28 August 2018

WISDOM ----- अध्यात्म का अर्थ है -- अपने आपको सुधारने , अपने आपको समुन्नत करने की विधा ----- पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

    अध्यात्म  का  अर्थ  है --- अपने  आपको  सही  करना ----- साइंस  ऑफ  सोल   l   चमत्कार ,  जादूगरी  व  सिद्धियों  का  विज्ञान नहीं  है  l   यदि  मनुष्य  अपने  आपको  सही  कर  ले    तो  सभी  समस्याओं  का  हल  स्वत:  ही  हो  जाता  है   l  अध्यात्म  हमें  प्रशिक्षण  देकर  जीवन  जीना  सिखाता  है   l   केवल  धैर्य  और  संयम  की  जरुरत  है  ------ गांधीजी  जब  तीस  वर्ष  के  थे   , उनकी  आंते  सूख  गईं  थीं   l  रोज  एनीमा   लेकर  पेट  साफ  करते  थे  l  उनने  लिखा  है   कि  जब  वे  दक्षिण  अफ्रीका  में  थे   तो  सोचते  थे  कि  यही  कोई  पांच  वर्ष   और  जियेंगे  l  एनीमा  सेट  कोई  उठा  ले  गया   व  जंगल  में  फंस  गए   तो  बेमौत  मारे  जायेंगे   l  जिन्दगी का  अब  कोई  ठिकाना  नहीं  है   l  लेकिन  ऐसा  नहीं  हुआ  l  गांधीजी  ने   आहार -  विहार  का  संयम    कर   अपने  आपको  ठीक  कर  लिया ,  सुधार  लिया  ,  तो  आंते  भी  उसी  क्रम  से  ठीक  होती  गईं  l   80  वर्ष  की  उम्र  में  उनकी  मृत्यु  हुई   l  मृत्यु  से  पहले  वे कहते  थे   कि  अभी  हम  120  साल  तक  जियेंगे  l   यदि  गोली  न  लगी  होती  तो  अवश्य  इतने  वर्ष   जिए  होते   l 
  आचार्य  जी  का  मत  है  कि  ---- मनुष्य  अपनी  बीमारी  के  लिए  स्वयं  जिम्मेदार  है   l  यदि  वह  अपनी  जीभ  को  छुट्टल  सांड  की    तरीके  से    न  छोड़कर  उस  पर  काबू  करना     सीख  जाये  तो  कभी   बीमारी  नहीं  होगी   l   

26 August 2018

WISDOM ----- जब अधिकारी - कर्मचारी , --- ---- सब ही भ्रष्ट हों ------- ? ? ?

   जर्मनी  के  सम्राट  फ्रेडरिक  महान  यह  जानकर  चिंतित  हो  उठे   कि  उनके  देश  की  आर्थिक  स्थिति   निरंतर  दयनीय  होती  जा  रही  है  l  जब  राजकोष  काफी  कम  रह  गया  तो   उन्होंने  एक  दिन  अपने  राज्य  के  अधिकारीयों  को  विचार - विमर्श  हेतु  बुलाया  और  उनसे  पूछा --- " राजकोष  रिक्त  होने  का   कारण  क्या  है  ? "    दरबार  में  यह  प्रश्न  पूछते  ही  सन्नाटा  छा  गया   और  सभी  एक - दूसरे  का  मुंह  देखने  लगे  l   उन्ही  अधिकारियों  में  उपस्थित   एक  अनुभवी  महामंत्री  ने  सम्राट  से  कहा  कि   वे  इस  प्रश्न  का  उत्तर  देने   को  तैयार  हैं  l  यह  कहकर   उन्होंने  मेज  पर  प्याले  में  रखे  बरफ  के  एक  टुकड़े  को  उठाया   और  उसे  अपने  निकट  बैठे  व्यक्ति  को  देते  हुए  कहा  --- " इसे  अपने  पास  बैठे  हुए  व्यक्ति  को  दे  दें  l  इसे  एक  के  बाद  एक  ---- दूसरे  हाथों  में  बढ़ाते  हुए   अंततः  सम्राट   तक   पहुँचाना  है   l  "
       देखते - ही - देखते  वह  बरफ  का  टुकड़ा  अनेक  हाथों  से  होता  हुआ  सम्राट  के  हाथ  में  पहुंचा   l  वहां  पहुँचते  तक  उसका   आकार   चौथाई  हो   चुका   था   l
  सम्राट  ने  पूछा ---- " बरफ  का  टुकड़ा  तो  यहाँ  आते - आते   छोटा  हो  गया  है  l  इसके  माध्यम  से  आप  क्या  कहना  चाहते  हैं   ?  "  वृद्ध  महामंत्री ने  अपना  मंतव्य  स्पष्ट  करते   हुए  कहा ---- " महाराज  ! जिस  तरह  यह  बरफ  का  टुकड़ा   कई  हाथों  से  होता  हुआ  आपके  हाथों  तक  पहुँचने  में   अपने  मूल  वजन  का  चौथाई  रह  गया  ,  वैसे  ही  प्रजा  से  वसूले  गए  कर  की  राशि  कई  हाथों  से  गुजरने  के  कारण  सरकारी  कोष  तक  पहुँचते - पहुँचते   चौथाई  रह  जाती  है   l "  
  सम्राट  वृद्ध  मंत्री   का  कहा  समझ  गए   और  उन्होंने  कड़े निर्णय  लेते  हुए   भ्रष्ट  कर्मचारियों  की   छंटनी  शुरू  कर  दी   l  कुछ  ही  दिनों  में   राजकोष  में  बढ़ोतरी  होने  लगी   l  

