12 April 2023

WISDOM ------

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ---- 'आसक्ति  ही  सब  दुःखों  की  जननी  है  , यहाँ  तक  कि  वही  पुन:  जन्म  लेने  को  बाध्य  करती  है  l  यह  आसक्ति  ही  मनुष्य  को  तरह -तरह  से  दुःख  देती  है   और  बंधनों  से  बाँधती  है  l  इसलिए  मनुष्य  को  चाहिए  कि  कुल , वंश , पद  तो  क्या  इस   शरीर  से  भी  आसक्ति  न  करे  l  मृत्यु  के  बाद  भी  इस  शरीर  से  मोह  नहीं  छूटता   l    अनासक्त  रहकर  कर्तव्यपालन  करे  l  "  एक  कथा  है  -------  एक  सेठ जी  थे  l  बहुत  धर्मात्मा  थे   लेकिन  उन्हें  अपनी  संपदा  से  और  पुत्र  से  बहुत  मोह  था  l   संतों  का  उनके  यहाँ   सत्संग  होता  था l  संतों  ने  उन्हें  समझाया  कि  अति  का  मोह  अच्छा  नहीं  होता  लेकिन  सेठजी  विवश  थे  l  उन्हें  मालूम  था  कि  इस  मोह  के  कारण  और  कुछ  दुष्कर्मों  के  परिणामस्वरुप   उन्हें  अगले  जन्म  में  बन्दर  का  रूप  धारण  करना  पड़ेगा  l   उन्होंने  अपने  प्रिय  पुत्र  से  कहा --- " देखो , मृत्यु  के  बाद  मैं  बन्दर  के  रूप  में  जन्म  लूँगा   और  जंगल  में  एक  बरगद  के  पेड़  पर   बैठा  रहूँगा  l  तुम  मुझे  गोली  से  मार  देना  तो  मेरी  मुक्ति  हो  जाएगी  l  "  पिता  की  मृत्यु  के  बाद  पुत्र  एक  पंडित  को  लेकर  जंगल  पहुंचा   तो  देखा  कि  एक एक  बंदरिया  अपने  बच्चे  को  सीने  से  चिपकाए   बैठी  हुई  है  l   उसने  बंदूक   चलाई  तो  बंदरिया  तो  डर  के   कारण  बेहोश  हो  गई   और  बच्चा  कूदकर  ऊँची  डाल  पर  चढ़  गया  l  बहुत  प्रयत्न  करने  के  बाद  भी  वह  उसे  पा  नहीं  सका  l  साथ  में  जो  पंडित जी  थे  उन्होंने  कहा --- " इस  सेठ  को  अब  इस  बन्दर  शरीर  से  मोह  हो  गया  है  ,  चलो  अब  वापस  चलो  , अब  वह  मरना  ही  नहीं  चाहता  l  शरीर  चाहे  बन्दर  का  हो  या  कीड़े  का , कोई  मरना  नहीं  चाहता  l  ये  मोह  है ,  जो  मरकर  भी  नहीं  छूटता  l  "