जीवन का एक महत्वपूर्ण नियम है ---- कृतज्ञता l कृतज्ञता का अर्थ है -- धन्यवाद देना l कृतज्ञ होने का भाव व्यक्ति को विनम्र बनाता है l ऐसा व्यक्ति अपने उपलब्ध साधनों के लिए ईश्वर का कृतज्ञ होता है l इतिहास में बहुत से महान व्यक्ति हुए हैं , जिन्होंने जीवन में अकल्पनीय उपलब्धियां हासिल कीं l परन्तु उनका श्रेय स्वयं न लेते हुए परमात्मा के प्रति कृतज्ञ रहे l यही गुण उन्हें महापुरुषों की श्रेणी में ला कर खड़ा करता है l
29 November 2019
28 November 2019
WISDOM -----
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी का कहना है कि ---" गायत्री साधना द्वारा आत्मोन्नति होती है , यह सुनिश्चित तथ्य है लेकिन केवल चौबीस अक्षरों वाले मन्त्र को रटने से काम चलने वाला नहीं है l सुबह जागकर गायत्री मन्त्र जपा और दिन भर ढेरों खुराफातें कीं l भला ऐसे कहीं गायत्री साधना संभव हो सकेगी l गायत्री को समझने के लिए गायत्री मन्त्र के अर्थ और भाव को समझना होगा l "
आचार्य श्री ने त्रिपदा गायत्री के तीन चरणों के ये व्यावहारिक अर्थ समझाए ---- " 1 . सकारात्मक सोच 2 . सुविधा - साधनों का सही - सही सदुपयोग 3 . शारीरिक व मानसिक श्रम की सही दिशा l " यह उनका सर्वथा नया व्यावहारिक चिंतन था जिसे गायत्री साधकों को आत्मसात करना चाहिए l
आचार्य श्री ने त्रिपदा गायत्री के तीन चरणों के ये व्यावहारिक अर्थ समझाए ---- " 1 . सकारात्मक सोच 2 . सुविधा - साधनों का सही - सही सदुपयोग 3 . शारीरिक व मानसिक श्रम की सही दिशा l " यह उनका सर्वथा नया व्यावहारिक चिंतन था जिसे गायत्री साधकों को आत्मसात करना चाहिए l
27 November 2019
WISDOM ----- धर्म का सार है संवेदना
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने लिखा है ---- ' धर्म एक शाश्वत नीति दर्शन का नाम है जो मूलत: संवेदना की धुरी पर जन्म लेता है l देव संस्कृति ने धर्म को इसी अर्थ में लिया है l यही कारण है कि इसके गर्भ में सभी मत - सम्प्रदाय पनपते - विकसित होते चले गए l '
आचार्य श्री आगे लिखते हैं --- मानव की संवेदना शीलता का विकास ही धर्म है l वस्तुत: धर्म हमें कर्तव्य की प्रेरणा देता है , साथ ही फल की ओर से तटस्थ रहने का आदेश भी देता है l धर्म का एकमेव लक्ष्य है --- त्याग , संवेदना का जागरण तथा पारस्परिक सद्भाव का विकास l इस भावना का जितना विस्तार होगा , धर्म की उतनी ही रक्षा होगी और आस्था संकट की विभीषिका भी तभी मिटेगी l '
संवेदना क्यों जरुरी है ? इस सम्बन्ध में यह प्रसंग है --- काशिराज युवराज संदीप के विकास से संतुष्ट थे l वे प्रात: ब्रह्म मुहूर्त में उठ जाते l व्यायाम , घुड़सवारी करते , समय पर अध्ययन और राजदरबार के कार्यों में रूचि लेना आदि प्रवृतियां ठीक थीं l एक क्षण भी न गंवाते और न किसी दुर्व्यसन में उलझते , किन्तु राज पुरोहित बार - बार आग्रह करते कि उन्हें कुछ वर्षों के लिए किसी संत के सान्निध्य में , आश्रम में रखने की व्यवस्था बनाई जाये l काशीराज सोचते थे कि राजकुमार को इसी क्रम में राजकार्य का अनुभव बढ़ाने का अवसर दिया जाये l
तभी एक घटना घटी l राजकुमार नगर भ्रमण के लिए घोड़े पर निकले l जहाँ वे रुकते स्नेह भाव से नागरिक उन्हें घेर लेते l एक बालक कुतूहलवश घोड़े के पास जाकर उसकी पूंछ सहलाने लगा l घोड़े ने लात फटकारी तो बालक दूर जा गिरा l उसके पैर की हड्डी टूट गई l राजकुमार ने देखा , हंसकर बोले , असावधानी बरतने वालों का यही हाल होता है , और आगे बढ़ गए l सिद्धान्तः बात सही थी लेकिन लोगों को व्यवहार खटक गया l
काशिराज को सारा विवरण मिला , तो वे भी दुःखी हुए l राजपुरोहित ने कहा ---- महाराज ! स्पष्ट हुआ है कि युवराज में संवेदनाओं का अभाव है l मात्र सतर्कता और सक्रियता के बल पर वे जनश्रद्धा का अर्जन और पोषण नहीं कर पाएंगे l हो सकता है कभी क्रूर कर्मी भी बन जाएँ l इसलिए समय रहते युवराज की इस कमी को पूरा कर लिया जाना चाहिए l राजा का समाधान हो गया और उन्होंने राजपुरोहित के मतानुसार व्यवस्था कर दी l
आचार्य श्री आगे लिखते हैं --- मानव की संवेदना शीलता का विकास ही धर्म है l वस्तुत: धर्म हमें कर्तव्य की प्रेरणा देता है , साथ ही फल की ओर से तटस्थ रहने का आदेश भी देता है l धर्म का एकमेव लक्ष्य है --- त्याग , संवेदना का जागरण तथा पारस्परिक सद्भाव का विकास l इस भावना का जितना विस्तार होगा , धर्म की उतनी ही रक्षा होगी और आस्था संकट की विभीषिका भी तभी मिटेगी l '
संवेदना क्यों जरुरी है ? इस सम्बन्ध में यह प्रसंग है --- काशिराज युवराज संदीप के विकास से संतुष्ट थे l वे प्रात: ब्रह्म मुहूर्त में उठ जाते l व्यायाम , घुड़सवारी करते , समय पर अध्ययन और राजदरबार के कार्यों में रूचि लेना आदि प्रवृतियां ठीक थीं l एक क्षण भी न गंवाते और न किसी दुर्व्यसन में उलझते , किन्तु राज पुरोहित बार - बार आग्रह करते कि उन्हें कुछ वर्षों के लिए किसी संत के सान्निध्य में , आश्रम में रखने की व्यवस्था बनाई जाये l काशीराज सोचते थे कि राजकुमार को इसी क्रम में राजकार्य का अनुभव बढ़ाने का अवसर दिया जाये l
तभी एक घटना घटी l राजकुमार नगर भ्रमण के लिए घोड़े पर निकले l जहाँ वे रुकते स्नेह भाव से नागरिक उन्हें घेर लेते l एक बालक कुतूहलवश घोड़े के पास जाकर उसकी पूंछ सहलाने लगा l घोड़े ने लात फटकारी तो बालक दूर जा गिरा l उसके पैर की हड्डी टूट गई l राजकुमार ने देखा , हंसकर बोले , असावधानी बरतने वालों का यही हाल होता है , और आगे बढ़ गए l सिद्धान्तः बात सही थी लेकिन लोगों को व्यवहार खटक गया l
काशिराज को सारा विवरण मिला , तो वे भी दुःखी हुए l राजपुरोहित ने कहा ---- महाराज ! स्पष्ट हुआ है कि युवराज में संवेदनाओं का अभाव है l मात्र सतर्कता और सक्रियता के बल पर वे जनश्रद्धा का अर्जन और पोषण नहीं कर पाएंगे l हो सकता है कभी क्रूर कर्मी भी बन जाएँ l इसलिए समय रहते युवराज की इस कमी को पूरा कर लिया जाना चाहिए l राजा का समाधान हो गया और उन्होंने राजपुरोहित के मतानुसार व्यवस्था कर दी l
26 November 2019
WISDOM ------ गौ माता कामधेनु
गौ सेवा के अग्रणी सेठ जमनालाल बजाज वृंदावन गए थे , वहां उन्हें जो अनुभूति हुई उससे वे सोचने लगे कि भारतीय संस्कृति में गौ को माँ कहकर पूजनीय माना जाता है लेकिन उसे घरों में बांधकर चारा - पानी के लिए तरसाने वाले कम नहीं है , दूध की आखिरी बूंद तक दुहकर बछड़े को भूख से तड़पता छोड़ने वाले भी गाय को माता कहते हैं l
एक वृद्ध खानसामा उन्हें बताया कि ---' एक अमेरिकन पशु विशेषज्ञ मि. ह्यूमैन भारत आये थे l गायों की नस्ल सुधारने के लिए उन्होंने कई देशों का भ्रमण किया l संस्कृत का अध्ययन किया l उनका कहना था कि पुस्तकों में गाय को कामधेनु कहा गया है l उन्हें इस बात की धुन लगी थी कि मैं संस्कृत की इन पुस्तकों में लिखे एक - एक शब्द का प्रयोग करूँगा l हमारे पवित्र ग्रंथों में गाय की जो महिमा है , उसकी सच्चाई जानने की उन्हें ललक थी l
उन्होंने आगरा से पंद्रह मील दूर एक ढाक का जंगल खरीद लिया और वही अपना छोटा सा बंगला बना लिया l उस बंगले पर ह्यूमन साहब , वह खानसामा , कपिला गाय और उसकी बछड़ी रहते थे l
ह्यूमैन साहब ने अपने जीवन , रहन - सहन सबमें परिवर्तन कर लिया , चाय भी छोड़ दी l गाय के ऊपर मक्खी - मच्छर उड़ाते , शाम से गाय के पास दीपक जलाते जो रात भर जलता , वहीँ चटाई बिछाकर सोते , बहुत सेवा करते l वह खानसामा दोपहर को जंगल में खाना दे आता l छह महीने बीत गए l एक दिन उसने सोचा कि देखें यह साहब जंगल में क्या करते हैं l वह एक झाड़ी में छुप गया l और जो दृश्य देखा तो चीख कर बेहोश हो गया --- गाय ढाक के पेड़ के नीचे बैठी थी , बछड़ी पास में फुदक रही थी , साहब घुटनों के बल बैठे हाथ जोड़ प्रार्थना कर रहे थे , उनकी आँखों से निरंतर आंसू झर रहे थे और आश्चर्य ! वह गाय साफ अंग्रेजी बोल रही थी l
यह अनुभूति बताते हुए उसकी आँखें भर आईं l
