31 December 2018

WISDOM ----- नव वर्ष की सार्थकता तभी है जब समाज संवेदनशील बने

   मनुष्य  की  संवेदनहीनता  का  सबसे  बड़ा  प्रमाण   यही  है  कि  वह  अपनी  पूरक --- नारी  जाति  पर   युगों  से  अत्याचार  करता  आया  है  l  यद्दपि  नारियों  की  अवमानना  समूचे  विश्व  में  व्यापक  रूप  से  अभी  भी  विद्दमान  है  ,  किन्तु  अपने  देश  में  यह  विषबेल  की  तरह   गहराई  से  लोगों  के  संस्कारों  में  समाई  है   l  कन्या  भ्रूण हत्या ,  दहेज़ हत्या ,   छोटी - छोटी  बच्चियों  का  विभिन्न  संस्थाओं  में  उत्पीड़न,  छोटी  बच्चियों  के  साथ  दुष्कर्म  व  हत्या   ,  कार्यालयों  में  नारी  उत्पीड़न--- ये  सब  घटनाएँ  सिद्ध  करती  हैं  कि  हमने  किसी नए  वर्ष  में  कभी  प्रवेश  ही  नहीं  किया ,   संवेदना  के  अभाव  में  मनुष्य  पशु  से  भी  बदतर   राक्षस  हो  गया  है   l  चेतना  के  स्तर  पर  कोई  विकास  नहीं  हुआ  l 
   तमाम  क़ानूनी  बंदिशों ,  विभिन्न  नियम - कानूनों  के  बावजूद   बालिका - कन्याओं  का  उत्पीड़न,  हत्याएं  आज  भी   जारी  हैं  l   कन्याओं  की  निर्मम  हत्याएं   सदियों  से  मनुष्य  अपने  अहंकार  की  पूर्ति   के  लिए  करता  आया  है  l  ये  कुरीतियाँ  मनुष्य  के  स्वभाव   में   जिस स्थान  पर  जड़  जमाए  बैठी  हैं  , वहां  से  इन्हें  हटाना - मिटाना  इतना  आसान  नहीं   है  l    इस  अमानवीयता  को  समाप्त  करने  का  एक  ही  रास्ता  है ---- आत्मपरिष्कार  l  जब  लोगों  की  मानसिकता  परिष्कृत होगी  ,  लोग  समझेंगे  कि  धर्म  का  सार -- संवेदना  है  ,  तभी  मनुष्य  सच्चे  अर्थों  में  मनुष्य    होगा  l  
  महात्मा   गाँधी  ने  कहा  था ---'  भारत   की  दासता  मानसिक  है  ,  वह  कुप्रथाओं  में  बुरी  तरह  फंसा  हुआ  है  l  छुआछूत  और  नारी  अवहेलना  -- ये  दो  इतने  भारी  पातक  हैं   जो  भारतीय  समाज  को  खोखला  करते  जा  रहे  हैं  ,  इन्हें  हटाए - मिटाए  बिना  स्वाधीनता   विशेष  अर्थ  नहीं  रखती   l