24 August 2018

WISDOM ----- संस्कृति की रक्षा के लिए राष्ट्रीय चेतना का जागरण अनिवार्य है

   दशानन   रावण    एक  व्यक्ति  नहीं  विचारधारा  है    ---- कैसे  उसने  छल - कपट  से  सीताजी  का  अपहरण  किया ,  अपने  राक्षसों  को  भेजकर  ऋषि - मुनियों  के   यज्ञ ,  हवन   आदि  पवित्र  स्थल  को  अपवित्र  किया ,  धन  का  एकत्रीकरण   कर  सोने  की  लंका  खड़ी   कर  ली ,  अपने  धन ,  अपनी  शक्ति  और  अपनी  विद्वता ,  अपने  ज्ञान  का  दुरूपयोग  किया   l      l  यह  विचारधारा  विकृत  थी   ,  दुर्भाग्य  से  वर्तमान    में  इसी  विकृत   विचारधारा  का  प्रसार  हो   चुका     है  और  होता  जा  रहा  है   l 
               इस  विकृति  से  निपटने  के  लिए  जरुरी  है    देश  में   वैसा  ही  स्वाभिमान  और  राष्ट्रीय  चेतना  जाग्रत  हो  जैसी  कि  1857  के  स्वाधीनता  संग्राम  के  समय  थी   l   अंग्रेज  1857  की  हिन्दू - मुस्लिम  एकता  को  देखकर  हैरान  और  परेशान  हो  गए  थे   l  सभी  ने  उस  समय  मुग़ल  बादशाह  बहादुरशाह  जफर  को  बादशाह  माना  था   l  यह  वर्ष  भारत  की  एकता   और  राष्ट्रीयता  के  नए  मानकों  से  गढ़ा  था  l   उस  समय  छोटी  कही  जाने  वाली  जाति  के  लोगों  ने  बड़े  काम  किये  l 
 एक  वीरांगना  थीं --झलकारी  बाई ,  जो  जाति  की  कोरी  थीं ,  लेकिन  महारानी  लक्ष्मीबाई  उन्हें  अपनी  सहेली  का  मान  देती  थीं  ,  उन्होंने  रानी  के  साथ  अंग्रेजों  के  विरुद्ध  संग्राम  में  कदम - से - कदम  मिलाकर  युद्ध  किया   l
 ऐसे  ही  एक  वीरनायक  थे --- मातादीन  भंगी  ,  जिन्होंने  बैरकपुर  विद्रोह  में  महत्वपूर्ण  भूमिका  निभाई  l   कानपुर - बिठूर  के  आसपास  एक  क्रांतिवीर  थे --- गंगू  बाबा ,  जो  हरिजन  थे  और  नाना  साहब  की  सेना  में  नाकड़ची   थे  ,  ये  पहलवान  थे  और  अपने  पहलवानों  के  साथ   इस  संग्राम  में  अंग्रेजों  के  खिलाफ  भीषण  युद्ध  किया  ,  पकड़े  जाने  पर  अंग्रेजों  ने  इन्हें  फांसी  दे  दी  l 
  इस  स्वाधीनता संग्राम  के  बाद  देशवासियों  को   यह  भरोसा  हुआ  कि  गुलामी  की  बेड़ियाँ  तोड़ी  जा  सकती  हैं   l  इस  संग्राम  के  बाद  अंग्रेजों  ने  भारतीयों  पर  कठोर  नियंत्रण  कर  दिया   किन्तु  भारत  को  स्वाधीन  कराने  वाली  मानसिकता  को  नहीं  बदल  सके   l  

WISDOM ------ संगठन की शक्ति अपार है

    पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य  ने   अखण्ड  ज्योति  में  लिखा  है  कि ---- दुर्भाग्य  से  आज  संगठन  कुचक्र  का  पर्याय  बन  गए  हैं   l  जिसमे  फंसकर   मानवीय  शक्ति  ही  नहीं   स्वयं  मानवता  भी  रो - तड़पकर   नष्ट  होने  के  लिए   विवश  हो  रही  है   l  '  उन्ही  के  शब्दों  में ----- "   खेद  इस  बात  का  है  कि  मानव  जाति  ने   छुट - पुट  संगठन  बनाने  के  अस्त - व्यस्त  प्रयत्न  तो  किये   पर   जन  समाज  की  एकता  और  संघ   बद्धता  पर  ध्यान  नहीं  दिया  l   आधार  और  स्वार्थ  अलग - अलग  होने  से   वे   वर्ग , वर्ण , देश , सम्प्रदाय   आदि  के  आधार  पर    परस्पर  टकराते  रहे  और    संकट  उत्पन्न  करते  रहे   l   किसी  तरह    निजी  स्वार्थों  के  लिए   मानवीय    शक्ति  के  शोषण  का   षड्यंत्र   है    l  जिसमे  लिप्त  कुछ  चालाक  और  तिकड़मबाज  व्यक्ति     दूसरों  की  बुद्धि , श्रम ,  एवं  धन  का    निजी  महत्वाकांक्षा    की     पूर्ति  के  लिए   बेरहमी  से  दुरूपयोग  करते  हैं   l  इसके  परिणाम  में  घ्रणा  और  विद्वेष  ही  पनपते  हैं    और  मानवीय  समस्याएं   समाप्त  होने  के  स्थान  पर    बढ़ती  ही  जाती  हैं    l    सच्चा  और  स्थिर  लाभ   तभी  हो  सकता  है    जब  वे  समग्र  रूप  से  एक  आधार  पर  संगठित  हों   l "

