' भक्ति और भजन का अर्थ ही है -- अनन्य श्रद्धा |भगवान का नाम रटना भगवान का भजन नहीं है | यह तो भजन की पहली कक्षा है | यथार्थ भजन तो भगवान का हो जाना है | भगवान के होने का अहसास ही चेतना को निर्भार कर देता है |
' जो दुर्दांत दुष्टों , षडयंत्रकारियों एवं शत्रुओं के बीच सम्पूर्णत: निश्चिंत होकर अपना सहज जीवन निश्चिंत भाव से जीता है , वही सच्चा भक्त है | '
जीवन की सारी चिंताएं , बेचैनियाँ , अशांति -- मैं कुछ हूँ और बहुत कुछ करके रहूँगा , --इसी से पैदा होती हैं | उसे नहीं कर पाने की स्थिति में विषाद , अवसाद और संताप घेरता है , निराशा घेर लेती है | लेकिन जैसे ही भक्त का भाव जगता है , श्रद्धा जाग्रत होती है , ह्रदय से स्वर फूटते हैं --
हे ईश्वर ! आप जो कराएँगे वही करेंगे , अब मेरा कोई चुनाव नहीं | मैं तो यह भी न कहूँगा कि तूने मुझे भटकाया , क्योंकि तू भटकाए तो इसका मतलब हुआ कि भटकने में ही मेरी मंजिल होगी
मैं यह भी न कहूँगा कि अभी तक कुछ न हुआ , क्योंकि नहीं हुआ तो यह शायद इसी ढंग से होने का रास्ता गुजरता होगा |
भक्त की श्रद्धा को कहीं खंडित नहीं किया जा सकता | कोई घड़ी , कोई घटना उसकी श्रद्धा को डाँवाडोल नहीं कर सकती | श्रद्धा अखंडित होना ही भजन का अखंडित और अविराम होना है |
' जो दुर्दांत दुष्टों , षडयंत्रकारियों एवं शत्रुओं के बीच सम्पूर्णत: निश्चिंत होकर अपना सहज जीवन निश्चिंत भाव से जीता है , वही सच्चा भक्त है | '
जीवन की सारी चिंताएं , बेचैनियाँ , अशांति -- मैं कुछ हूँ और बहुत कुछ करके रहूँगा , --इसी से पैदा होती हैं | उसे नहीं कर पाने की स्थिति में विषाद , अवसाद और संताप घेरता है , निराशा घेर लेती है | लेकिन जैसे ही भक्त का भाव जगता है , श्रद्धा जाग्रत होती है , ह्रदय से स्वर फूटते हैं --
हे ईश्वर ! आप जो कराएँगे वही करेंगे , अब मेरा कोई चुनाव नहीं | मैं तो यह भी न कहूँगा कि तूने मुझे भटकाया , क्योंकि तू भटकाए तो इसका मतलब हुआ कि भटकने में ही मेरी मंजिल होगी
मैं यह भी न कहूँगा कि अभी तक कुछ न हुआ , क्योंकि नहीं हुआ तो यह शायद इसी ढंग से होने का रास्ता गुजरता होगा |
भक्त की श्रद्धा को कहीं खंडित नहीं किया जा सकता | कोई घड़ी , कोई घटना उसकी श्रद्धा को डाँवाडोल नहीं कर सकती | श्रद्धा अखंडित होना ही भजन का अखंडित और अविराम होना है |