उसने बताया कि ह्यूमन साहब तो अब नहीं रहे , सामने जो गाय है वह उसी कपिला गाय कामधेनु की बछड़ी है l उसने उन्हें ढाक के पत्ते से दोना बनाकर दिया और कहा कि गाय के थन के पास बैठ जाओ l गाय से कहा --- ' अम्मा , मेहमान आये हैं अपने घर l ' और आश्चर्य ! गाय के चारों थनों से दूध की धारा बहने लगी , ऐसा स्वादिष्ट दूध उन्होंने पहले कभी नहीं पिया था l
वृंदावन की इस अनुभूति ने जमनालाल जी के जीवन में चमत्कारी परिवर्तन किये l अक्टूबर 1 9 4 1 में उन्होंने वर्धा में गौ सेवा संघ की स्थापना की l नाम और यश से दूर गौ -पुरी में निवास किया l श्रद्धा और विश्वास से , सत्य के अन्वेषक के लिए सब कुछ संभव है l
एक वृद्ध खानसामा उन्हें बताया कि ---' एक अमेरिकन पशु विशेषज्ञ मि. ह्यूमैन भारत आये थे l गायों की नस्ल सुधारने के लिए उन्होंने कई देशों का भ्रमण किया l संस्कृत का अध्ययन किया l उनका कहना था कि पुस्तकों में गाय को कामधेनु कहा गया है l उन्हें इस बात की धुन लगी थी कि मैं संस्कृत की इन पुस्तकों में लिखे एक - एक शब्द का प्रयोग करूँगा l हमारे पवित्र ग्रंथों में गाय की जो महिमा है , उसकी सच्चाई जानने की उन्हें ललक थी l
उन्होंने आगरा से पंद्रह मील दूर एक ढाक का जंगल खरीद लिया और वही अपना छोटा सा बंगला बना लिया l उस बंगले पर ह्यूमन साहब , वह खानसामा , कपिला गाय और उसकी बछड़ी रहते थे l
ह्यूमैन साहब ने अपने जीवन , रहन - सहन सबमें परिवर्तन कर लिया , चाय भी छोड़ दी l गाय के ऊपर मक्खी - मच्छर उड़ाते , शाम से गाय के पास दीपक जलाते जो रात भर जलता , वहीँ चटाई बिछाकर सोते , बहुत सेवा करते l वह खानसामा दोपहर को जंगल में खाना दे आता l छह महीने बीत गए l एक दिन उसने सोचा कि देखें यह साहब जंगल में क्या करते हैं l वह एक झाड़ी में छुप गया l और जो दृश्य देखा तो चीख कर बेहोश हो गया --- गाय ढाक के पेड़ के नीचे बैठी थी , बछड़ी पास में फुदक रही थी , साहब घुटनों के बल बैठे हाथ जोड़ प्रार्थना कर रहे थे , उनकी आँखों से निरंतर आंसू झर रहे थे और आश्चर्य ! वह गाय साफ अंग्रेजी बोल रही थी l
यह अनुभूति बताते हुए उसकी आँखें भर आईं l
उसने बताया कि ह्यूमन साहब तो अब नहीं रहे , सामने जो गाय है वह उसी कपिला गाय कामधेनु की बछड़ी है l उसने उन्हें ढाक के पत्ते से दोना बनाकर दिया और कहा कि गाय के थन के पास बैठ जाओ l गाय से कहा --- ' अम्मा , मेहमान आये हैं अपने घर l ' और आश्चर्य ! गाय के चारों थनों से दूध की धारा बहने लगी , ऐसा स्वादिष्ट दूध उन्होंने पहले कभी नहीं पिया था l
वृंदावन की इस अनुभूति ने जमनालाल जी के जीवन में चमत्कारी परिवर्तन किये l अक्टूबर 1 9 4 1 में उन्होंने वर्धा में गौ सेवा संघ की स्थापना की l नाम और यश से दूर गौ -पुरी में निवास किया l श्रद्धा और विश्वास से , सत्य के अन्वेषक के लिए सब कुछ संभव है l
25 November 2019
WISDOM -----
श्रीमद भगवद्गीता में भगवान कहते हैं --- ज्ञानी का लक्षण यह है कि वह जीवन के प्रत्येक दुःख , प्रत्येक कष्ट में दूसरों के नहीं , अपने दोष ढूंढता है l वह सोचता है कि जरूर हमने कोई दोष किया , कोई भूल हुई हमसे , जिसका परिणाम हम भोग रहे हैं l
लेकिन अज्ञानी हमेशा दूसरों को दोषी ठहरता है इसलिए वह अपने दोषों से मुक्त नहीं होता है l
यदि अपने हर दुःख , कष्ट , पीड़ा और हर रोग में हमें अपनी कमियां , अपने दोष समझ में आने लगें तो हम आगे ऐसी गलतियां नहीं करेंगे जिनके कारन जीवन दुःखमय हो गया l
जब मन में यह सत्य गहराई से बैठ गया कि सभी दुःख हमारे अपने ही कारण पैदा हुए हैं , ऐसा होश आने पर हम उन कारणों को हटाने लगेंगे l और हमारा मन संस्कारित होने लगेगा l
लेकिन अज्ञानी हमेशा दूसरों को दोषी ठहरता है इसलिए वह अपने दोषों से मुक्त नहीं होता है l
यदि अपने हर दुःख , कष्ट , पीड़ा और हर रोग में हमें अपनी कमियां , अपने दोष समझ में आने लगें तो हम आगे ऐसी गलतियां नहीं करेंगे जिनके कारन जीवन दुःखमय हो गया l
जब मन में यह सत्य गहराई से बैठ गया कि सभी दुःख हमारे अपने ही कारण पैदा हुए हैं , ऐसा होश आने पर हम उन कारणों को हटाने लगेंगे l और हमारा मन संस्कारित होने लगेगा l
23 November 2019
WISDOM ----- सकारात्मक सोच जीवन को ऊर्जा से भर देती है
राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन उन दिनों बीमार थे l उन्हें देखने के लिए उनके एक पुराने साथी प्रयाग गए l तब राजर्षि ने बातों ही बातों में अपना एक संस्मरण सुनाया ----- " किसी समय मैं
देशी रियासतों में राजाओं का सुधार करने के लिए एक आदर्श योजना बना रहा था ताकि यह दिखाने का अवसर मिले कि भारतीय अंग्रेजों से अच्छा शासन कर सकते हैं l इसी उद्देश्य के लिए बनाई गई योजना को क्रियान्वित करने मैंने नाभा रियासत में नौकरी की , परन्तु मैं असफल
रहा l " उनके मित्र ने कहा --- " यह तो बड़ा अच्छा रहा l '
टंडन जी बोले ---- " यही तो मैं भी कहना चाहता था l अंग्रेजों के कारण मैं असफल हुआ तो मैंने अपना ध्यान अंग्रेजों को यहाँ से हटाने में लगाया l ईश्वर के प्रति मैं धन्यवाद से भर गया हूँ l नाभा में सफल होने पर संभव था मैं कूपमंडूक बना रह जाता l इस असफलता ने मेरे लिए सफलता और साधना का नया द्वार खोल दिया l '
अपने कार्यों मिली सफलता - असफलता के प्रति समान दृष्टि और सकारात्मक सोच अपनाने से ही वे राजर्षि उपाधि के अधिकारी सिद्ध होते रहे l यह प्रसंग हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा दायक है जो असफलताओं से जूझ रहे हैं , आगे बढ़ने को प्रयत्नशील हैं l
देशी रियासतों में राजाओं का सुधार करने के लिए एक आदर्श योजना बना रहा था ताकि यह दिखाने का अवसर मिले कि भारतीय अंग्रेजों से अच्छा शासन कर सकते हैं l इसी उद्देश्य के लिए बनाई गई योजना को क्रियान्वित करने मैंने नाभा रियासत में नौकरी की , परन्तु मैं असफल
रहा l " उनके मित्र ने कहा --- " यह तो बड़ा अच्छा रहा l '
टंडन जी बोले ---- " यही तो मैं भी कहना चाहता था l अंग्रेजों के कारण मैं असफल हुआ तो मैंने अपना ध्यान अंग्रेजों को यहाँ से हटाने में लगाया l ईश्वर के प्रति मैं धन्यवाद से भर गया हूँ l नाभा में सफल होने पर संभव था मैं कूपमंडूक बना रह जाता l इस असफलता ने मेरे लिए सफलता और साधना का नया द्वार खोल दिया l '
अपने कार्यों मिली सफलता - असफलता के प्रति समान दृष्टि और सकारात्मक सोच अपनाने से ही वे राजर्षि उपाधि के अधिकारी सिद्ध होते रहे l यह प्रसंग हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा दायक है जो असफलताओं से जूझ रहे हैं , आगे बढ़ने को प्रयत्नशील हैं l
22 November 2019
WISDOM ------ कर्मयोग
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी का कहना था ---- ' कर्मयोग परिश्रम की पराकाष्ठा का नाम है और जो परिश्रम को ही त्याग बैठते हैं , वे जीवन के किसी भी आयाम में न तो उन्नति कर पाते हैं और न ही व्यक्तित्व की समग्रता को प्राप्त कर पाते हैं l श्रम की उपेक्षा ही हमारे समाज में दरिद्रता का कारण है l वे कहते हैं कि भारतीय समाज ने विकास के दोहरे मानदंड तय कर लिए हैं l हम श्रम करने वालों से तो घृणा करते हैं और बिना मेहनत , आराम का अन्न खाने वालों को ऊँचा स्थान देते हैं , इसलिए यह देश दरिद्रता के गर्त में गिरता चला गया और अपनी समृद्धि गँवा बैठा l
आचार्य जी कहते हैं --- अध्यात्म का पहला पाठ परिश्रम और ईमानदारी से प्राप्त समृद्धि है और यह कर्मयोग से ही प्राप्त होती है l '
आचार्य जी कहते हैं --- अध्यात्म का पहला पाठ परिश्रम और ईमानदारी से प्राप्त समृद्धि है और यह कर्मयोग से ही प्राप्त होती है l '
21 November 2019
WISDOM ------ गोस्वामी तुलसीदास जी
राम कथा उनसे पहले भी प्रचलित थी , लेकिन संस्कृत में ही l जान साधारण को उससे न तो प्रेरणा मिलती थी और न ही दिशा l गोस्वामी जी ने रामकथा के इर्द - गिर्द खींची गई इन रेखाओं को मिटाया और उसे सार्वजनीन बनाया l तुलसीदास जी ने मध्यकाल के उस अंधकार युग में रामकथा को संबल बनाया और उसमे आश्रय ग्रहण करने की प्रेरणा दी l लोगों ने उस आश्रय को ग्रहण भी किया l तुलसी की राम कथा किसी भी समय , परिस्थिति और समस्या में उपचार की तरह सामने आती है l
