एक बार एक नाव में एक गणितज्ञ यात्रा कर रहा था l उस नाव में वह और मांझी दो ही सवार थे l अपनी विद्वता की धाक जमाने के लिए गणितज्ञ ने माँझी से पूछा --- " तुमने कभी गणित पढ़ा है ? " माँझी ने कहा --- " नहीं , मैंने कभी नहीं पढ़ा l " गणितज्ञ बोला --- " तब तो तुम्हारी चार आने जिदगी बेकार चली गई l " उसने फिर पूछा --- " तुमने भूगोल तो पढ़ा ही होगा ? " माँझी ने कहा --- " नहीं बाबूजी ! भूगोल का क्या मतलब , मैं ये भी नहीं जनता l " सुनकर गणितज्ञ बोले ---- ' तब तो तुम्हारी और चार आना जिन्दगी बेकार चली गई l " माँझी चुप रहा , क्या कहता ! कुछ देर बाद देव योग से बड़ा जोर का तूफ़ान आया और नाव लड़खड़ाने लगी l नाव सँभालते हुए नाविक ने गणितज्ञ से पूछा -- " बाबूजी ! आपको तैरना तो आता होगा " गणितज्ञ घबराकर बोला --- " नहीं मैंने तो कभी तैरना नहीं सीखा l " अब नाविक बोला --- " गणित और भूगोल न जानने के कारण भले ही मेरी आठ आना जिन्दगी बेकार चली गई , परन्तु तैरना नहीं जानने के कारण तो आपकी पूरी जिन्दगी ही जा रही है l नाव का पार लगना मुश्किल है l आप तैरना जानते तो बच जाते l " अब गणितज्ञ ने महसूस किया कि कि जो समय पर काम आ जाए , वही सच्चा ज्ञान है l ज्ञान की उपयोगिता प्रत्येक व्यक्ति के लिए परिस्थिति व समय के अनुसार ही तय होती है l
7 February 2023
WISDOM -----
विधाता ने स्रष्टि की रचना की l समस्त प्राणियों में केवल मनुष्य के पास ही वह शक्ति है कि वह स्वयं का परिष्कार कर के चेतना के उच्च शिखरों तक पहुँच सकता है लेकिन लोभ , लालच , ईर्ष्या , द्वेष , कामना , वासना , स्वार्थ , महत्वाकांक्षा की जंजीरों में बंधा मनुष्य बहुत विवश है ! रावण महा ज्ञानी , विद्वान् , तपस्वी , परम शिव भक्त था , उसके पास तो सोने की लंका थी लेकिन सीता जी को पाने के लिए ' बेचारा ' हाथ में कटोरा लेकर भिखारी बन गया और वह भी वेश बदलकर , छुपते -छुपाते कोई देख न ले l दुर्योधन हस्तिनापुर का युवराज था , कोई कमी नहीं थी लेकिन ईर्ष्यालु था , पांडवों का सुख नहीं देख सकता था लेकिन महत्वाकांक्षा इतनी कि जब सब कौरव युद्ध में मारे जा चुके , वह अकेला बचा तब वस्त्रहीन होकर अपनी माँ के सामने जा रहा था ताकि माता गांधारी के तप का एक अंश उसे मिल जाए और उसका शरीर वज्र का हो जाये l इतिहास में ऐसे अनेकों उदाहरण हैं l संसार ने अनेकों युद्ध , प्राकृतिक आपदाएं , उतार -चढाव सब देखा , लेकिन शांति से जीना नहीं सीखा l ईश्वर ने मनुष्य को चयन की स्वतंत्रता दी है , मनुष्य को स्वयं निर्णय लेना है कि उसे असुर बनना है या चेतना का परिष्कार कर देव मानव बनने की ओर अग्रसर होना है l