7 February 2023

लघु -कथा ----

   एक  बार  एक  नाव  में   एक    गणितज्ञ   यात्रा  कर  रहा  था   l  उस  नाव  में   वह  और  मांझी  दो  ही  सवार  थे  l  अपनी  विद्वता  की  धाक  जमाने  के  लिए   गणितज्ञ   ने  माँझी  से  पूछा --- " तुमने  कभी  गणित  पढ़ा  है  ? "  माँझी  ने  कहा --- "  नहीं , मैंने  कभी   नहीं  पढ़ा  l "  गणितज्ञ  बोला  --- " तब  तो  तुम्हारी  चार  आने  जिदगी  बेकार  चली  गई  l "  उसने  फिर  पूछा  --- "  तुमने  भूगोल  तो  पढ़ा  ही  होगा   ?  "   माँझी  ने  कहा --- " नहीं  बाबूजी  ! भूगोल  का  क्या  मतलब , मैं  ये  भी  नहीं  जनता  l "  सुनकर  गणितज्ञ  बोले ---- ' तब  तो  तुम्हारी  और  चार  आना  जिन्दगी  बेकार  चली  गई  l  "  माँझी  चुप  रहा , क्या  कहता  !   कुछ  देर  बाद  देव  योग  से  बड़ा  जोर  का  तूफ़ान  आया   और  नाव  लड़खड़ाने  लगी  l  नाव  सँभालते  हुए  नाविक  ने  गणितज्ञ  से  पूछा -- " बाबूजी  !  आपको  तैरना  तो  आता  होगा   "  गणितज्ञ  घबराकर  बोला --- " नहीं  मैंने  तो  कभी  तैरना  नहीं   सीखा  l  "  अब  नाविक  बोला --- "  गणित  और  भूगोल  न  जानने  के  कारण  भले  ही  मेरी  आठ  आना  जिन्दगी  बेकार  चली  गई  ,  परन्तु  तैरना  नहीं  जानने  के  कारण  तो  आपकी  पूरी  जिन्दगी  ही  जा  रही  है  l  नाव  का  पार   लगना   मुश्किल  है  l  आप  तैरना  जानते  तो  बच  जाते  l "  अब  गणितज्ञ   ने  महसूस  किया  कि कि  जो  समय  पर  काम  आ  जाए  , वही  सच्चा  ज्ञान  है  l   ज्ञान  की  उपयोगिता  प्रत्येक  व्यक्ति  के  लिए  परिस्थिति  व  समय  के  अनुसार  ही   तय   होती  है  l 

WISDOM -----

   विधाता  ने  स्रष्टि  की  रचना  की   l  समस्त  प्राणियों  में  केवल  मनुष्य   के  पास  ही  वह  शक्ति  है   कि  वह  स्वयं  का  परिष्कार  कर  के  चेतना  के  उच्च  शिखरों  तक  पहुँच  सकता  है   लेकिन  लोभ , लालच , ईर्ष्या , द्वेष , कामना , वासना , स्वार्थ , महत्वाकांक्षा  की  जंजीरों  में  बंधा  मनुष्य    बहुत  विवश  है  !  रावण  महा ज्ञानी , विद्वान् , तपस्वी , परम  शिव  भक्त  था  , उसके  पास  तो  सोने  की  लंका  थी  लेकिन  सीता जी  को  पाने  के  लिए  ' बेचारा  ' हाथ  में  कटोरा  लेकर  भिखारी  बन  गया   और  वह  भी  वेश  बदलकर , छुपते -छुपाते   कोई  देख  न  ले  l  दुर्योधन  हस्तिनापुर  का  युवराज  था  , कोई  कमी  नहीं  थी   लेकिन  ईर्ष्यालु  था , पांडवों  का  सुख  नहीं  देख  सकता  था   लेकिन  महत्वाकांक्षा  इतनी  कि   जब  सब  कौरव   युद्ध  में  मारे  जा  चुके , वह  अकेला  बचा    तब  वस्त्रहीन  होकर  अपनी  माँ  के  सामने  जा  रहा  था   ताकि  माता  गांधारी  के  तप  का  एक  अंश  उसे  मिल  जाए  और  उसका  शरीर  वज्र  का  हो  जाये   l  इतिहास  में  ऐसे  अनेकों  उदाहरण  हैं   l     संसार    ने  अनेकों  युद्ध , प्राकृतिक  आपदाएं  , उतार -चढाव  सब  देखा  ,  लेकिन  शांति  से  जीना  नहीं  सीखा   l  ईश्वर  ने  मनुष्य  को  चयन  की  स्वतंत्रता  दी  है  , मनुष्य  को  स्वयं  निर्णय  लेना  है   कि   उसे  असुर  बनना  है  या  चेतना  का  परिष्कार  कर  देव मानव  बनने  की  ओर  अग्रसर  होना  है  l