हिंदू और इस्लाम दोनों ही धर्मों के लोग उनका सम्मान करते थे l अब्दुर्रहीम खानखाना से उनकी मित्रता विख्यात थी l रहीम ने मानस के संबंध में कुछ पद भी रचे और कहा यह काव्य हिन्दुओं के लिए वेद और मुसलमानों के लिए कुरान है ' हिन्दुआन को वेदा सम , तुरुकहि प्रगट कुरान l '
अकबर के नवरत्नों में से टोडरमल तुलसीदास जी के प्रति अगाध श्रद्धा रखते थे l उनके सहयोग से ही गोस्वामी जी ने राम जन्म भूमि स्थल के दक्षिण द्वार के पास बैठकर राम कथा कही थी l
उनके कुछ विरोधियों ने मानस को नष्ट करने की चेष्टा की , चुराने के लिए चोर भेजे l जन श्रुति है कि चोर जब उनकी कुटिया में घुसने लगे तो दो धनुर्धारियों को पहरा देते देख वापस चले गए l ये धनुर्धारी राम और लक्ष्मण ही थे l अपने इष्ट को पहरा देते देख उन्हें कष्ट नहीं होने देने के लिए गोस्वामी जी ने मानस की प्रति राजा टोडरमल के यहाँ रखवा दी l ऐतिहासिक तथ्य है कि विरोध का समाहार करने के लिए गोस्वामी जी को टोडरमल , रहीम , आचार्य मधुसूदन आदि विद्वद्जनों ने सहायता की थी l
एक स्थान पर तुलसीदास जी नाथपंथियों की आलोचना भी करते हैं l उनका कहना था कि योगतंत्र और शरीर साधनाओं में ऊर्जावान चित , स्थिर मन: स्थिति और सुदृढ़ मनोभूमि चाहिए l सौ में से एक - दो साधक ही यह स्थिति अर्जित कर पाते हैं l इसलिए जन सामान्य भक्ति मार्ग अपनाकर ही अपना आत्मिक विकास कर सकता है l
तुलसीदास जी का यह दोहा प्रख्यात है ----
हम चाकर रघुवीर के , पट्यौ लिख्यौ दरबार
तुलसी अब का होहिंगे , नर के मनसबदार l
हिंदू और इस्लाम दोनों ही धर्मों के लोग उनका सम्मान करते थे l अब्दुर्रहीम खानखाना से उनकी मित्रता विख्यात थी l रहीम ने मानस के संबंध में कुछ पद भी रचे और कहा यह काव्य हिन्दुओं के लिए वेद और मुसलमानों के लिए कुरान है ' हिन्दुआन को वेदा सम , तुरुकहि प्रगट कुरान l '
अकबर के नवरत्नों में से टोडरमल तुलसीदास जी के प्रति अगाध श्रद्धा रखते थे l उनके सहयोग से ही गोस्वामी जी ने राम जन्म भूमि स्थल के दक्षिण द्वार के पास बैठकर राम कथा कही थी l
उनके कुछ विरोधियों ने मानस को नष्ट करने की चेष्टा की , चुराने के लिए चोर भेजे l जन श्रुति है कि चोर जब उनकी कुटिया में घुसने लगे तो दो धनुर्धारियों को पहरा देते देख वापस चले गए l ये धनुर्धारी राम और लक्ष्मण ही थे l अपने इष्ट को पहरा देते देख उन्हें कष्ट नहीं होने देने के लिए गोस्वामी जी ने मानस की प्रति राजा टोडरमल के यहाँ रखवा दी l ऐतिहासिक तथ्य है कि विरोध का समाहार करने के लिए गोस्वामी जी को टोडरमल , रहीम , आचार्य मधुसूदन आदि विद्वद्जनों ने सहायता की थी l
एक स्थान पर तुलसीदास जी नाथपंथियों की आलोचना भी करते हैं l उनका कहना था कि योगतंत्र और शरीर साधनाओं में ऊर्जावान चित , स्थिर मन: स्थिति और सुदृढ़ मनोभूमि चाहिए l सौ में से एक - दो साधक ही यह स्थिति अर्जित कर पाते हैं l इसलिए जन सामान्य भक्ति मार्ग अपनाकर ही अपना आत्मिक विकास कर सकता है l
तुलसीदास जी का यह दोहा प्रख्यात है ----
हम चाकर रघुवीर के , पट्यौ लिख्यौ दरबार
तुलसी अब का होहिंगे , नर के मनसबदार l
20 November 2019
WISDOM ---- स्वयं को सार्थक कार्यों में संलग्न रख चिंता से दूर रहें
चिंता घुन की तरह होती है , यदि यह घुन लग जाये तो व्यक्ति को अंदर से खोखला कर देती है l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी कहते थे --- ' चिंता मनुष्य को वैसे ही खा जाती है , जैसे कपड़ों को कीड़ा l बहुत चिंता करने वाले व्यक्ति अपने जीवन में चिंता करने के सिवा और कुछ सार्थक नहीं कर पाते और चिंता से अपनी चिता की और बढ़ते हैं l '
चिंता की घुन क्या होती है इसे समझाने वाला एक आख्यान है ---- दो वैज्ञानिक -- एक वृद्ध एक युवा --- आपस में बात कर रहे हैं l वृद्ध वैज्ञानिक ने कहा --- चाहे विज्ञान कितनी ही प्रगति क्यों न कर ले , लेकिन वह अभी तक कोई ऐसा उपकरण नहीं ढूंढ पाया , जिससे चिंता पर लगाम कासी जा सके l " युवा वैज्ञानिक ने कहा --- 'चिंता तो बहुत साधारण बात है , उसके लिए उपकरण की क्या आवश्यकता l '
वृद्ध वैज्ञानिक ने कहा --- ' चिंता बहुत भयानक होती है l ' इसे समझने के लिए वे उस युवा वैज्ञानिक को जंगल ले गए l एक विशालकाय वृक्ष के सामने खड़े हुए और कहा --- देखो , इस वृक्ष की उम्र चार सौ वर्ष है l इन चार सौ वर्षों में इस वृक्ष ने कितने आंधी - तूफान झेले , अनेकों बार इस पर बिजली गिरी , लेकिन इन सबसे यह धराशायी नहीं हुआ l लेकिन इसकी जड़ों को देखो उन्हें दीमक ने खोखला कर दिया है l इसी तरह चिंता दीमक की तरह सुखी , समृद्ध और ताकतवर व्यक्ति को खोखला कर देती है l
आचार्य श्री का कहना है --- ' स्वयं को सदा सार्थक कार्यों में संलग्न रखें , , मन को अच्छे विचारों से ओत - प्रोत रखें और जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखने से मन को चिंता मुक्त रखा जा सकता है l
चिंता की घुन क्या होती है इसे समझाने वाला एक आख्यान है ---- दो वैज्ञानिक -- एक वृद्ध एक युवा --- आपस में बात कर रहे हैं l वृद्ध वैज्ञानिक ने कहा --- चाहे विज्ञान कितनी ही प्रगति क्यों न कर ले , लेकिन वह अभी तक कोई ऐसा उपकरण नहीं ढूंढ पाया , जिससे चिंता पर लगाम कासी जा सके l " युवा वैज्ञानिक ने कहा --- 'चिंता तो बहुत साधारण बात है , उसके लिए उपकरण की क्या आवश्यकता l '
वृद्ध वैज्ञानिक ने कहा --- ' चिंता बहुत भयानक होती है l ' इसे समझने के लिए वे उस युवा वैज्ञानिक को जंगल ले गए l एक विशालकाय वृक्ष के सामने खड़े हुए और कहा --- देखो , इस वृक्ष की उम्र चार सौ वर्ष है l इन चार सौ वर्षों में इस वृक्ष ने कितने आंधी - तूफान झेले , अनेकों बार इस पर बिजली गिरी , लेकिन इन सबसे यह धराशायी नहीं हुआ l लेकिन इसकी जड़ों को देखो उन्हें दीमक ने खोखला कर दिया है l इसी तरह चिंता दीमक की तरह सुखी , समृद्ध और ताकतवर व्यक्ति को खोखला कर देती है l
आचार्य श्री का कहना है --- ' स्वयं को सदा सार्थक कार्यों में संलग्न रखें , , मन को अच्छे विचारों से ओत - प्रोत रखें और जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखने से मन को चिंता मुक्त रखा जा सकता है l
19 November 2019
WISDOM -----
गाँधी जी ने राम - नाम जपा l कोई अनुष्ठान नहीं , कोई विशिष्ट तप - व्रत नहीं l जो भी उनके उपवास हुए , वे राष्ट्रहित में किये गए l गाँधी जी विश्व भर में अहिंसा के पुजारी के रूप में , असहयोग एवं सविनय अवज्ञा के पालन कर्ता के रूप में तथा सत्य के प्रयोगों के लिए जाने जाते हैं l विश्व के अनेक देशों के लोग यह मानते हैं कि आज की सभी समस्याओं का समाधान गाँधी की अहिंसा में निहित है l
अहिंसा के लिए कहा जाता है कि यदि योगी अहिंसा में सम्पूर्णतया प्रतिष्ठित हो तो उसके आस - पास निर्वैरता व्याप्त हो जाती है l सांप और नेवला भी अपना वैर भुलाकर साथ बैठते - खेलते हैं l पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी का कहना है --- ' मनुष्य में प्राकृतिक वैर नहीं है उस का वैर विकृतियों से उपजा है l ' इसलिए ईसा मसीह , सुकरात प्रकृति एवं प्राणियों के द्वारा नहीं , बल्कि विकृत मनुष्यों द्वारा मारे गए l अहिंसा के पुजारी महात्मा गाँधी के सीने पर हिंसा ने गोली बरसाई l यदि हृदय में संवेदना हो तो संसार की समस्त समस्याएं हल हो जाएँ l
अहिंसा के लिए कहा जाता है कि यदि योगी अहिंसा में सम्पूर्णतया प्रतिष्ठित हो तो उसके आस - पास निर्वैरता व्याप्त हो जाती है l सांप और नेवला भी अपना वैर भुलाकर साथ बैठते - खेलते हैं l पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी का कहना है --- ' मनुष्य में प्राकृतिक वैर नहीं है उस का वैर विकृतियों से उपजा है l ' इसलिए ईसा मसीह , सुकरात प्रकृति एवं प्राणियों के द्वारा नहीं , बल्कि विकृत मनुष्यों द्वारा मारे गए l अहिंसा के पुजारी महात्मा गाँधी के सीने पर हिंसा ने गोली बरसाई l यदि हृदय में संवेदना हो तो संसार की समस्त समस्याएं हल हो जाएँ l
18 November 2019
WISDOM
