20 September 2018

WISDOM ---- सच्चा लोकसेवी अपने सिद्धांतों और मर्यादा पर दृढ़ रहता है

  महात्मा  गाँधी  के  जीवन  में  ऐसे  कई   प्रसंग  आये  ,  जब  उन्हें  अपने  सिद्धांतों  की  रक्षा  के  लिए  द्रढ़ता  बरतने  की  आवश्यकता  हुई   l  परन्तु   गांधीजी  बिना  किसी  प्रकार  की   कटुता  व्यक्त  किये  ,  अपने  सिद्धांतों  पर  दृढ़  रहे   l---- उनके  विदेशी  मित्रों  ने  एक  बार  प्रीतिभोज  का  आयोजन  किया   l  उस  समय  गांधीजी  विदेश  में  पढ़  रहे  थे  l  भोज  में  मांस  भी  पकाया  गया   और  परोसा  जाने लगा  ,  तो  उन्होंने  मना करते  हुए  कहा   कि  मैं  इसका  इस्तेमाल  नहीं  करता   l  मित्रों  ने  समझाया  कि  इसमें  क्या  नुकसान  है   I डाक्टर   लोग  तो  इसे  स्वास्थ्य  वर्धक   बताते  हैं  l  गांधीजी  ने  कहा --- " परन्तु  यह  मेरा  व्रत  है  कि  मैं  कभी मांसाहार  नहीं  करूँगा  I "
  मित्र  वाद विवाद  पर  उतर आये   और  तर्क  देने  लगे  l  बहुत  संभव  था  कि  गाँधीजी    भी  वाद विवाद  करने  लगते  I  मित्रों  ने  यह  कहकर  तर्क युद्ध  छेड़ने  का  प्रयास  किया  कि  उस  व्रत  की  क्या  उपयोगिता  जिससे  लाभदायक  कार्यों  को  न  किया  जा  सके  I  तो  गांधीजी  ने  यह  कहकर  विवाद  को  एक  ही   वाक्य  में  समाप्त  कर  दिया  किया  कि----- " इस  समय  मैं  व्रत  की  आवश्यकता , उपयोगिता  का  बखान  नहीं  कर  रहा  हूँ ,  बल्कि  मेरे  लिए   अपनी  माँ  को  दिया  गया  वह  वचन  ही  काफी  है  ,  जिसमे  मैंने  मांस  न  खाने  और  शराब  न  छूने  का  संकल्प  लिया  था   l " 
  गांधीजी  के  मित्र  वहीँ  चुप  रह  गए  I  वहां  सिद्धांत  रक्षा  भी  हो  गई  और  कटुता  भी  उत्पन्न  न  हुई   I

WISDOM ---- करुणा के साथ संकल्प जुड़ना चाहिए

  दुःखियों  को  देखकर  आंसू  बहाने  वाले  तो  ढेरों  हैं  ,  दुःख  को  मिटाने  का ,  समस्या  के  समाधान  का  संकल्प  जरुरी  है   l
 समाज  में  जब  भी  कोई  ह्रदय - विदारक  घटना  घटती  है  ,  अनेक  लोग  --सामान्य  से  लेकर  अनेक  प्रतिष्ठित  लोग  सहानुभूति  जताने ,  आंसू  बहाने पहुँच  जाते  हैं  I जुलूस  निकालते  हैं ,  नारेबाजी  करते  हैं  लेकिन  दुष्टता  को  मिटाने  का  ,  पापियों  के  अंत  का  संकल्प  कोई  नहीं  लेता  I  इस  कारण  दुःखद  घटनाओं  की  पुनरावृति  होती  है   I
 श्री रामचरितमानस  में  एक   प्रकरण  है ,  ऋषियों  की अस्थियों  के  समूह  को  देखकर   भगवान  राम  व्याकुल  हो  गए  l  अरण्यकाण्ड  में  गोस्वामीजी  लिखते  हैं  -----
      अस्थि  समूह  देख  रघुराया  I  पूछी  मुनिन्ह   लागि  अति   दाया  I I
      निसिचर  निकर  सकल  मुनि  खाए  I  सुनि  रघुबीर  नयन  जल  छाए   II
 रघुनाथजी  की  आँखों  में  यह  द्रश्य  देखकर   आंसू  आ  गए  l  वे  द्रवित  हो  उठे   और  तुरंत  उन्होंने  घोषणा  की ----
  निसिचर  हीन   करऊँ  महि  भुज  उठाइ  पन  कीन्ह
 सकल  मुनिन्ह  के  आश्रमहिं  जाइ  जाइ  सुख  दीन्ह  I
    सारी  धरती  को   राक्षसों  से  विहीन  करने  की   उनने  भुजा  उठाकर   प्रण  के  साथ  घोषणा  की  l
  भगवान  राम  की  सच्ची  भक्ति  यही  है  कि  करुणा , दया  को  दिखाकर  ,  सबको  प्रभावित  करके   नहीं  रह  जाना  चाहिए  I   करुणा  संकल्प  के  साथ   जुड़नी  चाहिए   और  फिर  सक्रियता  में  बदलनी  चाहिए  , तभी  उसकी  सार्थकता  है   I