जैसे ही अष्टावक्र जी ने उस राजसभा में प्रवेश किया , उनके टेढ़े -मेढ़े शरीर और अजब सी चाल को देखकर सभी उपस्थित ज्ञानी जन ठहाके लगाकर हंस पढ़े l इस पर भी अष्टावक्र जी न तो क्रोधित हुए और न ही स्वयं को अपमानित महसूस किया l बस , इतना ही बोले --- " राजन ! मैंने तो सोचा था कि मैं विद्वानों की सभा में आया हूँ , लेकिन यहाँ तो सब चर्मकार बैठे हैं l " मनोग्रंथियों से रहित व्यक्तित्व व्यक्तित्व चाहे कैसी भी परिस्थिति हो , वे अपने मन में किसी भी तरह की हीनता को प्रवेश नहीं करने देते और स्वयं से प्रेम करते हैं l जो स्वयं से प्यार करते हैं वे दूसरों पर किसी भी चीज के लिए आश्रित नहीं होते l