22 August 2018

WISDOM ------ जीवन में अहंकार उत्पन्न होने से प्रगति का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है l

 अहंकारी  व्यक्ति  अपने  जीवन  में   किसी  भी  तरह  झुकना  पसंद  नहीं  करता   और  अपने  अहंकार के  कारण  दूसरों  को  अपने  तर्कों  से  पराजित  करने  में  लगा  रहता  है  कि  किस  प्रकार  वह  सही  है  और  दूसरा  गलत  है  l  अहंकारी  व्यक्ति  अपनी  शक्ति  को  व्यर्थ  ही  दूसरों  से  बड़ा  सिद्ध  करने  में  गंवाता  है  l                            इससे  संबंधित  एक  प्रसंग  है ------  दक्षिण  भारत  के   ज्ञानी , तपस्वी  सदाशिव  ब्रह्मेन्द्र  स्वामी   अपने  गुरु  के  आश्रम  में  वेदांत  का  अध्ययन  कर  रहे  थे   l  एक  दिन  एक  विद्वान  पंडित  आश्रम  में  पधारे   l  किसी  विषय  पर  उनका  सदाशिव  से  विवाद  हो  गया  ,  सदाशिव  ने  अपने  तर्कों  से  उन  पंडित  को  परास्त  कर  दिया  l  स्थिति  ऐसी  बन  गई  कि  उन  पंडित  महाशय  को  ब्रह्मेन्द्र  स्वामी  से   क्षमा - याचना  करनी  पड़ी  l
ब्रह्मेन्द्र  स्वामी  ने  बहुत  प्रसन्न  होकर  यह  घटना  अपने  गुरु  को  सुनाई  और  सोचा  कि  गुरुदेव  प्रसन्न  होकर  उन्हें  शाबाशी  देंगे  l  लेकिन  हुआ  इसके  विपरीत  l    गुरु  ने   सदाशिव  स्वामी  को  कड़ी  फटकार  लगाई  और  कहा ----- " सदाशिव  !  श्रेष्ठ  चिंतन   की  सार्थकता  तभी  है ,  जब  उससे  श्रेष्ठ  चरित्र  बने  ,  और  श्रेष्ठ  चरित्र  तभी  सार्थक  है  ,  जब  वह  श्रेष्ठ  व्यवहार    बनकर  प्रकट  हो  l   तुमने  वेदांत  का  अध्ययन  तो  किया   परन्तु  एक  ज्ञाननिष्ठ  साधक  का  चरित्र नहीं  गढ़  पाए   और  न  ही   एक  श्रेष्ठ  साधक    का  व्यवहार  करने  में  समर्थ  हो  पाए  ,  इसलिए  तुम्हारे  अब  तक  के   सारे  अध्ययन - चिंतन  को  बस  धिक्कार  योग्य  ही  माना  जा  सकता  है  l " 
  गुरु    के   इन  वचनों  को  सुनकर  सदाशिव  स्वामी  का    अहंकार   चूर - चूर  हो  गया  ,  उन्होंने  अति  विनम्रता  से   पूछा --- " हे  गुरुदेव  !  हम  अपना  व्यक्तित्व  किस  भांति  गढ़ें  l  "   गुरु  ने  उन्हें  समझाया  कि   तर्क - कुतर्क  के  माध्यम  से  अपनी  विद्वता  का    प्रदर्शन  मत  करो  l   मौन  रहकर   अपने  चिंतन  को   विकसित  करो  ,  और  उसके  अनुरूप  श्रेष्ठ  चरित्र  का  निर्माण  करो   l   

21 August 2018

WISDOM ----- केंकड़ा वृति को दूर कर के ही स्वस्थ समाज का निर्माण संभव है

 एक  व्यक्ति  समुद्र  के  किनारे   केंकड़े    एकत्र  कर  रहा   l   वह  बार - बार   जाल  में  भरकर  केंकड़े  लाता  और  उन्हें   एक  खाली  टोकरी  में  डाल  देता  l   एक  व्यक्ति  दूर  से  देख  रहा  था  कि   बिना  ढंके   तो  ये  सब  निकलकर   रेंगते  हुए  बाहर  चले  जायेंगे  l  वह  उसकी  मदद  को  आया  और  कहने  लगा  कि  इन्हें   ढक   दो  , कहीं  ये  निकल कर  बाहर  न  चले  जाएँ  l   वह  व्यापारी  बोला ---- "  आप  निश्चिन्त  रहें ,  मैं  इन्हें  अच्छी  तरह  जनता  हूँ  ,  ये  कहीं  भी  नहीं  जायेंगे  l  "  उसकी  उत्कंठा  का  समाधान करते  हुए  उसने  कहा ---- ' एक  भी  केंकड़ा   इस   पूरे   समूह  में  से   जब  निकलने  की  कोशिश  करता  है   तो  चार  केंकड़े  मिलकर  उसकी  टांग  खींच  लेते  हैं   कि  यह  कैसे  ऊपर  जा  रहा  है   l  जब  सभी  की  यह  मनोवृति  हो   तो  कोई  कैसे  बाहर  आ  सकता  है  ?  " 
  आज  के  समाज ,  राजनीति ,  हर  क्षेत्र  में   ऐसी  ही  मनोवृति  के  लोग  हैं  , इस   कारण    समाज  में  अशांति  रहती  है  और  समाज   लोगों   की   प्रतिभा  और  योग्यता  के  लाभ    से  वंचित  रह  जाता  है   l  

