' जब किसी प्रतिभाशाली लेखक के सामने कोई समस्या खड़ी होती है तो उसकी कलम चलने लगती है और समस्या की परिसमाप्ति लेख में ही हो जाती है l "
डा. माश्कार पुर्तगाल गए थे बैरिस्टर बनने l प्राध्यापक के रूप में जिन अर्थवेत्ता का उनसे परिचय हुआ , वे थे डा. सालाजार l डा. माश्कार होनहार और कुशाग्र बुद्धि थे तथा सालाजार के प्रिय शिष्य थे l
डा. माश्कार के मन में इस बात की बहुत पीड़ा थी कि गोवा वासी अपने को भारतीय कम और पुर्तगाली अधिक मानते हैं l अपनी मातृभूमि के लिए इनमें स्वाभिमान क्यों नहीं | उन्होंने लिखना शुरू किया , रवीन्द्रनाथ ठाकुर के दो उपन्यास ' नौका डूबी , और ' घरे - बाहिरे ' का और गांधीजी की आत्मकथा का पुर्तगाली में रूपान्तर किया l उनके ह्रदय में अद्भुत आस्था थी , वे अनुकूल समय का इंतजार कर रहे थे l जब उन्होंने सुना कि डा. लोहिया गोवा - मुक्ति के लिए आन्दोलन कर रहे हैं तो वे पुर्तगाल से गोवा आ गए l उन्होंने पुर्तगाली साम्राज्यवाद के विरुद्ध लेख लिखे | अनेक रातों तक अथक परिश्रम कर के उन्होंने एक पुस्तक लिखी ' गोवा माई विलवैड लैंड ' l इसकी छपाई का प्रबंध कैसे हो ? उसका कथानक सुनकर सब प्रकाशक छापने से इनकार कर देते l
उन्होंने अपनी चार एकड़ जमीन और कुछ सोने के गहने , यही उनकी दौलत थी , उसे बेचकर पुस्तक छपवाई , तो उसने क्रान्ति मचा दी l जन - जन में वह लोक प्रिय हुई , उसमे लगा धन भी वापस आ गया l उसमे प्रतिपादित विषय इतने सशक्त और सार गर्भित थे कि मुर्दों में प्राण आ जाये l समस्त गोवा चैतन्य हो गया और पुर्तगाल सरकार के विरुद्ध मुहिम छेड़ दी l सालाजार के आदेश पर डा. माश्कार को 24 वर्ष का कठोर कारावास देकर पुर्तगाल की जेल में बंद कर दिया l जनता जागरूक हो चुकी थी , 1962 में पुर्तगाली सरकार को गोवा छोड़ना पड़ा l लेकिन माश्कार पुर्तगाल की जेल में ही थे l अंतर्राष्ट्रीय न्यायलय के निर्णय पर उनकी आजादी संभव हो सकी l गोवा वासी उन्हें ' गोवानी संत ' के नाम से पुकारते हैं
डा. माश्कार पुर्तगाल गए थे बैरिस्टर बनने l प्राध्यापक के रूप में जिन अर्थवेत्ता का उनसे परिचय हुआ , वे थे डा. सालाजार l डा. माश्कार होनहार और कुशाग्र बुद्धि थे तथा सालाजार के प्रिय शिष्य थे l
डा. माश्कार के मन में इस बात की बहुत पीड़ा थी कि गोवा वासी अपने को भारतीय कम और पुर्तगाली अधिक मानते हैं l अपनी मातृभूमि के लिए इनमें स्वाभिमान क्यों नहीं | उन्होंने लिखना शुरू किया , रवीन्द्रनाथ ठाकुर के दो उपन्यास ' नौका डूबी , और ' घरे - बाहिरे ' का और गांधीजी की आत्मकथा का पुर्तगाली में रूपान्तर किया l उनके ह्रदय में अद्भुत आस्था थी , वे अनुकूल समय का इंतजार कर रहे थे l जब उन्होंने सुना कि डा. लोहिया गोवा - मुक्ति के लिए आन्दोलन कर रहे हैं तो वे पुर्तगाल से गोवा आ गए l उन्होंने पुर्तगाली साम्राज्यवाद के विरुद्ध लेख लिखे | अनेक रातों तक अथक परिश्रम कर के उन्होंने एक पुस्तक लिखी ' गोवा माई विलवैड लैंड ' l इसकी छपाई का प्रबंध कैसे हो ? उसका कथानक सुनकर सब प्रकाशक छापने से इनकार कर देते l
उन्होंने अपनी चार एकड़ जमीन और कुछ सोने के गहने , यही उनकी दौलत थी , उसे बेचकर पुस्तक छपवाई , तो उसने क्रान्ति मचा दी l जन - जन में वह लोक प्रिय हुई , उसमे लगा धन भी वापस आ गया l उसमे प्रतिपादित विषय इतने सशक्त और सार गर्भित थे कि मुर्दों में प्राण आ जाये l समस्त गोवा चैतन्य हो गया और पुर्तगाल सरकार के विरुद्ध मुहिम छेड़ दी l सालाजार के आदेश पर डा. माश्कार को 24 वर्ष का कठोर कारावास देकर पुर्तगाल की जेल में बंद कर दिया l जनता जागरूक हो चुकी थी , 1962 में पुर्तगाली सरकार को गोवा छोड़ना पड़ा l लेकिन माश्कार पुर्तगाल की जेल में ही थे l अंतर्राष्ट्रीय न्यायलय के निर्णय पर उनकी आजादी संभव हो सकी l गोवा वासी उन्हें ' गोवानी संत ' के नाम से पुकारते हैं