26 October 2021

WISDOM ----

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ----- ' हम  अपने  जीवन  में  जितना  आगे  बढ़ते  जाते  हैं  ,  उतनी  ही  आलोचनाएं  भी   बढ़ती  हैं   l  यदि  कोई  व्यक्ति  आलोचनाओं  को  सहन  करना  सीख  लेता  है   तो  वह  अपने  को  पहले  से  ज्यादा  संतुलित  बना  पाता  है   l  आलोचना  सुनने  का  अभ्यास   हमें  असुविधाजनक   स्थिति  में  भी   खुद  पर     नियंत्रण  करना  सिखाता  है  l  समय  के  साथ  हमें  इस  बात  का  अभ्यास  हो  जाता  है   कि  कौन  सी  आलोचना   उचित  है  और  कौन  सी   अनुचित  है   l    किन्हे    स्वीकार  करना  चाहिए  और   किन्हे  अस्वीकार करते   हुए  छोड़  देना  चाहिए   l  हमारे  कार्यों  में   स्वाभाविक  रूप  से  गलतियां  हो  जाती  हैं  ,  यदि  कोई  व्यक्ति  उन  गलतियों   को  उजागर  करता  है   तो  उस  पर  नाराज  होने  की  बजाय  उनको  स्वीकार  कर  लेना  चाहिए   l कमियों  को  सुधार  लेना म ही  हमें  सक्षम  और  समर्थ   बनाता  है   l