19 August 2018

WISDOM --------

  एक  बार  एक  शिष्य  द्वारा  अपने  गुरुदेव  से   यह  पूछे  जाने  पर  कि  मनुष्य  को  पुरुषार्थ  क्यों  करना  पड़ता  है   ?  भगवान  अपने  अनुदान  देकर   उन्हें  पीड़ा - कष्ट  से  बचाता  क्यों  नहीं  ?
  संत  बोले --- वत्स  !  यह  संसार   विधि  - विधानों  से  चलता  है   l  याचक , भिखारी  तो  कई  हैं,  पर  यदि  विधाता  ने   कुपात्रों  पर   व्यर्थ  का  वितरण   आरम्भ  कर  दिया  तो    कर्म    की ,  स्वावलंबन   और  आत्म  सुधार  की  कोई  आवश्यकता  ही  शेष  नहीं  रह  जाएगी   l 

18 August 2018

WISDOM ------

  रामकृष्ण  परमहंस  परस्पर  चर्चा   में  शिष्यों  को  बता  रहे  थे  कि----- मनुष्यों  में  कुछ  देवता  पाए  जाते  हैं  ,  शेष  तो  नर पिशाच   ही  होते  हैं  l
 नरेंद्र  ने  पूछा ---- भला  इन    नर  पिशाचों  और  मनुष्य  तथा  देवताओं  की  पहचान  क्या  है  ?
  परमहंस  ने  कहा ----- वे  मनुष्य  देवता  है   जो  दूसरों  को  लाभ  पहुँचाने  के  लिए   स्वयं   हानि    उठाने  के  लिए  तैयार  रहते  हैं   ,   मनुष्य  वे  हैं    जो  अपना  भी  भला  करते  हैं  और  दूसरों  का  भी    l
 नरपिशाच   वे  हैं   जो  दूसरों  की  हानि   ही  सोचते  हैं   और  करते  हैं  ,  भले  ही  इस  प्रयास  में   उन्हें  स्वयं  ही  हानि   सहनी  पड़े   l  

17 August 2018

WISDOM ------- मन , वचन और कर्म में एकरूपता को सत्य कहते हैं

 यह  सत्य  भी  समय  और  परिस्थिति  को  देखते  हुए  ही  बोलने  का  निर्देश  दिया  गया  है   l   जैसे  यदि  देश  के  रक्षक  गोपनीय  सूचनाओं  को  शत्रुओं  के  समक्ष  प्रकट  कर  दें  ,  तो  इससे  राष्ट्र  की  सुरक्षा  को  खतरा  पैदा  हो  जायेगा  ,  अत:   ऐसे  सत्य  को   न  प्रकट   करना  ही  सबके  हित  में  है  l  
  एक  कथा  है ----- एक  बार  एक  कसाई  अपनी   बूढ़ी  गाय  को  ढूंढते  हुए   एक  संत  के  आश्रम  में  पहुंचा  और  गाय  के  बारे  में  पूछा  l  संत  ने  वास्तु स्थिति  को  भांप  लिया  कई  यह  कसाई  है  ,  अत:  गोलमाल  उत्तर  दिया --- कहा --- ' जिसने  देखा  वह  बोलती  नहीं   और  जो  बोलती   है  ,  उसने  देखा  नहीं  l '  इससे  एक  साथ  दो  प्रयोजन  हो  गए   l    गाय  की  प्राण रक्षा  भी  हो   गई      और  झूठ  न  बोलने  के  संकल्प   का  भी  निर्वाह  हो  गया   l 
  ऐसे  ही  कठोर  सत्य  को  न  बोलने  के  निर्देश  दिए  गए  हैं   l  

15 August 2018

WISDOM ----- लोभ - लालच को स्वयं पर कड़ा अंकुश लगाकर नियंत्रित करना पड़ता है , विचार - क्रांति अनिवार्य है

