26 May 2022

WISDOM -------

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ----- ' जिनका  मन  मनोग्रंथियों  से   घिरा  होता  है  ,  वे   बेचैन , अशांत   और  परेशान  रहते  हैं   l  ऐसे  व्यक्ति  चाहे  पूरा  विश्व  भ्रमण  कर  लें,  ढेर  सारी  सम्पदा  एकत्र  कर  लें  ,  लेकिन  फिर  भी  वे  अपने  मन  के  अँधेरे  को   दूर  नहीं  कर  पाते  ,  जीवन  में  मनोग्रंथियों  के  कारण  पनपी  खाई  को  पाट  नहीं  पाते   l   लेकिन  जिनका  मन  मनोग्रंथियों  से  मुक्त  होता  है  ,  वे  कहीं  भागते  नहीं ,  किसी  को  जीतते  नहीं   l  वे  स्थिर  होते  हैं  ,  स्वयं  को  जीतते  हैं   और  धीरे - धीरे  उनका  मन   शांति  और  आनंद  से  भर  जाता  है  l  ----------  महान  ज्ञानी  अष्टावक्र जी  का  शरीर   आठ  जगह  से   टेढ़ा  था  ,  लोग  इन्हें  चिढ़ाते ,  इनका  मजाक  बनाते  ,  लेकिन  उस  पर  वे  कभी  ध्यान  नहीं  देते   l  एक  बार  वे  राजा  जनक   के  दरबार  में   विद्वानों    की  सभा  में  आमंत्रित  किए  गए   l  उस  सभा  में  एक -से -बढ़कर -एक   ज्ञानी  महात्मा  बैठे  थे    और  किसी  हम्भिर  विषय  पर  चर्चा  की  जानी  थी   l  जैसे  ही  अष्टावक्र  जी  ने   उस  राजसभा  में  प्रवेश  किया  ,  उनके  टेढ़े -मेढ़े  शरीर   और  अजब  सी  चाल  को  देखकर   सभी  उपस्थित  ज्ञानी  जन   ठहाके  लगाकर  हंस  पढ़े    l     इस  पर  भी   अष्टावक्र  जी  न  तो  क्रोधित  हुए   और  न  ही  स्वयं  को  अपमानित  महसूस  किया  l  बस ,  इतना  ही  बोले  --- " राजन  !  मैंने  तो  सोचा  था  कि   मैं  विद्वानों  की  सभा  में  आया  हूँ  ,  लेकिन  यहाँ  तो  सब  चर्मकार  बैठे  हैं   l  "  मनोग्रंथियों  से  रहित  व्यक्तित्व व्यक्तित्व  चाहे  कैसी  भी   परिस्थिति   हो  ,  वे  अपने  मन  में  किसी  भी  तरह  की  हीनता  को  प्रवेश  नहीं  करने  देते   और  स्वयं  से  प्रेम  करते  हैं   l  जो  स्वयं  से  प्यार  करते  हैं   वे  दूसरों  पर  किसी  भी   चीज  के  लिए  आश्रित  नहीं  होते  l