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी का कहना है ---- " विपरीत परिस्थितियों में जो साहस , ईमान और धैर्य को कायम रख सके , वस्तुत: वही सच्चा शूरवीर है l "
मनोविज्ञान के प्रोफेसर रिचर्ड वाइजमैन का कहना है --- " बाधाएं मनुष्य के रवैये के अनुसार अपना रंग दिखाती हैं l यदि व्यक्ति सकारात्मक सोच वाला है तो बाधाएँ स्पीड ब्रेकर से अधिक कुछ नहीं होतीं , जिन्हे थोड़ा संभलकर आसानी से पार किया जा सकता है और यदि सोच नकारात्मक है तो बाधाएं पहाड़ की तरह बड़ी प्रतीत होती हैं , जिन्हे पार करना आसान नहीं दीखता l "
एक बार जब विख्यात खोजी यात्री डेविड लिविंगस्टोन अफ्रीका के घने जंगलों में जांबेजी नदी के मुहाने की खोज के लिए निकल रहे थे , तब उनके एक दोस्त ने उन्हें जंगल के मुश्किल हालातों का जिक्र करते हुए उन्हें जाने से रोकना चाहा l लेकिन लिविंगस्टोन ने कहा --- ' जब नदी वहां रास्ता बना सकती है , पेड़ - पौधे व जीव - जंतु वहां रह सकते हैं , तो मुझे वहां जाने से कौन रोक सकता है l " वे उस भयंकर वन में गए और उन्होंने उस समय की जटिल परिस्थितियों में भी अनेक खोजी यात्राएं कीं , जो अफ्रीका के इतिहास में अभी भी दर्ज है l
मनोविज्ञान के प्रोफेसर रिचर्ड वाइजमैन का कहना है --- " बाधाएं मनुष्य के रवैये के अनुसार अपना रंग दिखाती हैं l यदि व्यक्ति सकारात्मक सोच वाला है तो बाधाएँ स्पीड ब्रेकर से अधिक कुछ नहीं होतीं , जिन्हे थोड़ा संभलकर आसानी से पार किया जा सकता है और यदि सोच नकारात्मक है तो बाधाएं पहाड़ की तरह बड़ी प्रतीत होती हैं , जिन्हे पार करना आसान नहीं दीखता l "
एक बार जब विख्यात खोजी यात्री डेविड लिविंगस्टोन अफ्रीका के घने जंगलों में जांबेजी नदी के मुहाने की खोज के लिए निकल रहे थे , तब उनके एक दोस्त ने उन्हें जंगल के मुश्किल हालातों का जिक्र करते हुए उन्हें जाने से रोकना चाहा l लेकिन लिविंगस्टोन ने कहा --- ' जब नदी वहां रास्ता बना सकती है , पेड़ - पौधे व जीव - जंतु वहां रह सकते हैं , तो मुझे वहां जाने से कौन रोक सकता है l " वे उस भयंकर वन में गए और उन्होंने उस समय की जटिल परिस्थितियों में भी अनेक खोजी यात्राएं कीं , जो अफ्रीका के इतिहास में अभी भी दर्ज है l
17 November 2019
WISDOM -----
बड़प्पन एक मानवीय गुण है l इसका तात्पर्य --- अपने नुकसान एवं हानि को सहर्ष झेलते हुए , कष्ट - कठिनाइयों को सहजता से अपनाते हुए , अपमान को भी सहते हुए , केवल दूसरों का कल्याण सोचना , दूसरों को ख़ुशी एवं प्रसन्नता प्रदान करना l बड़प्पन सत्य का साथ देने में है l बड़प्पन केवल वही प्राप्त कर सकता है , जो वास्तव में बड़ा होता है , आडम्बर व प्रदर्शन नहीं करता l
गाँधी जी ने वकालत प्रारंभ की l उन्होंने केवल सही अधिकारों के लिए ही पैरवी करने का फैसला किया l उनके एक मुवक्किल ने उन्हें अपना गलत पक्ष नहीं बताया , उन्होंने उसका केस ले लिया l बाद में जब पता लगा , तो कोर्ट में उन्होंने बहस नहीं की , तारीख बढ़ गई l कोर्ट से लौटकर उन्होंने उस मुवक्किल को उसकी दी हुई फीस वापस कर दी l
लोगों ने कहा --- आप फीस ले चुके हैं , अब केस वापस मत कीजिए l वकीलों को थोड़ा - बहुत तो इधर - उधर करना ही पड़ता है l गाँधी जी ने कहा ---- " लोग क्या करते हैं , यह मेरा आदर्श नहीं है , मुझे क्या करना चाहिए , वह मुझे अच्छी तरह याद है l मैं परंपरा या धन के लोभ में सिद्धांतों को बट्टा नहीं लगाऊंगा l " उच्च आदर्शों के प्रति इस निष्ठा ने ही उन्हें महात्मा और ' राष्ट्रपिता ' का पद दिलाया l
गाँधी जी ने वकालत प्रारंभ की l उन्होंने केवल सही अधिकारों के लिए ही पैरवी करने का फैसला किया l उनके एक मुवक्किल ने उन्हें अपना गलत पक्ष नहीं बताया , उन्होंने उसका केस ले लिया l बाद में जब पता लगा , तो कोर्ट में उन्होंने बहस नहीं की , तारीख बढ़ गई l कोर्ट से लौटकर उन्होंने उस मुवक्किल को उसकी दी हुई फीस वापस कर दी l
लोगों ने कहा --- आप फीस ले चुके हैं , अब केस वापस मत कीजिए l वकीलों को थोड़ा - बहुत तो इधर - उधर करना ही पड़ता है l गाँधी जी ने कहा ---- " लोग क्या करते हैं , यह मेरा आदर्श नहीं है , मुझे क्या करना चाहिए , वह मुझे अच्छी तरह याद है l मैं परंपरा या धन के लोभ में सिद्धांतों को बट्टा नहीं लगाऊंगा l " उच्च आदर्शों के प्रति इस निष्ठा ने ही उन्हें महात्मा और ' राष्ट्रपिता ' का पद दिलाया l
16 November 2019
WISDOM ---- आचरणविहीन धर्म आडम्बर के सिवा और कुछ भी नहीं
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने लिखा है ---- ' पत्थरों के पुराने मंदिरों में सिर झुकाने की रीति निभाने वालों की दशा भी पत्थर जैसी हो चली है l विचार और आचरण के बीच की गहरी खाई ने धर्म को प्रभावहीन बना दिया है l '
आचार्य श्री आगे लिखते हैं ---- ' धर्म का प्रचार तो बहुत हो रहा है , लेकिन इसका आचरण नहीं के बराबर हो रहा है l जहाँ देखो , जिधर सुनो , वहीँ प्रवचन , जो कि यथार्थ में पर - वचन हैं , दिखाई - सुनाई दे रहे हैं l जिसे देखो - सुनो , वही शास्त्र वचन दोहराता है , लेकिन अनुभव से एकदम अनभिज्ञ है l इसी का परिणाम है कि -- जीवन निरंतर दुःख और पीड़ा में डूबता जा रहा है l बातें देवत्व की हो रहीं हैं , जबकि जीवन निरंतर पशुता की ओर झुकता चला जा रहा है l
धर्मतंत्र का परिष्कार अनिवार्य है l
आचार्य श्री आगे लिखते हैं ---- ' धर्म का प्रचार तो बहुत हो रहा है , लेकिन इसका आचरण नहीं के बराबर हो रहा है l जहाँ देखो , जिधर सुनो , वहीँ प्रवचन , जो कि यथार्थ में पर - वचन हैं , दिखाई - सुनाई दे रहे हैं l जिसे देखो - सुनो , वही शास्त्र वचन दोहराता है , लेकिन अनुभव से एकदम अनभिज्ञ है l इसी का परिणाम है कि -- जीवन निरंतर दुःख और पीड़ा में डूबता जा रहा है l बातें देवत्व की हो रहीं हैं , जबकि जीवन निरंतर पशुता की ओर झुकता चला जा रहा है l
धर्मतंत्र का परिष्कार अनिवार्य है l
15 November 2019
WISDOM ----- भारतीय संस्कृति और गाय
भारतीय संस्कृति में गाय का स्थान सबसे ऊँचा है l महाभारत में एक कथा है ----- यह कथा रघुकुल के राजा नहुष और महर्षि च्यवन की है जिसे भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को सुनाया था l
महर्षि च्यवन जलकल्प करने के लिए जल में समाधि लगाए बैठे थे l एक दिन कुछ मछुआरों ने उसी स्थान पर मछलियां पकड़ने के लिए जाल फेंका l जाल में मछलियों के साथ महर्षि च्यवन भी खिंचे चले आये l उन्हें देखकर मछुआरों ने उनसे क्षमा मांगी और कहा अनजाने में उनसे यह पाप हुआ , हमें आज्ञा दें कि हम आपकी क्या सेवा करें l
महर्षि ने कहा --- यदि ये मछलियां जियेंगी तो मैं भी जीवन धारण करूँगा , अन्यथा नहीं l ' यह सुनकर सारे मछुआरे राजा नहुष के पास गए और सारा वृतांत कह सुनाया l राजा नहुष तत्काल अपने मंत्रीगणों के साथ महर्षि के पास पहुंचे और हाथ जोड़कर बोले --- आज्ञा दीजिये मैं आपकी क्या सेवा करूँ l
महर्षि च्यवन ने कहा --- मेरा व मछलियों का मूल्य चुका दिया जाये l राजा नहुष ने उसी समय पुरोहित को आज्ञा दी कि मछुआरों को एक हजार स्वर्ण मुद्राएं दो l महर्षि के इनकार करने पर पुन: एक लाख , एक करोड़ , फिर आधा राज्य और अंत में पूरा राज्य देने को कहा l
महर्षि ने कहा --- आधा राज्य या पूरा राज्य भी मेरा मूल्य नहीं है l आप ऋषियों से विचार कर मेरा उचित मूल्य दीजिए l
तब ऋषियों ने कहा --- ' गाय अमूल्य है l गौधन ( गाय ) का कोई मूल्य नहीं लगाया जा सकता l अत : आप महर्षि के मूल्य के रूप में एक - दो गौ दे दीजिए l राजा नहुष ने ऐसा ही किया , मछुआरों को एक गाय दी l तब महर्षि उठ गए और कहा --- हे राजन ! आपने मेरा उचित मूल्य देकर मुझे खरीद लिया , इस संसार में गाय के बराबर और और उससे उत्तम कोई धन नहीं है l
महर्षि च्यवन जलकल्प करने के लिए जल में समाधि लगाए बैठे थे l एक दिन कुछ मछुआरों ने उसी स्थान पर मछलियां पकड़ने के लिए जाल फेंका l जाल में मछलियों के साथ महर्षि च्यवन भी खिंचे चले आये l उन्हें देखकर मछुआरों ने उनसे क्षमा मांगी और कहा अनजाने में उनसे यह पाप हुआ , हमें आज्ञा दें कि हम आपकी क्या सेवा करें l