   दण्ड   का  भय  दिखाकर    लोभ ,  लालच , भ्रष्टाचार   आदि  मनुष्य  की  दुष्प्रवृतियों   को   बहुत  देर  तक  रोका  नहीं  जा  सकता    l   कामना ,  वासना ,  तृष्णा  में  व्यक्ति  अन्धा  हो  जाता   है और  इसकी  पूर्ति  के  लिए   वह   शिक्षा , चिकित्सा ,  धार्मिक  स्थल ,  वन ,  कृषि ,  रिश्ते - नाते   ------ कोई  भी  क्षेत्र  हो  ,  वह  अतिक्रमण  करने  से    चूकता    नहीं  है  l   जब  तक  मनुष्य  स्वयं  न  सुधरना  चाहे  ,  उसे  संसार  की  कोई  ताकत  सुधार  नहीं  सकती  ,  इसलिए  विचार - क्रांति  अनिवार्य  है  l  
    एक  कथा  है ----- एक  दर्जी  बीमार  पड़ा  , मरने  की  नौबत  आ  गई  l  एक  रात  उसने  सपना  देखा  कि  वह  मर  गया   और  कब्र  में  दफनाया  जा  रहा  है  l  वह  बड़ा  हैरान  हुआ  यह  देखकर  कि  कब्र  के  चारों  और  रंग - बिरंगी    झंडियाँ  लगी  हैं  l  उसने  पास  खड़े  फरिश्ते  से  पूछा  कि  ये   झंडियाँ  क्यों  लगी  हैं   ?  फरिश्ते  ने  कहा --- "  जिन - जिन  के  कपड़े  तुमने  जीवन  भर  चुराए  ,  उनके  प्रतीक  के  रूप  में  ये  झंडियाँ  लगी   हैं  l  परमात्मा  इनसे  तुम्हारा  हिसाब - किताब    करेगा  l  "  झंडियाँ  अनगिनत  थीं   l  घबराहट  इतनी   बड़ी  कि  दरजी  की  आँख  खुल  गई  l  कुछ  दिन  बाद  जब  वह  ठीक  हुआ  तो  दुकान  पर  आया   l   उसने  अपने  अधीनस्थ  कर्मचारियों  को  हिदायत  दी  कि,  देखो  मुझे  अपने  पर  भरोसा  नहीं  है  ,  जब  भी  कीमती  कपड़ा  आता  है  मैं  ललचा  जाता  हूँ  ,  इस  पुरानी   आदत  को  बुढ़ापे  में  बदलना  कठिन  है   l  तुम  सब  एक  ख्याल  रखना  कि  जब  भी  मुझे  कपड़ा   चुराते  देखो  तो  बस  इतना भर  कह  देना --- " उस्तादजी  ! झंडी  ! "   स  मैं  सचेत  हो  जाऊँगा  l
  शिष्यों  ने  पूछा --- ' इसका  मतलब  ? '  उसने  कहा -- तुम  इन  सबमे  मत  उलझो ,  मेरे  लिए  बस  इतना  इशारा  काफी  है  l 
 एक  सप्ताह  तक  तो  शिष्य  उस्ताद  को  झण्डी  की  याद  दिलाकर  रोके  रहे  किन्तु  इसके  बाद  बड़ी  मुसीबत  हो  गई   l  किसी  ग्राहक  का  विदेशी  सूट  सिलने  आया  l  उस्ताद  ने  पीठ  फेरी  और  लगा  चोरी  करने  l  शिष्यों  ने  टोका --- उस्तादजी  !  झण्डी !   बार - बार सुनने  पर  उस्ताद  चिल्लाया  --- " बंद  करो  बकवास  l  अपना  काम  करो  l  तुम्हे  पता  भी  है  ,  वहां  इस  रंग  की  झण्डी  थी  ही  नहीं  l  यदि  इतनी  झंडियाँ  लगी  हैं   तो  एक  और  झण्डी  लग  जाएगी   l  "
   उथले  नियम   जीवन  को  दिशा  नहीं  दे  पाते   l   

14 August 2018

WISDOM ------ अध्यात्म का सार ---- आंतरिक परिष्कार है

   एक  संत  अपने  शिष्यों  के  साथ  गंगा  किनारे  बैठे  हुए  थे  l  उनसे  थोड़ी  दूर  एक  व्यक्ति   गंगा   नहा  रहा  था   l   उसने  बहुत  देर  तक  गंगा स्नान  किया   फिर  किनारे  बैठकर  भोजन  करने  लगा   l  उसी  समय  एक  अपंग  व्यक्ति   उसके  पास  आकर  भोजन  की  याचना  करने  लगा   l  उसे  कुछ  देने  के  बजाय  वह  व्यक्ति  उस  अपंग  को  भद्दी  गालियाँ  देने  लगा   और  अपने  पास  से  हटाने  के  लिए   धक्का  भी  देने  लगा  l   यह  देख  संत  शिष्यों  से  बोले ---- "  आज  गंगा  स्नान  का  पाप  भी  देख  लिया  l  "  वे  बोले  ---- "केवल  बाहर  से  शरीर  साफ  कर  लेने  से    मन  पर  चढ़ा  मेल  दूर  नहीं  होता  l  जिसके  ह्रदय  में  दीन - दुःखियों  के  लिए  करुणा  नहीं ,  संवेदना  नहीं ,  वो  लाख  प्रयत्न  कर  ले  ,  उसे  पुण्य  का  नहीं  ,  केवल  पाप  का  भागी  बनना  पड़ेगा  l    अध्यात्म  का  सार  बाह्य  क्रिया कलापों  में  नहीं  ,  वरन  आंतरिक  परिष्कार  में  है   l  "

12 August 2018

WISDOM ----- आचरण से शिक्षण हो , तभी समाज का परिष्कार होगा ----- पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

