2 October 2017

WISDOM ------ गांधीजी अहिंसा को कायरों का नहीं वीरों का भूषण कहा करते थे

 , अहिंसात्मक  प्रतिकार  से  उनका   आशय  था ---- बिना  किसी  को  कष्ट  दिए  ऐसा  नैतिक  दबाव  उत्पन्न  करना  कि  अत्याचारी  को  हारकर  सही  रास्ते  पर  आना  पड़े   l  इसके  लिए  बड़े  साहस ,  संतुलन  और  धैर्य  की  आवश्यकता  है   l
      घटना  1923    की    है  -----  तब  गुजरात  के  पंचमहल  एवं  गोधरा  में   भीषण  साम्प्रदायिक  उपद्रव  हुए  l  वहां  के  बहुसंख्यक  वर्ग  द्वारा  पीड़ित   व्यक्ति  भागकर   महात्मा  गाँधी  के  पास  पहुंचे   और  उन्होंने    अत्याचारियों    द्वारा  किये  गए  अत्याचार  की  शिकायत  उनसे  की   l  बापू  ने  सारी  बातें  ध्यानपूर्वक  सुनी    और  पूछा --- ' तुम  लोगों  ने  इसके  मुकाबले  क्या  किया   ? '
 आगंतुकों  में  से  एक  नेता  जैसे  व्यक्ति  ने  कहा --- '  करते  क्या  ?  आपकी  अहिंसा  का  अर्थ  सुनकर  ! '
 बापू   क्षुब्ध  मन  से  बोले ---- ' मेरी  अहिंसा  ने  यह  थोड़े  ही  कहा  था  कि  तुम  वहां  से   कायरों  की  तरह  भागकर   अपनी  बुजदिली  की   रिपोर्ट  देने  के  लिए  मेरे  पास  आओ  l  मेरी  अहिंसा  तो  साहसपूर्वक  मर - मिटने  का  सन्देश  देती  है  l  तुम  में  यदि  मर  मिटने  का  साहस  नहीं  था    तो  अपने  मन  के  अनुसार  उस  स्थिति  का  मुकाबला  करना  चाहिए  था  l   तुमने  मेरे  मत  को  समझा  नहीं  और  अपने  मत  पर  चलने  की  हिम्मत  नहीं  की  l    जहाँ  किसी  तरह  जान  बचा  लेने  की  भावना  है  ,  खतरों  से  मुंह  मोड़ने  या  भाग  जाने  की  संभावना  है  वहां  अहिंसा  नहीं  हो  सकती  l  अहिंसा   कायरों   की    नहीं   वीरों  की  है " l
        दुष्टता   या   अवांछनीयता    का  दमन  किसी  भी  प्रकार   किया  जाये  ,  ऐसा  ' मन्यु '     अहिंसा  के  अंतर्गत  ही  आता  है   l  क्योंकि    दुष्टों  का ,  अत्याचारी  का  दमन  करने  से   उसके  कारण  पीड़ित  होने  वाले   अधिक  लोगों  को  सुख - चैन  से  रहने  का  अवसर  मिलेगा   l