महर्षि ने कहा --- यदि ये मछलियां जियेंगी तो मैं भी जीवन धारण करूँगा , अन्यथा नहीं l ' यह सुनकर सारे मछुआरे राजा नहुष के पास गए और सारा वृतांत कह सुनाया l राजा नहुष तत्काल अपने मंत्रीगणों के साथ महर्षि के पास पहुंचे और हाथ जोड़कर बोले --- आज्ञा दीजिये मैं आपकी क्या सेवा करूँ l
महर्षि च्यवन ने कहा --- मेरा व मछलियों का मूल्य चुका दिया जाये l राजा नहुष ने उसी समय पुरोहित को आज्ञा दी कि मछुआरों को एक हजार स्वर्ण मुद्राएं दो l महर्षि के इनकार करने पर पुन: एक लाख , एक करोड़ , फिर आधा राज्य और अंत में पूरा राज्य देने को कहा l
महर्षि ने कहा --- आधा राज्य या पूरा राज्य भी मेरा मूल्य नहीं है l आप ऋषियों से विचार कर मेरा उचित मूल्य दीजिए l
तब ऋषियों ने कहा --- ' गाय अमूल्य है l गौधन ( गाय ) का कोई मूल्य नहीं लगाया जा सकता l अत : आप महर्षि के मूल्य के रूप में एक - दो गौ दे दीजिए l राजा नहुष ने ऐसा ही किया , मछुआरों को एक गाय दी l तब महर्षि उठ गए और कहा --- हे राजन ! आपने मेरा उचित मूल्य देकर मुझे खरीद लिया , इस संसार में गाय के बराबर और और उससे उत्तम कोई धन नहीं है l
14 November 2019
जीवन कला के कलाकार ---- पं. जवाहर लाल नेहरू
आनन्द भवन की अपार सम्पदा , कमला सी कमनीय पत्नी , पिता का विवेकपूर्ण स्नेह और फूल सी कोमल और सुन्दर इन्दिरा इन सबने मिलकर नेहरू जी को स्वर्गीय सुख प्रदान किया किन्तु अकेले भोगे जाने वाले सुख की अपेक्षा उन्हें करोड़ों लोगों की आजादी आवश्यक लगी l सब सुखोपभोग को तिलांजलि देकर वे कर्मक्षेत्र में आ डटे l
जिसके शरीर पर दिन भर में कितनी ही बार अलग - अलग कीमती पोशाक पहनी जातीं , वही जवाहर अब मोटी खादी पहनते l जिनके ऐश्वर्य - सुख को देखकर कई धनी मानी व्यक्तियों को ईर्ष्या होने लगती , वही नेहरू सीलन और बदबू भरी जेल की कोठरियों में जमीन पर सोने लगे l जिन्हे स्वादिष्ट भोजन मिलता था , वैभव विलास में पला राजकुमार कई दिनों तक उपवास करने लगा l दीखने में जमीन का बिस्तर , भूख - प्यास , जेल के कष्ट सब कुछ कितना असह्य कष्टकर लगता है , परन्तु देश की आजादी के लिए नेहरू जी ने इन्हे स्वेच्छा से वरण किया l
यह सब देख पिता मोतीलाल तड़प उठे , उन्होंने अपने पुत्र को लाख समझाया लेकिन वे न माने l आखिर पं. मोतीलाल भी उसी पथ के पथिक बन गए और बेटी इन्दिरा भी अपने पिता की अनुगामिनी बनी l
`देशभक्ति , लोक मंगल की कामना और कर्तव्य निष्ठा का उनका स्तर सदा इतना ऊँचा रहा कि व्यक्तिगत लोभ , मोह , स्वार्थ , द्वेष व अहंकार के प्रवेश की पहुँच वहां तक हो ही नहीं सकी l इन बुराइयों से वे कोसों दूर थे l
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी वाङ्मय ' महापुरुषों के अविस्मरणीय जीवन प्रसंग में लिखते हैं --- ' जो लोग नेहरू को नास्तिक कहते और मानते हैं , वे भूल करते हैं l इतना जरूर था कि वे धर्म के आडम्बर और प्रदर्शन से सर्वथा दूर रहे l एकांत के क्षणों में गीता का अध्ययन और अध्यात्म चिंतन में रत , जीवन सुखों का राष्ट्र हित में त्याग , सेवा और परोपकार के लिए समर्पित व्यक्ति यदि नास्तिक है तो फिर इस दुनिया में आस्तिक व्यक्ति कहीं नहीं मिल सकता l
जिसके शरीर पर दिन भर में कितनी ही बार अलग - अलग कीमती पोशाक पहनी जातीं , वही जवाहर अब मोटी खादी पहनते l जिनके ऐश्वर्य - सुख को देखकर कई धनी मानी व्यक्तियों को ईर्ष्या होने लगती , वही नेहरू सीलन और बदबू भरी जेल की कोठरियों में जमीन पर सोने लगे l जिन्हे स्वादिष्ट भोजन मिलता था , वैभव विलास में पला राजकुमार कई दिनों तक उपवास करने लगा l दीखने में जमीन का बिस्तर , भूख - प्यास , जेल के कष्ट सब कुछ कितना असह्य कष्टकर लगता है , परन्तु देश की आजादी के लिए नेहरू जी ने इन्हे स्वेच्छा से वरण किया l
यह सब देख पिता मोतीलाल तड़प उठे , उन्होंने अपने पुत्र को लाख समझाया लेकिन वे न माने l आखिर पं. मोतीलाल भी उसी पथ के पथिक बन गए और बेटी इन्दिरा भी अपने पिता की अनुगामिनी बनी l
`देशभक्ति , लोक मंगल की कामना और कर्तव्य निष्ठा का उनका स्तर सदा इतना ऊँचा रहा कि व्यक्तिगत लोभ , मोह , स्वार्थ , द्वेष व अहंकार के प्रवेश की पहुँच वहां तक हो ही नहीं सकी l इन बुराइयों से वे कोसों दूर थे l
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी वाङ्मय ' महापुरुषों के अविस्मरणीय जीवन प्रसंग में लिखते हैं --- ' जो लोग नेहरू को नास्तिक कहते और मानते हैं , वे भूल करते हैं l इतना जरूर था कि वे धर्म के आडम्बर और प्रदर्शन से सर्वथा दूर रहे l एकांत के क्षणों में गीता का अध्ययन और अध्यात्म चिंतन में रत , जीवन सुखों का राष्ट्र हित में त्याग , सेवा और परोपकार के लिए समर्पित व्यक्ति यदि नास्तिक है तो फिर इस दुनिया में आस्तिक व्यक्ति कहीं नहीं मिल सकता l
13 November 2019
WISDOM ------
श्रीकृष्ण को अपनाने के बाद संकटों में ग्रस्त मीराबाई मानसिक क्लेश से गुजर रहीं थीं , उन्होंने गोस्वामीजी को पत्र लिखा l गोस्वामी तुलसीदास जी ने उनकी दुविधा समझी और अपनी सलाह एक पंक्ति के माध्यम से लिख दी l ' विनय पत्रिका ' की यह पंक्ति हम सबके लिए जीवन संजीवनी के समान है l गोस्वामी जी लिखते हैं ----
" जाके प्रिय न राम वैदेही l
तजिये ताहि कोटि बैरी सम , जद्दपि परम सनेही l l
तज्यो पिता प्रह्लाद , विभीषण बंधु , भरत महतारी l
बलि गुरु तज्यो कंत ब्रज बनितन्हि , भये मुद मंगलकारी l l
जाके प्रिय न राम वैदेही l "
पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- " जब - जब इसे मैं पढ़ता हूँ तो हिम्मत और ताकत से भर जाता हूँ l भावार्थ यह है कि -- चाहे कोई कितना ही प्रिय हो , यदि वह भगवान के कार्य में , उनसे मिलने की हमारी साधना में बाधक हो तो उसे छोड़ देना चाहिए l प्रह्लाद ने पिता को त्यागा , विभीषण ने भाई रावण से संबंध - विच्छेद किया , भरत ने अपनी माँ को त्यागा , गलत परामर्श देने के कारण बलि ने गुरु शुक्राचार्य को को छोड़ा l व्रज में गोपिकाओं ने अपने सगे - संबंधियों को छोड़कर श्रीकृष्ण का वरण किया l हम भी कभी राम को न भूलें l कोई भी आकर्षक प्रस्ताव चाहे वह कितने ही तुरंत लाभ का हो , यदि भगवान के कार्य में बाधक हो तो उसे अपना सबसे बड़ा वैरी मानकर छोड़ देना चाहिए l
" जाके प्रिय न राम वैदेही l
तजिये ताहि कोटि बैरी सम , जद्दपि परम सनेही l l
तज्यो पिता प्रह्लाद , विभीषण बंधु , भरत महतारी l
बलि गुरु तज्यो कंत ब्रज बनितन्हि , भये मुद मंगलकारी l l
जाके प्रिय न राम वैदेही l "
पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- " जब - जब इसे मैं पढ़ता हूँ तो हिम्मत और ताकत से भर जाता हूँ l भावार्थ यह है कि -- चाहे कोई कितना ही प्रिय हो , यदि वह भगवान के कार्य में , उनसे मिलने की हमारी साधना में बाधक हो तो उसे छोड़ देना चाहिए l प्रह्लाद ने पिता को त्यागा , विभीषण ने भाई रावण से संबंध - विच्छेद किया , भरत ने अपनी माँ को त्यागा , गलत परामर्श देने के कारण बलि ने गुरु शुक्राचार्य को को छोड़ा l व्रज में गोपिकाओं ने अपने सगे - संबंधियों को छोड़कर श्रीकृष्ण का वरण किया l हम भी कभी राम को न भूलें l कोई भी आकर्षक प्रस्ताव चाहे वह कितने ही तुरंत लाभ का हो , यदि भगवान के कार्य में बाधक हो तो उसे अपना सबसे बड़ा वैरी मानकर छोड़ देना चाहिए l
12 November 2019
WISDOM ------ मनुष्य की महानता उसकी विवेक शक्ति में ही है
मनुष्य के विकास का और पशुओं से उसकी श्रेष्ठता का मुख्य कारण उसकी विवेक शक्ति अर्थात बुद्धि है l जब यह कार्य करना बंद कर दे , तो उसका सर्वनाश सुनिश्चित है l
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी कहते हैं --- बुद्धि के नाश से गिरने की प्रक्रिया को रोकना -- मनुष्य को संभालकर ऊँचा उठना सिखाना ही अध्यात्म है l आचार्य श्री कहते हैं --- 'गिरना सरल है l उठना कठिन है ---- इसलिए उन्होंने अध्यात्म को जिंदगी का शीर्षासन कहा है l जो इस शीर्षासन को सीख लेगा उसकी जिंदगी बन जाएगी l अपनी कामनाओं पर अंकुश रखकर , आसक्ति से दूर हटकर त्याग भरा जीवन जीना जिसने सीख लिया , वही सुख - शांति में रहता है l