  आचार्य श्री  ने   लिखा  है ----- " विकृत  चिंतन   और  भ्रष्ट  चरित्र   ने  इन  दिनों  सूक्ष्म  जगत   के  अद्रश्य  वातावरण  को  प्रदूषण   से  भर  दिया  है  l  प्रकृति  की  सरल  स्वाभाविकता  बदल  गई  है   और  वह  रुष्ट  होकर  दैवी  विपत्तियाँ  बरसाने  लगी  है  l  कहीं  अनावृष्टि , कहीं  अतिवृष्टि  ,  अकाल ,  भूकंप  जैसी  विपत्तियाँ  बड़े  क्षेत्रों  को  प्रभावित  कर  रही  हैं  l  मानसिक  रोगों  में  तेजी  से  वृद्धि  हुई  है  l  कामुकता  बड़ी  है   l  मानवीय  संवेदना  और  व्यक्तित्व  के  स्तर  में  भरी  गिरावट  हुई  है  l  युद्धोन्माद  और  आतंकवाद  बढ़ता  जा  रहा  है  l  हर  कोई  अपने  को  असुरक्षित  महसूस  कर  रहा  है   l  कभी  जल - प्रलय  तो  कभी  हिम - प्रलय  जैसी  स्थिति  लगती  है   l  "  नवम्बर  1988 , अखण्ड ज्योति   में  लिखी   उनकी  यह   बात  आज   अक्षरशः  सत्य  है   l  
      उनका    विचार  था  कि  इस  स्थिति    निपटने  के  लिए आध्यात्मिक   उपचार   ही  कारगर   होगा   l   व्यक्ति  अपने  विचारों  का  परिष्कार    करे ,  जीवन  को  श्रेष्ठ  बनाये  l  इससे  समाज  परिष्कृत    होगा   l 
  एक  प्रवचन  में   आचार्य श्री  ने  कहा  था  कि  हमारे  देश  में  सात - आठ  लाख  बाबाजी  हैं  जो  आलस  और  विलासिता  का  जीवन  जीते  हैं  ,  समाज  पर  बोझ  हैं  l  यदि  सात - आठ  बाबाजी   प्रत्येक  गाँव  में  जाकर   अपने  धर्म  के  पादरी बनकर   समाज  की  सेवा  करें    तो  शिक्षा  की  समस्या ,  सामाजिक  कुरीतियाँ ,  साक्षरता ,  गंदगी ,  पिछड़ापन   आदि  सभी  समस्याएं  ठीक  हो  जाएँ   l 
  धर्म  की  आड़  में  देवताओं  का  बहाना  करके   जो  ढोंग  है  वह  समाज  के  लिए  कष्टदायक  है  l  

11 August 2018

WISDOM ----- समाज के प्रति अपराध करने वाले को क्षमा नहीं किया जाये ------ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

  जिन  दिनों  डाकुओं  का  आत्मसमर्पण   होना  था  ,  उस  समय  आचार्य  विनोबा  भावे  से  एक  चर्चा  के  दौरान  आचार्य श्री  ने  कहा  था  --   जिसने  अपराध  किया  है  उसे  दंड  मिलना  ही  चाहिए  l  समाज  के  प्रति  अपराध  करने  वाले  को  क्षमा  नहीं  किया  जाये  l    अपराध  को  क्षमा  कर  देने  से  एक  नयी  परिपाटी  जन्म  लेगी   l     माफी  मांगकर  छूट  जायेंगे  ,  यह  सोचकर  दूसरे  लोग  भी  अपराध  में  प्रवृत  हो  सकते  हैं   l  
  विनोबा जी   का  कहना  था  कि   प्राचीनकाल  में  भी  ह्रदय  परिवर्तन  के  बाद  क्षमा  का  विधान  रहा  था  l  वाल्मीकि  और  अंगुलिमाल  इसके  सबसे  बड़े  उदाहरण  हैं  l 
  आचार्य श्री  ने  कहा  कि  वे  घटनाएँ  अपवाद  थीं   l  इसके  अतिरिक्त  उन्होंने  बाद  में  घनघोर  प्रायश्चित  भी  किया  था  l   डाकुओं  को  क्षमा  के  बाद  हम  तो  उन्हें  सम्मानित  जीवन  का  अवसर  दे  रहे  हैं  l   क्षमा  मिल  जाने  के  बाद  डाकू  रहेंगे  तो  समाज  में  ही   l  उनका  रौब - दाब  भी  रहेगा   l  जब  वे  सामान्य  नागरिक  की  तरह  स्वीकार  कर  लिए  गए   तो  भविष्य  में  उनका  राजनीतिक  उपयोग  भी   हो  सकता  है   l  चुनाव  आदि  के  समय     बागियों  के  रौब - दाब  का  इस्तेमाल  अपने  पक्ष  में  वोट  डालने  के  लिए  किया  जा  सकता  है   l  
  इतने    वर्ष  पहले  ( वर्ष  1960 )  में  आचार्य श्री  द्वारा  कही  गई  यह  बात  अक्षरशः  सत्य  है  l  आज  राजनीति  का  अपराधीकरण   हो  गया  है   l  यदि  सत्ता  ऐसे  हाथों  में  है  जिनका  नाम  किसी  न  किसी  अपराधिक  गतिविधि  में  है    तो  कितने  भी  कानून  बन  जाएँ  ,  समाज  में  बढ़ते  हुए  अपराधों   पर  नियंत्रण  रखना  कठिन  है   l   

10 August 2018

WISDOM --- माता - पिता की भांति धर्म भी व्यक्ति को जन्म के साथ ही मिलता है ----- महात्मा गाँधी

