शत्रुओं से घिरे एक नगर की प्रजा अपना माल , असबाब पीठ पर लादे हुए जान बचाकर भाग रही थी l सभी घबराए और दुःखी स्थिति में थे , पर उन्ही में से एक खाली हाथ चलने वाला व्यक्ति सिर ऊँचा किए , अकड़ कर चल रहा था l लोगों ने उससे पूछा ---- ' तेरे पास तो कुछ भी नहीं है , इतनी गरीबी के होते हुए फिर अकड़ किस बात की ? " दार्शनिक वायस ने कहा ---- " मेरे साथ जन्म भर की संगृहीत पूंजी है और उसके आधार पर अगले ही दिनों फिर अच्छा भविष्य सामने आ खड़ा होने का विश्वास है l यह पूंजी है , अच्छी परिस्थितियाँ फिर बना लेने की हिम्मत l इस पूंजी के रहते मुझे दुःखी होने और नीचा सिर करने की आवश्यकता ही क्या है ? "