टालस्टाय ने एक बार बड़े स्पष्ट शब्दों में कहा था ---- बौद्धिक कार्य करने वाले को भी प्रतिदिन नियम से खेती , कारीगरी आदि का कुछ उपयोगी शारीरिक श्रम अवश्य करना चाहिए l इससे एक और जहाँ हम इस ईश्वरीय आदेश का पालन कर सकेंगे कि ' मनुष्यों को अपने पसीने की रोटी खानी चाहिए ' वहां इस प्रकार का श्रम हमारे स्वास्थ्य और मानसिक प्रसन्नता की रक्षा करने वाला भी होगा l टालस्टायस्वयं चिलचिलाती धूप में घास काटने व खेती का काम करते थे l उनकी प्रेरणा से अनेक बड़े विद्वान् , उच्च पदाधिकारियों ने इसका अनुकरण किया l गांधीजी ने दक्षिण अफ्रीका में फीनिक्स स्थित ' टालस्टाय फार्म इसी आदर्श पर स्थापित किया था कि उसमे कितने ही सुशिक्षित भारतीय और यूरोपियन कृषि सम्बन्धी तथा अन्य शारीरिक श्रम के कार्य करते थे l