 ,  गाँधी  वाड्मय '  में  धर्म  परिवर्तन  पर   गांधीजी  के  विचार  बिखरे    पड़े  हैं  l  उन्होंने  लिखा  है  कि  जनक - जननी  को   जैसे    नहीं  बदला  जा  सकता  है  ,  उसी  प्रकार   धर्म  भी  नहीं  बदला जा  सकता  l  यदि  कोई  धर्म - परिवर्तन  का  प्रयास  करता  है  ,  तो  वह  प्रकृति  के  विरुद्ध  जाता  है  l   महात्मा  गाँधी  ने  यह  बात   अपने  पुत्र  हरिलाल   के  सम्बन्ध  में  कही  थी  l  संगति - दोष  के  कारण   हरिलाल  में   अनेक  बुरी  आदतें  घर  कर  गईं  थीं   l  हरिलाल  के  दुर्व्यसनी  होने  के  कारण  गांधीजी  उसे  पसंद  नहीं  करते  थे   l  कुछ  अवसरों  पर  गांधीजी  ने   अपने  इस  बेटे  को  स्वीकार  करने  से  भी  मना  कर  दिया  था  l  दुर्व्यसनों  के  कारण  हरिलाल  पर   कर्ज  भी  चढ़  गया  था  और  कर्ज  से  मुक्ति  पाने  की उनकी   स्थिति  नहीं  थी  l 
 धर्म - परिवर्तन  के  नीम  पर  जुटी  संस्थाओं   ने  इस  शर्त  पर  आर्थिक  सहायता  दी  कि  वह  अपना  धर्म  छोड़कर   दूसरा  धर्म  अपना  लेगा   l  हरिलाल ने  यह  शर्त  स्वीकार  कर  ली   l  महात्मा  गाँधी  से  उस  वक्त   पत्रकारों  ने  पूछा  था  कि  अब  आपका  क्या  कहना  है  ,  आपका  पुत्र  धर्म  बदल  रहा  है   l
 गांधीजी  ने  कहा  था  कि  जो  लोग  धर्मांतरण  को  सही  मान  रहे  हैं  ,  वे  गलत  हैं  l  हरिलाल  यदि  प्रलोभन  के  कारण    धर्मांतरण  कर  रहा  है  तो  कल  कुछ  और  संस्थाएं  उसे  वापस  भी  ला  सकती  हैं  l  ऐसा  ही  हुआ  ,  धर्म  सभा  के  नेताओं  ने  हरिलाल  को  समझा - बुझाकर  पुन:  हिन्दू  बना  लिया  l   आध्यात्मिक  द्रष्टि  से  धर्मांतरण  असंभव  कर्म  है  l  

9 August 2018

WISDOM ------

    विचार  और  भावनात्मक  क्षेत्र  की  विकृतियाँ   अनेक  शारीरिक  और  मानसिक  बीमारियों  को  जन्म  देती  हैं   l  विकृत  चिंतन  के  ही   कारण  व्यक्ति  अनैतिम  आचरण  करता  है   और  पापकर्म  में  संलग्न  होता  है    और  यही  रोगों  की  उत्पति का  मूल  कारण    है   l  

8 August 2018

WISDOM ------ जागरूक स माज में ही विभिन्न समस्याओं के समाधान संभव है

   काम ,  क्रोध ,  लोभ  ये  सब  मानसिक  विकार  हैं  ,  जो  व्यक्ति  की  बुद्धि  पर  हावी  हो  जाते  हैं   और  उसे  दुर्बुद्धि  में  बदल  देते  हैं  l   ऐसे  विकारों  से  ग्रस्त   व्यक्ति    यदि  धन  और  शक्ति संपन्न  है ,  वह   जब  ऐसे  क्षेत्रों  में     रहता    है  जहाँ  शिक्षा  व  जागरूकता  की  कमी  है ,  लोग  आर्थिक   द्रष्टि  से  कमजोर  हैं   , उनमे  अत्याचार  व  अन्याय  का  सामना  करने  की  हिम्मत  नहीं  है  ,  तो   ये  विकार  उस  व्यक्ति  को  उन्मत  कर  देते  हैं  ,    उसके  भीतर  का  राक्षस जग  जाता  है  ,  फिर  वह  अपनी  सामर्थ्य का   प्रयोग   ऐसे  कमजोर  लोगों  के  शोषण  व  अत्याचार  करने  के  लिए  करने  लगता  है   l 
  जब  समाज  जागरूक  होगा ,  अपने  बीच  रहने  वाले  ऐसे  अपराधियों  का  बहिष्कार  करेगा  ,  उनकी  गतिविधियों  को  समाज  के  सामने  बेनकाब  करेगा  ,  तभी   महिलाओं  और  छोटी  बच्चियों  पर  होने  वाले    अत्याचार  की  रोकथाम  संभव  है   l 
  अपराधी  कायर  होता  है  ,  वह  अकेला  नहीं  होता   l  ऐसे  लोगों  का  बहुत  बड़ा  गुट  होता   है  ,  उन  पर  किसी  न  किसी  का  वरद  हस्त  होता  है   तभी  वे  समाज  में  रहकर  ऐसे  अमानुषिक  कृत्य  करते  हैं  l   आज  की  सबसे  बड़ी  जरुरत  है   ऐसे  पिछड़े  क्षेत्रों  को   शिक्षित  और  जागरूक  करने  की    l  

7 August 2018

WISDOM ----- शरीर और मन परस्पर गुंथे हुए हैं , दोनों के प्रभावों की पारस्परिक क्रिया से ही आधि - व्याधि उत्पन्न होती है l

  आयुर्वेद  के  प्राचीन  ग्रन्थ  ' चरक  संहिता '  में  एक  प्रसंग  में  छात्र  अग्निवेश   अपने  गुरु  आचार्य  चरक  से  पूछता  है ----- " भगवन  ! संसार  में  पाए  जाने  वाले  अनेक  रोगों   का  मूल  कारण  क्या  है  ? "   आचार्य  ने  उत्तर  देते  हुए  कहा ---- "  लोगों  के   दुष्कर्म  जिस  स्तर  के  होते  हैं  ,  उसी  के  अनुरूप  उन्हें  पापों  का  प्रतिफल   शारीरिक  और  मानसिक   आधि - व्याधियों  के  रूप  में  प्राप्त  होता  है   l "
  प्राचीन  काल  में  लोग  उच्च  स्तरीय  आस्था  का   जीवन  जीते  थे  l   नैतिकता  का , उच्च  आदर्शों  का  उनके  जीवन  में  समावेश  था   l  इस  कारण  उस  समय  लोग  स्वस्थ  थे  ,  बीमारियाँ  इतनी  नहीं  थीं   l
      जबसे  लोग   उच्च स्तरीय  आस्थाओं  की  अवहेलना  करने  लगे  हैं ,  उनके  चिंतन  में  दुष्टता  और  आचरण  में  भ्रष्टता  का  समावेश   हुआ  है   तबसे  तनाव  और  बीमारियों    में  वृद्धि  हुई  है  l   आज  अधिसंख्य   व्यक्ति  किसी  न  किसी   प्रकार  के  मानसिक  रोग  से  त्रस्त  पाए  जाते  हैं   l  