बगदाद के शासक ने जितना कर सकता था धन - सम्पति जमा की l उसके लिए वह प्रजा पर तरह - तरह के अन्याय व अत्याचार भी करता था l उससे प्रजा बड़ी दुःखी थी l एक दिन गुरु नानक घूमते - घूमते बगदाद जा पहुंचे l शाही महल के सामने ही कंकड़ों का छोटा सा ढेर जमा कर उन्ही के पास बैठ गए l किसी ने गुरु नानक के आने की सूचना दी l राजा स्वयं वहां पहुंचा l कंकड़ों का ढेर देखते ही उसने पूछा --- ' महाराज ! आपने यह कंकड़ किसलिए इकट्ठे किए हैं ? " गुरु नानक ने शीघ्र उत्तर दिया --- " महाराज ! प्रलय के दिन इन्हे ईश्वर को उपहार में दूंगा l "
सम्राट जोर से हँसा और बोला --- " अरे नानक ! मैंने तो सुना था तू बड़ा ज्ञानी है , पर तुझे इतना भी नहीं पता कि प्रलय के दिन रूहें अपने साथ कंकड़ तो क्या सुई - धागा भी नहीं ले जा सकतीं l
गुरु नानक ने कहा ---- " मालूम नहीं महोदय , पर मैं आया तो इसी उद्देश्य से हूँ कि और तो नहीं पर शायद आप प्रजा को लूटकर जो धन इकट्ठा कर रहे हो , उसे अपने साथ ले जायेंगे तो उनके साथ ही यह कंकड़ - पत्थर भी चले जायेंगे l " राजा समझ गया और अब प्रजा का उत्पीड़न बंद कर उनकी सेवा में जुट गया l
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी कहते हैं --- बुद्धि के नाश से गिरने की प्रक्रिया को रोकना -- मनुष्य को संभालकर ऊँचा उठना सिखाना ही अध्यात्म है l आचार्य श्री कहते हैं --- 'गिरना सरल है l उठना कठिन है ---- इसलिए उन्होंने अध्यात्म को जिंदगी का शीर्षासन कहा है l जो इस शीर्षासन को सीख लेगा उसकी जिंदगी बन जाएगी l अपनी कामनाओं पर अंकुश रखकर , आसक्ति से दूर हटकर त्याग भरा जीवन जीना जिसने सीख लिया , वही सुख - शांति में रहता है l
बगदाद के शासक ने जितना कर सकता था धन - सम्पति जमा की l उसके लिए वह प्रजा पर तरह - तरह के अन्याय व अत्याचार भी करता था l उससे प्रजा बड़ी दुःखी थी l एक दिन गुरु नानक घूमते - घूमते बगदाद जा पहुंचे l शाही महल के सामने ही कंकड़ों का छोटा सा ढेर जमा कर उन्ही के पास बैठ गए l किसी ने गुरु नानक के आने की सूचना दी l राजा स्वयं वहां पहुंचा l कंकड़ों का ढेर देखते ही उसने पूछा --- ' महाराज ! आपने यह कंकड़ किसलिए इकट्ठे किए हैं ? " गुरु नानक ने शीघ्र उत्तर दिया --- " महाराज ! प्रलय के दिन इन्हे ईश्वर को उपहार में दूंगा l "
सम्राट जोर से हँसा और बोला --- " अरे नानक ! मैंने तो सुना था तू बड़ा ज्ञानी है , पर तुझे इतना भी नहीं पता कि प्रलय के दिन रूहें अपने साथ कंकड़ तो क्या सुई - धागा भी नहीं ले जा सकतीं l
गुरु नानक ने कहा ---- " मालूम नहीं महोदय , पर मैं आया तो इसी उद्देश्य से हूँ कि और तो नहीं पर शायद आप प्रजा को लूटकर जो धन इकट्ठा कर रहे हो , उसे अपने साथ ले जायेंगे तो उनके साथ ही यह कंकड़ - पत्थर भी चले जायेंगे l " राजा समझ गया और अब प्रजा का उत्पीड़न बंद कर उनकी सेवा में जुट गया l
11 November 2019
WISDOM ----
हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद से कहा ---- " तुम भी मेरी तरह धन - सम्पति अर्जित करो l मैं तुम्हारा पिता हूँ , तुम्हे मेरी हर बात माननी चाहिए l "
प्रह्लाद ने उत्तर दिया ---- " "पिता के नाते आप मुझसे शारीरिक सेवा ले सकते हैं , पर आपकी अनुचित बातों का समर्थन करूँ , यह मुझसे नहीं होगा l " उन्होंने अपार कष्ट सहे , संकट सहे किन्तु अनौचित्य का कभी समर्थन नहीं किया l स्वयं भगवान को आकर प्रह्लाद की रक्षा के लिए हिरण्य कशिपु का वध किया l
प्रह्लाद ने उत्तर दिया ---- " "पिता के नाते आप मुझसे शारीरिक सेवा ले सकते हैं , पर आपकी अनुचित बातों का समर्थन करूँ , यह मुझसे नहीं होगा l " उन्होंने अपार कष्ट सहे , संकट सहे किन्तु अनौचित्य का कभी समर्थन नहीं किया l स्वयं भगवान को आकर प्रह्लाद की रक्षा के लिए हिरण्य कशिपु का वध किया l
9 November 2019
WISDOM -----
कल , आज और कल के रूप में प्राचीन महर्षियों ने काल के तीन रूपों को त्रिकाल की संज्ञा दी है l अतीत हर मनुष्य के जीवन का एक अभिन्न अंग होता है l लोग अतीत को भुला देते हैं , लेकिन अतीत कभी व्यक्ति को नहीं भुलाता , हर पल - हर क्षण उसके साथ जुड़ा होता है l हमारा अतीत ही यह निर्धारित करता है कि हमारा भविष्य कैसा होगा l यदि किसी को भी अपने भविष्य की चिंता है तो उसे अपने वर्तमान को सुधारना चाहिए , क्योंकि बाद में वही अतीत बन जायेगा और उसके भविष्य को निर्धारित करने में अपनी अहम् भूमिका निभाएगा l
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी एक लेख में लिखते हैं ---- ' हमें जीवन में केवल वर्तमान दीखता है l अतीत अदृश्य होता है l लेकिन यह अतीत समुद्र में डूबे हुए उस असीम हिमखंड के समान होता है , जो अदृश्य तो होता है लेकिन किसी भी जहाज से टकराने पर उसे चूर - चूर कर सकता है l अतीत उसी तरह हमारे जीवन में अदृश्य होते हुए भी अपना पूरा प्रभाव डालता है l हमारे जीवन में अनायास घटित होने वाली सभी घटनाओं का कारण अतीत होता है l आचार्य श्री का कहना है अतीत को बदला नहीं जा सकता l यदि उसे बदलना है तो उसका एकमात्र समाधान --- वर्तमान को सुधारना है l वर्तमान को सुधारकर ही अतीत के दुष्कर्मों का प्रायश्चित संभव है , उसमे परिवर्तन संभव है l अतीत में हमने जो गड्ढा खोदा है , यदि उसे वर्तमान में नहीं पाटा गया तो भविष्य में उसमे गिरना स्वाभाविक है l इसलिए यह जरुरी है कि हम सभी अपने जीवन में श्रेष्ठ कर्मों को अपनाएं , सन्मार्ग पर चलें , अतीत में जाने - अनजाने में हुए कर्मों का प्रायश्चित करें , तभी हम अपने भविष्य को सुन्दर- सुखद बना सकेंगे l '
एक घटना है ---- एक व्यक्ति के पेट में बहुत दर्द होता था , जो खाता था वह उलटी कर देता था l किसी भी इलाज से उसे कोई फायदा नहीं हुआ l फिर उसने किसी प्रसिद्ध संत से इस बारे में पूछा l संत ने सूक्ष्म दृष्टि से उसके अतीत की ओर झाँका और ये पाया कि वह व्यक्ति अपने पुराने जन्म में पक्षियों का शिकार करता था , पक्षियों को मारना ही उसका शौक था l इस दुष्कर्म का परिणाम उसे इस जन्म में मिल रहा है l संत ने उससे कहा कि यदि वह इस जन्म में पक्षियों की सेवा करता है , उन्हें दाना - पानी देता है तो इन शुभ कर्मों के मेल से उसका स्वास्थ्य सुधर सकता है l अन्यथा कोई भी उपाय उसके पेट दर्द को ठीक नहीं कर सकता l
हमारा वर्तमान ही वह माध्यम है , जिसके द्वारा अतीत के कर्मों का प्रायश्चित किया जा सकता है l जो बीत चुका है , उसे तो सुधारा नहीं जा सकता , लेकिन उसके स्थान पर शुभ कर्म कर के अतीत में किये गए अशुभ कर्मों का प्रायश्चित किया जा सकता है l
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी एक लेख में लिखते हैं ---- ' हमें जीवन में केवल वर्तमान दीखता है l अतीत अदृश्य होता है l लेकिन यह अतीत समुद्र में डूबे हुए उस असीम हिमखंड के समान होता है , जो अदृश्य तो होता है लेकिन किसी भी जहाज से टकराने पर उसे चूर - चूर कर सकता है l अतीत उसी तरह हमारे जीवन में अदृश्य होते हुए भी अपना पूरा प्रभाव डालता है l हमारे जीवन में अनायास घटित होने वाली सभी घटनाओं का कारण अतीत होता है l आचार्य श्री का कहना है अतीत को बदला नहीं जा सकता l यदि उसे बदलना है तो उसका एकमात्र समाधान --- वर्तमान को सुधारना है l वर्तमान को सुधारकर ही अतीत के दुष्कर्मों का प्रायश्चित संभव है , उसमे परिवर्तन संभव है l अतीत में हमने जो गड्ढा खोदा है , यदि उसे वर्तमान में नहीं पाटा गया तो भविष्य में उसमे गिरना स्वाभाविक है l इसलिए यह जरुरी है कि हम सभी अपने जीवन में श्रेष्ठ कर्मों को अपनाएं , सन्मार्ग पर चलें , अतीत में जाने - अनजाने में हुए कर्मों का प्रायश्चित करें , तभी हम अपने भविष्य को सुन्दर- सुखद बना सकेंगे l '
एक घटना है ---- एक व्यक्ति के पेट में बहुत दर्द होता था , जो खाता था वह उलटी कर देता था l किसी भी इलाज से उसे कोई फायदा नहीं हुआ l फिर उसने किसी प्रसिद्ध संत से इस बारे में पूछा l संत ने सूक्ष्म दृष्टि से उसके अतीत की ओर झाँका और ये पाया कि वह व्यक्ति अपने पुराने जन्म में पक्षियों का शिकार करता था , पक्षियों को मारना ही उसका शौक था l इस दुष्कर्म का परिणाम उसे इस जन्म में मिल रहा है l संत ने उससे कहा कि यदि वह इस जन्म में पक्षियों की सेवा करता है , उन्हें दाना - पानी देता है तो इन शुभ कर्मों के मेल से उसका स्वास्थ्य सुधर सकता है l अन्यथा कोई भी उपाय उसके पेट दर्द को ठीक नहीं कर सकता l
