23 July 2019

WISDOM -----

  मनुष्य  के  शत्रु  दो  प्रकार  के  हैं --- एक  वे  शत्रु  जो  दिखाई  देते  हैं  -- इसमें  वे  लोग  सम्मिलित  होते  हैं  जो  अपने  से  द्वेष  भाव  रखते  हैं , हानि  पहुँचाने  की  कोशिश  करते  हैं  l  इसमें  वे  जीव  जैसे  सिंह , सांप , बिच्छू  आदि  भी  हैं  जो   अवसर  मिलने  पर  आक्रमणकारी  हो  जाते  हैं   l  इसके  अतिरिक्त  विभिन्न  प्रकार  के  रोग  भी  हमारे  बैरी  हैं  जो  धन  व  प्राणों  पर  संकट  उपस्थित  करते है  l  --  ये  सब  शत्रु  या  हमारे  बैरी  ऐसे  हैं   जिनको  हम  देखते  हैं , पहचानते  हैं  और  उनसे  अपनी  रक्षा  के  विभिन्न  उपाय  भी  कर  लेते  हैं  l 
 दूसरे   प्रकार  के   शत्रु  वे  हैं  जो  हमें  दिखाई  नहीं  देते  , पकड़  में  नहीं  आते  l  ये  हैं  हमारे  आंतरिक  शत्रु , हमारे  मनोविकार --- काम , क्रोध , लोभ , छल ,कपट , अहंकार , मद , मत्सर  आदि  अनेक  दुर्गुण  हैं , मनोविकार  हैं   जिन  पर  नियंत्रण नहीं  किया  गया   तो  ये मनुष्य  को  पतन  की   ओर  ले  जाते  हैं  l  ये  भीतरी  शत्रु  लकड़ी  में  लगे  घुन  की  तरह  मनुष्य  के   व्यक्तित्व   को  खोखला  करते  रहते  हैं   और  इन्ही  दुर्गुणों  के  कारण  मनुष्य  स्वयं  अशांत  रहता  है  ,  अपने   आसपास    के  लोगों  को  परेशान   करता  है  और  समाज  में  अशांति  फैलाता  है  l   इन  आसुरी  प्रवृतियों  को  नियंत्रित  कर  के  ही  समाज  में  सुख - शांति  से  रहा  जा  सकता  है  l