6 August 2018

WISDOM --------

  भगवान  जिसकी  रक्षा  करते  हैं   वह  व्यक्ति  बिना  किसी  रक्षा  के  साधनों  के  भी  जीवित  रहता  है   और  उनके  द्वारा  अरक्षित  व्यक्ति   सारी  सुरक्षा  के  बाद  भी  जीवित  नहीं  रहता  l   तभी  तो  वन  में   छोड़ा  हुआ  अनाथ  भी  जीवित  रहता  है  ,  जबकि  घर  पर  हर  प्रकार   की  देख - रेख  एवं  बचाव  के  प्रयत्नों  के  उपरांत  भी  व्यक्ति  मृत्यु  को  प्राप्त  होता  है   l  

5 August 2018

WISDOM ------- हमें अपने जीवन में अच्छे और सकारात्मक विचारों के सहारे आगे बढ़ना चाहिए

  हमारा  जीवन  हमारे  दिमाग  में  चल  रहे  विचारों  का  ही  ठोस  रूप  है  l  जैसे  विचार  होंगे  , वैसी  ही  हमारी  भावनाएं  होंगी,  वैसा  ही  हमारा  व्यक्तित्व  होगा   और  वैसा  ही  हमारा  जीवन  होगा  l 
 हमें  अपने  विचारों  और  कल्पनाओं  में  अच्छी, श्रेष्ठ    व  उजली   भावनाओं  को  देखना  चाहिए  ,  इसी  से  हमें  अपने  जीवन  में  सफल  होने  में  मदद  मिलती  है   l   -----
  जब  रात्रि  में  गाड़ी  में  सफर  किया  जाता तो  उसकी  हेडलाईट    मात्र   सौ - दो सौ   मीटर  दूर  तक  ही   मार्ग  दिखा  पाती  है  ,  लेकिन  वाहन  चालक  की  कल्पना  में   हेडलाईट   से  दीखने  वाली   दूरी   नहीं  होती  बल्कि  उसकी  कल्पना  में  मंजिल  होती  है   l   इस  तरह  वाहन  चालक   पूरी  रात्रि  में   उस  सौ - दो  सौ   मीटर  के  उजाले  के  सहारे   कई  सौ  किलोमीटर  का  सफर  तय  कर  जाता  है  क्योंकि  दिखाई  देने  वाली  रोशनी  गाड़ी  के   आगे  बढ़ने  के  साथ - साथ  बढ़ती  जाती  है  l 
  जिस  तरह  वाहन  चालक  रात्रि  में  रोशनी  को  देखता  है   और  अपने  आस - पास  के  अँधेरे  को   नजरअंदाज  करता  है   l  उसी  तरह  हमें  भी  अपने  विचारों  और  कल्पनाओं  में   उजली  भावनाओं  को  देखना  चाहिए   l  यही  उजाला  हमें  जीवन में  सफल  बनाता  है   l        

3 August 2018

WISDOM ------ बुरे समय में चुप रहना चाहिए

  मानव  मन  के   मर्मज्ञ  कहते  हैं   की  बुरे  समय  में  चुप  रहना  सीखो   ---  दुःख  के  क्षण  में  ,  बुरे  समय  में  वाणी  का  प्रयोग  न्यूनतम  कर  देना  चाहिए  l   बुरे  समय  में  व्यक्ति  इतनी  घुटन  अवं  असहजता   अनुभव  करता   है   कि  उसकी  अभिव्यक्ति  वाणी  के  क्रूर  प्रयोग  के  रूप  में  होने  लगती  है   l 
  बुरे  समय  में  पीड़ित  व्यक्ति  अनर्गल  प्रलाप  करता  है  ,  अपनी  वेदना  का  दोषारोपण    औरों  पर  मढ़ता  है   और  स्वयं  को  निर्दोष  साबित  करता  है   l   तर्कहीन  प्रलाप  से  समस्या  सुलझने  के  बजाय  उलझ  जाती  है   l :;अत:  वाणी  के  प्रयोग  से  बचना  चाहिए   l 

1 August 2018

WISDOM ----------------

 सफलता  जिस  ताले  में  बंद  रहती  है   वह  दो  चाबियों  से  खुलता  है  -- एक  परिश्रम  और  दूसरा  सत्प्रयास  l  कोई  भी  ताला  यदि    बिना  चाबी  के    खोला  गया  तो   आगे  उपयोगी  नहीं  रहेगा   l  इसी  प्रकार  यदि  परिश्रम  और  प्रयास  का  माद्दा  अपने  अन्दर  पैदा   नहीं   किया  गया   तो   कोई  भी  थोपी  सफलता  टिक  न  सकेगी   l  जीवन  में  किये  गए  सत्कार्य  ही   स्वर्ग  की  घंटी  बजाते  हैं  l  दरवाजा  अवश्य  खुलेगा   l