5 July 2013

WISDOM

'केवल इंद्रियों पर संयम करना काफी नहीं है | संयमी वह है जो विचारों,पर  संयम करना जानता  है '
  इस संबंध में भगवान बुद्ध भिक्षुओं से कहते हैं -"भिक्षुओं ! गलत विचारों पर विजय का एकमात्र मार्ग समय -समय पर मन की गतिविधियों का पर्यवेक्षण करना ,उनपर चिंतन -मनन करना और जो कुछ निम्न एवं हेय है उसको त्यागते हुए श्रेष्ठ का वरण एवं विकास करना है | इस तरह जब भिक्षु अपने बुरे विचारों पर विजयी हो जायेगा ,वह एक दिन अपने मन का स्वामी बनेगा और सदैव के लिये बुराई एवं दुःख से मुक्त हो जायेगा | "

HOW TO GENERATE WILL - POWER

'हम दिव्यता के अंशधार हैं ,हम शाश्वत की संतान हैं | हमारे भीतर अनंत संभावनाएँ विद्दमान हैं ,जिन्हें हमें व्यक्त करना है | हमें अपने अस्तित्व के दिव्य सत्य से प्रेम करना होगा | '
            जीवन की सफलता एवं विफलता के निर्णायक तत्वों में  इच्छा शक्ति का स्थान सर्वोपरि है | इच्छा शक्ति के होने पर व्यक्ति जैसे शून्य में से ही सब कुछ प्रकट कर देता है और इसके अभाव में व्यक्ति सब कुछ होते हुए भी दुर्भाग्य एवं असफलता का रोना रोता रहता है |
       इच्छा शक्ति के विकास के लिये जीवन मूल्यों का उचित ज्ञान व निर्धारण अनिवार्य है ,जो दिशा सूचक के रूप में जीवन को सही दिशा दे सकें अन्यथा अनुचित दिशा में जाने वाला हर कदम जीवन के संकट को और बढ़ाता ही जायेगा | इस विषय में सदगुरुओं की अमृत वाणी ,महापुरुषों का सत्साहित्य व धर्म ग्रंथों का स्वाध्याय एवं ,चिंतन -मनन बहुत उपयोगी है | इसी के प्रकाश में इच्छा शक्ति के जागरण एवं विकास की प्रक्रिया गति पकड़ती है | इसमें तीन बातें अभिन्न रूप से जुड़ी हैं --
1. सत और असत ,उचित और अनुचित के बीच सतत विवेक ,
2. जो सही है ,उसको करने में संलग्नता
3. जो अवांछनीय व अनुचित है ,उसके प्रतिकार में जागरूकता |
                   इच्छा शक्ति के विकास में एकाग्रता की शक्ति बहुत सहायक है | हम जो भी कार्य करें ,उसे पूरे मन से करें और ऐसे कार्यों से बचें जिनमे ऊर्जा का अनावश्यक अपव्यय होता है जैसे निरर्थक वाद विवाद ,परनिंदा ,परदोष दर्शन आदि से दूर रहें |
                     वास्तव में इच्छा शक्ति के विकास का मुख्य रहस्य ब्रह्मचर्य के उचित अभ्यास में निहित है |
               हमें सर्वशक्तिमान प्रभु से इच्छा शक्ति के लिये प्रार्थना करनी चाहिये | अपने सच्चे प्रयास व प्रभु की कृपा के साथ हम इच्छा शक्ति के विकास पथ पर आगे बढ़ सकते हैं और प्रभु के प्रति समर्पण भाव के अनुरूप इसकी पूर्णता प्राप्त कर सकते हैं
               जितना हमारा जीवन आत्म जागरण ,विकास एवं भगवदभक्ति की पुण्य क्रिया में संलग्न होगा ,उतनी ही इच्छा शक्ति के विकास का पथ प्रशस्त होता जायेगा और उतना ही हमारा जीवन सच्चे सुख ,शांति व सफलता से परिपूर्ण होता जायेगा |