सत्कर्म और असत कर्म को समझना और तदनुसार आचरण करना कर्म का संयम कहलाता है
इस कार्य में विवेक-बुद्धि की सहायता आवश्यक होती है । कर्म का संयमी सच्चा कर्मयोगी कहलाता है । चाहें मार्ग में कितनी ही विध्न बाधाएं हों, वह कर्तव्य-पथ से विचलित नहीं होता । अपनी जीवन-यात्रा को सुगम, सरल और सुखद बनाने के लिये यह नितांत आवश्यक है कि हम यथा संभव कर्तव्य-परायण बने, सच्चे कर्मयोगी बने । सच्चा कर्मयोगी ही सफल जीवन का सच्चा आनंद प्राप्त कर सकता है ।
हमारी उन्नति का एकमात्र उपाय यह है कि हम पहले वह कर्तव्य करें, जो काल द्वारा हमारे सम्मुख प्रस्तुत कर दिया गया है । इस प्रकार अपनी क्षमता के अनुरूप विवेक पूर्ण ढंग से किया गया श्रेष्ठ कर्म धीरे-धीरे व्यक्ति को उस मुकाम की ओर ले जाता है, जहाँ इस सुरदुर्लभ मानव जीवन की सफलता एवं सार्थकता की अनुभूति से जीवन धन्य हो उठता है ।
इस कार्य में विवेक-बुद्धि की सहायता आवश्यक होती है । कर्म का संयमी सच्चा कर्मयोगी कहलाता है । चाहें मार्ग में कितनी ही विध्न बाधाएं हों, वह कर्तव्य-पथ से विचलित नहीं होता । अपनी जीवन-यात्रा को सुगम, सरल और सुखद बनाने के लिये यह नितांत आवश्यक है कि हम यथा संभव कर्तव्य-परायण बने, सच्चे कर्मयोगी बने । सच्चा कर्मयोगी ही सफल जीवन का सच्चा आनंद प्राप्त कर सकता है ।
हमारी उन्नति का एकमात्र उपाय यह है कि हम पहले वह कर्तव्य करें, जो काल द्वारा हमारे सम्मुख प्रस्तुत कर दिया गया है । इस प्रकार अपनी क्षमता के अनुरूप विवेक पूर्ण ढंग से किया गया श्रेष्ठ कर्म धीरे-धीरे व्यक्ति को उस मुकाम की ओर ले जाता है, जहाँ इस सुरदुर्लभ मानव जीवन की सफलता एवं सार्थकता की अनुभूति से जीवन धन्य हो उठता है ।