हमारा वर्तमान ही वह माध्यम है , जिसके द्वारा अतीत के कर्मों का प्रायश्चित किया जा सकता है l जो बीत चुका है , उसे तो सुधारा नहीं जा सकता , लेकिन उसके स्थान पर शुभ कर्म कर के अतीत में किये गए अशुभ कर्मों का प्रायश्चित किया जा सकता है l
7 November 2019
WISDOM ------ सामूहिक विवेक का जागरण जरुरी है
कहते हैं कि एक बार ' कामदेव ' ने लोगों को परेशान करने की ठानी और अपनी माया चारों और फैला दी l वह लोगों के मन में घुस गया और हर एक के मन में असीम कामनाएं भड़का दीं l पहले लोगों की आवश्यकताएं सीमित थीं वे संतुष्ट रहते थे किन्तु अब प्रतिस्पर्धा बढ़ गई ,ईर्ष्या - द्वेष बढ़ गया , लोगों को उचित - अनुचित का ज्ञान नहीं रहा l चारों और अशांति फ़ैल गई l
कामदेव अपने इस कौतुक पर बड़ा प्रसन्न था , उसने किसी को भी नहीं छोड़ा l
कहते हैं धरती की इस करुण स्थिति को देखकर शिवजी ने अपना तीसरा नेत्र खोला और कामदेव को भस्म कर दिया l तब संसार को शांति मिली l
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी का कहना है --- ' आज कामदेव ने मानवीय चेतना को दूषित कर दिया है l स्वार्थ बढ़ रहा है , पाप प्रचंड हो रहा है , नरक की ज्वालाएं हर क्षेत्र में धधकती जा रही हैं l यदि महाकाल का तीसरा नेत्र नहीं खुला तो स्थिति और भयंकर हो जाएगी l यह तीसरा नेत्र और कुछ नहीं ,--'- सामूहिक विवेक ' ही है l इसके जागने से अज्ञान का अंधकार मिटेगा और आज की असंख्य समस्याओं का समाधान निकलेगा l गायत्री परिवार का ' विचार क्रांति अभियान ' एक प्रकार से महाकाल का तृतीय नेत्र ही है l विचार परिष्कृत होंगे विवेग जागेगा तभी स्वस्थ समाज का निर्माण होगा l
कामदेव अपने इस कौतुक पर बड़ा प्रसन्न था , उसने किसी को भी नहीं छोड़ा l
कहते हैं धरती की इस करुण स्थिति को देखकर शिवजी ने अपना तीसरा नेत्र खोला और कामदेव को भस्म कर दिया l तब संसार को शांति मिली l
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी का कहना है --- ' आज कामदेव ने मानवीय चेतना को दूषित कर दिया है l स्वार्थ बढ़ रहा है , पाप प्रचंड हो रहा है , नरक की ज्वालाएं हर क्षेत्र में धधकती जा रही हैं l यदि महाकाल का तीसरा नेत्र नहीं खुला तो स्थिति और भयंकर हो जाएगी l यह तीसरा नेत्र और कुछ नहीं ,--'- सामूहिक विवेक ' ही है l इसके जागने से अज्ञान का अंधकार मिटेगा और आज की असंख्य समस्याओं का समाधान निकलेगा l गायत्री परिवार का ' विचार क्रांति अभियान ' एक प्रकार से महाकाल का तृतीय नेत्र ही है l विचार परिष्कृत होंगे विवेग जागेगा तभी स्वस्थ समाज का निर्माण होगा l
6 November 2019
WISDOM -----
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने अपने एक लेख में लिखा था ---- ' हम राजनीति में भाग क्यों नहीं लेते ? आज के दौर में राजनीति से कहीं अधिक आवश्यक समाजसेवा है l समाज श्रेष्ठ होगा तो सरकारें स्वयं ही श्रेष्ठ बन जाएँगी l '
आचार्य श्री ने आगे लिखा ---- " वर्तमान में चुनौती स्वराज्य को सुराज्य में बदलने की है l इसके लिए समाज की जड़ों में पानी देना होगा l अच्छे व्यक्तित्व गढ़ने होंगे , जो न केवल राजनीति को दिशा दें , बल्कि सम्पूर्ण राष्ट्रीय व्यवस्था में अपना सार्थक योगदान प्रस्तुत करें l यह अपने देश का दुर्भाग्य है कि लोग सार्वजनिक क्षेत्र में प्रवेश तो करना चाहते हैं , पर उनका दृष्टिकोण अति संकीर्ण होता है l लोग राजनीति को ही सब कुछ समझ लेते हैं l यही नहीं अपनी जीत के लिए हर संभव छल - बल और कौशल का प्रयोग भी करते हैं l कभी - कभी तो ये मतदाताओं में मतिभ्रम पैदा कर के उपयुक्त प्रत्याशियों का मार्ग भी अवरुद्ध कर देते हैं l "
तुलसीदास जी ने लिखा है --- काला नाग चमकीला होता है , पर विष से भरा होता है l माँ अपने बच्चे को उससे बचाती है कि कहीं वह उसे देखकर उससे खेलने न लगे l राजनीति भी कुछ इसी प्रकार की है l उसमे मद है , अहंकार के विस्तार हेतु परिपूर्ण गुंजाइश है l अत : वह आकर्षित करती है l
आचार्य श्री कहते हैं --- " सामाजिक , नैतिक आंदोलन ही इस आकर्षण से बचकर राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया पूरी कर सकते हैं l हजार वर्ष की गुलामी से अपना सब कुछ खो बैठने वाले समाज में फैली हुई अनगिनत बुराइयों के साथ नैतिक , बौद्धिक और सामाजिक पिछड़ेपन को दूर किया जाना सबसे बड़ा काम है और इसे किसी राजनीति के द्वारा नहीं , बल्कि सामाजिक सत्प्रवृत्तियों के द्वारा ही पूरा किया जा सकता है l जांत - पाँत के नाम पर हजारों टुकड़ों में बंटे - बिखरे समाज को एकता - समता के सूत्र में बाँधने की आवश्यकता है l "
आचार्य श्री ने आगे लिखा ---- " वर्तमान में चुनौती स्वराज्य को सुराज्य में बदलने की है l इसके लिए समाज की जड़ों में पानी देना होगा l अच्छे व्यक्तित्व गढ़ने होंगे , जो न केवल राजनीति को दिशा दें , बल्कि सम्पूर्ण राष्ट्रीय व्यवस्था में अपना सार्थक योगदान प्रस्तुत करें l यह अपने देश का दुर्भाग्य है कि लोग सार्वजनिक क्षेत्र में प्रवेश तो करना चाहते हैं , पर उनका दृष्टिकोण अति संकीर्ण होता है l लोग राजनीति को ही सब कुछ समझ लेते हैं l यही नहीं अपनी जीत के लिए हर संभव छल - बल और कौशल का प्रयोग भी करते हैं l कभी - कभी तो ये मतदाताओं में मतिभ्रम पैदा कर के उपयुक्त प्रत्याशियों का मार्ग भी अवरुद्ध कर देते हैं l "
तुलसीदास जी ने लिखा है --- काला नाग चमकीला होता है , पर विष से भरा होता है l माँ अपने बच्चे को उससे बचाती है कि कहीं वह उसे देखकर उससे खेलने न लगे l राजनीति भी कुछ इसी प्रकार की है l उसमे मद है , अहंकार के विस्तार हेतु परिपूर्ण गुंजाइश है l अत : वह आकर्षित करती है l
आचार्य श्री कहते हैं --- " सामाजिक , नैतिक आंदोलन ही इस आकर्षण से बचकर राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया पूरी कर सकते हैं l हजार वर्ष की गुलामी से अपना सब कुछ खो बैठने वाले समाज में फैली हुई अनगिनत बुराइयों के साथ नैतिक , बौद्धिक और सामाजिक पिछड़ेपन को दूर किया जाना सबसे बड़ा काम है और इसे किसी राजनीति के द्वारा नहीं , बल्कि सामाजिक सत्प्रवृत्तियों के द्वारा ही पूरा किया जा सकता है l जांत - पाँत के नाम पर हजारों टुकड़ों में बंटे - बिखरे समाज को एकता - समता के सूत्र में बाँधने की आवश्यकता है l "
5 November 2019
WISDOM ------
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने लिखा है --- ' गुणवान होना बहुत अच्छी बात है , गुणों से ही संसार में यश फैलता है l गुणों की अधिकता से कुशलता और सफलता दोनों ही खिंची चली आती हैं l लेकिन इन गुणों के साथ यदि व्यक्ति अभिमानी है , अहंकारी है तो ये अहंकार उसके समस्त गुणों और विशेषताओं पर ग्रहण लगा देता है l ऐसा व्यक्ति दैवी प्रयोजनों के अनुकूल नहीं रह जाता l '
रावण से युद्ध के पूर्व भगवान श्रीराम ने ब्रह्माजी द्वारा सुझाई गई विधि से चंडी देवी का पूजन किया l देवी प्रकट हुईं और उन्होंने श्रीराम को विजयश्री का आशीर्वाद दिया l
उधर रावण ने भी अमरता के लोभ से और विजय के लिए चंडी पाठ प्रारम्भ किया l रावण विद्वान् , तपस्वी होने के साथ अहंकारी था l ' अखण्ड ज्योति ' में लेख है ----- एक ब्राह्मण बालक वहां पर पाठ कर रहे ब्राह्मणों की सेवा भक्ति भाव से कर रहा था l चंडी यज्ञ की पवित्र वेदी की स्वच्छता , सफाई , पाठ में प्रयुक्त सामग्री का यथास्थान वितरण , पंडितों की भोजन व्यवस्था , उनकी निजी सेवा तक वह कटिबद्ध रहता था l पता नहीं वह बालक कब सोता और जागता था , जब भी देखा वह सेवा कार्य में निरत रहता था l ब्राह्मणों ने इस बालक की निस्स्वार्थ सेवा से प्रसन्न होकर वरदान मांगने को कहा l बालक ने कहा -- - " हे ब्राह्मण देवताओं ! यदि आप प्रसन्न हैं तो मेरा एक सुझाव मानने की कृपा करें , इस यज्ञ में प्रयुक्त मन्त्र के एक शब्द मूर्तिहरिणी के
