पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----- ' क्रोध एक ऐसा विष है , जो मनुष्य के चिंतन और व्यक्तित्व को विषाक्तता में बदल देता है l क्रोध करने पर हित अनहित में , शुभ अशुभ में , शांति अशांति में , हिंसा अहिंसा में , परमार्थ स्वार्थ में , विनम्रता अहंकार में , बदल जाता है l क्रोध एक ऐसे विकार के रूप में है जो कई तरह की बीमारियों को जन्म देता है l चिकित्सकों के अनुसार कैंसर , उच्च रक्त चाप , सिरदर्द और मानसिक रोगों की एक मुख्य वजह क्रोध ही है l क्रोध एक ऐसा मनोविकार है जो बुद्धि , विवेक और भावनाओं सबको नष्ट कर देता है l '