' ह ' अक्षर के स्थान पर ' क ' उच्चारित किया जाये l " ब्राह्मण इस गूढ़ार्थ को समझ न सके और बालक के कहे अनुसार ' मूर्तिहरिणी ' के स्थान पर ' मूर्तिकरिणी ' कह के आहुतियाँ प्रदान करने लगे l ' मूर्तिहरिणी ' का तात्पर्य है प्राणियों की पीड़ा हरने वाली और ' मूर्तिकरिणी ' का अर्थ है प्राणियों को पीड़ित करने वाली l इस विकृत मन्त्र के प्रभाव से देवी अत्यंत क्रोधित हो उठीं और उन्होंने रावण को ' सर्वनाश ' का अभिशाप दिया l यह ब्राह्मण बालक कोई और नहीं , बल्कि राम भक्त हनुमान थे , जिन्होंने मन्त्र के ' ह ' की जगह ' क ' कहलवाकर यज्ञ की दिशा ही बदल दी l
रावण अहंकारी था , उसमे छल - कपट था इस कारण दैवी कृपा से वंचित रह गया l
रावण से युद्ध के पूर्व भगवान श्रीराम ने ब्रह्माजी द्वारा सुझाई गई विधि से चंडी देवी का पूजन किया l देवी प्रकट हुईं और उन्होंने श्रीराम को विजयश्री का आशीर्वाद दिया l
उधर रावण ने भी अमरता के लोभ से और विजय के लिए चंडी पाठ प्रारम्भ किया l रावण विद्वान् , तपस्वी होने के साथ अहंकारी था l ' अखण्ड ज्योति ' में लेख है ----- एक ब्राह्मण बालक वहां पर पाठ कर रहे ब्राह्मणों की सेवा भक्ति भाव से कर रहा था l चंडी यज्ञ की पवित्र वेदी की स्वच्छता , सफाई , पाठ में प्रयुक्त सामग्री का यथास्थान वितरण , पंडितों की भोजन व्यवस्था , उनकी निजी सेवा तक वह कटिबद्ध रहता था l पता नहीं वह बालक कब सोता और जागता था , जब भी देखा वह सेवा कार्य में निरत रहता था l ब्राह्मणों ने इस बालक की निस्स्वार्थ सेवा से प्रसन्न होकर वरदान मांगने को कहा l बालक ने कहा -- - " हे ब्राह्मण देवताओं ! यदि आप प्रसन्न हैं तो मेरा एक सुझाव मानने की कृपा करें , इस यज्ञ में प्रयुक्त मन्त्र के एक शब्द मूर्तिहरिणी के
' ह ' अक्षर के स्थान पर ' क ' उच्चारित किया जाये l " ब्राह्मण इस गूढ़ार्थ को समझ न सके और बालक के कहे अनुसार ' मूर्तिहरिणी ' के स्थान पर ' मूर्तिकरिणी ' कह के आहुतियाँ प्रदान करने लगे l ' मूर्तिहरिणी ' का तात्पर्य है प्राणियों की पीड़ा हरने वाली और ' मूर्तिकरिणी ' का अर्थ है प्राणियों को पीड़ित करने वाली l इस विकृत मन्त्र के प्रभाव से देवी अत्यंत क्रोधित हो उठीं और उन्होंने रावण को ' सर्वनाश ' का अभिशाप दिया l यह ब्राह्मण बालक कोई और नहीं , बल्कि राम भक्त हनुमान थे , जिन्होंने मन्त्र के ' ह ' की जगह ' क ' कहलवाकर यज्ञ की दिशा ही बदल दी l
रावण अहंकारी था , उसमे छल - कपट था इस कारण दैवी कृपा से वंचित रह गया l
4 November 2019
WISDOM ----- सृष्टि में मात्र कर्मफल का सिद्धांत ही अकाट्य है
किसी भी व्यक्ति के कर्म को काल नियंत्रित करता है l अपने समय से पहले न तो किसी को अपने कर्मों का फल भोगना होता है ``और न समय के जाने के बाद उसको भोगना शेष रहता है l इस सृष्टि में कभी किसी के साथ पक्षपात नहीं होता l सभी अपने कर्मों के अनुसार फल भोगते हैं l भगवान श्रीकृष्ण जो स्वयं लीला पुरुषोत्तम हैं l अपने स्पर्श मात्र से दूसरों का कल्याण करते हैं , उन्होंने भी ' जरा ' नामक बहेलिया का विषबुझा तीर लगने से अपने शरीर को छोड़ा l
यह भी उनका पिछला भोग था l इसके पहले जन्म में जब वे रामावतार के रूप में आये थे तो उन्होंने छिपकर बालि पर तीर चलकर उसे मारा था l भले ही उनके इस कर्म के पीछे सुग्रीव का हित था , लेकिन उन्हें कर्मफल भोगना पड़ा l उसी बालि ने ' जरा ' नाम के बहेलिये के रूप में छिपकर उनके ऊपर यह समझकर तीर चलाया कि जंगल में वहां कोई जानवर है l इस तरह भगवान श्रीकृष्ण का भोग पूरा हुआ l
यह भी उनका पिछला भोग था l इसके पहले जन्म में जब वे रामावतार के रूप में आये थे तो उन्होंने छिपकर बालि पर तीर चलकर उसे मारा था l भले ही उनके इस कर्म के पीछे सुग्रीव का हित था , लेकिन उन्हें कर्मफल भोगना पड़ा l उसी बालि ने ' जरा ' नाम के बहेलिये के रूप में छिपकर उनके ऊपर यह समझकर तीर चलाया कि जंगल में वहां कोई जानवर है l इस तरह भगवान श्रीकृष्ण का भोग पूरा हुआ l
3 November 2019
प्रशंसा सकरात्मक हो
अपनी प्रशंसा सभी को अच्छी लगती है l कुछ लोग ऐसे होते हैं , जिनके काम करने का उद्देश्य प्रशंसा प्राप्त कारना , यश कमाना होता है l ----- एक राजा को दयालु कहलाने और अपनी प्रशंसा सुनने की ललक लगी l उसने एक दिन ऐसा निश्चय किया कि पक्षी पकड़ने वाले लोग दरबार में आएं और बंदी पक्षियों के मूल्य लेकर उन्हें स्वतंत्र कर दें l राजा की दयालुता का यश फैला l निश्चित दिन पर हजारों पिंजड़े खाली होते और राज्य - कोष से उन्हें धन मिलता l
एक मुनि - मनीषी वहां पहुंचे l दृश्य देखा तो बहुत दुःखी हुए l मुनि ने राजा को समझाया --- " आपकी यश- कामना इन निरीह पक्षियों को बहुत महँगी पड़ती है l लालच की पूर्ति के लिए असंख्य नए शिकारी पैदा हो गए और पकडे जाने के कुचक्र में अगणित पक्षियों को त्रास मिलता और प्राण जाते l यदि दयालुता का प्रदर्शन नहीं , पालन अभीष्ट है तो आप पक्षी पकड़ने पर प्रतिबन्ध लगाएं l राजा ने अपनी भूल समझी और दयालुता का प्रदर्शन छोड़कर वह नीति अपनायी , जिससे वस्तुत; दया - धर्म का पालन होता था l
एक मुनि - मनीषी वहां पहुंचे l दृश्य देखा तो बहुत दुःखी हुए l मुनि ने राजा को समझाया --- " आपकी यश- कामना इन निरीह पक्षियों को बहुत महँगी पड़ती है l लालच की पूर्ति के लिए असंख्य नए शिकारी पैदा हो गए और पकडे जाने के कुचक्र में अगणित पक्षियों को त्रास मिलता और प्राण जाते l यदि दयालुता का प्रदर्शन नहीं , पालन अभीष्ट है तो आप पक्षी पकड़ने पर प्रतिबन्ध लगाएं l राजा ने अपनी भूल समझी और दयालुता का प्रदर्शन छोड़कर वह नीति अपनायी , जिससे वस्तुत; दया - धर्म का पालन होता था l
2 November 2019
WISDOM ------ ' काल ' सर्वोपरि है l
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने लिखा है ---- " व्यक्ति की महत्ता नहीं है l महत्ता है उसकी अंतरात्मा में स्थित अंत:शक्ति की l जो सदा अपनी अंत:शक्ति को विकसित करता है और उसे अहंकार से बचाए रखता है , वही महाकाली का यंत्र बनता है l वही राष्ट्र एवं विश्व के निर्माण - कार्य में सर्वोपरि एवं सबसे आगे खड़ा रहता है l "
अहंकार से अंत:शक्ति का घोर दुरूपयोग होता है l इसी अहंकार के कारण ऐसे सम्राज्य , जो कभी अस्त नहीं होते जान पड़े , काल के विराट पहियों में दबकर विलीन हो गए l
आचार्य श्री ने आगे लिखा है --- " काल से बढ़कर कोई नहीं है l इनसान तो इसका खिलौना एवं निमित मात्र है l वे , जो स्वयं पर गर्व करते हैं कि महान घटनाओं के जन्मदाता वही हैं , वे बड़ी भ्रान्ति में रहते हैं , क्योंकि प्रत्यक्ष में उन्हें यह कार्य स्वयं से संचालित होता हुआ जान पड़ता है l यदि यह अहंकार बना रहे तो अंत में वे काल की गहरी खाई में जा गिरते हैं l लेकिन वे लोग जो स्वयं को भगवान का यंत्र मानकर काम करते हैं तथा सारा श्रेय उसी भगवान को देते हुए चलते हैं , वे ही जीवित रहते हैं और समाज में उन्हीं की प्रतिष्ठा होती है और ईश्वर उन्ही को माध्यम बनाकर कार्य करता है l "
अहंकार से अंत:शक्ति का घोर दुरूपयोग होता है l इसी अहंकार के कारण ऐसे सम्राज्य , जो कभी अस्त नहीं होते जान पड़े , काल के विराट पहियों में दबकर विलीन हो गए l
आचार्य श्री ने आगे लिखा है --- " काल से बढ़कर कोई नहीं है l इनसान तो इसका खिलौना एवं निमित मात्र है l वे , जो स्वयं पर गर्व करते हैं कि महान घटनाओं के जन्मदाता वही हैं , वे बड़ी भ्रान्ति में रहते हैं , क्योंकि प्रत्यक्ष में उन्हें यह कार्य स्वयं से संचालित होता हुआ जान पड़ता है l यदि यह अहंकार बना रहे तो अंत में वे काल की गहरी खाई में जा गिरते हैं l लेकिन वे लोग जो स्वयं को भगवान का यंत्र मानकर काम करते हैं तथा सारा श्रेय उसी भगवान को देते हुए चलते हैं , वे ही जीवित रहते हैं और समाज में उन्हीं की प्रतिष्ठा होती है और ईश्वर उन्ही को माध्यम बनाकर कार्य करता है l "
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